कहानी: पवित्र बंधन
“मुक्ता, उठो. 7 बज गए हैं और अभी तक तुम सोई हुई हो?” अपनी पत्नी मुक्ता को उठाते हुए विवेक बोला.“ऊं… सोने दो न विवेक, आज संडे है,” नींद में ही मुक्ता बोली.
“पता है, मुझे आज संडे है, पर तुम भूल गई हो कि आज महिमा आने वाली है. उसे लाने नहीं चलना है?” विवेक बोला.लेकिन मुक्ता कहने लगी कि वह चला जाए, उसे बहुत नींद आ रही है.
“अरे, ये क्या बात हुई? बुरा लग जाएगा उसे. चलो उठो, तब तक मैं चाय बना लाता हूं,” कह कर विवेक किचन की तरफ चला गया.
‘ये महिमा की बच्ची भी न… नींद पर पानी फेर दिया मेरे. एक दिन तो छुट्टी मिलती है आराम से सोने के लिए, वो भी इस मैडम ने बिगाड़ दिया,’ मन ही मन बुदबुदाते हुए मुक्ता बाथरूम में घुस गई और जब तक वह फ्रेश हो कर निकली, विवेक चाय के साथ बिसकुट ले कर हाजिर हो गया.
महिमा की ट्रेन सुबह 9 बज कर 45 मिनट पर थी. लेकिन गाड़ी का कोई ठिकाना नहीं होता कि कभीकभी वह वक्त से पहले भी आ जाती है. यह सोच कर विवेक घर से एक घंटा पहले ही निकल गया, क्योंकि करीब 20-25 मिनट तो उसे स्टेशन पहुंचने में ही लग जाएगा.
“विवेक…” लंबी सी जम्हाई लेते हुए मुक्ता बोली, “क्यों इतनी जल्दी निकल आए हम घर से? गाड़ी आने में तो अभी डेढ़ घंटा बाकी है. इतनी देर कहां बैठेंगे हम बताओ? तुम भी न बहुत हड़बड़ाते हो,“ झुंझलाते हुए मुक्ता बोली, क्योंकि उसे सच में बहुत नींद आ रही थी. छुट्टी के दिन वह 12-1 बजे से पहले कभी नहीं उठती है. लेकिन आज उसे सुबह 7 बजे ही उठना पड़ गया तो भन्ना उठी.
मुक्ता को गुस्साते देख विवेक कहने लगा कि वह चाहे तो जा कर पीछे वाली सीट पर सो सकती है, पर उस ने “नहीं चलेगा” कह कर मना कर दिया और बाहर खिड़की से झांक कर देखने लगी.सुबह की ठंडीठंडी हवा के झोंके से उस की नींद कहां फुर्र हो गई, पता ही नहीं चला. महिमा के आने से मुक्ता भी बहुत खुश थी और हो भी क्यों न, आखिर वह उस की छोटी बहन है.
पिछली बार जब वह यहां आई थी, तब एक हफ्ते बाद ही अपने पापा के साथ चली गई थी. लेकिन इस बार वह यहां रहने का लंबा प्रोग्राम बना कर आ रही है.“देखो, सही कहा था न मैं ने, ट्रेन अपने वक्त से पहले आ रही है,” ट्रेन आने की घोषणा सुन विवेक बोला.
स्टेशन पर मुक्ता और विवेक को खड़े देख महिमा का चेहरा खिल उठा. बहन से मिलते ही भींच कर उसे गले लगा लिया और फिर विवेक से हाथ मिला कर उस का हालचाल पूछा, तो हंसते हुए उस ने जबाव दिया कि वह ठीक है.
“क्या बात है महू, तू तो पहले से भी ज्यादा सुंदर और स्मार्ट दिखने लगी है,” बहन के गालों को प्यार से थपथपाते हुए मुक्ता बोली, “क्यों विवेक, देखो तो महू पहले से भी ज्यादा सुंदर दिखने लगी है न? रूप निखर रहा है इस का. क्या लगाती है ‘फेयर एंड लवली’ या देशी नुसखा?” मुक्ता प्यार से अपनी बहन को महू बुलाती थी.
“देशी नुसखा दी,” हंसते हुए महिमा ने कहा, “वह सब छोड़ो, पहले ये बताओ जीजू इतने दुबले क्यों हो गए हैं? क्या आप इन्हें ठीक से खिलातीपिलाती नहीं हो?”महिमा ने बहन को उलाहना दिया, तो विवेक को भी मौका मिल गया.
“हां, सच कह रही हो महू, तुम्हारी दीदी बिलकुल मुझ पर ध्यान नहीं देती है. तभी तो देखो कितना दुबलापतला, बेचारा सा हो गया हूं मैं,” महिमा का सामान गाड़ी की डिक्की में रखते हुए अजीब सा मुंह बना कर विवेक बोला.
“हूं, हूं, मैं कुछ खिलातीपिलाती नहीं, पर अब तू आ गई है न, तो खिलापिला खूब बनाबना कर अपने जीजू को,” हंसते हुए मुक्ता बोली. फिर पूरे रास्ते वह पटना और वहां के लोगों के बारे में बताती रही. यह भी कि उस के भैया का प्रमोशन हो गया है और अब वह वहीं पटना आ गए हैं.
“यह तो बड़ी अच्छी बात है. पापा की देखभाल अच्छे से हो पाएगी अब. वैसे, पापा की तबीयत तो ठीक रहती है न?” मुक्ता ने पूछा.
“पापा तो बिलकुल फिट हैं,” अपनी आंखें चमकाते हुए महिमा बोली, “रोज सुबह सैर और योगा करना नहीं भूलते. खाना भी एकदम कायदे से लेते हैं. ऐसा नहीं कि कुछ भी खा लिया. सच कहूं दी, आज हम युवाओं से ज्यादा बुजुर्ग लोग अपनी सेहत पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं, जो अच्छी बात है. लेकिन युवा आज एकदूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में ऐसे भाग रहे हैं कि अपनी सेहत की उन्हें चिंता ही नहीं है.”
उस की बात पर मुक्ता ने भी हामी भरी कि वह सही कह रही है, क्योंकि वह भी अपनी सेहत पर कहां ध्यान दे पाती है. औफिस और घर के बीच ऐसी पिसती रहती है कि अपने लिए उसे समय ही नहीं मिलता.दोनों बहनों को बातों में मशगूल देख पीछे मुड़ कर विवेक बोला, “अरे भई, मुझ से भी कोई बात करेगा? या ड्राइवर ही समझ लिया है आप दोनों ने मुझे?” उस की बात पर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.
“वैसे, मेरी प्यारी साली साहेबा, आप को यहां आने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई न?”“नहीं जीजू, कोई तकलीफ नहीं हुई और फिर ‘एसी’ बोगी में तो आराम ही आराम होता है. पता ही नहीं चला कि कब पटना से ट्रेन अहमदाबाद पहुंच गई.“वैसे जीजू, आप लग बड़े स्मार्ट रहे हो. एकदम रणबीर सिंह की तरह. यह दी के प्यार का असर है या कोई और बात है ? बताओबताओ.“
“पहले तो ‘थैंक यू’ मुझे स्मार्ट बोलने के लिए, फिर बता दूं साली साहेबा कि ऐसी कोई बात नहीं है, क्योंकि तुम्हारी दीदी मुझे छोड़ती ही नहीं, जो जरा इधर झांकूं भी,” हंसते हुए विवेक बोला, “वैसे,आप भी किसी हीरोइन से कम नहीं लग रही हैं,” अपनी तारीफ सुन महिमा मुसकरा पड़ी. बात कहते हुए वह खिड़की से बाहर भी देख रही थी. बड़ीबड़ी बिल्डिंगें, घर, कंपनियां, मौल देखदेख कर उस की तो आंखें ही चुंधियां रही थीं. कुछ ही देर बाद गाड़ी एक बड़े से टावर के पास आ कर रुक गई.
“वाउ जीजू, आप का यह घर तो पहले वाले घर से भी बड़ा है,” घर में कदम रखते ही महिमा की आंखें चमक उठी.“और, ये बालकनी तो देखो, जैसे एक कमरा ही हो. वाह, कितना अच्छा नजारा दिख रहा है बाहर का. बहुत मजा आता होगा न आप दोनों को यहां बैठ कर चाय पीने में? और वहां पटना में एक हमारा घर,” मुंह बनाते हुए महिमा कहने लगी, “ बस, खिड़की और दरवाजे से ही झांकते रहो. और इनसान भी वहां के इतने बोरिंग और इरिटेटिंग कि पूछो मत. लड़की देखी नहीं कि घूरने लगते हैं, जैसे खा ही जाएंगे. इसलिए पापाभैया मुझे घर से ज्यादा बाहर निकलने नहीं देते हैं.“
उस की बात पर चुटकी लेते हुए विवेक बोला, “अब लड़के तुम जैसी खूबसूरत लड़कियों को नहीं घूरेंगे तो फिर किसे घूरेंगे? लेकिन, तुम ने यहां आ कर अच्छा नहीं किया महिमा. बेचारे, अब उन लड़कों का क्या होगा ? किसे घूरेंगे अब वे…?” विवेक की बातों पर मुक्ता को भी जोर की हंसी आ गई.
“हूं… ले लो मजे आप दोनों भी,” झूठा गुस्सा दिखाते हुए महिमा बोली.“चलो, अब बाकी बातें बाद में, पहले फ्रेश हो जाओ. तब तक मैं सब के लिए चाय बनाती हूं,” कह कर मुक्ता किचन में चली गई और महिमा फ्रेश होने.यहां का बड़ा और साफसुथरा बाथरूम देख कर महिमा का मन खुश गया. मन तो किया कि झरने के नीचे खड़े हो कर पहले खूब नहा ले. लेकिन मुक्ता ने आवाज दी, तो वह बाहर आ गई. दोनों को चाय दे कर मुक्ता अपनी भी चाय ले कर बालकनी में आ गई और चाय के साथ बातों का सिलसिला चल पड़ा.
मुक्ता पटना और वहां के लोगों के बारे में खैरखबर लेती रही और महिमा यहां के बारे में जानकारी प्राप्त करने लगी. इसी बीच जीजासाली में नोकझोंक और हंसीमजाक भी चलता रहा. शाम को तीनों बाहर घूमने निकल पड़े और बाहर से ही खापी कर देर रात वापस आए.अब इसी तरह इन की रूटीन लाइफ बन गई थी. हर छुट्टी वाले दिन ये लोग कहीं न कहीं घूमनेफिरने निकल पड़ते थे.
जीजासाली का रिश्ता बड़ा ही पवित्र होता है, लेकिन इन में लड़ाईझगड़ा और नोकझोंक भी चलती रहती है. ठीक उसी तरह महिमा और विवेक का रिश्ता था. अकसर दोनों में नोकझोंक और शरारतें होती रहती थीं. लेकिन उन के बीच एकदूसरे के लिए प्रेम और सम्मान भी बहुत था. दोनों अकसर एकदूसरे की टांगखिंचाई करते, जिस से घर में मनोरंजन बना रहता था.
महिमा के बचपने पर कभीकभार मुक्ता उसे डांट देती, तो आगे बढ़ कर विवेक उस का बचाव करता और कहता कि खबरदार, कोई उस की प्यारी साली को डांट नहीं सकता.
कभी अपने पापा को याद कर महिमा उदास हो जाती, तो विवेक उसे बातों में बहलाता. जब कोई फैमिली मीटिंग या पार्टी वगैरह में महिमा बोर होने लगती, तो विवेक उसे बोर नहीं होने देता था. कितना भी व्यस्त क्यों न हो अपने काम में, महिमा के मैसेज का रिप्लाई वह जरूर करता था. महिमा को कालेज से आने में जरा भी देर हो जाती, वह फोन पर फोन करने लगता. उस के ऐसे व्यवहार से मुक्ता खीज भी उठती कि क्या वह बच्ची है, जो गुम हो जाएगी? और यह बिहार नहीं गुजरात है. इतना डरने की जरूरत नहीं है. लेकिन, फिर भी विवेक को महिमा की चिंता लगी रहती थी, जब तक कि वह घर वापस नहीं आ जाती. महिमा को वह अपनी जिम्मेदारी समझता था.
महिमा भी अपने बहनबहनोई का बहुत खयाल रखती थी. उन की गृहस्थी में खुशियां बनी रहे, यही उस की कामना होती थी. कभी किसी बात पर विवेक और मुक्ता में कहासुनी हो जाती और दोनों एकदूसरे से बात करना बंद कर देते, तब महिमा ही दोनों के बीच सुलह कराती थी, वरना तो इन के बीच कईकई दिनों तक बातचीत बंद रहती थी. जानती थी महिमा कि गलती उस की बहन की ही होती है ज्यादातर, फिर भी वह झुकने को तैयार नहीं होती. जिद्दी है एक नंबर की शुरू से ही.
मुक्ता जितनी गुस्सैल स्वभाव की है, विवेक उतना ही सरल और शांत स्वभाव का. तभी तो महिमा अपना कोई भी सीक्रेट बहन को न बता कर विवेक को बताती थी. अपने दोस्तों के साथ फिल्म देखने जाना हो या कहीं घूमने, वह विवेक को बता कर जाती और विवेक भी उस के सीक्रेट को सीक्रेट ही रखता, लेकिन चेताता जरूर कि वह अपना खयाल रखे. जमाना ठीक नहीं है, इसलिए किसी पर ज्यादा भरोसा न करे. वक्त पर घर आ जाया करे. वह हमेशा महिमा का हौसला बढ़ाता और उस की पढ़ाई की तारीफ करते हुए उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देता.
महिमा विवेक से अपने दिल की बात खुल कर कह पाती थी, कोई संकोच नहीं होता था उसे. लेकिन बहन से कुछ कहते उस की रूह कांपती थी.दरअसल, महिमा ग्रेजुएशन के बाद ‘एमबीए‘ करना चाहती थी, मगर उस के पापा इस बात के लिए राजी नहीं थे. वह तो अब महिमा की शादी करने की सोच रहे थे.
महिमा की मां नहीं थी, इसलिए उस के पापा अपने जीतेजी महिमा का ब्याह कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते थे. मगर महिमा अभी आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती थी और इस बात के लिए अकसर बापबेटी में टंटा होता रहता था.
महिमा के पापा का कहना था कि शादी के बाद जो करना है करे. वह तो अपनी बड़ी बेटी मुक्ता के बारे में भी ऐसी ही राय रखते थे कि लड़कियां नौकरी नहीं कर सकतीं. उन का काम तो घर और बच्चे संभालना होता है. लेकिन शादी के बाद विवेक ने मुक्ता को आजादी दी कि वह जो चाहे कर सकती है. चलो, मुक्ता को विवेक जैसा सुलझा हुआ पति मिल गया. लेकिन महिमा के साथ ऐसा नहीं हो पाया तो…? और अब पहले जैसा जमाना नहीं रहा. आज औरत और मर्द कंधे से कंधा मिला कर चल रहे हैं. दोनों मिल कर अपनी गृहस्थी की गाड़ी चला रहे हैं.
इसी बात को जब विवेक ने महिमा के पापा यानी अपने ससुर को समझाया तो वह मान गए और आगे की पढ़ाई करने की अनुमति दे दी.विवेक ने यह भी कहा कि वे चिंता न करें, क्योंकि अब महिमा उन की भी जिम्मेदारी है.यहां आने के कुछ वक्त बाद ही महिमा का एडमिशन अहमदाबाद के एक अच्छे से कालेज में हो गया. सुबह तो वह अपनी बहन मुक्ता के साथ ही कालेज के लिए निकल जाती और शाम को उधर से आटो या कैब से घर आ जाती थी. लेकिन फिर रास्ता समझ आने के बाद खुद ही वह स्कूटी से कालेज जानेआने लगी थी.
मुक्ता को तो सुबह उठने की आदत नहीं थी, इसलिए विवेक को अकेले ही वाक पर जाना पड़ता था. लेकिन महिमा जब से यहां आई है, विवेक को एक कंपनी मिल गई. दोनों सुबह वाक पर निकल जाते और गप्पें मारते हुए उधर से दूधसब्जी वगैरह ले कर वापस आ जाते. आने के बाद दोनों मिल कर चायनाश्ता बनाते, तब जा कर मुक्ता उठती थी.
“तू तो और भी फिट हो गई है वाक करकर के,” चाय का घूंट भरते हुए मुक्ता बोली, “अच्छा है, विवेक को भी कंपनी मिल गई.”“मैं तो कहती हूं दी कि आप भी वाक पर चला करो, अच्छा लगेगा,” ब्रेड का टुकड़ा मुंह में डालते हुए महिमा बोली, तो हंसते हुए विवेक बोला, “यह कभी नहीं हो सकता, क्योंकि उस की दीदी को नींद ज्यादा प्यारी है.”
“ऐसी बात नहीं है, कल से दी हमारे साथ चलेंगी, क्यों दी चलोगी न?”मगर, मुक्ता ने यह बोल कर दोनों को चुप करा दिया कि बकवास मत करो ज्यादा. उसे वाक की कोई जरूरत नहीं है, वह ऐसे ही फिट है.
“वाह, क्या कौन्फिडेंस है,” हवा में हाथ लहराते हुए महिमा बोली, लेकिन मुक्ता का भाव देख सकपका कर चुप हो गई.इसी तरह महिमा को यहां आए एक साल पूरा हो गया और अब वह पढ़ाई के दूसरे साल में चली गई थी. उस का तो मन था कि पढ़ाई पूरी होने के बाद यहीं अहमदाबाद में ही उसे नौकरी मिल जाए, क्योंकि यहां का रहनसहन उसे बहुत भाने लगा था. मगर उस के पापा इस बात के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे.
आज सुबह से ही विवेक की तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी, इसलिए वह औफिस से घर जल्दी आ गया.“जीजू, आप ठीक तो हैं न?” विवेक को सिर पर हाथ रखे देख महिमा ने पूछा, तो वह कहने लगा कि कुछ नहीं, बस जरा सिर भारी सा लग रहा था, इसलिए घर आ गया. आराम करूंगा तो ठीक हो जाएगा.“मैं आप के लिए अदरक वाली चाय ले कर आती हूं,” कह कर वह तुरंत विवेक के लिए चाय बना लाई और उस के सिर में तेल की मालिश की, तो उसे जरा अच्छा लगा.
“अरे विवेक, क्या हुआ तुम्हें?” उसे सोता देख मुक्ता बोली, “अच्छा छोड़ो, सुनो मेरी बात. एक खुशखबरी है कि मेरा ट्रांसफर मुंबई हो गया है. मैं ने बताया था न कि मेरे ट्रांसफर की बात चल रही है. मैं ने तो हां बोल दिया है.“पर, मुक्ता मेरी तो तबीयत…” बोलतेबोलते विवेक को जोर से खांसी आ गई.
विवेक को खांसते देख दौड़ कर महिमा पानी ले आई और पिलाया. फिर सहारा दे कर उसे लिटाया, तब जा कर उस की खांसी कम हुई.“क्या बोलना चाह रहे हो? बोलो न…” मुक्ता बोली, तो महिमा ने उसे इशारों से चुप रहने को कहा कि ये बातें बाद में हो जाएंगी, पहले विवेक को आराम करने दो, क्योंकि जब से वह औफिस से आए हैं, तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है उन की.
“पर, हुआ क्या है, बताओ तो…?” अपनी आंखें अजीब सी घुमाती हुई मुक्ता बड़बड़ करने लगी कि जरूर बाहर में कुछ उलटापुलटा खा लिया होगा, इसलिए ऐसा हो रहा है. जरूरत क्या है बाहर का खाने की? लेकिन क्या अभी यह सब बातें करने का वक्त था?
महिमा जितना उसे इशारों से चुप रहने को बोल रही थी, उतना ही वह बड़बड़ाती जा रही थी. हैरान थी महिमा कि कैसी औरत है ये? इसे अपने पति की तबीयत की जरा भी परवाह नहीं है?
“जीजू, अब कैसा लग रहा है आप को?“ विवेक के सिर पर हाथ फेरते हुए महिमा बोली. सच में बहुत गुस्सा आ रहा था उसे अपनी बहन पर कि जरा पूछती तो हुआ क्या है? नहीं, बस अपनी ही पड़ी है.
“जीजू, कुछ लाऊं आप के लिए चायकौफी या कुछ खाने के लिए. क्योंकि औफिस में भी आप ने लंच नहीं किया.”लेकिन, इशारों से विवेक ने यह कह कर मना कर दिया कि अभी वह आराम करना चाहता है.
“ठीक है,” कह कर महिमा ने एक चादर ओढ़ा दिया. देखा तो मुक्ता जाने किस से बातें कर रही थी. महिमा को देखते ही फोन रख कर पूछने लगी कि अब विवेक कैसा है.
“ठीक है दी, आराम कर रहे हैं,” रात में भी वह उस बारे में विवेक से बात करना चाहती थी, लेकिन वह सोया था तो बोल नहीं पाई. सोचा कि अब सुबह ही बात कर लेगी.लेकिन, सुबह तो उस की आंखें ही नहीं खुल रही थीं. शरीर आग की तरह तप रहा था.
“विवेक उठो, क्या हुआ तुम्हें? महिमा… इधर तो आओ. देखो, विवेक को तेज बुखार है,” मुक्ता ने आवाज लगाई.“क्या हुआ दी? जीजू को बुखार है?” विवेक के सिर को छूते हुए महिमा घबरा गई, “ओह, सिर तो आग की तरह तप रहा है. मैं… मैं अभी थर्मामीटर ले कर आती हूं. देखा, तो 1.4 डिगरी बुखार था.
“दी, बुखार तो बहुत ज्यादा है. आ… आप जल्दी से डाक्टर को फोन करो, तब तक मैं ठंडे पानी की पट्टियां रखती हूं इन के सिर पर,” कह कर वह फ्रिज से बर्फ वाला पानी ले आई. लेकिन, बुखार अभी भी कम नहीं हो रहा था.
“दी, डाक्टर को फिर से फोन लगाओ न, कब आएंगे,” महिमा विवेक के बढ़ते बुखार से परेशान थी. मगर मुक्ता इस बात से ज्यादा परेशान थी कि कहीं उस की खराब तबीयत की वजह से उस का मुंबई जाना कैंसिल न हो जाए. फिर क्या कहेगी वह अपने बास से? कब से वह अपने तबादले के लिए कोशिश में थी और आज जब हुआ तो जाने यह लफड़ा कहां से आ गया. सोच कर ही उस का मन क्षुब्ध हो उठा. देखने के बाद डाक्टर ने दवाई दी और कहा कि अगर कल तक बुखार नहीं उतरता है, तो कुछ टैस्ट करवाने होंगे.
लेकिन आज दो दिन हो चुके थे और विवेक का बुखार जस का तस था.महिमा को इस बात का डर सता रहा था कि कहीं विवेक को डेंगू या मलेरिया न हो गया हो, क्योंकि बारिश के मौसम में इन सब बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. जांच से पता चला कि विवेक को चिकनगुनिया हुआ है और प्लेटलेट काउंट भी बहुत कम है.
“दी, अब क्या होगा, जीजू ठीक तो हो जाएंगे न दी,” बोलते हुए महिमा का गला रुंध गया. हमेशा हंसनेबोलने वाला और सब को खुश रखने वाला विवेक को बेड पर बीमार पड़े देख महिमा को जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था.
“ज्यादा भावुक होने की जरूरत नहीं है. तुम्हारे जीजू कोई बच्चे नहीं हैं. तबीयत खराब है तो ठीक भी हो जाएगी. इस में क्या है,” मुक्ता ने कहा, तो महिमा चुप हो गई. लेकिन उस का दिल अंदर से विवेक को देखदेख कर रो रहा था.“चिंता तो मुझे इस बात की हो रही है महू कि अब मैं अपने बास से क्या कहूंगी? लेकिन जाना तो पड़ेगा मुझे? देख, तू संभाल लेना,” एकदम दृढ़ता से मुक्ता बोली.
“तो तुम्हें जीजू की सेहत से ज्यादा अपनी नौकरी की पड़ी है दी,” कभी महिमा ने अपनी बहन से मुंह उठा कर बात नहीं की थी, लेकिन आज उस से रहा नहीं गया.“कैसी हो आप…? यहां जीजू का बुखार उतरा नहीं है और आप को मुंबई जाने की पड़ी है ”
विवेक तो कुछ बोल नहीं पा रहा था, पर वह स्तब्ध था मुक्ता के ऐसे व्यवहार से. लेकिन यह कौन सी नई बात है. कभी मुक्ता ने अपने पति की फिक्र की है, जो आज करेगी. चाहे उस की तबीयत कितनी भी खराब क्यों न हो या वह बुखार से तड़प ही क्यों न रहा हो, मुक्ता को उस की जरा भी परवाह नहीं होती थी. बहुत होता तो औफिस जाने के पहले उस के सिरहाने दवा और पानी रख जाती और कहती, “खा लो, ठीक हो जाएगा. लेकिन यही विवेक, मुक्ता की जरा सी भी तबीयत खराब होने पर अपना सारा कामकाज छोड़छाड़ कर उस के सिरहाने बैठा रहता था, जब तक कि वह ठीक नहीं हो जाती थी.
अपने मन में ही सोच विवेक अंदर ही अंदर कुहक उठा. लेकिन क्या फायदा बोलने का, जब सामने वाले को बात समझ ही न आए तो? इसलिए इशारों से उस ने महिमा को चुप रहने को कहा, क्योंकि वह बेवजह घर में क्लेश नहीं चाहता था. जानता है, इस बात को ले कर मुक्ता बाद में उस का जीना हराम कर देगी.
“देखो विवेक, तबीयत तुम्हारी ऐसी ही नहीं रहने वाली. 2-3 दिन में ठीक हो जाओगे तुम और फिर महिमा तो है न तुम्हारी देखभाल करने के लिए. लेकिन, अगर मैं मुंबई नहीं गई न, तो इतना बड़ा मौका मेरे हाथ से चला जाएगा. जानते तो हो अगले साल मेरा प्रमोशन ड्यू है.“
“दी, पागल हो गई हो आप?” गुस्से से महिमा बोली, “यहां आप का पति बीमार है और आप को अपने प्रमोशन की पड़ी है? जीजू से बढ़ कर आप की नौकरी है क्या दी? नहीं जा पाओगी मुंबई तो क्या हो गया? नहीं दी, ऐसा मत करो, प्लीज,” मगर, मुक्ता ने किसी की एक नहीं सुनी और मुंबई चली गई.
मन ही मन विवेक रो पड़ा. उस के दिल की हालत महिमा भी समझ रही थी, पर क्या कहती? वह भी तो उस की बहन थी. लेकिन कोई इनसान इतना पत्थरदिल कैसे हो सकता है? सोच कर वह हैरान थी. कितना रोका उस ने, हाथपैर भी जोड़े, पर मुक्ता नहीं मानी और चली गई.
5 दिन के बाद भी विवेक की तबीयत में कोई खास फर्क नहीं आया था. अब भी बुखार कभी 102 डिगरी तो कभी 105 डिगरी पर चला जाता था. ऊपर से हाथपैर की हड्डियों में भयंकर दर्द के कारण वह कराह उठता. सुबह के समय दर्द ज्यादा महसूस होता था. लेकिन महिमा दिनरात एक कर विवेक की सेवा में लगी रही. दवा और महिमा की सेवा के कारण धीरेधीरे विवेक की तबीयत में सुधार होने लगा. लेकिन शरीर की कमजोरी अभी भी बनी हुई थी. ज्यादा चलताफिरता तो थक जाता था. लेकिन महिमा के वक्तवक्त पर जूसफल वगैरह देते रहने से उस की वह कमजोरी भी गायब हो गई और अब वह पूरी तरह से स्वस्थ हो चुका था.
विवेक की तबीयत खराब होने की वजह से उस का कालेज जाना भी रुक गया था और इस बात का विवेक को भी बुरा लग रहा था.“बसबस, मेरी प्यारी साली साहेबा, अब मैं बिलकुल ठीक हूं और तंदुरुस्त भी. अब मैं अपना खयाल खुद रख सकता हूं, इसलिए प्लीज, अब आप अपने कालेज के लिए रवाना हो जाएं. नहींनहीं, कोई बहाना नहीं. मैं ने कहा न कि अब मैं बिलकुल ठीक हूं और कल से मैं भी अपना औफिस ज्वाइन कर रहा हूं,” किचन का काम अपने हाथों में लेते हुए विवेक बोला. कहती रही महिमा कि अभी वह कमजोर हैं तो उन्हें अभी आराम की जरूरत है, मगर विवेक ने उस की एक न सुनी और घर के कामों में लग गया.
“वैसे, तुम्हारी वो दोस्त बड़ी प्यारी है. क्या नाम है उस का… सब्जियां काटतेकाटते विवेक रुक गया, “हां, याद आया पूर्णिमा नाम है न उस का?”
“हू… पूर्णिमा ही नाम है उस का. क्यों जीजू? बड़ा नाम जाना जा रहा है उस लड़की का? इरादा क्या है जनाब का? वकील हैं मैडम, लगा देगी ‘आईपीसी 354’, फिर पता चलेगा. समझे, मेरे प्यारे जीजू?” झूठमूठ का गुस्सा दिखाते हुए महिमा बोली, तो विवेक कहने लगा कि वह तो बस यों ही पूछ रहा था.
“अच्छा… यों ही पूछ रहे थे? दी को फोन लगाऊं क्या?”
“अरे नहीं, माफ कर दो,” अपना कान पकड़ते हुए विवेक बोला, तो महिमा को हंसी आ गई. तभी कालबेल की आवाज से दोनों उस बातों से हट कर उधर देखने लगे.
“अभी कौन आ गया…?” लेकिन जब दरवाजे पर मुक्ता को खड़ा देखा, तो वह खुशी से उछल पड़ी.
“महिमा कौन आया है…? पेपर वाला आया है, तो कहना कल आए,” विवेक बोल ही रहा था कि सामने मुक्ता आ कर खड़ी हो गई. सामान सहित मुक्ता को देखा, तो विवेक भी हैरान रह गया, “मु… मु… मुक्ता तुम…”
“विवेक, मुझे माफ कर दो. मैं अपने स्वार्थ में यह भी भूल गई कि तुम बीमार हो. मैं ने बोल दिया कि मुझे मुंबई नहीं जाना. यहां पर ही फिर से मेरा तबादला करवा दे, वरना मैं नौकरी छोड़ दूंगी,” बोल कर वह सिसक पड़ी.
“अब रोनाधोना बंद करो. और सुनो, मैं जा रही हूं कालेज, अंदर से दरवाजा बंद कर लो,” चुटकी लेते हुए महिमा बोल कर कालेज के लिए निकल गई. वह बहुत खुश थी कि उस की दी वापस आ गई है और फिर सबकुछ पहले की तरह हो गया है. पहले की तरह तीनों हर छुट्टी की शाम रंगीनियों का मजा लेने लगे. मौजमस्ती होने लगी.
लेकिन, एक दिन फिर एक मुसीबत विवेक के सिर पर आ पड़ी. विवेक की गाड़ी से एक आदमी का एक्सीडेंट हो गया और उस ने इस के खिलाफ पुलिस में केस कर दिया.
“अब क्या होगा महू, मेरा तो दिल घबरा रहा है,” कांपते स्वर में मुक्ता बोली. अपने पति को लौकअप में देख उस की तो जान ही निकली जा रही थी.
“कुछ नहीं होगा. आप शांत रहो. कोई बड़ा एक्सीडेंट नहीं हुआ है उस का. बस उस के सिर पर थोड़ी चोटें आई हैं और उस का एक हाथ फ्रैक्चर हुआ है, तो बंदा ठीक है. और सब से बड़ी बात यह कि गलती उस बंदे की थी, जीजू की नहीं. गलत साइट से वह अपनी गाड़ी हांक रहा था जीजू नहीं. लेकिन, यह बात वह मानने को तैयार नहीं है. जिद पर अड़ा है कि जीजू को सजा दिलवा कर रहेगा. लेकिन, मैं भी कोई कम नहीं हूं,” कह कर महिमा ने अपनी दोस्त पूर्णिमा, जो कि वकील है, उसे फोन लगाया और सारी बात बताई, तो वह कहने लगी, अगर ऐसी बात है तो डरने की कोई जरूरत नहीं है. वह आदमी रोंग साइड से आ रहा था. बस, यह बात उस के मुंह से निकलवानी है, फिर वह खुदबखुद अपना केस वापस ले लेगा.
महिमा ने जब उस आदमी से बात की और प्यार से समझाया कि कुछ पैसे लेदे कर मामला यहीं खत्म कर दें, तो वह अकड़ कर कहने लगा कि नहीं, वह अपना केस वापस नहीं लेगा, बल्कि इन गाड़ी वाले लोगों को सबक सिखाएगा, जो अपनेआप को सेठ समझने हैं. बताएगा कि हम गरीब भी कोई कीड़ेमकोड़े नहीं हैं, जो कोई भी कुचल कर चला जाए.
“बहुत बोल चुके समझे. प्यार से समझा रही हूं, तो बात समझ में नहीं आ रही है तुम्हारे?” उस की फालतू की बकवास सुन कर महिमा ने दहाड़ा, तो वह एकदम से सकपका गया.
“तुम्हें क्या लगता है कि हमें कुछ पता नहीं है? सब जानती हूं. गलती उस इनसान की नहीं, बल्कि तुम्हारी थी. गलत तरीके से तुम साइकिल चला रहे थे और हाईवे कोई साइकिल चलाने की जगह है? देखो, सही से समझा रही हूं कि अपना केस वापस ले लो, नहीं तो अगर यह साबित हो गया न कि तुम गलत साइड से साइकिल चला कर आ रहे थे, तो सजा उसे नहीं तुम्हें होगी और जुर्माना भरना पड़ेगा, सो अलग. पता है न, हर जगह ‘सीसी टीवी कैमरा’ लगा होता है? तो पता तो चल ही जाएगा कि गलत कौन है, फिर समझते रहना,” महिमा के इतना कहते ही उस के तो पसीने छूट गए, क्योंकि गलत तो वही था, वही रोंग साइड से अपनी साइकिल चला कर आ रहा था. तुरंत जा कर उस ने अपनी शिकायत वापस ले ली यह बोल कर कि उसे कोई केस नहीं करना. उसे कुछ नहीं हुआ है, वह ठीक है.
“ओह दी, पता है आप को उस इनसान को समझाने में मुझे कितनी एनर्जी वेस्ट करनी पड़ी? और यह सब हुआ मेरी दोस्त पूर्णिमा की वजह से,” बोलते हुए उस ने विवेक की तरफ देखा, तो मुसकरा कर वह पीछे मुड़ गया.
मुक्ता मन ही मन अपनी बहन की शुक्रगुजार हो रही थी कि उस के कारण ही विवेक बच पाया, एक बार नहीं, बल्कि 2-2 बार उस ने विवेक की जान बचाई है.
“जीजू, अब कंजूसी से काम नहीं चलेगा, आप को हमें एक बड़ी पार्टी देनी होगी,“ महिमा ने कहा, तो विवेक ने उस की बात मान ली.
अहमदाबाद के रैडिसन ब्लू होटल में विवेक ने एक पार्टी रखी, जिस में उस का दोस्त निहाल भी आया था.
“जीजू, पार्टी तो बहुत मजेदार रही, पर वह लड़का कौन था…?” घर लौटते समय जब महिमा ने पूछा, तो मुक्ता और विवेक दोनों एकदूसरे को देख कर हंस पड़े, “ अरे, हंस क्यों रहे हो आप दोनों? बताओ तो, कौन था वो स्मार्ट सा लड़का? आप के साथ काम करता है क्या?”
महिमा यह जानने को बेताब थी कि आखिर वह लड़का था कौन? और मिलने पर क्यों वह उसे ही निहारे जा रहा था?
“क्यों? क्या पसंद आ गया तुझे? बोल तो बात चलाऊं…?” मुक्ता ने प्यार की झिड़की देते हुए पूछा, तो वह शरमा गई.
उस संडे सुबहसुबह मुक्ता और विवेक के कमरे से बातें करने की आवाज सुन कर महिमा भी वहां पहुंच गई और कहने लगी कि क्या बातें हो रही हैं?
“यही कि इस मुसीबत को अब इस घर से निकालना होगा,” विवेक बोला.
“मुसीबत कौन…? मैं..? ओह, अब मैं मुसीबत हो गई आप दोनों के लिए? जाओ जीजू, मैं आप से बात नहीं करती. और दीदी, आप भी बहुत बुरी हो,” रूठने का नाटक करते हुए महिमा ने अपना चेहरा दूसरी तरफ फेर लिया.
“अरे पगली, विवेक के कहने का मतलब था कि अब तुम्हारी शादी कर दी जाए. लेकिन, पहले यह बता कि वह लड़का तुझे कैसा लगा?” मुक्ता बोली, तो महिमा शरमा कर उधर देखने लगी.
“शरमाने से काम नहीं चलेगा, बताओ कि वह लड़का तुम्हें कैसा लगा? पापा और भैया को लड़के की फोटो भेज दी गई है. बस, अब तुम्हारे हां की देर है.”
लेकिन, शरमाते हुए महिमा यह बोल कर वहां से भाग गई कि उसे नहीं पता.
“इस का मतलब इसे भी वह लड़का पसंद है,” हंसते हुए विवेक कहने लगा, “जानती हो मुक्ता, जब निहाल ने पहली बार महिमा को देखा था, तभी उसे उस से प्यार हो गया था. लड़का अच्छा है. नौकरी भी हाईक्लास है और सब से बड़ी बात कि निहाल की नौकरी भी यहीं अहमदाबाद में ही है, तो दोनों बहनें आसपास रह सकती हो,” उस की बात पर मुक्ता ने भी हंसते हुए सहमति जताई.
उस रोज राजपथ क्लब में जब पहली बार निहाल ने महिमा को देखा था, तभी उसे वह पसंद आ गई थी. महिमा का छरहरा बदन, सोने जैसा दमकता रंग, बड़ीबड़ी घनी पलकों से ढकी गहरी काली आंखें, घने काले बाल और गुलाबी अधरों पर छलकती मोहक मुसकान देख वह महिमा का दीवाना हो गया था और सोच लिया था कि अब वही उस की दुलहन बनेगी.
निहाल विवेक के साथ उस के ही औफिस में काम करता है और दोनों पहले से ही दोस्त हैं. कई बार वह महिमा को देख चुका है, पार्टी वगैरह में, पर महिमा उस से पहली बार मिली थी. उसे भी निहाल पहली नजर में ही भा गया था.
विवेक ने तो पहले ही सोच लिया था कि महिमा के लिए वह सिर्फ लड़का ही नहीं ढूंढेगा, बल्कि एक भाई की तरह उसे विदा भी करेगा.
लोग अकसर जीजासाली के रिश्तों को गलत नजरों से देखते हैं, लेकिन महिमा और विवेक का रिश्ता एक पवित्र बंधन में बंधा था, जिसे हर कोई नहीं समझ सकता.