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कहानी: मां, तुम्हें भी जीने का हक है

‘‘मां, तुम रो रही थी न,’’ सोनल ने सुधा जी से कहा.

‘‘अरे नहीं बेटू, वह प्याज काट रही थी न, इसीलिए आंखें जरा सी लाल हो गईं,’’ सुधा जी किसी अपराधी की भांति नजरें छिपाती हुई बोलीं.


‘‘मां, क्यों छिपा रही हो मुझ से, पापा के जाने का दर्द हर दिन तुम्हारी आंखों में दिखाई देता है मुझे. कब तक मां, 2 साल हो गए उन्हें हम से दूर गए, कोई दिन नहीं गया जब तुम्हारे दुपट्टे को आंसुओं से भीगा न देखा हो. मां, तुम चलो मेरे साथ,’’ सोनल ने कहा.


‘‘तू पागल है क्या? तेरी ससुराल वाले क्या कहेंगे, तेरे नाना जब भी मेरे यहां आते थे, पानी भी नहीं पीते थे अपनी बेटी के घर का. तू मुझे अपनी ससुराल में रहने की बात कर रही है. यहां सब है, बेटा. तेरे पापा का प्यार, उन की यादें, कहां हूं मैं अकेली?’’ सुधा जी ने सोनल के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.


सोनल जान गई थी कि मां को समझाना आसान नहीं. पर मां धीरेधीरे सिमटती जा रही हैं अपनेआप में. 30 साल जिस हमसफर के साथ बिताए वह जब तनहा छोड़ जाए तो जिंदगी आसान तो नहीं रह पाती. सोनल के साथ अनुज ने भी कई बार कहा कि वे उन के साथ रहने आ जाएं, पर सुधा जी का जवाब हमेशा वही होता.


‘‘कब आई तुम, कैसी है मम्मी की तबीयत अब,’’ अनुज घर में आए तो देखा सोनल सोफे पर औंधेमुंह लेटी है, उस के सिर पर हाथ फिराते हुए उस ने पूछा. न चाहते हुए भी सोनल फफक कर रो पड़ी. अनुज ने उसे सहला कर शांत किया.


‘‘अनुज, मां गुम सी हो गई हैं, चुप खामोश. उन की चुप्पी मुझे अंदर ही अंदर डरा देती है. मुसकान का लबादा ओढ़े कितना दर्द उन में भरा है, क्या मैं समझती नहीं. कभीकभी मुझे बहुत गुस्सा आता है इस समाज पर, जहां बेटी को इस कदर पराया कर दिया जाता है. आज अगर मैं बेटा होती तो क्या मां मेरे साथ नहीं रह सकती थीं. वे कहती हैं कि मेरी गृहस्थी हमेशा खुशहाल रहे, इसीलिए वे मेरे साथ नहीं रह सकतीं. मम्मी जी, पापा जी भी तो इस बारे में कुछ नहीं बोल रहे, वे क्या समझते नहीं,’’ सोनल आंखों में आंसू लिए बोली.


‘‘सोनल, हम कुछ नहीं कर सकते. वह बड़े लोगों की सोच है, वह इतनी आसानी से नहीं बदलने वाली,’’ अनुज ने कहा.


‘‘अनुज, तो क्या मैं मां को यों ही अकेलेपन का दंश भुगतने के लिए छोड़ दूं? नहीं अनुज, यह अकेलापन डस लेगा उन्हें किसी दिन,’’ अनुज की बात बीच में काट सोनल बोली.


2 साल हो गए थे अनिल जी का देहांत हुए. सोनल अपने मांपापा की इकलौती बेटी थी. सुधा जी ने अपनेआप को उन दोनों में इस कदर व्यस्त कर लिया कि उन की जिंदगी सिर्फ उन 2 लोगों के बीच ही सिमट कर रह गई. 3 साल पहले उन्होंने सोनल की शादी की तो उन के पति उन का इकलौता सहारा थे पर शायद होनी को कुछ और ही मंजूर था. एक रात अनिल जी ऐसा सोए कि अगले दिन उठ ही न पाए.


सोनल अगली सुबह अखबार पढ़ रही थी कि उस की नजर एक खबर पर गई और ठिठक गई. हजारों खयाल उस के मन में उमडऩे लगे. दूसरे ही पल उस के हाथों की उंगलियां लैपटौप पर चलने लगीं. पूरा दिन इसी उधेड़बुन में रहा कि क्या जो वह सोच रही है, सही है? अगले दिन उस ने एक दृढ निश्चय किया और उस की उंगलियां फिर से लैपटौप पर थीं.


‘‘सोनल, लगता है तुम्हारा दिमाग फिर गया है, तुम होश में तो हो?’’ अनुज ने गुस्से में कहा.


‘‘हां अनुज, मैं पूरे होशोहवास में हूं. किसी के जाने से जिंदगी खत्म तो नहीं होती न अनुज, जीना तो फिर भी पड़ता है चाहे हर दिन घुटघुट कर जियो या खुश रह कर. क्या किसी इंसान को हक नहीं खुश रहने का, अपनी जिंदगी फिर से शुरू करने का, क्या बुराई है इस में? अनुज, जिंदगी बहुत छोटी है पर जिंदगी में कुछ मोड़ ऐसे भी आते हैं जब जिंदगी पहाड़ सरीखी हो जाती है और जीना मुश्किल लगने लगता है. रही बात समाज की, तो जिस समाज की हम परवा करते हैं उसे हमारी कितनी परवा है. 2 साल हो गए पापा को गए, किस ने क्या किया? अनुज, मुझे इस समाज की नहीं, अपनी मां की परवा है. मैं अपनी मां को जिंदा लाश की तरह नहीं देख सकती. अब यह तुम पर है कि तुम मेरा साथ निभाते हो या नहीं,’’ सोनल ने कहा.


अनुज कई दिन इसी उधेड़बुन में लगा रहा, फिर उसे एहसास हुआ कि यह कदम तो सोनल के लिए भी आसान नहीं, फिर भी वह अपनी मां के लिए कर रही है, क्या वह उस का साथ नहीं निभा सकता.


‘‘सोनल, मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ अनुज ने कहा तो सोनल ने उसे गले से लगा लिया.


‘‘अनुज, यह प्रोफाइल देखो, ये सुनील श्रीवास्तव हैं, रिटायर्ड बैंक मैनेजर हैं. इन की बीवी की 3 साल पहले कैंसर से मौत हो गई थी. उन के 2 बेटे हैं जो कि अलगअलग जगह सैटल हैं. मुझे इन का प्रोफाइल बहुत अच्छा लगा, तुम बात करो न,’’ सोनल ने कहा. अनुज ने फोन पर उन से बात की.


अगले ही दिन अनुज और सोनल ने उन से मुलाकात की. उन्हें वे पसंद आए. मां की तरह वे भी अकेलेपन का दंश भोग रहे थे और किसी एक साथी की तलाश में थे जो उन के इस अकेलेपन को दूर कर सके.


अगला कदम मां को मनाने का था. सोनल जानती थी कि यह इतना आसान नहीं है पर फिर भी उस ने कदम उठाया. वह पीछे हटने वाली नहीं थी.


‘‘मां, देखो मैं ने आर्ट औफ लिविंग क्लासेस में तुम्हारा नाम लिखवा दिया है, कल से तुम्हें वहां जाना है,’’ सोनल ने कहा.


‘‘सोनल, तू ये सब क्या करती रहती है, मैं कहीं नहीं जाने वाली,’’ मां बोलीं.


‘‘मां, मैं ने फीस भर दी है और ड्राइवर को भी बोल दिया. तुम कल सुबह 7 बजे तैयार रहना,’’ सोनल ने कहा. अब सुधा जी के पास जाने के अलावा और कोई चारा नहीं था.


अनुज और सोनल को पता था कि सुनील जी आर्ट औफ लिविंग में इंस्ट्रक्टर भी हैं, इसीलिए उन्होंने यह तरीका अपनाया.


अगले दिन से सुधा जी आर्ट औफ लिविंग में जाने लगीं. धीरेधीरे उन का मन वहां रम गया. वहां जा कर वे खुद को बहुत प्रफुल्लित महसूस करतीं. 6 महीने में वह उन की दिनचर्या का हिस्सा बन गया. वहां सभी सदस्यों के साथ वे घुलमिल गईं. सुनील जी का स्वभाव ऐसा था कि दोस्त बनाते उन्हें समय नहीं लगा.


बातों ही बातों में सुनील जी को पता चला कि सुधा जी को कविताएं लिखने का बड़ा शौक है पर शादी के बाद उन्होंने इस शौक को ठंडे बस्ते में डाल दिया. उन्होंने सुधाजी को कर्ई किताबें भेंट कीं और फिर से लिखने को प्रोत्साहित किया.


‘‘सुधा जी, मेरे पास लिटरेचर फैस्टिवल के 2 टिकेट्स हैं, क्या आप चलेंगी,’’ सुनील जी ने कहा.


सुधा जी एकबारगी ठिठकीं, पर अगले ही पल उन्होंने हां कर दी. अगले दिन जब वे लिटरेचर फैस्टिवल से लौटीं तो बड़ी खुश थीं.


‘‘पता है सोनू, कितने जानेमाने कवि आए थे. जिन को हम टीवी में देखते है, वो सामने बैठे थे और एक से बढक़र एक किताबें,’’ सुधा जी बरतन धोती हुई बोल रही थीं.


मां बोलती जा रही थीं और सोनल मन ही मन मुसकराते हुए उन के लिखे हुए चेहरे को देख रही थी. इसी मुसकान को देख एक आंसू सोनल की आंख से बह निकला, खुशी का आंसू. इसी बीच सुनील जी और सुधा साथ में लाइब्रेरी भी जाते जहां वे किताबें पढ़ते और उन पर चर्चा भी करते.


‘‘शायद अब समय आ गया है जब हमें मम्मी से बात कर लेनी चाहिए,’’ अनुज ने कहा तो सोनल ने हां में सिर हिला दिया.


‘‘सोनल, तुम होश में तो हो, क्या कह रही हो. फिर से शादी वह भी इस उम्र में. पागल तो नहीं हो गई हो. एक बार भी सोचा कि दुनिया क्या कहेगी और अनुज इस की बेवकूफी में तुम भी शामिल हो गए,’’ सुधा जी ने गुस्से से कहा.


‘‘मां, शांत हो जाओ, गलत क्या है इस में? पापा को गए 3 साल हो गए हैं, मेरे साथ तुम रह नहीं सकतीं, तो फिर इस में गलत क्या है? क्या तुम्हें खुश रहने का हक नहीं. कब तक तुम यों रहोगी, मां? क्या तुम्हें जीने का हक नहीं, खुश रहने का हक नहीं. सुनील जी बहुत अच्छे इंसान हैं, मां, तुम खुश रहोगी,’’ सोनल ने कहा.


‘‘सुनील जी…’’ सुधा जी चौंक गईं. अब शायद उन्हें सब समझ में आ गया. उन्होंने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और अनुज व सोनल से जाने को कहा.


फोन की घंटी बज रही थी, सामने कौल पर सुनील जी थे. वह फोन रखना चाहती थी कि उन्होंने कहा कि कल वे उन्हें लाइब्रेरी के बाहर मिलें.


अगले दिन न चाहते हुए भी वे गईं.


‘‘मुझे पता है, आप नाराज हैं. आप की नाराजगी भी जायज है. पर आप ही बताएं कि गलत क्या है अगर 2 लोग अपनी एक नई जिंदगी शुरू करना चाहते है. आप और मैं तो एक ही दर्द से गुजर रहे हैं. कुछ न सही पर शायद एक दर्द का रिश्ता हमारे बीच है ही. फिर भी, मैं हमेशा आप के निर्णय का स्वागत करूंगा. अच्छा, मैं चलता हूं,’’ सुनील जी ने कहा और चले गए.


सुधा जी को कई रातों नींद नहीं आई. कुछ दिनों बाद वे फिर से अपने सैंटर गईं. लाइब्रेरी भी गईं, पर वह चेहरा जिस की उन्हें तलाश थी, नहीं मिला.


अगले दिन सुनील जी ने फोन पर एक जानापहचाना नंबर देखा. यह नंबर सुधा जी का था. अगले ही पल उन के चेहरे पर मुसकान आ गई.


आज से हम दोनों पतिपत्नी हैं. मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस में सुधा जी और सुनील जी ने एकदूसरे को वरमाला पहनाई. सुनील जी के दोनों बेटों ने और अनुज, सोनल ने भी रजिस्टर में बतौर गवाह दस्तखत किए.


सोनल ने अपनी मां के हाथ में कुछ थमाया. यह सिंदूर की डबिया थी. मां की आंखें छलछला आईं.


‘‘पापा, आप मां की मांग में सिंदूर नहीं करेंगे?’’ सोनल ने पूछा.


सुधाजी का चेहरा सिंदूर की लालिमा से चमचमाने लगा.

 
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