कहानी: रूपदिवानी
‘‘मैं अपनी दुलिया की छादी लानी के टुड्डे से कलूंदी. लानी मेरी पक्की छहेली है,’’ रश्मि तुतलाई.
मां ने रश्मि को मनाने का असफल प्रयास किया, ‘‘पर, रानी का गुड्डा मोटा है. कद्दू कहीं का.’’
पापा ने विकल्प प्रस्तुत किया, “मम्मी का कहना मान ले. प्रिया के गुड्डे से कर ले. वह तो छरहरा है. रंग भी धूप सा उजला है.”
मां ने फिर से नाकभौंहें सिकोड़ी, “न बाबा न. हम अपनी बिटिया की गुड़िया की शादी प्रिया के चपटी नाक और बटन सी छोटी आंखों वाले गुड्डे से भी नहीं करेंगे. किसी राजकुमार से ही करेंगे प्यारी सी रश्मि की प्यारी सी डौली की शादी.”
पापा झल्ला उठे. ‘‘अगर उस से भी नहीं तो जिस में तेरी मम्मी के सींग समाएं उसी से कर. मैं नहीं पड़ता तेरी सहेलियों के गुड्डेगुड़ियों के चक्कर में. चाहें अपनी डल्लो को चरिकुमारी बना या कुएं में धकेल,’’ कह कर पापा अपनी फाइलों में डूब गए.
आज मां को रश्मि के लिए कोई लड़का पसंद नहीं आ रहा था. भैया और पापा रातदिन परेशान थे. जहां भी कोई रिश्त बताता, पापा और भैया जाते. रश्मि की फोटो और बायोडेटा दे कर आते. रश्मि थी ही ऐसी परीरूप कि उस की फोटो तुरंत पसंद कर ली जाती. पापा लड़के का फोटो और बायोडेटा मां को दिखाते, पर मां हर फोटो में कोर्ई न कोई नुक्स निकाल देती. बायोडेटा पढ़नेसुनने की नौबत ही नहीं आती. भैयापापा सिर पकड़ कर बैठ जाते. बड़े भैयाभाभी ने तो बीच में पड़ना ही छोड़ दिया था. हां, छोटे भैया निराश हो कर फिर उठते और बुझे मन से नए रिश्ते की तलाश में लग जाते. पापा एक बार तो फट ही पड़े, ‘‘इस आसमान की परी के लिए कोई ऊपर से ही उतरेगा अब. उसे जा कर हवाईजहाज में ढूंढ़ो.’’
हुआ भी यही. छोटे भैया सुशांत और मां दीपाली बूआ के यहां भात दे कर हवाईजहाज से मुंबई से लौट रहे थे. उन का सहयात्री किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था. ब्लेजर में उस का रंग और भी दमक रहा था. उस का अखबार सुशांत के पैरों के पास गिरा तो उस ने सौरी कह कर अखबार उठा लिया. बस फिर तो दोनों में लंबी बातचीत का पहाड़ी रास्ता खुलता गया. रश्मि का ध्यान आते ही अम्मां के मन में विचार आया, ‘‘काश, ये अविवाहित हो. इस की सुंदरता में तो मैं कहीं से भी नंबर नहीं काट सकूंगी. लाखों में अलग ही दिखेगा.’’
सहयात्री का रंग हलका गुलाबी था. गहरी काली आंखों पर घनी पलकों की चिकें पड़ी थी. ऊंची नाक शुक नासिका को सार्थक कर रही थी. गुलाबी पतले होंठ गुलाब की पंखुड़ियों का आभास दे रहे थे. खनकती हंसी के बीच धवल दांतों की पंक्तियां अनार के दानों की भांति जड़ी प्रतीत हो रही थीं. सहयात्री में लड़़कियों सा सौंदर्य समाया था. काले घुंघराले बाल उस की सुंदरता को द्विगुणित कर रहे थे. सुशांत ने मन ही मन उस के साथ रश्मि को खड़ा किया तो उस के मुंह से अनायास निकल पड़ा, ‘‘वाह, क्या जोड़ी है.’’
सहयात्री ने चौंक कर सुशांत की ओर देखा और पूछा, ‘‘किस की?’’
उतरते जहाज से बाहर झांकते हुए सुशांत ने उड़ती फाख्ता की जोड़ी की ओर संकेत किया, ‘‘इन की.’’
सहयात्री सरल सा मुसकरा दिया. अम्मां के संकेत पर सुशांत ने उस से विजिटिंग कार्ड का आदानप्रदान कर लिया. वह दवाओं की कंपनी में सेल्स एक्जीक्यूटिव था. नाम था सृजन शर्मा. बातचीत में अम्मां ने जान लिया कि वह अविवाहित है.
मां को आज एयरपोर्ट से घर की दूरी द्रोपदी के चीर सी अंतहीन लग रही थी. रास्तेभर वह बस यही सोचती रहीं कि अब घर आए और कब वह रश्मि को बताएं कि मेरी खोज को आज विराम लग गया. रश्मि ठुनकेगी, ‘‘मम्मा, आप तो बस हर बार यही कहती हो. पर मेरा जवाब आज तक इस दुनिया में पैदा ही नहीं हुआ. आप ही तो कहती हो कि हंस बस मोती चुगता है.’’ बस, तब मैं सब को धीरेधीरे सृजन के बारे में बताऊंगी कि आज से तीस साल पहले रश्मि का जवाब इस धरती पर उतर चुका है. सब आश्चर्य से पूछेंगे, ‘‘क्या वाकई?’’ इसी उहापोह में टैक्सी घर के आगे रुकी. तब मां की विचारधारा को झटका लगा.
रश्मि सुबह से ही पूजा की शादी में गई हुर्ई थी. पूजा रश्मि से पूरे 6 साल जूनियर थी. पूजा की बड़ी बहन अपाला का विवाह साधारण रूपरंग के चार्टेड एकाउंटेंट अजस्र से सात वर्ष पूर्व हो चुका था. अपाला और रश्मि दांतकाटी रोटी थी. अपाला के रिसेप्शन से लौट कर मां ने मुंह बनाया था, ‘‘अपाला के मम्मीपापा ने क्या देखा? और ये मिट्टी की माधो अपाला मान कैसे गई उस बजरबट्टू अजस्र को?” डिनर पर बुलाया, तो पापा ने मां को झिड़का, ‘‘उस दिन तुम अजस्र को बजरबट्टू बता रही थी. बिलकुल रामसीता की जोड़ी है दोनों की. अजस्र सांवला है तो क्या हुआ? सीए है.’’
मां का मुंह फिर बिचका, ‘‘उलटा नहीं तो सीधा तवा कहीं का. सुनोजी, तुम ने उस की टांगें नहीं देखी क्या. बिलकुल सींकसलाई. ताड़ का पेड़ कहीं का.’’
पापा ने फिर समझाया, ‘‘क्या सूरत ही सबकुछ है? पोस्ट और घर कुछ नहीं. अपाला की ससुराल पर लक्ष्मी बरसती है.’’
बस पापा की इन्हीं बातों पर मां का मूड उखड़ जाता था. पापा चलतेचलते कह गए. पर अपाला अजस्र की पोस्ट, योग्यता और घर की स्थिति देख कितनी खुश है.
रश्मि के लिए जितने भी वर देखे गए, अम्मां का इनकार रश्मि पर उम्र की परतें चढ़ाता गया. रिश्तेदारी में भी रश्मि से छोटी उम्र की लड़कियों की शादी एकएक कर के होती जा रही थी. पापा दुखी हो कर कहते, ‘‘न जाने रश्मि के हाथ कब पीले होंगे? छोटे की धरोहर की भी शादी हो गई. रश्मि से पूरे चार बरस छोटी है. सुंदरता के चक्कर में एक से एक आला रिश्ते पानी की तरह हाथ से फिसलते जा रहे हैं. रश्मि उनतीस की हो गई है. तुम्हें सुंदरता को योग्यता से कम आंकना चाहिए. रश्मि के लिए लड़के की उम्र कम से कम तीसइकतीस होनी चाहिए. अब इस उम्र तलक कौन भीष्म पितामह बना बैठा होगा. चलो, मैं अब योग्य वर ढूंढ़ भी दूं तो क्या तुम चंद्रमा को पाने का अपना सपना छोड़ दोगी? किस कंदरा से लाऊं कामदेव तुम्हारी रति रानी के लिए?’’
रश्मि पूजा की शादी से लौटी, तो मां उस की प्रतीक्षा में जाग रही थीं. रश्मि सदैव की तरह लाड़ से इठलाई, ‘‘मां अब आईं. आईं तो क्या लाईं. नहीं लाईं तो क्यों आईं? अपनी इकलौती, लाड़ली, डार्लिंग बेटी के लिए.’’
मां के मन की हंसी चेहरे पर उतर आई, ‘‘देख, मैं न कहती थी कि कोई आसमान से ही उतरेगा अपनी हूर की परी के लिए. मेरी भविष्यवाणी सोलहों आने सच हुई. वह पूरा गंधर्व कुमार है.’’
रश्मि ने शंका व्यक्त की, ‘‘वह तो हर बार आप ही फेल कर देती हो. पर लगता है कि आप ने अब की बार पीतल और कंचन में भेद कर लिया है. मैं तो समझी थी कि मुंबई से आप मेरे लिए लेटेस्ट फैशन की ड्रेस नहीं, लेटेस्ट डिजाइन का मैच ले कर लौटी हो मेरे लिए.’’
‘‘देख, कल तेरे पापा भाईदूज का टीका कराने सल्लो बूआ के यहां जा रहे हैं. तेरी बड़ी भाभी और औकाधरा की कल किट्टी है. और तेरे बड़े भैया भी कल डबल शिफ्ट में ड्यूटी है,” मां बोली.
अम्मां के कहने पर अगले दिन सुशांत ने औफिस से सृजन को फोन कर के घर आने का निमंत्रण दे दिया. सृजन ने शाम को आने का वायदा कर लिया.
शाम को सृजन कुछ पहले ही आ गया. दरवाजा रश्मि ने खोला. सौंदर्य का अथाह सागर देख कर रश्मि ठगी सी रह गई. सृजन भी रूप की राशि रश्मि को देख कर अंदर आना भूल गया.
रश्मि ने संभल कर सृजन को अंदर आने को कहा. सृजन सकपकाते हुए बोला, ‘‘मि. सुशांत ने मुझे बुलाया है. क्या मिस्टर सुशांत घर पर हैं?’’
रश्मि ने सृजन को ड्राइंगरूम में बैठा दिया.
अंदर आ कर रश्मि का हृदय तेजी से धडक़ने लगा. ‘‘अम्मा ने सच ही कहा था. सारी सहेलियां जल उठेंगी. सब्र का फल मीठा होता है.’’
सृजन और सुशांत के बीच हो रही बातचीत भी रश्मि की विचार श्रृंखला को छोड़ नहीं सका. सुशांत ने मां से चाय भेजने को कहा, तो उन्होंने फिर से रश्मि को सृजन के सम्मुख प्रस्तुत करने के उद्देश्य से नौकर से चाय न भेज कर रश्मि से चाय ले जाने को कहा.
चाय मेज पर रखते हुए एक बार फिर से रश्मि का मन लुब्ध भ्रमर की भांति उस रूप लावण्य का दृष्टिपान करने की लालसा से सृजन की ओर नीची दृष्टि से देखने लगा. सृजन भी उसे अपलक देख रहा था. सुशांत ने दोनों की नजरें चार होते हुए देखा तो रश्मि लगातार अंदर चली गई. सृजन तो बातचीत का बिंदु ही भूल गया.
सृजन ने चलते समय सुशांत को घर आने का निमंत्रण दिया, तो सुशांत को अनायास ही मुंहमांगी मुराद मिल गई. सुशांत बोला, ‘‘मिस्टर सृजन, मैं आप के घर अब से चौबीस घंटे बाद यानी कल शाम पांच बजे आऊंगा. पर आप से नहीं, आप के पिताजी से मिलने. मेरे साथ मेरी मदर भी आप की माताजी से मिलने आएंगी. आप को कोई एतराज तो नहीं?’’ सुन कर सृजन मुसकराया. अचानक उस के मुंह से प्रथम कवि सा निकला. ‘‘नहीं भैया, मुझे तो प्रसन्नता ही होगी.’’
सुशांत ने जब मां को सृजन के निमंत्रण के बारे में बताया, तो मां ने ‘शुभस्य शीघ्रम’ के अनुसार अगले ही दिन सृजन के घर जाने का मन बना लिया.
अगले दिन सुशांत मां को साथ ले कर सृजन के घर पहुंचा. रास्ते में सुशांत ने मां का मन टटोला, ‘‘मां, आप आईएएस, आईपीएस तक को ठुकरा चुकी हैं, क्योंकि मैं आप की जिद जानता हूं. आप रूपदिवानी हैं. हमें आप से समझौता कर लेना चाहिए,’’ कह कर सुशांत ने मुंह पर ताला लगा लिया.
सृजन ने उन्हें हाथोंहाथ लिया. घर के अन्य सदस्य भी बहुत सौहार्द से मिले.
रश्मि का विवाह सृजन के साथ धूमधाम से होचित्रलेखा अग्रवाल गया. सब अम्मां की प्रसन्नता में प्रसन्न थे. स्वयं रश्मि की भी प्रसन्नता का कोई ओरछोर नहीं था. शादी का एक बरस, खुशियों का एकएक पल बन कर बीत गया. रश्मि मां बनने वाली थी.
धीरेधीरे सृजन कंपनी के काम में इतना उलझता चला गया कि उसे रश्मि की ओर ध्यान देने का अवसर कम ही मिल पाता. रश्मि उस का सानिध्य अधिक से अधिक चाहती, पर सृजन को उस के लिए समय निकालना असंभव होता जा रहा था. रात को सृजन के खाने की प्रतीक्षा में रश्मि खाने की मेज पर सिर रख कर सो जाती. सृजन आता और चुपचाप कपड़े बदल कर सो जाता. रश्मि की नींद खुलती, तो सृजन को सोया पाती. मेज पर खाना ज्यों का त्यों रखा देख रश्मि अपराधबोध से ग्रस्त हो स्वयं को उलाहना देती,
‘‘कितना थक जाते हैं सृजन. और मैं उन की प्रतीक्षा जाग कर नहीं कर सकी. कितना चाहते हैं मुझे. सोया देख कर जगाया तक नहीं और खाना भी नहीं खाया.’’
सुबह उठ कर सृजन बस जल्दीजल्दी की रट लगा देता. रश्मि को उसे नाश्ता तक कराना भारी हो जाता. एक दिन इसी जल्दीजल्दी के रट में रश्मि गिर ही गई होती, यदि बाथरूम का दरवाजा उस के हाथ में न आ गया होता. तब सास रुक्मिणी ने उसे टोका, ‘‘ऐसे दिन हैं तेरे रेशू. जरा संभल कर चला कर. सिरजू को नाश्ता मैं करा दिया करूंगी.’’
रश्मि सास की बात पर चुप रही, पर मन ही मन कहा, ‘‘सृजन को सामने बैठा कर खिलाने में मुझे जो सुख मिलता है, फिर कैसे मिलेगा. इसी बहाने पल दो पल उन के साथ बैठ लेती हूं, वरना सारे दिन भागते सृजन पानी की तरह हाथ से फिसलफिसल जाते हैं.’’
रश्मि सृजन से पूछती, ‘‘पास्ता, कट्लेट्स कैसे बने हैं?’’ सृजन रश्मि की पाककला की प्रशंसा ढंग से नहीं कर पाता. बहुत टेस्टफुल कह कर न जाने किन विचारों की भूलभुलैया में खो जाता. रश्मि उसे सृजन की व्यस्तता मान लेती.रक्षाबंधन पर भाइयों को राखी बांधने जाने से पूर्व रश्मि ने सृजन का मन टटोलने का प्रयत्न किया, ‘‘अम्मां के पास रहने के लिए इस बार अम्मांजी से लंबी छुट्टी सेंक्शन करा दीजिए.’’
सृजन को जैसे संबल मिल गया, ‘‘अम्मां का सेक्रेटरी मैं जो बैठा हूं, तुम्हारी छुट्टियां स्वीकृत करने के लिए बड़े वाले सूटकेस में कपड़े ले जाना.’’
सृजन का उत्तर सुन कर रश्मि का मुंह उतर गया. सृजन से दूर रहना उस के लिए मुश्किल था, पर सृजन ने अनजान बनते हुए सरलता से ‘हां’ कह दिया था.
औफिस जाते समय सृजन रश्मि को मां के घर छोड़ता गया. बड़े सूटकेस के साथ रश्मि को देख कर छोटी भाभी ने तंज कसा, ‘‘जीजाजी बड़ी खुशी हुई कि इस बार आप भी दीदी के साथ यहां रहेंगे, वरना दीदी के कपड़े तो ब्रीफकेस में ही आ जाते थे. आप दीदी से शादी वाले गठजोड़ अभी तक बांधे हुए हैं,” सुन कर सृजन हंसता हुआ नीचे उतर गया.
कभी रश्मि औफिस में सृजन को फोन कर के आने को कहती, तो सृजन औफिस से लौटते में बस 10-15 मिनट को आ जाता. भूल कर भी रश्मि से घर चलने को नहीं कहता.
एक बार रश्मि ने ही पूछा, ‘‘अम्मांजी भी क्या सोचेंगी? मैं जैसे यहां आ कर जामवंत के पैर सी जम ही गई.’’
सृजन ने रश्मि की दलील को हथेली पर जमी धूल सा उड़ा दिया, ‘‘तुम्हें डाक्टर ने रेस्ट बताया है. वहां गृहस्थी की चकल्लस में सांस लेने तक की फुरसत नहीं मिलती तुम्हें. यहां सब तुम्हारी सेवा में लगे रहते हैं. तुम्हें यहां छोड़ कर मैं बेफिक्र हूं.’’
सृजन के इस अपनेपन से रश्मि भीतर तक भीग गई.
एक दिन रश्मि की सहेली अपाला की छोटी बहन उर्वशी अपनी सहेली सोनल के साथ रश्मि से मिलने आई. दोनों ने खाना वहीं खाया. रश्मि के पड़ोस में उर्वशी की ननद रिक्ति रहती थी. उर्वशी उस से मिलने चली गई. रश्मि सोनल को अम्मां के कमरे में आराम से बातचीत करने के लिए ले गई. वहां सृजन की फोटो देख कर सोनल ठिठकी. कुछ देर बाद उस ने रश्मि से पूछा, ‘‘ये महाशय कौन हैं दीदी? मैं इन्हें पिछले 3 सालों से जानती हूं. नई तितलियों पर मंडराने वाले भ्रमर हैं जनाब.’’
सुन कर रश्मि जड़ हो गई. उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. रश्मि उस से सृृजन का असली परिचय छुपा गई. संभल कर बोली, ‘‘अम्मां के लाड़ले भांजे हैं. अम्मां इन पर बेटों से भी ज्यादा ममता लुटाती हैं. पर तुम ये सब क्यों पूछ रही हो? कहीं धोखा तो नहीं हुआ तुम्हें? अम्मा के तो श्रवण कुमार हैं ये.’’
सोनल बेपरवाही से उत्तरायी होंगे घर के भ्रवण कुमार. पर बाहर तो पूरे रोमियो बने रहते हैं. मुझे कोई धोखा नहीं हुआ है. मेरी फ्रैंड अनुजा इन के प्रेमजाल में बुरी तरह से फंसी हुई है. हर समय इन के नाम की माला जपती रहती है. कुछ महीने पहले अचानक अनुजा के कालेज पहुंच गए. बताया कि वापस पोस्टिंग यहीं करा ली है. अनुजा ने इन महोदय के कंधे से लग कर रोरो कर अपना बुरा हाल कर लिया. तब से रोज सुबहशाम उस से मिलते हैं. मैं ने अन्य तितलियों को भी इन की चपेट में आते देख कर अनुजा को सावधान किया. पर अनुजा पर इन का रंग गहरा चढ़ चुका है और वह मेरे देखने को मेरा दृष्टिभ्रम मानती है. यह महाशय हैं ही ऐसे मोहक विष्णुरूप कि इन के मकडज़ाल में कोई भी फंस जाता है. नाम भी तो मोहन कुमार है.’’
सोनल का एकएक शब्द रश्मि को बिच्छू के डंक सा काटता गया. उस ने होंठ काट लिए, ‘‘सोनल तू ने झूठ नहीं कहा. अम्मां भी तो इन की रूप की मोहिनी में ही तो फंस गई थीं. वे इन के बारे में और कुछ जानना ही नहीं चाहती थीं. पर अम्मां को तो इन की हर रट लग गई थी. पिताजी और बड़े भैया ने कितना समझाया था उन को. फिर अम्मां की जिद और मेरी बढ़ती उम्र के कारण पिताजी और बड़े भैया को घुटने टेकने पड़ गए थे. अब पीएं अम्मां धोधो कर इन का रूप. सृजन ने अपना नाम तक बदल लिया.’’
उर्वशी के आते ही दोनों की बातचीत पर विराम लग गया. काफी देर हो चुकी थी, अत: उर्वशी और सोनल ने जाना चाहा. रश्मि ने और अधिक जानने की गरज से सोनल से कहा, “उर्वशी तो अब गृहस्थिन बन गई है. सोनल तू अभी इन झंझटों से दूर है. परसों सनडे में आना. मेरी बोरियत कुछ तो कम हो.’’
सोनल भी रश्मि से और अधिक बात करना चाहती थी. अत: वह इतवार की सुबह 10 बजे ही अनुजा को ले कर रश्मि के घर आ गई. रश्मि ने जानबूझ कर दोनों को अम्मां के कमरे में बैठाया. अनुजा की दृष्टि सृजन की फोटो से हटती ही नहीं थी. गहरी सांस ले कर सोनल बोली, ‘‘पता नहीं, क्यों अनुजा इन के पीछे पागल है? ये किसी एक के हो कर रह नहीं सकते.’’
रश्मि बोली, ‘‘अम्मां के भांजे का खयाल छोड़ दे अनुजा. यह अपनी पत्नी को बेहद चाहता है.’’
पत्नी के नाम पर दोनों चौंक कर खड़ी हो गईं, और ‘‘बाजार से जरूरी सामान खरीदना है,’’ का बहाना बना कर चली गईं.
शाम को रश्मि ने सास को फोन किया, ‘‘अम्मांजी, आप तो मुझे भूल ही गई हैं. कब बुला रही हैं?’’
सास रुक्मिणी जैसे आसमान से गिरीं, ‘‘मैं तो रोज ही सृजन से तुम्हें ले आने को कहती हूं, पर वह कहता है कि तुम जी भर के रहना चाहती हो. क्या जी भर गया तुम्हारा?’’
शाम को ससुर आ कर रश्मि को ले गए. सृजन रात को तकरीबन 10 बजे आया. रश्मि को देख कर वह चौंक गया.
दिनप्रतिदिन सृजन का रवैया रश्मि के प्रति उपेक्षापूर्ण होता जा रहा था. एक दिन रश्मि ने सास से कहा, ‘‘मां, ये घर में सब से छोटे हैं. आप में से कोई इन से क्यों नहीं पूछता कि इतनी रात गए तक कहां रहते हो?’’
रुक्मिणी गहरी सांस ले कर उतराई, ‘‘रश्मि से सृजन का सौभाग्य है कि उसे तुम जैसी सहनशील पत्नी मिली. वह एक खूंटे से बंधने वाला कभी न था. तुम्हारी हां सुन कर हमें तसल्ली हुई कि उस ने भी तुम्हारे लिए हां कर दी, पर वह अनुमान हमें भी न था कि वह अपने पुराने ढर्रे पर लौट आएगा. अब पानी सिर से ऊपर आता जा रहा है,’’ कह कर वह चिंतित सी होती चली गईं.
रश्मि का स्वास्थ्य दिनप्रतिदिन गिरता जा रहा था. मांपिताजी के पूछने पर रश्मि सृजन की उपेक्षा छुपा जाती. भैयाभाभी की चिंता रश्मि हंस कर टाल जाती. पर अंदर ही अंदर रश्मि को चिंता का घुन खाए जा रहा था.
एक दिन छोटी भाभी धरा घबराई सी रश्मि से मिलने आई. धरा हिम्मत बटोर कर बोली, ‘‘रश्मि कान से सुना झूठा हो सकता है, पर आंखों से देखा कैसा झुठला दूं? मेरा दिल सच में ही बैठा जा रहा है.’’
धरा रश्मि को भाभी कम सहेली अधिक लगती थी. धरा भी मन के प्रत्येक बोझ को रश्मि से कह कर हलका कर लेती थी. रश्मि भी शादी से पूर्व शकुंतला की ढीली अंगूठी सी शादी की फिसलती उम्र की वेदना धरा को बता देती थी. परंतु सृजन की निष्ठुरता को रश्मि फिर भी धरा के सामने मुंह पर नहीं ला पाई थी.
धरा की बात सुन कर रश्मि का हृदय अनजानी आशंका से धड़क उठा. उस ने छोटी भाभी की ओर प्रश्नवाची दृष्टि उठाई और कहा, ‘‘भाभी कहो, कुछ मत छुपाओ.’’
इधरउधर देख कर धरा बोली, ‘‘रश्मि कोई और कहता तो कभी न मानती. पर मेरी आंखों ने धोखा नहीं खाया है. कल मैं ने सृजन को एक लड़की के साथ पिक्चर हाल में देखा. वह लड़की सृजन से बिलकुल सट कर बैठी थी. बस मेरी पिक्चर उन दोनों की गतिविधियां बन गईं. वह दोनों बारबार सटसट जाते थे. आपस में बातबात पर खिलखिलाते थे. पिक्चर तो एक बहाना था. वहां तो उन की अपनी ही पिक्चर चल रही थी.’’
रश्मि ने धरा को रोकते हुए अधीरता से कहा, ‘‘भाभी आगे कुछ मत कहो. सुदर्शन रूपकारी सृजन के रूप पर अम्मां ऐसी मोहित हो गईं कि वे उस के कलंक को नहीं देख सकीं और ना ही आप में से कोई जान पाया कि वह केवल कंचन की काया वाला मन से कांच का टुकड़ा निकला.
“सृजन जैसा रूपवान लड़का हाथ से न निकल जाए के डर से अम्मां ने पापाभैया को उस के बारे में कहीं कोई पूछताछ भी नहीं करने दी. सृजन के रूप का जादू अम्मां के सिर पर चढ़ कर बोल रहा था.’’
थोड़ी देर बाद धरा चली गई. रश्मि अनमनी सी पलंग पर पड़ गई. रश्मि की आंख खुली, तो संध्या का सुरमई रंग रात्रि की कालिमा में बदल रहा था. आज सूर्य पश्चिम से कैसे निकल आया. रश्मि को आश्चर्य हुआ. सृजन आज 7 बजे ही घर आ गया था. बड़ी भाभी वृंदा l ने सृजन को औफिस से तुरंत घर आने के लिए फोन किया था. वृंदा सहित घर के सब सदस्य बरामदे में बैठे थे. सृजन भी सीधा वहीं पर आया. अम्मां वृंदा को दिलासा दे रही थीं.
सृजन को देखते ही भतीजी पल्लवी सुबकते हुए बोली, ‘‘चाचू हमें अभी की अभी नानू के पास कानपुर ले चलिए. अजस्र मामा का फोन आया था कि नानू सब को बुला रहे हैं. हैलेट अस्पताल की इमर्जेंसी में नानू एडमिट हैं. मैं ने अपना और मम्मा का सूटकेस लगा लिया है.’’
बड़े भैया कंपनी की मीटिंग में यूएसए गए हुए थे. रश्मि से सूटकेस लगाने को कह सृजन फ्रैश होने के लिए बाथरूम में घुस गया. ड्राइवर ने कार निकाल ली थी. स्टेशन पहुंचते ही सृजन ने देखा कि लेट होने की वजह से कानपुर की ट्रेन छूटने में 10 मिनट थे. तत्काल में सीट मिल गई. उन के ट्रेन में बैठते ही गाड़ी ने प्लेटफार्म छोड़ दिया. एकदो स्टेशन निकलने पर अपने औफिस को सूचित करने के लिए सृृजन ने अपना मोबाइल तलाशा, पर मोबाइल कहीं नहीं मिला. उस ने वृंदा से कहा, ‘‘भाभी जरा अपना मोबाइल दीजिए. मेरा मोबाइल या तो औफिस में छूट गया या घर पर हड़बड़ी में रह गया.’’
वृंदा के मोबाइल में सृजन के औफिस का नंबर था. उस ने औफिस में सूचना दे दी, ‘‘भाभी के साथ मैं कानपुर जा रहा हूं. चार दिन भी लग सकते हैं.’’
इधर रुक्मिणी ने देखा कि सृजन का मोबाइल उतारे हुए कपड़ों के नीचे पड़ा था. अगले दिन दोपहर में जब रश्मि आराम करने अपने कमरे में चली गई, तब रुक्मिणी ने सृजन का मोबाइल निकाला. उस में पांच लड़कियों के नंबर फीड थे. उन्होंने उन पांचों को मैसेज कर दिया, ‘‘आज शाम को 5 बजे मां ने घर पर मेरी बर्थडे की पार्टी रखी है. इसी पार्टी में मां मेरे जीवनसाथी के रूप में तुम्हारे नाम की घोषणा करेंगी. तुम मेरी पसंद हो. मैं ने मां को अपने और तुुम्हारे बारे में सबकुछ बता दिया है.’’
अभी 5 बजने में 2 घंटे शेष थे. रुक्मिणी ने रश्मि को बुलाया और ड्राइंगरूम में लगे सब फोटो दिखा कर वहां पर रश्मि और सृजन की शादी के फोटो लगवा दिए. उन की शादी की एलबम भी ड्राइंगरूम की बीच वाली मेज पर रख दी. रश्मि बारबार पूछ रही थी, ‘‘मां, आप ये सब क्यों कर रही हो?”
रुक्मिणी ने रश्मि से शादी वाली कैसेट भी लाने को कहा और बोलीं,’’ अपनी शादी की कैसेट टीवी पर लगा दे. भागदौड़ में मैं तुम्हारी शादी की सारी रस्में नहीं देख पाई थी. रतजगे के कारण मैं बरात में भी नहीं जा पाई थी. आज मैं और तुम घर में अकेले हैं. मेरी सहेलियों की बेटियां भी सृजन भैया की शादी की कैसेट देखने को व्यग्र हैं. वे लोग भी 5 बजे तक आ जाएंगी. समय अच्छा कट जाएगा.’’
5 बजते ही वे पांचों भी बुके ले कर आ गईं. उन की निगाहें सृजन को तलाश रही थीं. रुक्मिणी ने उन्हें पहले बरामदे में बैठाया. फिर रश्मि से कहा, ‘‘रेशू बिटिया, टीवी पर जरा वो वाली कैसेट लगवा देना.’’
रश्मि ने तुरंत अपनी शादी वाली कैसेट लगा दी और उन पांचों को ड्राइंगरूम में ले आई, ‘‘पार्टी जैसी तो कोई तैयारी लग नहीं रही है.’’ उन्होंने सोचा कि शायद दूसरे रूम में हो. फिर उन्होंने रश्मि से पूछा, ‘‘भाभीजी किस की शादी हमें दिखा रही हो?’’
रश्मि इठलाते हुए बोली, ‘‘अपनी और आप के भैया की शादी और किस की?’’
उन्होंने देखा कि रश्मि के साथ शादी की हर रस्म में सृजन उस के साथ में है. जैसेजैसे कैसेट आगे बढ़ रही थी, रश्मि और रुक्मिणी का उल्लास बढ़ता जा रहा था और उन पांचों के चेहरे फीके पड़ते जा रहे थे. अचानक रुक्मिणी बोली, ‘‘और कब तक न करती अपने सरजू की शादी? तीस का हो गया था, पर रश्मि को देखते ही उस पर लट्टू हो गया.’’ पांचों के मुंह से एकसाथ निकला, ‘‘तीस के…? बताते तो हैं अपने को… कह कर उन्होंने अपनी जीभ काट ली. बात संभालते हुए बोलीं, “लगते तो चौबीस के भी नहीं.’’
उन्होंने एलबम उठाई, तो हर फोटो में रश्मि और सृजन साथसाथ थे. ड्राइंगरूम की दीवारों पर निगाहें दौड़ाईं, तो ‘मुगलेआजम’ के शीशमहल के सेट की तरह सृजन के साथ रश्मि ही रश्मि नजर आ रही थी.
पांचों एकसाथ झटके से उठ खड़ी हुईं और बोलीं, ‘‘आंटीजी, हम चलते हैं. जरूरी काम है,” कह कर वे खटाखट सीढ़ियां उतरती चली गईं. रुक्मिणी पीछे से उन्हें आवाज देती रह गईं, “बर्थड़े का केक तो खाती जाओ. चाय तो पीती जाओ.’’
रश्मि खुशी से रुक्मिणी के गले लग गई. रुक्मिणी ने रश्मि से कहा, ‘‘अब ये मोबाइल सरजू को नजर नहीं आना चाहिए. आजकल के लड़कों को किसी के मोबाइल नंबर याद नहीं रहते.’’