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कहानी: जिंदगी एक बांसुरी है

जोकी हाट का ब्लौक दफ्तर. एक गोरीचिट्टी, तेजतर्रार लड़की ने कुछ दिन पहले वहां जौइन किया था. उसे आमदनी, जाति, घर का प्रमाणपत्र बनाने का काम मिला था. वह अपनी ड्यूटी को मुस्तैदी से पूरा करने में लगी रहती थी. सुबह के 10 बजे से शाम के 4 बजे तक वह सब की अर्जियां लेने में लगी रहती थी.

आज उसे यहां 6 महीने होने को आए हैं. अब उस के चेहरे पर शिकन उभर आई है. होंठों से मुसकान गायब हो चुकी है. ऐसा क्या हो गया है?


अजय भी ठहरा जानामाना पत्रकार. खोजी पत्रकारिता उस का शगल है. अजय ने मामले की तह तक जाने का फैसला किया. पहले नाम और डेरे का पता लगाया.


नाम है सुमनलता मुंजाल और रहती है शिवपुरी कालोनी, अररिया में.


अजय ने फुरती से अपनी खटारा मोटरसाइकिल उठाई और चल पड़ा. पूछतेपूछते वहां पहुंचा. आज रविवार है, तो जरूर वह घर पर ही होगी.


डोर बैल बजाई. वह बाहर निकली. अजय अपना कार्ड दिखा कर बोला, ‘‘मैं एक छोटे से अखबार का प्रतिनिधि हूं मैडमजी. मैं आप से कुछ खास जानने आया हूं.’’


‘फुरसत नहीं है’ कह कर वह अंदर चली गई और अजय टका सा मुंह ले कर लौट आया.


अजय दूसरे उपाय सोचने में लग गया. 15 दिन की मशक्कत के बाद उसे सब पता चल गया. सुमनलता को किसी न किसी बहाने से उस के अफसर तंग करते थे.


अजय ने स्टोरी बना कर छपवा दी. फिर तो वह हंगामा हुआ कि क्या कहने. दोनों की बदली हो गई. अच्छी बात यह हुई कि सुमनलता के होंठों पर पुरानी मुसकान लौट आई.


एक दिन अजय कुछ काम से ब्लौक दफ्तर गया था. उस ने आवाज दे कर बुलाया. अजय चाहता तो अनसुना कर सकता था, पर फुरसत पा कर वह मिला. औपचारिक बातें हुईं. उस ने अजय को घर आने का न्योता दिया और उस का फोन नंबर लिया. बात आईगई हो गई.


3 दिन बाद रविवार था. शाम को अजय को फोन आया. अजनबी नंबर देख कर ‘हैलो’ कहा.


उधर से आवाज आई, ‘सर, मैं मिस मुंजाल बोल रही हूं. आप आए नहीं. मैं सुबह से आप का इंतजार कर रही हूं. अभी आइए प्लीज.’


मिस मुंजाल यानी ‘वह कुंआरी है’ सोच कर अजय तैयार हुआ और चल पड़ा. एक बुके व मिठाई ले ली. डोर बैल बजाते ही उस ने दरवाजा खोला.


साड़ी में वह बड़ी खूबसूरत लग रही थी. वह चहकते हुए बोली, ‘‘आइए, मैं आप का ही इंतजार कर रही थी.’’


अजय भीतर गया. वहां एक औरत बनीठनी बैठी थी. वह परिचय कराते हुए बोली, ‘‘ये मेरी मम्मी हैं. और मम्मी, ये महाशय पत्रकार हैं. मेरे बारे में इन्होंने ही छापा था.’’


अजय ने उन के पैर छू कर प्रणाम किया. वे उसे आशीर्वाद देते हुए बोलीं, ‘‘सदा आगे बढ़ो बेटा. आओ, बैठो.’’


तभी मिस मुंजाल बोलीं, ‘‘आप ने मुझे अभी तक अपना नाम तो बताया ही नहीं?’’


वह बोला, ‘‘मुझे अजय मोदी कहते हैं. आप सिर्फ मोदी भी कह सकती हैं.’’


‘‘मैं अभी आती हूं,’’ कह कर वह अंदर गई. पलभर में वह ट्रौली धकेलती हुई आई. उस पर केक सजा हुआ था. देख कर अजय को ताज्जुब हुआ.


उस ने खुलासा किया, ‘‘आज मेरा जन्मदिन है.’’


अजय ने पूछा, ‘‘मेहमान कहां हैं?’’


वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘आप ही मेहमान हैं मिस्टर अजय मोदी.’’


‘‘ओह,’’ अजय ने इतना ही कहा.


मोमबत्ती बुझा कर उस ने केक काटा. पहला टुकड़ा अजय को खिलाया. अजय ने भी उसे और उस की मम्मी को केक खिलाया. फिर बुके व मिठाई के साथ बधाई दी और कहा, ‘‘मैं बस यही ले कर आया हूं. पहले पता होता, तो तैयारी के साथ आता.’’


उस ने इशारे से मना किया और बोली, ‘‘आज प्रोफैशनल नहीं पर्सनल मूमैंट को जीना है.’’


अजय चुप हो गया. रात के 8 बजे वह लौटा, तो वे दोनों अजनबी से एक गहरे दोस्त बन चुके थे.


2 महीने बाद अजय का प्रमोशन हो गया, तो सोचा कि उस के साथ ही सैलिबे्रट करे. फोन किया. उस ने बधाई दी. उस की आवाज में कंपन और उदासी थी.


अजय ने कहा, ‘‘आप आज शाम को तैयार रहना.’’


शाम में वह तैयार हो कर शिवपुरी पहुंचा. वह सजसंवर कर तैयार थी. दोनों मोटरसाइकिल पर बैठ कर चल पड़े.


अजय ने रास्ते में बताया कि वे दोनों पूर्णिया जा रहे हैं. वह कुछ नहीं बोली. होटल हर्ष में सीट बुक थी. खानेपीने का सामान उस की पसंद से और्डर किया. पनीर के पकौड़े, अदरक की चटनी कौफी…


अजय ने कहा, ‘‘मिस मुंजाल, आज हम लोग स्पैशल मूमैंट्स को जीएंगे.’’


वह गजब की मुसकान के साथ बोली, ‘‘जैसा आप कहें सर.’’


अजय ने प्यार से पूछा, ‘‘मिस मुंजाल, मुझे ‘सर’ कहना जरूरी है?’’


वह भी पलट कर बोली, ‘‘मुझे भी ‘मिस मुंजाल’ कहना जरूरी है?’’


अजय ने कहा, ‘‘ठीक है. आज से केवल अजय कहना या फिर मोदी.’’


वह बोली, ‘‘मुझे भी केवल सुमन या लता कहना.’’


फिर वह अपने बारे में बताने लगी कि वह हरियाणा के हिसार की है. नौकरी के सिलसिले में बिहार आ गई, पर अब मन नहीं लग रहा है. एलएलएम कर रही है. बहुत जल्द ही वह यहां से चली जाएगी. उसे वकील बनने की इच्छा है.


फिर अजय ने बताया, ‘‘मैं भी बहुत जल्द दिल्ली जौइन कर लूंगा. हैड औफिस बुलाया जा रहा है.’’


फिर उस ने मुझे एक छोटा सा गिफ्ट दिया. बहुत खूबसूरत ‘ब्रेसलेट’ था, जिस पर अंगरेजी का ‘ए’ व ‘एस’ खुदा था.


मैं ने भी एक सोने की पतली चेन दी. उस में एक लौकेट लगा था और एक तरफ ‘ए’ व दूसरी तरफ ‘एस’ खुदा था.


वह बहुत खुश हुई. ब्रेसलेट पहना कर उस ने अजय का हाथ चूम लिया और सहलाने लगी. वह भी थोड़ा जोश में आ गया. उस ने भी उसे चेन पहनाई और गरदन चूम ली. वह सिसकने लगी.


अजय ने वजह पूछी, तो बोली, ‘‘तुम पहले इनसान हो, जिस ने मेरी बिना किसी लालच के मदद की थी.’’


अजय ने कहा, ‘‘एलएलएम करने तक तुम यहीं रहो. कुछ गलत नहीं होगा. मैं हूं न.’’


उस ने ‘हां’ में सिर हिलाया. रात होतेहोते अजय ने उसे उस के डेरे पर छोड़ दिया. विदा लेने से पहले वे दोनों गले मिले.


अजय दूसरे ही दिन गुपचुप तरीके से बीडीओ साहब से मिला. अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और उस की ड्यूटी बदलवा दी.


इस बात को 10 साल गुजर गए. अजय अपने असिस्टैंट के साथ एक मशहूर मर्डर मिस्ट्री की सुनवाई कवर करने पटियाला हाउस कोर्ट गया था.  कोर्ट से बाहर निकल कर वह मुड़ा ही था कि कानों में आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘मिस्टर मोदी, प्लीज रुकिए.’’


अजय ने देखा कि एक लड़की वकील की ड्रैस में हांफती हुई चली आ रही थी. पास आ कर उस ने पूछा, ‘‘ऐक्सक्यूज मी प्लीज, आर यू मिस्टर अजय मोदी?’’


अजय ने कहा, ‘‘यस. ऐंड यू?’’


उस ने कहा, ‘‘मैं रीना महिंद्रा. आप प्लीज मेरे साथ चलिए. मेरी सीनियर आप को बुला रही हैं.’’


अजय हैरान सा उस के साथ चल पड़ा. पार्किंग में एक लंबी नीली कार खड़ी थी. उस के अंदर एक औरत वकील की ड्रैस में बैठी थी.


अजय के वहां पहुंचते ही वह बाहर निकली और उस के गले लग गई.


अजय यह देख कर अचकचा गया. वह चहकते हुए बोली, ‘‘कहां खो गए मिस्टर मोदी? पहचाना नहीं क्या मुझे? मैं सुमनलता मुंजाल.’’


अजय बोला, ‘‘कैसी हैं आप?’’


वह बोली, ‘‘गाड़ी में बैठो. सब बताती हूं.’’


अजय ने अपने असिस्टैंट को जाने के लिए कहा और गाड़ी में बैठ गया. उस ने भी रीना को मैट्रो से जाने के लिए कहा और खुद ही गाड़ी ड्राइव करने लगी.


वह लक्ष्मी नगर के एक फ्लैट में ले आई. अजय को एक गिलास पानी ला कर दिया और खुद फ्रैश होने चली गई.


कुछ देर बाद टेबल पर नाश्ता था, जिसे उस ने खुद बनाया था. फिर वह अपनी जिंदगी की कहानी बताने लगी.


‘‘आप ने तो चुपचाप मेरी ड्यूटी बदलवा दी. कुछ दिन बाद ही मुझे पता चल गया. सभी ताने मारने लगे. मुझ से सभी आप का रिलेशन पूछने लगे, तो मैं ने ‘मंगेतर’ बता दिया.


‘‘काफी समय बीत जाने पर भी जब आप नहीं मिले और न ही फोन लगा, तो मैं परेशान हो गई. पता चला कि आप दिल्ली में हो और अखबार भी बंद हो गया है.


‘‘मैं समझ गई कि आप जद्दोजेहद कर रहे होंगे. इधर मेरी मां को लकवा मार गया. मेरी एलएलएम भी पूरी हो गई थी. उस नौकरी से मैं तंग आ ही चुकी थी.


‘‘मां के इलाज के बहाने मैं दिल्ली चली आई. एक महीने बाद मेरी मां चल बसीं. फिर मेरा संघर्ष भी शुरू हो गया. दिल्ली हाईकोर्ट जौइन कर लिया और धीरेधीरे मैं क्रिमिनल वकील के रूप में मशहूर हो गई.’’


अजय मुसकरा कर रह गया.


उस ने पूछा, ‘‘आप बताओ, कैसी कट रही है?’’


अजय ने बताया, ‘‘दिल्ली आने के कुछ महीनों बाद ही अखबार बंद हो गया. मैं ने हर छोटाबड़ा काम किया. ठेला तक चलाया. अखबार बेचा. फिर एक दिन एक रिपोर्टिंग कर एक अखबार को भेजी और उसी में मुझे काम मिल गया. आज तक उसी में हूं.’’


‘‘बीवीबच्चे कैसे हैं?’’


अजय ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘मैडम मुंजाल, जब अपना पेट ही नहीं भर रहा हो, तो फिर वह सब कैसे?’’


वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘तब तो ठीक है.’’


अजय बोला, ‘‘सच कहूं, तो तुम्हारी जैसी कोई मिली ही नहीं और न ही मिलेगी. जहां इतनी कट गई है, तो आगे भी कट ही जाएगी.’’


वह बोली, ‘‘अच्छी बात है.’’


अजय ने पूछा, ‘‘तुम्हारे बालबच्चे कहां और कैसे हैं?’’


वह फीकी मुसकान के साथ बोली, ‘‘एक भिखारी दूसरे भिखारी से पूछ रहा है, तुम ने कितना पैसा जमा किया है.’’


फिर वह चेन दिखाते हुए बोली, ‘‘याद है न… ये चेन आप ने ही पहनाई थी. मैं ने तब से ही इसे अपना ‘मंगलसूत्र’ मान लिया है. समझे…’’


‘‘और फिर मैं हरियाणवी हूं. पति के शहीद होने पर भी दूसरी शादी नहीं करते, यहां तो मेरा ‘खसम’ मोरचे पर गया था, शहीद थोड़े ही हुआ था.’’


अजय उस की प्यार वाली बात सुन कर फफकफफक कर रोने लगा. वह उस के आंसू पोंछते हुए बोली, ‘‘कितना झंडू ‘खसम’ हो आप मेरे? मर्द हो कर रोते हो?’’


अजय ‘खसम’ शब्द पर मुसकराते हुए बोला, ‘‘आई एम सौरी माई लव. यू आर ग्रेट ऐंड आई लव यू वैरी मच.’’


वह भी मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा, इसलिए पलट कर मेरी खबर तक नहीं ली.’’


इस के बाद अजय को अपनी बांहों में कसते हुए वह बोली, ‘‘मैं इस ‘अनोखे मंगलसूत्र’ को दिखादिखा कर थक चुकी हूं, मोदी डियर. अब सब के सामने मुझे स्वीकार भी कर लो प्लीज.’’


वे दोनों अगले हफ्ते ही एक भव्य समारोह में एकदूसरे के हो गए. कहा भी गया है कि जिंदगी एक बांसुरी की तरह होती है. अंदर से खोखली, बाहर से छेदों से भरी और कड़ी भी, फिर भी बजाने वाले इसे बजा कर ‘मीठी धुन’ निकाल ही लेते हैं.

 
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