कहानी: यारी से रिश्तेदारी
‘‘मां, आप कितनी अच्छी और प्यारी हो. आप ने मेरे लिए घर में सब से कितना कुछ सुना, ये मैं कभी नहीं भूलूंगा,’’ कहते हुए तन्मय अपनी मां रागिनी के गले लग गया. रागिनी ने भी प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा और बोली, ‘‘मां को मक्खन ही लगाते रहोगे या तैयार भी होओगे. उन लोगों के आने का समय हो गया है. नहीं करनी तो कैंसिल कर देते हैं एंगेजमेंट की रस्म,’’ रागिनी ने बेटे तन्मय से चुटकी लेते हुए कहा.
‘‘अरे, नहींनहीं… मेरी प्यारी मां, ऐसा मत करना प्लीज. बड़ी मुश्किल से तो बात बनी है. बस अभी गया और अभी आया,’’ कहते हुए तन्मय तैयार होने अपने कमरे में चला गया.
रागिनी पास में ही पड़े सोफे पर बैठ गई. आज उस के बेटे की सगाई है. बच्चे कब बड़े हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता. आज मां से सास बनने का वक्त भी आ गया. पर, उसे ऐसा लग रहा है मानो उस के विवाह की ही पुनरावृत्ति हो रही हो. बस परिस्थितियां कुछ अलग हैं. तभी मेहमान आने प्रारंभ हो गए और रागिनी और उस के पति प्रदीप मेहमानों की आवभगत में व्यस्त हो गए.
जब बहू तनु और बेटे तन्मय ने एकददूसरे को अगूंठी पहना कर सगाई की रस्म पूरी की, तो उस की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. उस ने बहू तनु की बलाएं ली और अपने समधीसमधिन से बोली,
‘‘भाई साहब और भाभीजी, आज से तनु हमारी हुई.’’
‘‘हां भई हां, तनु आज से आप की ही है, हमारे पास तो बस कुछ दिनों के लिए आप की अमानत मात्र है भाभी,’’ समधिन रीना यह कहते हुए उस के गले से लग गई.
खाना प्रारंभ हो चुका था, सभी मेहमान खाने में व्यस्त थे. सारी व्यवस्थाओं से संतुष्ट हो कर रागिनी स्टेज के पास पड़े सोफे पर आ कर बैठ गई. उसे लग रहा था मानो 40 वर्ष पूर्व की घटना की पुनरावृत्ति हो रही हो सोचतेसोचते उस के मन में सुनहरी यादों का पिटारा खुलने लगा.
8वीं की छात्रा थी वह, जब उस के जीवन में प्रदीप ने प्रवेश किया था. वैसे तो वह बहुत मेधावी थी, परंतु गणित में कमजोर थी. एक दिन पापा अपने मित्र शर्माजी के बेटे को ले कर आए और बोले, ‘‘ये प्रदीप भइया हैं, कल से तुम्हें गणित पढाएंगे.’’
पता नहीं क्या जादू था उस की पर्सनेलिटी में कि प्रथम बार में ही मानो वह उन्हें अपना दिल दे बैठी. कुछ दिनों के बाद ही पापा का तबादला दूसरे शहर में हो गया और बात आईगई हो गई. धीरेधीरे पुराने शहर की यादें भी मनमस्तिष्क से धूमिल होने लगी थी. इन 4 वर्षों में वह बालिका से किशोरी हो गई थी और 11वीं कक्षा में आ गई थी. तभी एक दिन पापा ने बताया, ‘‘शर्माजी का बेटा प्रदीप अब अपनी एमए की पढ़ाई यहीं रह कर करेगा.’’
उसे पापा की बातों पर आश्चर्य तो हुआ, पर यकीन नहीं हो पाया. वह पापा से बोली, ‘‘पापा वो… शर्माजी का बेटा…’’
पापा ने कहा, ‘‘हां वही, जो तुम्हें 8वीं में गणित पढ़ाया करते थे.’’
आजकल की भांति उस समय टीवी, मोबाइल फोन और सोशल मीडिया जैसी तकनीक तो थी नहीं जो मैसेज कर पाती और न ही वेलेंटाइन डे जैसे कोर्ई दिवस होते थे, जो प्यार का मतलब उम्र से पहले से समझ आ जाए. आजकल तो जराजरा से बच्चे प्रपोज करते, बौयफ्रैंडगर्लफ्रैंड बनाते नजर आते हैं.
12वीं में पढ़ने वाली रागिनी उस समय ‘‘प्यार’’ नामक शब्द के बारे में बहुतकुछ तो नहीं जानती थी, पर हां, शर्माजी के बेटे प्रदीप का आना उसे अच्छा लग रहा था. न जाने क्यों दिल में गुदगुदी और कानों में मधुर घंटियां बजने लगीं थीं.
प्रदीप की कक्षाएं प्रारंभ हो गई थीं. वे होस्टल में रह कर अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे थे. जबतब घर भी आ जाया करते थे. अप्रत्यक्ष रूप से प्रदीप ने रागिनी और 10वीं में पढ़ने वाली उस की बहन को पढ़ाने की जिम्मेवारी भी ले ली थी. किशोरवय की रागिनी एवं युवा प्रदीप के मध्य न जाने कब प्यार की बयार बहने लगी थी. उन दोनों को ही इस का आभास नहीं हुआ.
तभी उस की समधिन रीना ने आ कर उसे झकझोर दिया, ‘‘अरे, भाभीजी कहां खो गईं, कोई परेशानी है क्या?’’
‘‘नहींनहीं, मैं तो बस ऐसे ही घर में आने वाली बहू को ले कर रोमांचित हो रही थी,’’ रागिनी ने अपनी झेंप मिटाते हुए कहा.
‘‘अच्छाअच्छा, चलिए भोजन तो ले लीजिए,’’ हंसते हुए कह कर रीना उसे खाने की टेबल तक ले गई.
‘‘अच्छा बताओ तो भाभी, कहां खो गई थी?’’ रीना ने खाना खातेखाते पुन: पूछा.
‘‘तनु और तन्मय की शादी ने मुझे मेरी युवावस्था में पहुंचा दिया था,’’ रागिनी मुसकराते हुए कहा.
‘‘अरे, वो कैसे…?’’ रीना ने उत्सुकता से पूछा.
‘‘जैसे, आज तनु और तन्मय का प्यार हमारे परिवारों की छांव तले पिछले 15 सालों से पनप रहा था, ठीक वैसी ही तो मेरी और प्रदीप की स्थिति थी,’’ रागिनी ने अपने सुर्ख होते चेहरे के भावों को छिपाते हुए कहा.
‘‘अरे वाह, ये दोनों तो अभी से ही एक हो गईं,’’ तन्मय की खनखनाती आवाज ने उन दोनों की बातचीत को भंग कर दिया. उस के साथ तनु भी खड़ी हंस रही थी. दोनों बच्चे अपनी मांओं के पास आ कर खड़े हो गए. रागिनी ने दोनों को प्यार से गले से लगा लिया. फिर रीना अपने मेहमानों से मिलने में व्यस्त हो गई और बच्चे अपने दोस्तों के पास चले गए. पर रागिनी का मन था कि रुकने को तैयार ही नहीं था.
उसे याद आया कि जब भी उन दिनों घर में कुछ नया बनता, उस का मन करता कि वह प्रदीप को भी खिलाए, पर संस्कारों की बेड़ियां और मां की नसीहतों के कारण वह अपना मन तो मार लेती, परंतु छोटी बहन को उकसा देती. मां छोटी बहन के प्रति उदार थीं, सो उस का काम हो जाता. वह खुश हो जाती कि उस ने नहीं खिला पाया तो क्या कम से कम प्रदीप ने खा तो लिया. उन का एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता ही जा रहा था. कभीकभी प्रदीप पढ़ातेपढ़ाते ही मौका देख कर उस का हाथ सहला लेते थे, तो उस का चेहरा लज्जा से लाल हो उठता.
स्नातकोत्तर करने के बाद प्रदीप आगरा में ही रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगे. इस बीच रागिनी की भी पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी हो गई. प्रदीप का राजपत्रित अधिकारी के पद पर चयन हो गया, तो वे चले गए. उन के जाने के बाद वह बहुत उदास हो गई थी. पर दोनों के मध्य का प्यार तो परवान चढ़ ही चुका था और अब ये घर वालों से भी छिपा नहीं था.
‘‘चलो भई घर नहीं चलना,’’ प्रदीप ने उस के पास आ कर कहा. तनु और तन्मय दूसरी गाड़ी में पहले ही चले गए थे. वह भी मन ही मन पुरानी यादों में डूबतीइतराती हुई चुपचाप आ कर गाड़ी में बैठ गई.
‘‘अरे, कहां खो गईं मोहतरमा, कहीं अपनी जवानी के दिन तो याद नहीं आ गए,’’ प्रदीप ने गाड़ी ड्राइव करते हुए उसे छेड़ते हुए कहा.
‘‘अरे हां, वही सब तो याद आ रहा है इन दोनों को देख कर.’’
‘‘याद है तुम्हें, कैसे एक बार तुम्हारी आंखों में आंसू और रुकने का आग्रह देख कर मैं ने अपने जाने का टिकट फाड़ दिया था और तबीयत खराब होने का बहाना बना कर रुक गया था,’’ प्रदीप ने उस की ओर देख कर शरारत से मुसकराते हुए कहा.
‘‘और, आप हर दिन एक पत्र मुझे भेजते थे. जिस दिन नहीं आता था, उस दिन मैं उदास हो जाया करती थी,’’ रागिनी ने हंसते हुए हौले से प्रदीप के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा.
‘‘चलो, घर आ गया. एक माह बाद शादी है, तैयारियां भी तो करनी हैं. पुरानी यादों में ही खोए रहेंगे तो हो चुकी बेटे की शादी,’’ प्रदीप ने कहा, तो वह वर्तमान में आ गई.
कपड़े चेंज कर के वह बेड पर लेट गई और एक बार फिर उस का मन अतीत में गोते खाने लगा. उस के पापा और प्रदीप के पापा समझदार थे, वे समझ चुके थे कि बच्चे संस्कारवश कुछ बोल नहीं पा रहे हैं, परंतु मन ही मन एकदूसरे से प्यार करते हैं. दोनों परिवारों ने आपस में बातचीत की.
रागिनी के पापामम्मी को भी घर बैठे अच्छा देखाभाला लड़का मिल रहा था, सो तनिक भी समय गंवाए बिना उन्होंने अपनी बेटी के हाथ पीले कर देने में ही भलाई समझी.
रागिनी और प्रदीप को तो मानो बिन मांगे ही मन की मुराद मिल गई थी. दोनों की प्यार से सींची गई बगिया में शीघ्र ही बेटे तन्मय और बेटी तानी नाम के पुष्प खिल उठे.
समय तेजी से बीतता गया और आज ये दिन भी आ गया कि वह अपने बेटे का विवाह कर के सास बनने जा रही थी.
तनु प्रदीप के कालेज के दोस्त राजीव सिंह की बेटी थी. दोनों परिवारों के पारिवारिक संबंध बहुत गहरे थे. तनु और तन्मय कब एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए, किसी को पता ही नहीं चला.
दोनों परिवारों का आनाजाना और साथसाथ घूमने जाना लगा ही रहता. उस समय दोनों बच्चे किशोरावस्था में थे. जब दोनों परिवार शिमला, कुल्लू मनाली के टूर पर गए थे. किशोरवय में विपरीत सैक्स के प्रति आकर्षण एक स्वाभाविक मनोभाव होता है. सो, दोनों बच्चे इस एक सप्ताह की ट्रिप में काफी नजदीक आ गए थेे और आपस में बातचीत भी करने लगे थे. यद्यपि रागिनी की नजरों से दोनों की बातचीत छिपी नहीं थी, पर आजकल गर्लफ्रैंड, बौयफ्रैंड का जमाना है सो उसे लगा कि यह महज किशोरावस्था का आकर्षण मात्र हैं. और किसी दूसरी लड़की की अपेक्षा उन दोनों का आपस में बातचीत कर के अपनी भावनाओं को निकाल देना उसे अधिक सुरक्षित लगा था. अत: उस ने इस ओर अधिक ध्यान नहीं दिया. समय अपनी निर्बाध गति से बीत रहा था और बच्चे भी अपनीअपनी दिशा पकड़ चुके थे. तन्मय का चयन सिविल सर्विसेज में हो गया और तनु एक बैंक में अधिकारी बन गई थी.
एक दिन मौका देख कर रागिनी ने तन्मय से कहा, ‘‘बेटा, अब तेरी विवाह की उम्र हो गई है और मैं चाहती हूं कि अब हम तेरा विवाह कर दें.’’
‘‘हां, मां, आप की बात तो बिलकुल सही है, पर उस से पहले मुझे आप से एक बात करनी है,’’ कहते हुए तन्मय रागिनी का हाथ अपने हाथ में ले कर उस के पैरों के पास जमीन पर बैठ गया.
‘‘हां, बोलो बेटा, क्या बात है?’’ रागिनी ने प्यार से उस का सिर सहलाते हुए कहा.
‘‘मां, वो तनु है न…’’ तन्मय ने धीरे से कह कर शरमाते हुए बात अधूरी छोड़ दी.
‘‘क्या हुआ तनु को…? राजीव भाई साहब और भाभी सब ठीक तो हैं न,’’ सुन कर रागिनी एकदम चौंक उठी.
‘‘शांत… मां शात, सब ठीक है, किसी को कुछ नहीं हुआ है,’’ तन्मय ने उसे शांत करते हुए कहा.
‘‘मां, मैं यह कह रहा था कि…’’ तन्मय खड़े हो कर अचकचाते स्वर में बोला.
‘‘क्या हम लोग और राजीव सिंह अंकलआंटी रिश्तेदार नहीं बन सकते?’’
‘‘क्या मतलब…?’’ रागिनी चौंक कर बोली.
‘‘मतलब ये मां कि क्या मैं और तनु शादी नहीं कर सकते?’’ तन्मय हिचकिचाते हुए एक ही सांस में पूरा वाक्य कह गया.
‘‘तनु और तेरी शादी… यह क्या कह रहा है तू?’’ रागिनी ने हैरान होते हुए कहा.
तन्मय बिना कुछ बोले उठ कर कमरे से बाहर चला गया.
रागिनी आरामकुरसी पर आ कर बैठ गई. वह समझ ही नहीं पा रही थी कि तन्मय क्या, कैसे और क्यों कह गया. भला ब्राह्मïण परिवार के लड़के का ठाकुर परिवार की लड़की से विवाह कैसे संभव होगा. वह भी दो कट्टर जातिवादी परिवारों में बेचैनी से अंदरबाहर टहलते हुए प्रदीप के औफिस से आने की प्रतीक्षा करने लगी.
प्रदीप के आने पर चाय का कप हाथ में थमाते ही उस ने तन्मय के विचार भी उन के सामने जाहिर कर दिए. प्रदीप तो सुनते ही उछल पड़े. बौखलाहट भरे स्वर में वे बोले, ‘‘क्या बेटा है हमारा, दोस्ती को ही रिश्तेदारी में बदलने निकल पड़ा? क्या सोचेंगे वे लोग? तुम्हें और तुम्हारे लाड़ले को पता है न कि हम दोनों परिवारों की जातियां अलगअलग हैं, वे ठाकुर और हम ब्राह्मïण, हमारे परिवार वाले इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं होंगे. और राजीव, वो तो खुद कट्टर जातिवादी है, वह खुद इस के लिए कभी राजी नहीं होगा.’’
‘‘भाईसाहब और भाभी तो तैयार होंगे शायद, तभी तो तनु और तन्मय ने विवाह करने का निर्णय लिया है. बिना तनु से पूछे तो तन्मय मुझ से नहीं कहेगा,’’ रागिनी ने कहा.
अचानक कालबेल की आवाज से दोनों की बातचीत भंग हो गई और प्रदीप गुस्से से भनभनाए उठ कर अंदर चले गए. दरवाजा खोला तो सामने कामवाली बाई चंदा खड़ी थी.
‘‘2 दिन से क्यों नहीं आ रही थी?’’ रागिनी ने नाराजगी से पूछा.
‘‘अरे मेडमजी, क्या बताऊं मेरी लड़की एक गैरजाति के लड़के से शादी करना चाहती थी.’’
‘‘तो तू ने क्या किया?’’ रागिनी ने उत्सुकता से पूछा.
‘‘पिछले 6 महीनों से समझा रहे थे, पर दोनों अपनी जिद पर अड़े थे. हालांकि लड़का अच्छा है और सरकारी नौकरी में है. बस, अपनी जाति का नहीं था. जब बिटिया नहीं मानी, तो हम पतिपत्नी ने लड़के वालों से बात की और कल मंदिर में ले जा कर शादी करा दी. अब दोनों बड़े खुश हैं,’’ चंदा ने खुश होते हुए कहा.
‘‘गैरजाति के लड़के से शादी करने को तेरे परिवार वाले राजी हो गए… और तेरे समाज वाले,’’ रागिनी ने हैरानी से पूछा.
‘‘अरे, उन के एतराज की चिंता कौन करे बीबीजी, हमारे बच्चे खुश तो हम भी खुश. उन की परवाह करें या अपने बच्चों की. कल को हमारी जरूरत पर हमारे बच्चे ही काम आएंगे न कि ये मुएं समाज और परिवार वाले,’’ चंद्रा मुंह बनाती हुई बोली.
रागिनी अपलक सी चंदा को देखती रह गई. कम पढ़ीलिखी चंदा की खरी बातों ने उसे एक नई दिशा दिखा दी थी.
दूसरे दिन प्रात: नाश्ते के समय उस ने पुन: प्रदीप के सामने बात छेड़ी, ‘‘तनु और उस का परिवार हमारा देखाभाला है. लड़की भी संस्कारी है. अच्छी पढ़ीलिखी और सर्विस में है. सब से बड़ी बात हमारे बेटे को पसंद है. उस में वे सब गुण हैं, जो हमें चाहिए. केवल जाति अलग होने से क्या होता है. प्यार जातपांत देख कर नहीं होता प्रदीप. एक बार आप ठंडे दिमाग से सोच कर तो देखिए.’’
‘‘पापामम्मी को देखा है कि वे कितने जातिवादी हैं? तुम तो अच्छी तरह जानती हो. अलग जाति की बात सुन कर वे तो शादी में भी आने से मना कर देंगे. और राजीव के पापा कर्नल सिंह, क्या वे तैयार हो जाएंगे इस विवाह के लिए?” प्रदीप ने तेज स्वर में कहा.
‘‘यह राजीव भाईसाहब की समस्या है, जिसे वे स्वयं हल करेगें. हमें तो अपने बेटे की खुशी देखनी चाहिए. यह हमारे संस्कार हैं कि बेटा हम से पूछ रहा है. कल को यदि बिना पूछे कोर्ट मैरिज कर लेगा तो… क्या हम उसे अपने से अलग कर देंगे? क्या उस के बिना रह पाएंगे हम? अपनी शादी को भूल गए आप? आप ने भी तो अपनी पसंद की उसी लड़की से ही विवाह किया था, जिसे आप प्यार करते थे. सोचिए, यदि आप की और मेरी शादी नहीं हुई होती तो आप क्या करते. क्या खुश रह पाते? प्यार तो दिलों का मेल होता है प्रदीप, वह यह सब सोच कर नहीं किया जाता,’’ रागिनी ने प्रदीप को समझाते हुए कहा.
‘‘पर, हमारी शादी में जाति का कोई मुद्दा नहीं था. सब कुछ ईजी गोइंग था.’’
‘‘देखिए, जाति इतना बड़ा इश्यू नहीं है. क्या केवल जाति के कारण किसी के गुण, और अच्छाइयों को नजरअंदाज किया जा सकता है? क्या जन्म के समय इनसान की कोई जाति होती है? अस्पताल में पड़े हमारे परिवार के किसी सदस्य को खून की आवश्यकता पड़ने पर क्या हम जाति देखते हैं? ये सब तो हम मनुष्यों के बनाए नियमकायदे हैं, ईश्वर के यहां सब बराबर हैं. आप स्वयं सोच कर देखिए. जाति की लड़की में ऐसा क्या होगा, जो तनु में नहीं है? अपने बच्चों के बारे में हम नहीं सोचेंगे तो कौन सोचेगा. हम यदि मजबूत होंगे तो सब हमारे साथ होंगे. पहले हमें स्वयं आत्मिक रूप से मजबूत बनना होगा कि जाति कोई इश्यू नहीं है. यदि हम कमजोर पड़ेंगे तभी कोई हमारे निर्णय पर सवाल उठाएगा, वरना किसी की हमारे सामने बोलने की हिम्मत नहीं है. रहा आप के पापामम्मी का प्रश्न तो उन्हें मनाने की जिम्मेदारी मेरी है. बस मुझे सिर्फ आप का साथ चाहिए. प्लीज, आप केवल एक बार सिर्फ एक बार खुले दिमाग से सोच कर देखिए कि इस विवाह के होने में बुराई क्या है?’’ रागिनी ने प्रदीप को समझाते हुए कहा. फिर उस ने उन्हें चंदा की लड़की की गैरजाति में विवाह की बात बताते हुए कहा.
‘‘जब एक अशिक्षित कामवाली बार्ई अपने बच्चों की खुशी के बारे में सोच सकती है, तो हम क्यों नहीं प्रदीप?’’
“ठीक है, शाम को औफिस से आ कर बात करता हूं,” कह कर प्रदीप चले गए.
रागिनी को शाम का बेेसब्री से इंतजार था. सो, जैसे ही प्रदीप आए, वह चायनाश्ता ले कर टेबल पर आ कर बैठ गई.
‘‘हां, वैसे बात तो तुम्हारी सही है रागिनी, तनु अच्छी, और जानीपहचानी है. अगर कोर्ई दूसरी आई तो पता नहीं हमारे साथ कैसा व्यवहार करेगी?’’
‘‘हम ऐसे समाज के कारण अपने बेटे की खुशियों का परित्याग क्यों करें, जो सिर्फ बातें बनाना जानता है. जब तुम्हारी कामवाली बाई समाज की चिंता किए बिना अपनी लड़की की शादी दूसरी जाति में कर सकती है, तो हम जैसे शिक्षित लोगों को तो कम से कम चिंता नहीं करनी चाहिए. पर, मम्मीपापा का क्या करें. वे पुरातन विचारधारा के घोर जातिवादी हैं. उन का सहज मानना बहुत मुश्किल है,’’ प्रदीप ने गंभीर स्वर में कहा.
“अब आप सब मेरे ऊपर छोड़ दीजिए. मैं सब कर लूंगी. मुझे आप का साथ चाहिए था. अब मैं बहुत हलका अनुभव कर रही हूं. तन्मय तो सुन कर खुश हो जाएगा,” कह कर रागिनी खुश हो कर प्रदीप के गले लग गई.
‘‘दरअसल, तुम्हारे तर्क इतने ठोस होते हैं कि उन्हें काटना बहुत मुश्किल होता है. चलो तो ठीक है, मैंं आज ही औफिस के बाद राजीव से बात करता हूं. अब तो तुम ने अपने तर्कों से मुझे इतना प्रभावित कर दिया है कि यदि राजीव शादी के लिए तैयार नहीं होगा तो भी मैं उसे मना लूंगा,’’ प्रदीप ने जोश से भर कर कहा. फिर क्या था, एक माह तक दोनों परिवारों के बड़ोंबुजुर्गों के मानमनोव्वल एवं समझानेबुझाने के अथक प्रयासों के बाद सभी शादी के लिए तैयार हो गए. इस बीच समय तो मानो पंख लगा कर उड़ गया.
आज उसी यारी को रिश्तेदारी में बदलने का पहला कदम था तनु और तन्मय की सगाई की रस्म, भविष्य के सुनहरे सपने बुनतेबुनते उस की कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला.