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मुख्तार अंसारी ने कृष्णानंद राय की हत्या लिए खरीद रहा था 1 करोड़ की मशीन गन

ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर/लखनऊ. गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। उसने विधायक कृष्णानंद राय की बुलेटप्रूफ गाड़ी को उड़ाने के लिए लाइट मशीन गन खरीदी थी। यूपी एसटीएफ में डीएसपी रहे शैलेंद्र सिंह ने यह बड़ा खुलासा किया है। शैलेंद्र सिंह ने उसके पास से लाइट मशीन गन बरामद की थी। 

वर्ष 2004 में सेना के भगोड़े से मुख्तार ने यह मशीन गन खरीदी थी। शैलेंद्र सिंह ने इस बरामदगी के बाद गैंगस्टर पर पोटा लगाने की सिफारिश की थी। हालांकि, सीनियर अधिकारियों की ओर से इस मामले को डाउन करने का दबाव बनाया गया था। शैलेंद्र सिंह ने अधिकारियों का आदेश मानने से इनकार कर दिया। दवाब बढ़ा तो उन्होंने नौकरी ही छोड़ दी। इन दिनों वे जैविक खेती करते हैं। शैलेंद्र सिंह अपनी पीड़ा को जाहिर करते हुए कहते हैं कि गिरोह के सरगना को निशाना बनाने के लिए हमारे ऊपर काफी दवाब बनाया गया था। वे मुख्तार गिरोह के निशाने पर भी आ गए थे।

जनवरी 2004 में लखनऊ छावनी में हुई थी गोलीबारी

माफिया से नेता बने मुख्तार अंसारी और मोहम्मदाबाद के तत्कालीन विधायक कृष्णानंद राय के बीच जनवरी 2004 में लखनऊ छावनी में गोलीबारी हुई थी। दो गिरोह के बीच गैंगवार के बाद सरकार की ओर से जांच बैठाई गई। शैलेंद्र सिंह कहते हैं कि यूपी स्पेशल टास्क फोर्स के तत्कालीन एसएसपी राजकुमार विश्वकर्मा (अब यूपी के कार्यवाहक डीजीपी) ने मुझे निगरानी का काम सौंपा। गिरोह के सरगना और गुर्गों पर दबाव बढ़ा। कॉल्स इंटरसेप्ट किए जाने लगे। इसी दौरान मैंने मुख्तार अंसारी और उनके रिश्तेदार तनवीर अहमद (उर्फ तन्नू) के बीच बाबूलाल यादव से एक लाइट मशीन गन (एलएमजी) खरीदने की बातचीत सुनी। उसने सेना से चुराए गए एलएमजी को बेचने की पेशकश की थी। बाबूलाल यादव लंबे समय तक मुख्तार के गनर मुन्नार यादव का भतीजा भी था।

किसी भी कीमत पर चाहता था एलएमजी

शैलेंद्र बताते हैं कि मुख्तार अंसारी किसी भी कीमत पर एलएमजी को खरीदना चाहता था। माफिया चाहता था कि बाबूलाल विरोधियों को इसे न बेचे, इसको लेकर वह कोई भी कीमत देने को तैयार था। बाबूलाल ने उससे एलएमजी के लिए एक करोड़ रुपए मांगे। वह भारी कीमत चुकाने को तैयार हो गया। मुख्तार ने अपने गुर्गों से कहा कि एलएमजी विधायक राय की बुलेटप्रूफ एसयूवी को भेद देगी। एक सामान्य असॉल्ट राइफल इस कार्य को नहीं कर सकती है। दरअसल, लखनऊ छावनी शूटआउट में उसका प्रयास अधूरा रह गया था। यूपी एसटीएफ के पूर्व अधिकारी कहते हैं कि मैंने एसएसपी एसटीएफ को अवगत कराया। उन्होंने मुझे तुरंत कार्रवाई करने और मुख्तार के हाथ में आने से पहले बाबूलाल से एलएमजी बरामद करने का निर्देश दिया। अगर एलएमजी मुख्तार के हाथ लग जाती तो इसे वापस लेना संभव नहीं होता। दरअसल, मुख्तार अंसारी तब तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार के करीबियों में गिना जाता था।

ऑपरेशन में जब्त किया गया था हथियार

24-25 जनवरी 2004 की मध्य रात्रि को एक ऑपरेशन की योजना बनाई गई और उसे अंजाम दिया गया। शैलेंद्र सिंह कहते हैं कि मेरी टीम ने अडिग संकल्प और साहस का परिचय देते हुए वाराणसी के चौबेपुर थाना क्षेत्र से बाबूलाल और उसके मामा मुन्नार यादव को गिरफ्तार किया। उसके पास से एलएमजी और उसके कारतूस जब्त किए। हालांकि, बाद में नवंबर 2005 में कृष्णानंद राय को गोली मार दी गई। इस मामले में मुख्तार को मुख्य आरोपी बनाया गया। वे कहते हैं कि ऑपरेशन ने सुर्खियां बटोरीं थी। इसने मुख्तार कैंप को अस्थिर कर दिया। प्रारंभ में, मुख्तार ने इसे आर्म्स एक्ट के तहत वसूली के एक साधारण मामले के रूप में लिया। उसने मान लिया कि वह पिक्चर से बाहर रहेगा। हालांकि, जैसे ही उसे आतंकवाद निवारण अधिनियम 2002 पोटा की धाराओं के तहत आरोपी बनाए जाने के कवायद की जानकारी मिली, वह बेचैन हो गया।

शैलेंद्र बताते हैं कि पोटा की धाराएं साफ करती हैं कि किसी भी तरह के मामले में आतंकवाद के कृत्य में शामिल कोई भी व्यक्ति समान रूप से जिम्मेदार है। इस मामले में मुख्तार पूरे अवैध हथियारों के सौदे का अपराधी था। वे बताते हैं कि एसटीएफ के पास मुख्तार के खिलाफ भी बहुत पुख्ता सबूत थे। उनकी टैप की गई फोन बातचीत हमारे पास थी। फोन टैपिंग को अधिकृत साक्ष्य बनाया गया था। कोर्ट में भी इसे गवाही के रूप में पेश किया जा सकता है। यह मुख्तार के खिलाफ गया।

मुख्तार का सरकार पर, मुझ पर सीनियर्स का दबाव

शैलेंद्र सिंह बताते हैं कि इस मामले में अपनी चमड़ी बचाने के लिए मुख्तार अंसारी ने तत्कलीन राज्य सरकार पर दवाब डाला। उसने मांग की कि उसका नाम एलएमजी खरीद मामले से हटा दिया जाए। उसने सरकार गिराने तक की धमकी दे दी। वहीं, मेरे सीनियर्स ने मुझे विवेकपूर्ण तरीके से काम करने की सलाह दी। हम पर दबाव बढ़ाया है। मैं इस मामले में वादी था। इसलिए, चाबी मेरे हाथ में थी। इस तरह के कुख्यात अपराधी को छूटने देने के विचार से ही मेरी अंतरात्मा ने मुझे झिड़क दिया। खास तौर पर तब जब उसके खिलाफ एक मजबूत मामला था। लगातार हम पर दबाव बढ़ाया जाने लगा। तत्कालीन एसएसपी एसटीएफ राजकुमार विश्वकर्मा, महानिरीक्षक (वाराणसी क्षेत्र) मनोज कुमार सिंह और डीआईजी (वाराणसी रेंज) सतीश यादव का ट्रांसफर कर दिया गया। संदेश साफ था, लाइन में लगो, वरना बाहर हो जाओ। पूरी पुलिस बिरादरी सुन्न और बेचैन थी।

अधिकारियों के ट्रासफर के बाद दोस्ताना सलाह, शहद मिश्रित धमकियां मिली। अन्य सहयोगियों ने हमारे लिए चिंता जताना शुरू कर दिया। हर किसी ने मुझे मुख्तार पर पोटा लगाने की अनुशंसा के 'मूर्खतापूर्ण' निर्णय को लेकर अपना करियर और परिवार चुनने की बात कह। मेरे दिल और दिमाग ने इस अन्याय को मानने से इंकार कर दिया। करीब एक पखवाड़े तक तमाम दुविधाओं को झेलते हुए आखिरकार मैंने इस्तीफा दे दिया।

राज्यपाल को भेजा था पत्र

शैलेंद्र सिंह ने राज्यपाल को पत्र लिखकर अपना इस्तीफा दिया था। वे बताते हैं कि मैंने तत्कालीन राज्यपाल को लिखा था, मैं ऐसी सरकार के लिए काम नहीं कर सकता, जो माफिया के हाथों की कठपुतली की तरह काम करती है। यह एक कठिन फैसला था, क्योंकि मैं अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला था। फिर मैंने सोचा कि अगर मैं अपने रास्ते में आने वाली सभी सलाहों पर ध्यान दूंगा तो मेरी दुविधा और गहरी हो जाएगी। इसलिए, मैंने अपना इस्तीफा भेज दिया और मेरे परिवार को इसके बारे में टीवी के माध्यम से पता चला। न्यूज चैनल्स ने तब मेरे घर को घेर लिया था। मेरी गृहिणी पत्नी और छोटा बच्चा डर गए थे। उस दौरान मैं खुद को बिना सिंग वाले बैल की तरह शक्तिहीन महसूस कर रहा था, लेकिन मैं शांत रहा।

शैलेंद्र कहते हैं कि वास्तव में मुझे भारत के लोगों की सेवा करने की शपथ याद आई। इसके बाद राहत महसूस हुई। उन राजनीतिक आकाओं की जो अपने सफेदपोशों में सारी गंदगी धोते हैं, उनके आस्तीन कितने गंदे हैं, पता चला। मैंने अपनी वर्दी बिना किसी दाग के टांग दी। हालांकि, वर्दी पर धूल जम गई, तो समस्याएं सतह पर आने लगीं। मैं अपने लिए घर ढूंढ़ रहा था। कोई मुझे तब अपना घर किराए पर देने को तैयार नहीं था। घरेलू जिम्मेदारियों को पूरा करना मेरी अगली चुनौती थी।

पत्नी ने ली बड़ी जिम्मेदारी

अपनी चुनौतियों का जिक्र करते हुए शैलेंद्र सिंह कहते हैं कि कठिन समय में मेरे परिवार ने मेरा साथ दिया। मेरी गृहिणी पत्नी एक स्कूल में शिक्षक के रूप में काम करना शुरू किया। मेरे बड़े भाई ने चंदौली में हमारे छोटे से खेत के टुकड़े पर जैविक खेती शुरू करने में हमारी मदद की। इससे मेरे घर का चूल्हा जलता रहा। जीवन का उद्देश्य खोजने के लिए मैंने समाज सेवा की तरफ रुख किया। मेरे दोस्त इसके लिए पैसों का इंतजाम करने के लिए आगे आए। मेरा और मेरे परिवार की सुरक्षा लंबे समय तक का चिंता का विषय बनी रही। आखिरकार, अंधकार के बीच से प्रकाश का पूंज दिखा है। अतीक अहमद कांड ने यूपी के दरिंदों को सुर्खियों में ला दिया है। वे कहते हैं कि राहत यह है कि योगी आदित्यनाथ सरकार प्रदेश में कानून का राज स्थापित करने का प्रयास कर रही है।

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