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कहानी: गुच्चूपानी

एकसाथ 3 दिन की छुट्टी देखते हुए पापा ने मसूरी घूमने का प्रोग्राम जब राहुल को बताया तो वह फूला न समाया. पहाड़ों की रानी मसूरी में चारों तरफ ऊंचेऊंचे पहाड़, उन पर बने छोटेछोटे घर, चारों ओर फैली हरियाली की कल्पना से ही उस का मन रोमांचित हो उठा.

राहुल की बहन कमला भी पापा द्वारा बनाए गए प्रोग्राम से बहुत खुश थी. पापा की हिदायत थी कि वे इन 3 दिन का भरपूर इस्तेमाल कर ऐजौंय करेंगे. एक मिनट भी बेकार न जाने देंगे, जितनी ज्यादा जगह घूम सकेंगे, घूमेंगे.


निश्चित समय पर तैयार हो कर वे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच गए. सुबह पौने 7 बजे शताब्दी ऐक्सप्रैस में बैठे तो राहुल काफी रोमांचित महसूस कर रहा था, उस ने स्मार्टफोन उठाया और साथ की सीट पर बैठी कमला के साथ सैल्फी क्लिक की.


तभी पापा ने बताया कि वे रास्ते में हरिद्वार में उतरेंगे और वहां घूमते हुए रात को देहरादून पहुंच जाएंगे. फिर वहां रात में औफिस के गैस्ट हाउस में रुकेंगे और सुबह मसूरी के लिए रवाना होंगे.


यह सुन कर राहुल मायूस हो गया. हरिद्वार का नाम सुनते ही जैसे उसे सांप सूंघ गया. उसे लग रहा था सारा ट्रिप अंधविश्वास की भेंट चढ़ जाएगा. यह सुनते ही वह कमला से बोला, ‘‘शिट् यार, लगता है हम घूमने नहीं तीर्थयात्रा करने जा रहे हैं.’’


‘‘हां, पापा आप भी न….’’ कमला ने कुछ कहना चाहा लेकिन कुछ सोच कर रुक गई.


लगभग 12 बजे हरिद्वार पहुंच कर उन्होंने टैक्सी ली, जो उन्हें 2-3 जगह घुमाती हुई शाम को गंगा घाट उतारती और फिर वहां से देहरादून उन के गैस्ट हाउस छोड़ देती.


राहुल ट्रिप के मजे में खलल से आहत चुपचाप चला जा रहा था. शाम को हरिद्वार में गंगा घाट पर घूमते हुए प्राकृतिक आनंद आया, लेकिन गंगा के घाट असल में उसे लूटखसोट के अड्डे ज्यादा लगे. जगहजगह धर्म व गंगा के प्रति श्रद्धा के नाम पर पैसा ऐंठा जा रहा था. उसे तब और अचंभा हुआ जब निशुल्क जूतेचप्पल रखने का बोर्ड लगाए उस दुकानदार ने उन से जूते रखने के 100 रुपए ऐंठ लिए. इस सब से उस के मन का रोमांच काफूर हो गया. फिर भी वह चुपचाप चला जा रहा था.


रात को वे टैक्सी से देहरादून पहुंचे और गैस्टहाउस में ठहरे. पापा ने गैस्टहाउस के रसोइए के जरिए मसूरी के लिए टैक्सी बुक करवा ली. टैक्सी सुबह 8 बजे आनी थी. अत: वे जल्दी खाना खा कर सो गए ताकि सुबह समय से उठ कर तैयार हो पाएं.


वे सफर के कारण थके हुए थे, सो जल्दी ही गहरी नींद में सो गए और सुबह गैस्टहाउस के रसोइए के जगाने पर ही जगे. तैयार हो कर अभी वे खाना खा ही रहे थे कि टैक्सी आ गई. राहुल अब भी चुप था. उसे यात्रा में कुछ रोमांच नजर नहीं आ रहा था.


टैक्सी में बैठते ही पापा ने स्वभावानुसार ड्राइवर को हिदायत दी, ‘‘भई, हमें कम समय में ज्यादा जगह घूमना है इसलिए भले ही दोचार सौ रुपए फालतू ले लेना, लेकिन देहरादून में भी हर जगह घुमाते हुए ले चलना.’’


ज्यादा पैसे मिलने की बात सुन ड्राइवर खुश हुआ और बोला, ‘‘सर, उत्तराखंड में तो सारा का सारा प्राकृतिक सौंदर्य भरा पड़ा है, आप जहां कहें मैं वहां घुमा दूं, लेकिन आप को दोपहर तक मसूरी पहुंचना है इसलिए एकाध जगह ही घुमा सकता हूं. आप ही बताइए कहां जाना चाहेंगे?’’


पापा ने मम्मी से सलाह की और बोले, ‘‘ऐसा करो, टपकेश्वर मंदिर ले चलो. फिर वहां से साईंबाबा मंदिर होते हुए मसूरी कूच कर लेना.’’‘‘क्या पापा, आप भी न. हम से भी पूछ लेते, सिर्फ मम्मी से सलाह कर ली… और हम क्या तीर्थयात्रा पर हैं, जो मंदिर घुमाएंगे,’’ कमला बोली.


तभी नाराज होता हुआ राहुल बोल पड़ा, ‘‘क्या करते हैं आप पापा, सारे ट्रिप की वाट लगा दी. बेकार हो गया हमारा आना. अभी ड्राइवर अंकल ने बताया कि उत्तराखंड प्राकृतिक सौंदर्य से भरा पड़ा है और एक आप हैं कि देखने को सूझे तो सिर्फ मंदिर, जहां सिर्फ ठगे जाते हैं. आप की सोच दकियानूसी ही रहेगी.’’


पापा कुछ कहते इस से पहले ही ड्राइवर बोल पड़ा, ‘‘आप का बेटा ठीक कह रहा है सर, घूमनेफिरने आने वाले ज्यादातर लोग इसी तरह मंदिर आदि देख कर यात्रा की इतिश्री कर लेते हैं और असली यात्रा के रोमांच से वंचित रह जाते हैं. तिस पर अपनी सोच भी बच्चों पर थोपना सही नहीं. तभी तो आज की किशोर पीढ़ी उग्र स्वभाव की होती जा रही है. हमें इन की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए.


‘‘यहां प्राकृतिक नजारों की कमी नहीं. आप कहें तो आप को ऐसी जगह ले चलता हूं जहां के प्राकृतिक नजारे देख आप रोमांचित हुए बिना नहीं रहेंगे. इस समय हम देहरादून के सैंटर में हैं. यहां से महज 8 किलोमीटर दूर अनार वाला गांव के पास स्थित एक पर्यटन स्थल है, ‘गुच्चूपानी,’ जिसे रौबर्स केव यानी डाकुओं की गुफा भी कहा जाता है.


‘‘गुच्चूपानी एक प्राकृतिक पिकनिक स्थल है जहां प्रकृति का अनूठा अनुपम सौंदर्य बिखरा पड़ा है. दोनों ओर ऊंचीऊंची पहाडि़यों के मध्य गुफानुमा स्थल में बीचोंबीच बहता पानी यहां के सौंदर्य में चारचांद लगा देता है. दोनों पहाडि़यां जो मिलती नहीं, पर गुफा का रूप लेती प्रतीत होती हैं.


‘‘यहां पहुंच कर आत्मिक शांति मिलती है. प्रकृति की गोद में बसे गुच्चूपानी के लिए यह कहना गलत न होगा कि यह प्रेम, शांति और सौंदर्य का अद्भुत प्राकृतिक तोहफा है.


‘‘गुच्चूपानी यानी रौबर्स केव लगभग 600 मीटर लंबी है. इस के मध्य में पहुंच कर तब अद्भुत नजारे का दीदार होता है जब 10 मीटर ऊंचाई से गिरते झरने नजर आते हैं. यह मनमोहक नजारा है. इस के मध्य भाग में किले की दीवार का ढांचा भी है जो अब क्षतविक्षत हो चुका है.’’


‘‘गुच्चूपानी…’’ नाम से ही अचंभित हो राहुल एकदम रोमांचित होता हुआ बोला, ‘‘यह गुच्चूपानी क्या नाम हुआ?’’


तभी साथ बैठी कमला भी बोल पड़ी, ‘‘और ड्राइवर अंकल, इस का नाम रौबर्स केव क्यों पड़ा?’’


मुसकराते हुए ड्राइवर ने बताया, ‘‘दरअसल, गुच्चूपानी इस का लोकल नाम है. अंगरेजों के जमाने में इसे ‘डकैतों की गुफा’  के नाम से जाना जाता था. ऐसा माना जाता है कि उस समय डाकू डाका डालने के बाद छिपने के लिए इसी गुफा का इस्तेमाल करते थे. सो, अंगरेजों ने इस का नाम रौबर्स केव रख दिया.’’


‘‘तो क्या अब भी वहां डाकू रहते हैं. वहां जाने में कोई खतरा तो नहीं है?’’ कमला ने पूछा.


‘‘नहींनहीं, अब वहां ऐसी कोई बात नहीं बल्कि इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया गया है. अब इस का रखरखाव उत्तराखंड सरकार द्वारा किया जाता है,’’ ड्राइवर ने बताया, फिर वह हंसते हुए बोला, ‘‘हां, एक डर है, पैरों के नीचे बहती नदी का पानी. दरअसल, पिछले साल जनवरी में भारी बरसात के कारण अचानक इस नदी का जलस्तर बढ़ गया था, जिस से यहां अफरातफरी मच गई थी. यहां कई पर्यटक फंस गए थे, जिस से काफी शोरशराबा मचा.


‘‘फिर मौके पर पहुंची एनडीआरएफ की टीमों ने पर्यटकों को सकुशल बाहर निकाला था. इस में महिलाएं और बच्चे भी थे. इसलिए जरा संभल कर जाइएगा.’’


‘‘अंकल आप भी न, डराइए मत, बस पहुंचाइए, ऐसी अद्भुत प्राकृतिक जगह पर,’’ राहुल रोमांचित होता हुआ बोला.


‘‘पहुंचाइए नहीं, पहुंच गए बेटा,’’ कहते हुए ड्राइवर ने टैक्सी रोकी और इशारा कर बताया कि उस ओर जाएं. जाने से पहले अपने जूते उतार लें व यहां से किराए पर चप्पलें ले लें.’’


राहुल और कमला भागते हुए आगे बढ़े और वहां बैठे चप्पल वाले से किराए की चप्पलें लीं. इन चप्पलों को पहन कर वे पहुंच गए गुच्चूपानी के गेट पर. यहां 25 रुपए प्रति व्यक्ति टिकट था. पापा ने सब के टिकट लिए और सब ने पानी में जाने के लिए अपनीअपनी पैंट फोल्ड की व ऐंट्री ली.


चारों ओर फैले ऊंचे पहाड़ों के बीच बसा यह क्षेत्र अद्भुत सौंदर्य से भरा था. पानी में घुसते ही दिखने वाला वह 2 पहाडि़यों के बीच का गुफानुमा रास्ता और मध्य में बहती नदी के बीच चलना, जैसा ड्राइवर अंकल ने बताया था, उस से भी अधिक रोमांचित करने वाला था.


मम्मीपापा भी यह नजारा देख स्तब्ध रह गए थे. पहाड़ों के बीच बहते पानी में चलना उन्हें किसी हौरर फिल्म के रौंगटे खड़े कर देने वाले दृश्य की भांति लगा, जैसे अभी वहां छिपे डाकू निकलेंगे और उन्हें लूट लेंगे.


अत्यंत रोमांचक इस मंजर ने उन्हें तब और रोमांचित कर दिया जब बिलकुल मध्य में पहुंचने पर ऊपर से गिरते झरने ने उन का स्वागत किया. राहुल तो पानी में ऐसे खेल रहा था मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो. सामने खड़ी किले की क्षतविक्षत दीवार के अवशेष उन्हें काफी भा रहे थे. इस मनोरम दृश्य को देख किस का मन अभिभूत नहीं होगा.


इस पूरे नजारे की उन्होंने कई सैल्फी लीं. एकदूसरे के फोटो खींचे और वीडियो क्लिप भी बनाई. पानी में उठखेलियां करते जब वे बाहर आ रहे थे तो पापा भी कह उठे, ‘‘अमेजिंग राहुल, वाकई तुम ने हमारी आंखें खोल दीं. हम तो सिर्फ मंदिर आदि देख कर ही लौट जाते. प्रकृति का असली आनंद व यात्रा की पूर्णता तो वाकई ऐसे नजारे देखने में है.’’


फिर बाहर आ कर उन्होंने ड्राइवर का भी धन्यवाद किया ऐसी अनूठी जगह का दीदार करवाने के लिए. साथ ही हिदायत दी कि मसूरी में भी धार्मिक स्थलों पर आस्था के नाम पर लूट का शिकार होने के बजाय ऐसे स्थान देखेंगे. इस पर जब राहुल ने ठहाका लगाया तो पापा बोले, ‘‘बेटा, हमें मसूरी के ऐसे अद्भुत स्थल ही देखने चाहिए. जल्दी चलो, कहीं समय की कमी के कारण कोई नजारा छूट न जाए.’’


अब टैक्सी मसूरी की ओर रवाना हो गई थी. टैक्सी की पिछली सीट पर बैठे राहुल और कमला रहरह कर गुच्चूपानी में ली गईं सैल्फी, फोटोज और वीडियोज में वहां के अद्भुत दृश्य देख कर रोमांचित हो रहे थे, इस आशा के साथ कि मसूरी यानी पहाड़ों की रानी में भी ऐसा ही रोमांच मिलेगा.

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