मैं रोटियों को अपनी अंडरवियर में छुपा लेती थी...फिर अफसर बन पति को सिखाया सबक
ग़ाज़ीपुर न्यूज़ टीम, नई दिल्ली. सविता प्रधान की गिनती आज बेहद तेज-तर्रार अधिकारियों में होती है। मध्य प्रदेश सरकार के लिए सिविल सर्वेंट के तौर पर उनके करियर की शुरुआत हुई थी। वह ग्वालियर संभाग में ज्वाइंट डायरेक्टर हैं। बेहद गरीब परिवार से अफसर बनने तक का उनका सफर संघर्ष से भरा रहा है। कभी अपने ससुराल में उन्हें इतने कष्ट मिले कि वह अंडरवियर में रोटियां छुपाकर बाथरूम में खाया करती थीं। पति उन्हें बेवजह पीटा करता था। सास और ननद का व्यवहार भी बहुत बुरा था। नौबत यह आ गई थी कि वह ससुराल वालों के जुल्मों से तंग आकर सुसाइड तक करने वाली थीं।
हालांकि, उसी पल कुछ ऐसा हुआ कि ख्याल आया कि आखिर वह इन लोगों के लिए अपनी जान क्यों दें। फिर वह सबकुछ छोड़कर करियर बनाने में जुट गईं। सिविल सर्विस में आने का मकसद भी सिर्फ सैलरी था। अपने दो बच्चों के साथ उन्होंने ससुराल छोड़ा था। इसके बाद वह कुछ भी करने के लिए तैयार हो गई थीं। उन्होंने बीच में पार्लर वगैरह में भी नौकरी की। बाद में उन्होंने अफसर बनकर पति को सबक सिखाया।
सविता प्रधान एमपी की जानी-मानी अफसर हैं। अपने कामों की वजह से अक्सर वह सुर्खियों में रहती हैं। 2021 में वह खंडवा नगर निगम की पहली महिला कमिश्नर बनी थीं। मंदसौर सीएमओ रहते हुए सविता ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं। उन्होंने यहां माफियाओं के खिलाफ अभियान चलाकर अफीम तस्करों पर ऐक्शन लिया था। इस दौरान अवैध तरीके से करोड़ों के बंगलों को मिट्टी में मिलवा दिया था।
अपने गांव की पहली लड़की थीं जिन्होंने हाईस्कूल पास किया
हालांकि, अफसर नहीं बनने से पहले की सविता की कहानी बेहद दर्दभरी है। उनका जन्म एमपी के मंडी नाम के गांव में एक आदिवासी परिवार में हुआ था। परिवार में बहुत ज्यादा गरीबी थी। वह अपने माता-पिता के तीसरे नंबर की संतान थीं। गांव में 10वीं तक स्कूल था। ज्यादातर लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता था। लेकिन, वह उन खुशनसीब लड़कियों में थीं जिन्हें स्कूल जाने का मौका मिला। स्कूल भेजने का भी मकसद यही था कि मां-बाप को 150-200 रुपये स्कॉलरशिप मिल जाती थी। वह अपने गांव की इकलौती लड़की थीं जिन्होंने 10वीं बोर्ड की परीक्षा पास की। उस दिन पिता को काफी खुशी हुई थी। इसके बाद उनका नाम 7 किमी दूर एक और सरकारी स्कूल में करा दिया गया।
छोटी सी उम्र में हो गई थी शादी...
इस स्कूल तक घर से जाने और वापस आने के लिए 2 रुपये किराया लगा करता था। एक रुपये जाने का और एक रुपये आने का। यह खर्च वहन करना भी मुश्किल था। कभी कभार सविता पैदल ही स्कूल चली जाती थीं। फिर उनकी मां ने उसी गांव में एक छोटी नौकरी कर ली। इस तरह वे उसी गांव में रहने लगे। वह 11वीं और 12वीं में बायोलॉजी लेकर पढ़ने लगीं। इसी बीच उनका रिश्ता आ गया। इत्तेफाक से यह रिश्ता काफी बड़े घर से था। सविता के पिता को यकीन नहीं हो रहा था कि यह रिश्ता उनके यहां कैसे आ गया। लड़के वालों ने बताया कि वे सविता को आगे पढ़ा-लिखा लेंगे। अगले दिन सविता की सगाई कर दी गई। इसके लिए सविता की इच्छा-अनिच्छा नहीं देखी गई। जब उनकी सगाई हुई तो सविता की उम्र करीब 16-17 साल की थी।
शादी के बाद ससुराल में हुआ नौकरों जैसा व्यवहार
सगाई में लड़के ने अपनी बहन को सविता से इंट्रोड्यूस कराया। वह एमबीबीएस कर रही थी। सविता ने उन्हें 'राम-राम' की। इस पर लड़के की बहन ने सविता को लताड़ लगाई कि उन्हें हाय-हैलो करना भी नहीं आता। सविता सहम गई थीं। वह बिल्कुल नहीं चाहती थीं कि उस लड़के से उनकी शादी हो। लेकिन, घर वालों की जोर-जबरदस्ती से एक महीने बाद ही शादी हो गई। शादी के कुछ ही दिन बाद उनके साथ नौकरों जैसा व्यवहार होने लगा। वह ससुराल में जी-तोड़ काम करने लगीं। उनके लिए कई तरह की पाबंदियां थीं। वह डाइनिंग टेबल पर सबके साथ नहीं बैठ सकती थीं। खुलकर हंस नहीं सकती थीं। उन्हें घर में सबसे अंत में खाने की हिदायत थी। अगर खाना खत्म हो जाए तो वह दोबारा नहीं बना सकती थीं। मार खाने और गाली-गलौज के डर से वह रोटियों को अंडरगारमेंट में छुपा लेती थीं। फिर बाथरूम जाकर बीच में खा लेती थीं। जब तब पति उन्हें बुरी तरह पीट देता था। ससुराल में वह छटपटा रही थीं। हालांकि, उन्हें इस दौरान कोई सपोर्ट नहीं मिल रहा था।
ससुराल वालों का अत्याचार रहा जारी
ससुराल वालों के अत्याचार सहते-सहते सविता बीमार रहने लगी थीं। इसी बीच वह एक अस्पताल में भर्ती हो गईं। वहां उन्हें पता चला कि वह प्रेग्नेंट भी हो गई हैं। फिर सविता के घर वाले उन्हें मायके ले आए। जब सविता ने कहा कि वह दोबारा ससुराल नहीं जाना चाहतीं तो परिवार वालों ने दोबारा पति के साथ रहने पर ही जोर दिया। सविता समझ चुकी थीं कि उनके लिए रास्ता आसान नहीं रहने वाला है। उन्हें यह भी समझाया-बुझाया गया कि बच्चे वगैरह होने पर सबकुछ ठीक हो जाएगा। एक बच्चे के बाद उनका दूसरा बच्चा भी हो गया। लेकिन, कुछ भी ठीक नहीं हुआ। पति की मार-पिटाई जारी थी।
इन सबसे सविता बहुत ऊब चुकी थीं। उन्होंने सुसाइड कर लेने का मन बना लिया था। इस समय उनका एक बच्चा डेढ़-दो साल का था। वहीं, दूसरा 3-4 महीने का। जब वह पंखे से फांसी लगाकर झूलने जा रही थीं तो उनकी नजर अपनी सास पर पड़ी। इत्तेफाक से खिड़की खुली रह गई थी। लेकिन, उन्होंने सविता को बचाने की कोई कोशिश नहीं की। अलबत्ता, वह सबकुछ देखकर आगे बढ़ गईं। तब सविता को एहसास हुआ कि वह ऐसे लोगों के लिए भला अपनी जान क्यों देने जा रही हैं। फिर उन्होंने तय किया वह कुछ भी कर लेंगी। लेकिन, उस घर में नहीं रहेंगी। ससुराल से निकलकर उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी की। इस दौरान कमाई के लिए पार्लर वगैरह में काम भी किया। इंदौर यूनिवर्सिटी से उन्होंने पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स किया। पहले ही प्रयास में उन्होंने सिविल सर्विस एग्जाम निकाल लिया था।
पति को सिखवाया सबक
सविता की पहली पोस्टिंग चीफ म्यूनिसिपल ऑफिसर के तौर पर हुई। तरक्की देखकर उनका पति दोबारा उनकी जिंदगी में वापस लौट आया। फिर उसने सविता को मारा-पीटा। कार खरीदने के लिए पैसे तक ले गया। सविता ने पहले तो अपने ऊपर हो रहे घरेलू अत्याचार को छुपाया। लेकिन, एक दिन उन्होंने दुखी मन से इसके बारे में अपने सीनियर्स को बताया। सीनियर्स ने सविता का हौसला बढ़ाया। साथ ही यह भी कहा कि इस बार उनका पति वापस उनके पास आए तो वह उन्हें फोन करें। पति एक दिन फिर आया।
सविता को पहले ही एहसास था कि वह उनके साथ मारपीट करेगा। जैसे ही उसने ऐसा किया सविता ने फोन लगाया। दो मिनट में घर में पुलिस आ गई। पुलिस ने जमकर पति की क्लास लगाई। अब तक जो कुछ उसने सविता के साथ किया था, पुलिस वालों ने सूद समेत उसे लौटाया। बाद में सविता का अपने पति से तलाक हो गया। वह अपने दो बेटों के साथ खुशी-खुशी जीवन बिताने लगीं।