कहानी: कमीशन
कृपानिधान एक मैट्रीमोनियल ऐजैंसी चलाता था और इस की आङ में कई लड़कियों की जिंदगी बरबाद कर चुका था। उस ने जयदत्त को भी ठगने की कोशिश की, लेकिन यहां उस की दाल नहीं गली...
अखबार एक किनारे को सरका दिया मैं ने. सरकार की झूठी वाहवाही,’चीन में हम ने यह करा दिया’, ‘उस राष्ट्रपति ने उठ कर स्वागत कर दिया’, ‘वहां कौरीडोर बन गया’, ‘वहां एक हिंदू लङकी अगवा हो गई…’ आधी झूठी खबरें.
छुट्टी का दिन था. मन हलका करने के लिए मोबाइल खोला. जयदत्त का मैसेज फिर से देखा. घुटन सी होने लगी. जयदत्त बचपन में मेरा सहपाठी था. बड़ा ही भावुक, हिम्मती और आदर्शवादी. मैं सीधासादा और कुछकुछ दब्बू. साम्राज्यवाद के पैर उखाड़ फेंक देने का मार्क्सवाद और समाजवाद महात्मा गांधी का नारा देशभर में गूंज उठा था. मैं डर कर अलग रहा. जयदत्त आकंठ आंदोलन में कूद पड़ा. इस के लिए उस ने भरपूर कीमत चुकाई. पुलिस का घोर आतंक, जिन दिनों सहपाठी अच्छी नौकरियों पर लग रहे थे, वह हड़तालों, तोङफोङ करने वालों का सरगना बना था।
बूढ़े मांबाप कष्ट में मरे. पत्नी भी उसे वहीं मिली पर एक बार भागते हुए सिर पर गहरा घाव हो गया. ज्यादा साथ न दे सकी. एक पुत्री को छोड़ चल बसी. बिना मां की लङकी, बाप लंबे समय तक कभी इस राज्य में तो कभी कहीं. सीधीसादी मौसी ने उस का ब्याह रचाया.
जिन के हाथ में बाद में समाजवादी शासन आया, वे जनता की समस्याएं सुलझाने के बजाए खुद उसी के लिए एक समस्या बन गए. जयदत्त जैसे लोग, जिन का स्वाभिमान और देश और गरीबों के लिए त्याग की भावना बना रही, वहीं रह गए, जहां वे थे. सिर्फ कुर्क हुई जमीन उसे अपने साथ के अब मंत्री बन गए दोस्त की वजह से वापस मिल गई. लङकी की सालों के अरमान के बाद संतान हुई, लेकिन वह स्वयं दुखी जीवन से मुक्ति पा गई. क्योंकि सरकारी अस्पताल में नकली दवा रिएक्शन कर गई.
मांबाप और पत्नी को जो ममता, जो स्नेह जयदत्त नहीं दे पाया था, वह उस ने ब्याज सहित नातिन पर न्यौछावर कर दिया. अपने लिए कोई चाह उसे न थी. उस ने छोटामोटा व्यापार शुरू किया. लेकिन नातिन को आंख का तारा बना कर पालापोसा और पढ़ाया. उसी नातिन के लिए आज वह बेहद परेशान है.
मैसेज में उस के हृदय की वेदना फूट पड़ी. वह इतना ही चाहता है कि उस के ममेरे भाई ने उस की नातिन का ब्याह जहां ठहराया है, उस में कृपानिधान की मैट्रीमोनियल ऐजैंसी को घपला करने से जिस तरह भी हो, रोकूं.
छोटे कसबे में जयदत्त बेचारे को क्या खबर, वह किस के फंदे में फंस गया है. जयदत्त का ममेरा भाई कहां जा पड़ा कृपानिधान के घर में. लङकी वालों से कमीशन लेने के बाद भी वह और उस की फर्म कितनों की जिंदगियां चौपट कर चुकी है, इस की कोई गिनती नहीं है. उस का भाई और भाई का लङका, जिस से जयदत्त की नातिन की शादी तय हुई है, क्या बात करूं इस कृपानिधान से? मैं आगे बढ़ूं और वर भी खराब हुआ, बदमाश निकला, तो अनजाने में एक गलत काम का भागीदार बन जाने की ग्लानि मुझे नहीं कचोटेगी?
बात काफी आगे बढ़ चुकी है. लङकी का नाजुक मामला. समय निकलता जा रहा है. जयदत्त जानता था कि मैं इस मैट्रीमोनियल ऐजैंसी की रगरग पहचानता हूं क्योंकि कभी कृपानिधान मेरे दफ्तर में काम करता था.
अचानक मैसेज मिला. कृपानिधान का था,’आज दिन में आप से मिलने आऊंगा. कुछ काम है.’ व्हाट्सऐप मैसेजों को जिस जगह पर छोड़ा था, उस के आगे देखने ही जा रहा था कि बाहर किसी के आने की आहट सुनाई पङने लगी. तेजी से जा कर दरवाजा खोला तो कृपानिधान था। भरा शरीर, पेट कुछ बाहर निकला हुआ, चमकती आंखें, चूभती नजरें, दबी नाक, मोटे होंठ, मुंह फैला हुआ, सफेद शर्ट, काली पैंट, टाई भी लगाए हुए और डबल सोल वाले जूते.
शंकर के ब्याह में कृपानिधान ने काफी रुपया घसीटा था. तब वह अकेला काम करता था. ऐजैंसी नहीं खोली थी. अब तो शान ही दूसरी थी. 20 लोग काम करते हैं उस के पास.
‘‘आइए, कृपानिधानजी, बैठिए। सब ठीक है न?’’ एक सोफे की तरफ इशारा करने के बाद कैसे, क्या पूछूं, इसी में मन उलझने लगता है.
गगनभेदी न सही, छत को भेद सकने वाली बुलंद हंसी. ऐसा कुछ कहा नहीं है मैं ने फिर इतनी जोर का ठहाका क्यों? हंसी इतनी उन्मुक्त थी कि कृपानिधान को न जानने वाले को निश्छल हास्य का भ्रम हो जाए. लेकिन दांत इतने लंबे और पीले कि पहली नजर में किसी पशु की आकृति का आभास होने से अनायास एक हलकी सिहरन अनुभव होती है.
‘‘ठीक क्यों नहीं होगा. आप जैसे सज्जन लोगों की कृपा हो तो सब ठीक ही है? आप को क्या मालूम, आप से ज्यादा तो आप के बड़े भाई से पहचान है मेरी. अहा, इतने सज्जन, उदार व्यक्ति अब रह कहां गए हैं. मुझ पर बड़ा ही स्नेह है उन का,’’ कृपानिधान धाराप्रवाह बोलता जा रहा था.
शायद काम के वक्त वाणी की यह प्रवाह उस की आदत ही हो.
तभी पत्नी आई. कृपानिधान को अभिवादन कर खड़ी रही,”आयुष्मती भव…’’ के उच्च घोष के बाद फिर से वही हंसी. पत्नी के प्रति आत्यधिक आत्मीयता का स्तर, ‘‘आप तो छोटी ही हैं. आप को कैसे मालूम होगा कि आप के जेठजी का मुझ पर कितना स्नेह है. शंकर के ब्याह में दुखी स्वर में उन्होंने मुझ से कहा था कि कृपानिधान, आगे क्या होगा. अब तुम जैसे कर्मकांडी पंडित रह कितने गए हैं…’’ आप तो जानती ही होंगी, शंकर का ब्याह मैं ने ही निश्चित करवाया था.
पत्नी चुप रही.
शंकर के ब्याह में कृपानिधान ने काफी रुपया घसीटा था. तब वह अकेला काम करता था. ऐजैंसी नहीं खोली थी. अब तो शान ही दूसरी थी. 20 लोग काम करते हैं उस के पास. ऐसी गरम खबर थी. लङकी पैर से कुछ लचकती थी. इस से कन्या पक्ष से ज्यादा भाव कृपानिधान ने वसूला था. ब्याह के बाद शंकर गरम हुआ था कृपानिधान पर, लेकिन फिर बेकार समझ सब कर लिया उस ने.
कृपानिधान दूसरी ही बात बिना जरा सी भी झिझकहिचक से कह रहा है, ‘‘उस लङकी को इतना अच्छा वर कहां मिलता, बताइए. थोड़ा सा पैर में खोट है. लेकिन कितनी सुशील और शिष्ट है. उच्चकुलीन वंश की है. वंश देखा जाता है या पैर? सोचिए, आदमी ब्याह क्या पैर से करता है? मैं तो जरूरतमंद लोगों का जितना बन पड़ता है खयाल रखता हूं. लोग कहते हैं कि पैसे लिए मैं ने, कहने दीजिए. दक्षिणा मैं ने जरूर ली है, जोकि ब्राह्मणों का हक है. मैं तो यह जानता हूं कि एक लडक़ी जिस की शादी शायद होती ही नहीं, एक अच्छी जगह लग गई.’’
पत्नी चली गई. झूठ कितना है, सच कितना है, कैसे मालूम हो. जो बात छिपा कर लंगड़ी लडक़ी को ब्याहने के लिए घूस देते हैं, वे भला क्यों बोलेंगे. दूसरों के पास प्रमाण क्या हैं? कृपानिधान का भी क्या दोष? जवान लडक़ेलड़कियों की शादियां होती ही हैं. जातपात, गरीबअमीर, रूपरंग, लेनदेन की संकरी अंधेरी पगडंडियों में लड़कियों के लिए लडक़ों की खोज, तिनका भर भी इधरउधर मुड़े बिना करनी ही है. ऐसे में कृपानिधान की धोखाधड़ी का धंधा पनपना क्या मुश्किल हो. प्रेमविवाह की बात करते मांबाप खुद हजार खोट लगा कर बात बिगाड़ देते हैं. प्रेमीप्रमिका में मतभेद हो जाते हैं.
पत्नी ने चाय, मिठाई ला कर कृपानिधान के सामने रखी. मिठाई मुंह में डाल उन्मुक्त हंसी के साथ वह बोला, ‘‘इन के भाई इम्तिहान पास कर ऊंचे अफसर हो गए हैं. क्यों न हों, लडक़े किस के हैं, आखिर बाप का पुण्य फलेगा कि नहीं. आजकल के लोग कहते हैं कि धर्मकर्म से कुछ नहीं होता. यही प्रत्यक्ष प्रमाण देख लीजिए.’’
कृपानिधान गाड़ी किस ओर खींचना चाह रहा है, यह अंदाज ठीक न लगा पाने से मैंं ने दबे स्वर में कहा, ‘‘हां, अच्छी जगह तो पा गया है.’’
कृपानिधान उमंग में भर कर बोला, ‘‘मैं ने उन के लिए एक बहुत उत्तम लडक़ी ढूंढ़ी है. समझ लीजिए बिलकुल राधाकृष्ण का सा जोड़ा. लडक़ी लाखों में नहीं, करोड़ों में एक हैै. देखनेसुनने, कामकाज, पढ़ाईलिखाई, बोलचाल, फैशन, सभी में उस की कोई बराबरी नहीं कर सकता,’’ धाराप्रवाह वाणी रुकना ही नहीं चाह रही है. मेरे कान खड़े हो गए,‘तो इसलिए इन महानुभाव का पदार्पण हुआ है.’
उस की बातों में फौरन ब्रैक लगाने के लिए शुद्ध हृदय से झूठ बोलने में ही खैर समझो, ‘‘देखिए, कृपानिधानजी आप ने अच्छी लडक़ी ही ढूंढ़ी होगी. आखिर आप ऐजैंसी चलाते हैं. हजारों बायोडाटा आप ने जमा कर रखे हैं.”
‘‘मैं ने एक काले लडक़े का सुंदर लडक़ी से ब्याह कराया. वे लोग आज भी आशीष देते हैं.’’
‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं,’’ मैं ने जल्दी से उस की बात काटी, ‘‘निर्मल हृदय से जो काम किया जाएगा, उस में आशीष निश्चित ही मिलेगी.’’
कृपानिधान की वाणी में फिर प्रवाह आने को ही था कि मैं ने कहा, ‘‘कृपाजी, आप उस लडक़ी की बायोडाटा लाए हैं?’’
‘‘हा हा हा हा…मेरे बैग में एक नहीं, सैंकड़ों बायोडाटा हैं.’’
कृपानिधान की जिह्वा की रफ्तार तेज होने से पहले ही उस के हाथ से बायोडाटा ले कर मैं ने कहा, ‘‘कृपाजी, पत्नी के भाई का विवाह ठहराएंगे तो उस के मांबाप ही, लेकिन यह भी भेज कर मैं उन को बोल दूंगा कि इस पर पहले विचार करें. यह लडक़ी जरूर अच्छी ही होगी.’’
‘‘बातचीत आगे बढऩे पर लडक़ेलडक़ी को मिला दिया जाएगा. आजकल के लडक़ेलडक़ी यही पसंद करते हैं.’’
‘‘बिलकुल ठीक, बातचीत जैसे ही आगे बढ़ेगी, यह भी हो जाएगा.’’
अब मौका देख कर मैं ने पूछ लेना ही ठीक समझा, ‘‘कृपाजी, जयदत्तजी की नातिन के ब्याह में क्या कष्ट है विनय शंकर के बेटे साथ?’’
तेज हंसी के साथ कृपा बोला, ‘‘सब का भला, तो अपना भी भला, यही मेरा ध्येय है. अब मैं आप को बता ही दूं तो ठीक है. लडक़े का कहीं अफेयर चल रहा है और विनय शंकरजी की नहीं सुन रहा है. इस में हम क्या कर सकते हैं.”
‘‘पर मुझे तो बताया गया था कि आप ने विनय शंकर को लडक़ी के बारे में कुछ कह दिया है जिस से बनता संबंध टूटने लगा है,’’ मैं बोला.
‘कहीं यह जालसाझी तो नहीं हो रहा है.’ तत्काल मन में संदेह उभरा, ‘कोई और चाल तो नहीं चल रहा है यह?’ मैं सोचने लगा.
‘‘आप कैसे जानते हैं जयदत्तजी को?’’ कृपानिधान ने तीखी नजरों से घूरते हुए, लेकिन मीठी मुसकान के साथ मुझ से कहा, शायद वह मेरे मनोभावों को मापने का प्रयत्न कर रहा था.
‘‘वह मेरे बचपन का सहपाठी और रिश्तेदार भी है.’’
फिर तेज हंसी, ‘‘बेचारे इतने परेशान थे कि दूर से आज यहीं आ गए हैं.’’
‘‘यहां आ गए हैं?’’
‘‘हां, हां, आप से रिश्तेदारी है, तो आप से मिलने भी आएंगे. हो सकता है, आते ही हों. मैं ने उन को 4-5 और रिश्ते सुझा दिए पर वे तो विनय शंकर के बेटे से ही बात कराने की जिद कर रहे हैं. अब मैं आप की भतीजी की भांति लडक़ी को जानबूझ कर कुएं में तो धकेलूंगा नहीं. अच्छा, आज्ञा दीजिए. मैं चलूं. बायोडाटा आप जरूर भेज दें. मैं फिर आप से मिलूंगा.’’
कृपानिधान कुछ जल्दी में चला गया.
हड़बड़ी में जयदत्त आया है. काम आते ही बन गया है. आज ही जा रहा है. अजीब रहस्यमय नाटक नहीं तो क्या है यह सब? मिलने जरूर आएगा जयदत्त. मैं ने व्हाट्सऐप खोल कर देखा. उस का मैसेज था, ‘‘अभी बिजी हूं. आज 4 बजे मिलता हूं.”
4 बजे खुले दरवाजे से जयदत्त दिखाई दिया. उठ कर उसे भीतर लाया. पत्नी को चाय बनाने के लिए आवाज दी तो जयदत्त ने मना कर दिया, ‘‘मैं, बहुत जल्दी में हूं, बैठूंगा नहीं. कुछ सामान भी खरीदना है. आज ही चला जाऊंगा.’’
मैं ने पूछा कृपानिधान का चक्कर क्या था?’’
‘‘हां, यह बात तो आप को बतानी ही होगी. कृपानिधान की ऐजैंसी ने मुझ से ₹50 हजार रजिस्ट्रैशन के लिए थे और यह बात पक्की की थी कि शादी के बाद मैं ₹2 लाख और दूंगा. हमारे जमाने में शादियां कुछ सौ रुपए में बिचौलिए करा देते थे पर अब तो इस धंधे में मारामारी चल रही है. इन के बीसियों फोन आए थे तो मैं ने भी कौंटैक्ट किया था.
“एक दिन कृपानिधानजी मेरे शहर पहुंच गए और मुझे बायोडाटाओं का बंडल थमा दिया और अपना पैकेज बता दिया,’’ वह बोला,”नातिन की शादी करने की उत्सुकता भी और आसपास से कोई खास संदेश नहीं आ रहे थे. मैं ने इन के 2-4 बायोडाटा देखे और पसंद किए तो उन्होंने एकदम 2-3 से फोन पर बात करा दी. दूसरी तरफ सब लोग बड़े सभ्य लगे.’’
चाय की चुसकियां लेने के बाद बोले, ‘‘फिर मेरी नातिन का बायोडाटा ले लिया. कुछ हिचक के बाद मैं ने ₹50 हजार दे दिए. अब यह रकम बहुत बड़ी थी मेरे लिए पर लगा कि जो मैं बेटी के लिए न कर सका, नातिन के लिए तो कर दूं. कोई कंजूसी नहीं करना चाहता था. कृपानिधान कुछ बायोडाटा छोड़ गए.
नातिन एकदूसरे के निकट आ चुके थे. मुझे वहीं खटका लगा. इसलिए मैं ने तुम्हें पता करने को कहा. तुम्हारी जांच पूरी होने से पहले ही उद्धव के पिता विनय शंकर का फोन आ गया और आज सुबह बुलाया.
“जो बायोडाटा छोड़ गए थे उन में मैं ने देखा कि उन का बायोडाटा नहीं था जिस से बात हुई थी. मैं ने सोचा कुछ गलती हो गई होगी. कुछ दिन तक कृपानिधानजी से बात नहीं हुई पर उन के औफिस से मेरे व्हाट्सऐप पर नएनए बायोडाटा आने लगे.
“कृपानिधान से जब भी बात करने की कोशिश की, वे हमेशा कहते कि एक घर में बैठे हैं, अभी बात करेंगे. जब टालमटोल कर रहे थे तो मैं ने खुद भेजे गए बायोडाटाओं में से 4-5 को छांट कर उन के पिताओं को फोन किए. 2-3 ने तो कहा बात कृपानिधान के मारफत करें पर 2 से अच्छी बात हो गई. वे भी मेरी तरह कृपानिधान से बहुत खुश नहीं थे. 2 ने कहा कि आप की नातिन और उन का बेटा दोनों फेसबुक फ्रैंड्स बन कर बात कर लें.
‘‘अब यह अटपटा था पर जमाना बदल रहा था. मैं मान गया और नातिन की एक उद्धव शंकर से अच्छी चैटिंग होने लगी. फिर उद्धव शंकर हमारे शहर आ कर नातिन से और हम सब से मिल गया. उस के मातापिता भी आ गए. हमें लगा कि मामला अच्छा जंच रहा है. कहीं कोई खोट नहीं लगा. तभी कृपानिधानजी का फोन आया और तुम्हारा हवाला दिया कि तुम और वे तो एकदूसरे के पुराने परीचित हैं. उन्होंने कहा कि उद्धव शंकर अच्छा लडक़ा नहीं है. यह शादी न हो.
‘‘बात फैले नहीं, इसलिए मैं ने तुम्हें भी नहीं बताई. सिर्फ मैसेज भेजा था. मैं तुम्हें पूरी बात बता कर परेशान नहीं करना चाहता था.’’
फिर जयदत्त ने अपने मोबाइल पर कुछ जोड़ों के फोटो दिखाए जो पीछे से खींचे हुए थे. जयदत्त बोला, ‘‘कृपानिधान ने ये फोटो मुझे भेजे थे कि इन में लडक़ा उद्धव है.
“तब तक उद्धव और नातिन एकदूसरे के निकट आ चुके थे. मुझे वहीं खटका लगा. इसलिए मैं ने तुम्हें पता करने को कहा. तुम्हारी जांच पूरी होने से पहले ही उद्धव के पिता विनय शंकर का फोन आ गया और आज सुबह बुलाया. जब मैं उन से मिला तो उन्होंने ही ये फोटो मुझे दिखाए और कहा कि कृपानिधान उन्हें दे गया कि इन में लडक़ी मेरी नातिन है. वह धूर्त असल में विनय शंकरजी को कह रहा था वे मुझ से शादी में ₹30 लाख नकद मांगे ताकि उस की कमीशन बढ़ जाए. विनय शंकरजी न तो इस के लिए तैयार हुए न कुछ और देने को क्योंकि सारा मेलमिलाप तो हम दोनों और बच्चों ने खुदबुखुद किया था. अब दोपहर को जब हम दोनों एक साथ कृपानिधान को मिले तो वह सकपका गया. उस ने हाथ जोड़े कि यह बात तुम्हें न पता चले कि कमीशन न मिलने पर वह रिश्ता तुड़वाना चाहता था.
‘‘यह तो विनय शंकरजी का बड़प्पन समझें कि उन्होंने कहा कि कृपानिधान बच्चों की शादी में कोई धोखेबाजी का धब्बा न लगे इसलिए हम बात मान लेते हैं. शायद सुबह कृपानिधान आप के पास आया था और बिना ज्यादा बताए चला गया था क्योंकि जब वह तुम्हारे पास बैठा था शायद तभी हम दोनों ने उसे फोन किए थे. तभी वे दौड़े हमारे पास आए थे और मामला दबाने की पुरजोर कोशिश की थी. तुम्हें मसका लगाने आया था कि तुम मुझ से पूरी बात जान कर उस की पोल सब से न खुलने लगे.’’
मेरी नजर जयदत्त के चेहरे पर गड़ सी गई. सरकार के खिलाफ लड़ता हुआ उस का तेजमय रूप एक झपकी सी दे कर गायब हो गया. मानसिक थकान की लकीरें उस के माथे पर उभर आईं.
‘‘बहुत उखड़ गया होगा कृपानिधान?” मैं ने पूछा.
‘‘पहले उखड़ा. तिलामला कर अपने असली खूंख्वार रूप में आ गया था. मोरचा बांधता हुआ बोला कि आप मुझे डराना चाहते हैं? मेरे क्लाइंट के लडक़े से अपनी देहाती नातिन की शादी बिना ब्राह्मण की दक्षिणा दिए ही कर लेंगे आप, मेरे पीठ पीछे. बिना दक्षिणा दिए नहीं होगा यह ब्याह। समाज में रहना मुश्किल कर दूंगा. मेरे ऊपर रोब…’’
‘‘ओह, यह रूप भी है उस का?’’
‘‘उस का रूप…’’ मैं ने कहा, “बोलिए अपने दाम.”
बोला, “दाम नहीं दक्षिणा ₹4 लाख. 2-2 लाख दोनों ओर से. यह ब्राह्मण की जबान है. कोई हेरफेर नहीं होगा. नातिन को छोड़ कर कोई है नहीं आप का. जमीन काफी है.’’
‘‘तो कमीने की तुम्हारी जमीन पर नजर थी. जमीन बेचने पर तुम्हारी बाकी जिंदगी कैसे गुजर होगी?’’ क्रोध की लहर मेरे शरीर में अनायास दौड़ गई.
‘‘अब क्या करोगे?’’
“उस को शांत रखने की बात विजय शंकरजी भी बोल रहे हैं. शादी के माहौल में मन में खटास नहीं रहनी चाहिए. ₹50-50 हजार तो हम दे चुके हैं. अब आखिर में जो देंगे, उस के गवाह तुम बन कर आना.”
‘‘अर्पण करने का वचन दिया है. उस का पालन करूंगा.’’
‘‘हां, अब चलूं. सामान भी खरीदते जाऊंगा. अगले हफ्ते इसी दिन विवाह तय हुआ. तुम्हारे पास इतनी जल्दी में इसलिए आया कि तुम्हें जरूर आना है. मेरा यह पहला और आखिरी सामाजिक कार्य है. तुम्हारे आने से अपनापन सा अनुभव होता रहेगा. बोलो, आओगे?’’
‘‘हां, जरूर आऊंगा. बरात के साथ ही आ जाऊंगा. उसी में सुविधा रहेगी. ठीक है, मैं चलूं.’’
जयदत्त चला गया. मेरा मन खिन्न हो गया. जिस व्यक्ति ने उतने बड़े साम्राज्य से सीना तान कर लोहा लिया, वह आज कृपानिधान के सामने अपनेआप को इतना कमजोर महसूस कर रहा है। लेकिन… लेकिन… मुझे जयदत्त के चेहरे पर कहीं भी पराजय की ग्लानि अंकित नहीं दिखाई दी. विवाह के समय कृपानिधान ही सब से खुशी से मिलता नजर आ रहा है. बड़ों से बड़ी नम्रतापूर्वक बातें कर रहा है, बराबर वालों को हंसीमजाक, चुटकुलों से हंसाए चला जा रहा है और छोटों को हासपरिहास से खुश कर के उन में भी प्रिय बनने की भरसक कोशिश कर रहा था कि यह शादी उसी ने कराई है.
विवाह संपन्न हुआ. बराती लौरी के पास इकट्ठे होने लगे हैं. जयदत्त, विनय शंकर का कहीं पता नहीं. कृपानिधान सब से ज्यादा परेशान और चिंतित दिखाई दे रहा है. बारबार जयदत्त को बुला लेने और जल्दी चल निकलने की बात उठा रहा है. जयदत्त आया. धीमे स्वर में कृपानिधान से एकांत में चलने का आग्रह किया. मुझे भी आने का इशारा किया. विनय शंकर भी वहां खड़े थे,‘‘तो हमारी बात 2-2 की हुई थी न?’’ विनय शंकर ने पूछा.
कृपानिधान खुश हो कर बोला ‘‘हां जी 2-2 की.’’
‘‘तुम्हारे ये साथी गवाह हैं न?’’ जयदत्त बोला, ‘‘हां हां…’’ कृपानिधान अब जल्दी में था, ‘‘तो लो, 2-2 के चैक लिफाफों में हैं,’’ विनय शंकरजी बोले.
कृपानिधान ने लिफाफा खोला तो ₹2,000-2,000 के चैक थे. उस का मुंह फक्क पङ गया.
“हम दोनों वचन के अनुसार, यह ₹4,000 आप को विनम्रतापूर्वक अर्पण कर रहे हैं। भेंट स्वीकार करें.’’
कृपानिधन को लगा जैसे 4 दहकते अंगारे उस के हाथ में रख दिए गए हैं. क्रोध में कुछकुछ हकलाते हुए बोला, ‘‘वचन ₹4 लाख का हुआ था. यह तो ₹4,000 हैं.’’
‘‘यह श्रवण दोष हो सकता है, कृपानिधानजी. मैं ने हर बार 4 देने का वचन दिया. आप तो पंडित हैं. बताइए?’’
कृपानिधान ने दोनों गवाहों की ओर देखा. वे मुसकरा रहे थे. कृपानिधान का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा, लेकिन कह या कर क्या सकता है. कमीशन की बात किसी और से कह भी नहीं सकता. जयदत्त ने अपने ढंग से अपने वचन का पालन कर उस का मुंह खुलने लायक नहीं रखा है और बात बढ़ने पर उसी की फजीहत होगी, यह भी वह समझ रहा है. वह समझ रहा था कि अब उस की दाल और नहीं गलेगी.
जयदत्त बोला, ‘‘कृपानिधानजी, धन्यवाद. आप ने बड़ी मदद की. अब आप आनंदपूर्वक अपनी वापसी यात्रा प्रारंभ करने का कष्ट करें.’’
मैं न चाहते हुए भी खिलखिला पड़ा, ‘‘वाह, वाह…जयदत्त, तुम ने तो धर्मराज युधिष्ठिर को भी मात दे दी, वे बेचारे लाखों की…युधिष्ठिर तो बड़ी मुश्किल से, अश्वत्थामा हाथी के नर होने का भ्रम पैदा कर पाए थे. यहां तो तुम ने अकेले ही ब्रह्मराक्षस पर विजय पा ली। भई, वाह…’’
मुझे अपनी हंसी रोकनी कठिन हो रही थी. कृपानिधान लाललाल आंखों से मुझे घूरने लगा था.