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कहानी: सब से बड़ा सुख

अपनी आलीशान कोठी में ऊपर की मंजिल की खिड़की के पास खड़ी कमला की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे. वे अपने अश्रुपूरित नेत्रों से बारबार फाटक को निहार रही थीं, जहां से उन का पोता राजू रोता बिलखता होस्टल भेजा गया था. नन्हे पोते की चीखें अभी तक उन के कानों में गूंज रही थीं. 

मां की रोबीली फटकार तथा पिता का निर्विकार चेहरा देख वह चीख कर बोला था, ‘अब मैं कभी आप के पास नहीं आऊंगा. बस, होस्टल ही मेरा घर होगा.’ फिर दादी का आंचल पकड़ कर उन से लिपट कर बोला, ‘दादी, मैं आप को बहुत प्यार करता हूं. आप जरूर मेरे पास आओगी, यह मैं जानता हूं क्योंकि इस घर में एक आप ही तो हो जो मुझे प्यार करती हो. मैं यह भी जानता हूं कि आप की भी इस घर में कोईर् सुनता नहीं है. आप को भी किसी दिन ये लोग घर से निकाल देंगे.’

8 वर्षीय पोते की बातें उन के अंतर्मन को उद्वेलित कर रही थीं. कमला के पति सफल व्यवसायी थे. उन्होंने अपनी मेहनत तथा लगन से अपार संपत्ति उपार्जित की थी. उन के केवल एक पुत्र था, ब्रजेश, जिस के लालनपालन में उन्होंने कोई कमी नही की थी. मां की ममता तथा पिता के प्यारभरे संरक्षण ने ब्रजेश को भी एक सफल व्यवसायी बना दिया था. उस की पत्नी एक कर्नल की बेटी थी, जिस की रगरग में पिता का दबंग स्वभाव तथा अनुशासन समाया हुआ था. अनुशासन ने उस के ममत्व को भी धराशायी कर दिया था. पति के न रहने पर कमला ने अपने पोते राजू पर अपना समस्त प्यार उड़ेल दिया था. 

अब उसी को अपने से अलग करवाते देख उन का मन चीत्कार कर उठा था. बहू के वे शब्द, जो उस ने ब्रजेश तथा नौकरों के सामने कहे थे, कांटे के समान उन्हें चुभ रहे थे. जिस पोते के प्यार में डूब कर वे पति का गम भी भूल गई  थीं, उसी के प्रति ये शब्द सुनने पड़े, ‘यहां आप के लाड़प्यार ने इसे बिगाड़ दिया है. इस के चरित्र निर्माण के लिए होस्टल ही उचित स्थान है, यहां रह कर यह कुछ नहीं बन पाएगा.’

उन का मन तो हुआ कि कह दें, इतना बड़ा व्यवसाय मेरे बेटे ने संभाला हुआ है, वह सबकुछ इसी घर की चारदीवारी में रह कर ही सीखा है, पर वे जानती थीं कि तब बहू नौकरों के सामने उन्हें जलील करने में देर नहीं करेगी और उन का बेटा मूकदर्शक ही बना रहेगा. राजू के कुछ खिलौने तथा कपड़े छूट गए थे, उन को उन्होंने रोते हुए अपनी कीमती चीजों के संग रख दिया. सोचा, अब तो राजू की इन्हीं चीजों को देखदेख कर वे अतीत के उन आनंददायक क्षणों में पहुंच जाएंगी, जब राजू उन से लिपट कर अपनी नन्हीं बांहें उन के गले में डाल कर कहता था, ‘दादी, परी वाली कहानी सुनाओ न.’ राजू को गए 4 दिन बीत गए थे. 

उन्होंने खाने के कमरे में पैर नहीं रखा था. वहां पहुंच कर राजू की खाली कुरसी देख क्या वे अपनी रुलाई पर काबू पा सकेंगी? दोनों समय खाना कमरे में ही मंगवा लेती थीं. एक प्रकार से उन्होंने खुद को कमरे में कैद कर लिया था. जिस घर में राजू की खिलखिलाहट सुनाई पड़ती थी, वहां अब वीरानी सी फैली थी. बेटाबहू दोनों ही औफिस चले जाते थे. अब तो घर की दीवारें ही उन के संगीसाथी रह गए थे.

इधर, राजू के जाने के बाद से घर में चुप्पी छाई थी. ऐसा लगता था, इस शांति के बाद कुछ अनहोनी होने वाली है. एक दिन वे बाहर निकलीं. उन की आंखें फाटक पर अटक गईं. अभी वे अपने को संतुलित करने की कोशिश कर ही रही थीं कि बहू की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘न भई, मैं उन से यह कहने नहीं जाऊंगी. वैसे भी मेरी कोई बात उन्हें अच्छी नहीं लगती. तुम्हीं चहेते हो. हम ने जो तय किया है, कह दो. मैं तो उन की नजरों में विष की डली हूं.’’

वे समझ न सकीं कि बेटाबहू किस विषय पर वार्त्तालाप कर रहे हैं. पर सोचा, 1-2 दिन में तो पता चल ही जाएगा. दूसरे दिन बेटा उन के कमरे में आया. उन्हें लगा कि उन्हें दुखी देख शायद वह राजू को लेने जा रहा है और यही खुशखबरी सुनाने आया है. ब्रजेश ने उन से आंखे चुराते हुए कहा, ‘‘मां, मैं देख रहा हूं कि राजू के जाने के बाद से तुम बहुत अकेलापन महसूस कर रही हो. तुम्हारी बहू और मैं औफिस चले जाते हैं. इधर मेरा बाहर जाने का कार्यक्रम बहुत बढ़ गया है. तुम्हारी बहू भी व्यवसाय में मेरी बहुत सहायता करती है. कभीकभी तो हम दोनों को ही बाहर जाना पड़ सकता है, ऐसे में तुम्हारी देखभाल करने वाला कोईर् नहीं रहेगा. ‘‘हम दोनों ने सोचा है कि तुम्हें ‘वृद्ध आश्रम’ में भेज दें. वहां तुम्हारी देखभाल भी हो जाएगी और मन भी लग जाएगा. तुम्हारी सुखसुविधा का सभी प्रबंध हम कर देंगे. पैसे की कोई चिंता नहीं है. वैसे सबकुछ तुम्हारा ही है,’’ फिर खिसियानी हंसी हंसते हुए बोला, ‘‘हम दोनों तो देखरेख के लिए तुम्हारे मैनेजर हैं.’’

वे अवाक पागलों के समान बेटे का मुंह ताकती रहीं. थोड़ी देर के लिए उन्हें लगा कि शरीर का खून  किसी ने खींच लिया है, पर जल्द ही उन का स्वाभिमान जाग उठा. उन्होंने गरदन उठा कर कहा, ‘‘ठीक है बेटा, तुम दोनों ने ठीक ही सोचा होगा. वैसे भी इस घर को मेरी कोई आवश्यकता नहीं रह गई है.’’ अपमान से दुखी पलकों के ऊपर विवशता के जल की बूंदें टपक पड़ीं. थोड़ी देर बाद ब्रजेश बोला, ‘‘इसी शहर में यह आश्रम खुला है. यहां सुखसुविधा का सब इंतजाम है. बड़ेबड़े लोग इसे मन लगाने का स्थान समझ कर रह रहे हैं.

वैसे भी, जब तुम्हारा मन न लगे तो घर तो है ही, वापस चली आना.’’ पोते के चलते समय के शब्द उन्हें याद आने लगे. उस ने कैसे विश्वास से कहा था, ‘दादी, आज मातापिता मुझे घर से निकाल कर होस्टल भेज रहे हैं, किसी दिन ये तुम्हें भी घर से निकाल देंगे.’ पोते की भविष्यवाणी सचमुच सत्य साबित हो गई थी. उन्होंने अभिमान से गरदन उठा कर कहा, ‘‘मैं तैयार हूं. तुम ने सभी इंतजाम पहले से कर लिया होगा. वैसे भी, यहां रुकने की तुक नहीं है. मैं भी चाहती हूं कि अपनी जिम्मेदारी से तुम दोनों को मुक्त कर दूं.’’ ब्रजेश मां से आंखें न मिला सका. चलतेचलते बोला, ‘‘इतनी जल्दी भी क्या है. 2-4 दिनों बाद चली जाना.’’ कमला ने कहा, ‘‘मैं 2 घंटे बाद चली जाऊंगी, ड्राइवर को स्थान बता देना.’’

लगभग 60 सालों तक सुख की शय्या पर सोई उन की काया ने कांटों की चुभन का अनुभव नहीं किया था. जीवन के 2 पहलू भी होते हैं, यह अब उन्होंने जाना. अपने खू से सींची औलाद भी पराई हो सकती है, यह भी आज ही उन्हें पता चला. उन के अंतर्मन से आवाज आई, ‘मैं तो तन से स्वस्थ तथा धन से परिपूर्ण होते हुए भी इतनी सी चोट से घबरा उठी हूं, पर उन वृद्धों की मनोस्थिति क्या होती होगी, जो तन, मन तथा धन तीनों से वंचित हैं.’ अब उन्हें अपना दुख नगण्य लगा. एक अदम्य उत्साह तथा विश्वास से उन्होंने अपना पथ चुन लिया था. चैकबुक और अपना जरूरी सामान उन्होंने सूटकेस में रख लिया और बिना बेटाबहू की तरफ देखे गाड़ी में बैठ गईं.

वृद्धाश्रम शहर से दूर एकांत स्थान पर था. चारों तरफ हरियाली से घिरा वह भवन मन को शांति देने वाला था. अंदर जा कर उन्होंने देखा कि जीवन की सभी आवश्यकताओं का सामान वहां उपलब्ध है. जिस ने भी उसे बनवाया था, बहुत सोचविचार कर ही बनवाया था. चूंकि अभी वह नया ही बना था, इसी कारण 10-12 ही स्त्रीपुरुष वहां थे. सभी वृद्धों के चेहरों पर अपने अतीत की छाया मंडरा रही थी. कमला ने मुसकराते हुए सब से अभिवादन किया. उन्हें प्रफुल्लित तथा मुसकराते देख सभी चकित रह गए. 

सभी वृद्ध समृद्ध परिवारों के सदस्य थे. पैसे की उन के पास कमी न थी, पर अपमान की वेदना सहतेसहते वे टूट चुके थे. कमला उन के पास बैठ कर बोलीं, ‘‘देखिए, अगर मैं कुछ कहूं और उस से आप को पीड़ा पहुंचे तो इस के लिए मैं क्षमा चाहती हूं. मैं इसी शहर के सफल व्यवसायी प्रताप सिंह की पत्नी कमला हूं. 8 साल पहले मेरे पति की मृत्यु हो चुकी है. मैं अपने बेटे ब्रजेश के साथ रहती हूं. आप सब के समान मुझे भी घर का फालतू प्राणी समझ कर यहां भेज दिया गया है.

‘‘थोड़ी देर के लिए मैं भी बहुत मायूस हो गई थी पर जब मैं ने सोचा कि मेरे पास तो धन और स्वास्थ्य दोनों ही हैं, पर उन वृद्धों की मनोस्थिति क्या होती होगी जो तन, मन तथा धन तीनों से वंचित होंगे, तो यह महसूस करते ही मुझ में एक अदम्य उत्साह जागृत हो गया. फिर मुझे यह अपमान, अपमान न लग कर वरदान लगा. हम सब को प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए कि कुछ तो हमारे पास है, जिस का उपयोग हम कर सकते हैं. ‘‘हमें यह नहीं दिखना है कि हम टूट चुके हैं. 

जीवन में यही समय है जब हम खाली हैं और कुछ सत्कार्य करने में सक्षम हैं. आप सब के पास दौलत की कमी नहीं है. यह सभी दौलत आप ने अपने पुरुषार्थ से संचित की है. इसे उपयोग में लाने का आप को पूरा हक है. अपने बच्चों के लिए तो सभी करते हैं पर किसी ने जीवन के अंतिम पड़ाव पर खड़े उन वृद्धों के बारे में सोचा है, जो तिलतिल कर मर रहे हैं? चूंकि उन के पास पैसा नहीं है, इस कारण उन की जिंदगी कुत्तों से बदतर हो गई है. अपना ही खून सफेद हो गया है. क्या हम उन के लिए कुछ नहीं कर सकते?

‘‘अगर हम ने एक दुखी को अंत समय शांति तथा सुख दिया तो इस से बड़ा नेक कार्य और क्या हो सकता है. देने से बढ़ कर और कोई सुख नहीं है. मैं ने अपने बेटे को इस योग्य बना दिया है कि वह स्वयं कमा सकता है. मैं अपनी समस्त संपत्ति उन वृद्धों पर खर्च करूंगी जो इस वृद्ध आश्रम में पैसे के कारण नहीं आ सकते. हम उन से वही कार्य करवाएंगे, जिन में उन की रुचि होगी, ताकि वे अपने को दूसरों पर आश्रित समझ कर हीनभावना से ग्रसित न होने पाएं. 

हम अपने पैसे से दुत्कारे हुए वृद्धों को नवजीवन दे सकें तो इस से क्या सब को संतोष तथा प्रसन्नता नहीं होगी?’’ उन वृद्धों के पोपले मुखों पर संतुष्टि की एक स्मित रेखा सी खिंच गई. पूरा हौल तालियों से गूंज उठा. अब तक खाली बैठेबैठे उन की आंखों के आगे अतीत चलचित्र की भांति कौंध जाता था जब उन्हें पालतू प्राणी समझ कर उन की उपेक्षा की जाती थी. पर अब उन्हें अपने अस्तित्व की शक्ति का भान हुआ था. सभी बारीबारी से बोल उठे कि हमारी बड़ीबड़ी कोठियां हैं, उन्हें हम वृद्धों का निवासस्थान बना देंगे. वहां ऊंचनीच व जातपांत का भेदभाव नहीं रहेगा.

कमला की आंखें नम हो गईं. उन्हें लगा, ‘जो हमसफर इतने पास आ जाते हैं, उन्हें फिर एकदूसरे को अपनी बात समझानी नहीं पड़ती. उन की आंतरिक अनुभूतियां ही वाणी समान मुखर हो उठती हैं.’ सभी वृद्धों की आंखें विजयीगर्व से चमक रही थीं. दूसरे दिन कमला ने सभी वृद्धों से अपने पोते की भविष्यवाणी के बारे में बताया और यह भी कहा कि वे उस की पसंद की चीजें ले कर अकसर उस से मिलने जाया करेंगी. इतवार के दिन उन्होंने राजू की पसंद की ढेर सारी चीजें खरीदीं, ताकि वह अपने दोस्तों को भी दे सके. होस्टल पहुंचते ही राजू उन से लिपट कर बोला, ‘‘दादी, मैं जानता था कि तुम जरूर मुझ से मिलने आओगी,’’ उस ने अपने दोस्तों से कहा कि यही मेरी प्यारी दादी हैं. कमला ने सभी सामान बच्चों में बांटा और कई घंटे उन के साथ व्यतीत करने के बाद यह कह कर लौट पड़ीं कि वे यहां आती रहेंगी.

राजू ने पूछा, ‘‘घर पर सब ठीक है न?’’

उन्होंने मुसकराते हुए कहा, ‘‘ मैं घर में नहीं रहती. एक वृद्ध आश्रम है, वहीं पर रहती हूं.’’ राजू चीख कर बोला, ‘‘मैं समझ गया हूं, उन्होंने आप को भी घर से निकाल दिया है.’’ हंसते हुए उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘राजू, वहां तेरे बिना मेरा मन भी तो नहीं लगता था. इस कारण भी तेरे मातापिता ने मुझे आश्रम भेज दिया.’’

‘‘मैं सब समझता हूं. वे हम दोनों को प्यार नहीं करते, इसी कारण घर से निकाल दिया है.’’

उन्होंने प्यार से राजू के माथे को चूमते हुए कहा, ‘‘बेटे, मातापिता के लिए ऐसी बातें नहीं सोचनी चाहिए. वे जो कुछ भी कर रहे हैं, तुम्हारे भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए ही कर रहे हैं. होस्टल में बच्चों के संग तुम्हारा मन लग जाएगा, इसलिए तुम्हें यहां भेजा है.’’ राजू ने अविश्वास से दादी की तरफ देख कर कहा, ‘‘आप कहती हो तो मान लेता हूं,’’ फिर मासूमियत से बोला, ‘‘दादी, अपने घर में कब ले चलोगी?’’ कमला की आंखों में आंसू तैर आए, जिन्हें उन्होंने बड़े कौशल से पी कर कहा, ‘‘बेटे, हमारे घर में सभी वृद्ध लोग हैं. वहां तुम्हारा मन नहीं लगेगा. हम ही तुम्हारे पास आते रहेंगे.’’

वृद्धाश्रम लौटने पर काफी देर उन का मन उदास रहा. फिर उन के भीतर से आवाज आई, ‘तुझे भावुकता में बह कर अपने ध्येय को नहीं भूलना. तेरा लक्ष्य तेरे सामने है. इस समय बीस हाथ तेरी सहायता के लिए तैयार हैं. ये हाथ दिनोंदिन बढ़ते ही जाएंगे. सफलता तुझे पुकारपुकार कर कह रही है, आगे बढ़ती जा, ‘यह सोचते ही अदम्य उत्साह से वे उठ खड़ी हुईं.  दूसरे दिन कमला ने आश्रम के वृद्धों से कहा, ‘‘आप लोगों के पास जो भी कोठियां हैं, अगर आप खुशीखुशी उन्हें वृद्धाश्रम बनाने के लिए दे सकें, तो जो व्यय हम इस वृद्धाश्रम पर कर रहे हैं, वही हम अपने आश्रम पर खर्च करेंगे. हम सभी मिल कर उन्हें आवश्यक सामान से सुसज्जित कर कई वृद्ध आश्रम बना सकते हैं. मेरे पास जितनी संपत्ति है, उसे मैं वृद्धाश्रमों को दे रही हूं. यह सही है कि इस उम्र में हम थक सकते हैं पर जिस उत्साह से हम कार्य करेंगे, उस से शायद किसी को भी थकावट महसूस नहीं होगी.’’

हर वृद्ध, जिस के पास पैसा था, ने वह दिया और जिस के पास कोठी भी थी, उस ने सहर्ष कोठी तथा पैसा दोनों ही दिए. जब वृद्धों ने अपनीअपनी कोठियां खाली करवानी शुरू कीं तो रिश्तेदारों के होश उड़ गए. इस प्रकार कई कोठियां खाली हो गईं. अब उन वृद्धों ने बड़े उत्साह से उन में आवश्यक सामान तथा नौकरों का बंदोबस्त करना शुरू कर दिया. समाचारपत्रों में इन वृद्ध आश्रमों की प्रशंसा में कौलम भर गए. मध्यवर्गीय परिवार के वृद्धों को प्राथमिकता मिली. हर वृद्धाश्रम का ट्रस्ट बना दिया गया, ताकि जिन्होंने पैसा दिया है, उन की मृत्यु के बाद भी वे सुचारु रूप से चलते रहें. वृद्धों के निराश चेहरों पर रौनक आने लगी. 

समाज के जो संभ्रांत परिवार थे, उन के यहां एक अनोखा परिवर्तन आया. परिवार की युवा पीढ़ी जहां सतर्क हुई, वहीं वृद्धों के प्रति उन के व्यवहार में भी परिवर्तन आया और उन की पूरी देखभाल होने लगी. कमला तथा अन्य वृद्धों, जिन्होंने इन आश्रमों को बनवाने में अपना पूरा सहयोग दिया था, की देखादेखी बहुत से रईसों ने अपना पैसा तथा सहयोग देना शुरू कर दिया क्योंकि वे स्वजनों के व्यवहारपरिवर्तन के इस छलावे को समझ चुके थे और किसी न किसी रूप में इन वृद्धाश्रमों से संपर्क बनाने की चेष्टा में लग गए थे. एक तरफ वाहवाही की चाह थी, तो दूसरी ओर परोपकार की भावना जोर मार रही थी. हृदय के किसी कोने में प्रतिकार भी था.

कमला वृद्धाश्रम के एक कक्ष में बैठी विचारों में मगन थीं. उन के चहेरे पर वेदना और शांति के भावों का अनोखा मिश्रण झलक रहा था. अब उन्होंने जाना कि कांटों की शय्या पर सोया प्राणी ही कुछ करने की क्षमता रखता है. जिस सत्कार्य को करने का उन्होंने बीड़ा उठाया था, उस को प्रेरणा देने वाला उन के बेटेबहू का व्यवहार ही तो था. कमला ने महसूस किया कि देने से बड़ा सुख और कोई नहीं है. दूसरों को सहायता तथा सुख पहुंचा कर अपने हृदय को कितनी शांति और सुकून मिलता है. उन्होंने जीवन का सब से बड़ा सुख पा लिया था.

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