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कहानी: खोखले चमत्कार

संजू की दादी का मन सुबह से ही उखड़ा हुआ था. कारण यह था कि जब वे मंदिर से पूजा कर के लौट रही थीं तो चौराहे पर उन का पैर एक बुझे हुए दीए पर पड़ गया था. पास ही फूल, चावल, काली दाल, काले तिल तथा सिंदूर बिखरा हुआ था. वे डर गईं और अपशकुन मनाती हुई अपने घर आ पहुंचीं .

घर पर संजू अकेला बैठा हुआ पढ़ रहा था. उस की मां को बाहर काम था. वे घर से जा चुकी थीं. पिताजी औफिस के काम से शहर से बाहर चले गए थे. उन्हें 2 दिन बाद लौटना था.


दादी के बड़बड़ाने से संजू चुप न रह सका. वह अपनी दादी से पूछ बैठा, ‘‘दादी, क्या बात हुई? क्यों सुबहसुबह परेशान हो रही हो?’’


अंधविश्वासी दादी ने सोचा, ‘संजू मुझे टोक रहा है.’ इसलिए वे उसे डांटती हुई फौरन बोलीं, ‘‘संजू, तू भी कैसी बातें करता है. बड़ा अपशकुन हो गया. किसी ने चौराहे पर टोनाटोटका कर रखा था. उसी में मेरा पैर पड़ गया. उस वक्त से मेरा जी बहुत घबरा रहा है.’’


संजू बोला, ‘‘दादी, अगर ऐसा है तो मैं डाक्टर को बुला लाता हूं.’’  पर दादी अकड़ गईं और बोलीं, ‘‘तेरा भेजा तो नहीं फिर गया कहीं. ऐसे टोनेटोटके में डाक्टर को बुलाया जाता है या ओझा को. रहने दे, मैं अपनेआप संभाल लूंगी. वैसे भी आज सारा दिन बुरा निकलेगा.’’


संजू ने उन की बात पर कोई ध्यान न दिया और अपना होमवर्क करने लगा. संजू स्कूल चला गया तो दादी घर पर अकेली रह गईं. पर दादी का मन बेचैन था. उन्हें लगा कि कहीं किसी के साथ कोई अप्रिय घटना न घट जाए, क्योंकि जब से चौराहे में टोनेटोटके पर उन का पैर पड़ा था, वे अपशकुन की आशंका से कांप रही थीं. तभी कुरियर वाला आया और उन से हस्ताक्षर करवा उन्हें एक लिफाफा थमा कर चला गया. अब तो उन का दिल ही बैठ गया. लिफाफे में एक पत्र था जो अंगरेजी में था और अंगरेजी वे जानती नहीं थीं. उन्हें लगा जरूर इस में कोई बुरी खबर होगी.


इसी डर से उन्होंने वह पत्र किसी से नहीं पढ़वाया. दिन भर परेशान रहीं कि कहीं इस में कोई बुरी खबर न हो. शाम को जब संजू और उस की मां घर लौटे, तब दादी कांपते हाथों से संजू की मां जानकी को पत्र देती हुई बोलीं, ‘‘बहू, जरूर कोई बुरी खबर है. अपशकुन तो सुबह ही हो गया था. अब पढ़ो, यह पत्र कहां से आया है और इस में क्या लिखा है? जरूर कोई संकट आने वाला है. हाय, अब क्या होगा?’’


जानकी ने तार खोल कर पढ़ा लिखा था, ‘‘बधाई, संजय ने छात्रवृत्ति परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है.’’


पढ़ कर जानकी खिलखिला उठीं और अपनी सास से बोलीं, ‘‘मांजी, आप बेकार घबरा रही थीं, खबर बुरी नहीं बल्कि अच्छी है. हमारे संजू को छात्रवृत्ति मिलेगी. उस ने जो परीक्षा दी थी, उत्तीर्ण कर ली.’’ तब दादी का चेहरा देखने लायक था. किंतु दादी अंधविश्वास पर टिकी रहीं. वे रोज मंदिर जाया करती थीं. एक रोज सुबहसुबह दादी मंदिर गईं. थाली में नारियल, केला और लड्डू ले गईं. थाली मूर्ति के सामने ही रख दी और आंखें बंद कर के मन ही मन जाप करने लगीं. इसी बीच वहीं पेड़ पर बैठा एक बंदर पेड़ से उतरा और चुपके से केला व लड्डू ले कर पेड़ पर चढ़ गया.


दादी ने जब आंखें खोलीं और थाली में से केला व लड्डू गायब पाया तो खुश हो कर अपनेआप से बोलीं, ‘‘प्रभु, चमत्कार हो गया. आज आप ने स्वयं ही भोजन ग्रहण कर लिया.’’ वे खुशीखुशी मंदिर से घर लौट आईं. घर पर जब उन्हें सब ने खुश देखा तो संजू कहने लगा, ‘‘दादी, आज तो लगता है कोई वरदान मिल गया?’’


दादी प्रसन्न थी, बोलीं, ‘‘और नहीं तो क्या?’’


फिर दादी ने सारा किस्सा कह सुनाया. संजू खिलखिला कर हंस पड़ा तथा यह कहता हुआ बाहर दौड़ गया, ‘‘इस महल्ले में चोरउचक्कों की भी कमी नहीं है. फिर पिछले कुछ समय से यहां काफी बंदर आए हुए हैं लगता है प्रसाद कोई बंदर ही ले गया होगा.’’ सुन कर दादी ने मुंह बिचकाया. फिर सोचने लगीं कि आज शुभ दिन है. आज मेरी मनौती पूरी हुई. मैं चाहती थी कि मेरा बुढ़ापा सुखचैन से बीते. रोज की तरह उस शाम को दादी टहलने निकल गईं. वे पार्क में जाने के लिए सड़क के किनारे चली जा रही थीं. साथ ही सुबह हुए चमत्कार के बारे में सोच रही थीं.


तभी एक किशोर स्कूटी सीखता हुआ आया और दादी को धकियाता हुआ आगे बढ़ गया. दादी को पता ही नहीं चला, वे लड़खड़ा कर हाथों के बल सड़क पर जा गिरीं. हड़बड़ाहट में उठ तो गईं, पर घर आतेआते उन के दाएं हाथ में सूजन आ गई. वे दर्द के मारे कराहने लगीं. उन्हें फौरन डाक्टर को दिखाया गया. एक्सरे करने पर पता चला कि कलाई की हड्डी चटक गई है.


एक माह के लिए प्लास्टर बंध गया. दादी ‘हाय मर गई, हाय मर गई’ की दुहाई देती रहीं.संजू चुटकी लेता हुआ दादी से बोला, ‘‘दादी, यही है वह चमत्कार, जिस के लिए आप सुबह से ही खुश हो रही थीं. तुम्हारी दोनों बातें गलत निकलीं. इसलिए भविष्य में ऐसे अंधविश्वासों के चक्कर में मत पड़ना.’’  दादी रोंआसी हो कर बोलीं, ‘‘हां बेटा, तुम ठीक कहते हो. हम ने तो सारी जिंदगी ही ऐसे भ्रमों में बिता दी पर मैं अब कभी शेष जीवन में इन खोखले चमत्कारों के जाल में नहीं पडूंगी.’’

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