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कहानी: दूध की धुली

पृथ्वी सड़क के किनारे चुपचाप चल रहा है.  संगीता हरे रंग का सूट पहने हुए है, उस का चेहरा पीला पड़ गया है. हाथों में जेवर की पोटली और किताबों का बैग है. संगीता चलतचलते सरसरी निगाह से पृथ्वी को देख रही है. जब बाजार समाप्त हो गया, तो दोनों पासपास आ गए और एक रिकशे में बैठ कर स्टेशन की ओर चल दिए.

संगीता बोली, ‘‘मुझे बहुत डर लग रहा है.’’


पृथ्वी बोला, ‘‘जब मैं हूं तब किस बात का डर. एक बात बताओ, रास्ते में तुम्हें कोई जानने वाला तो नहीं मिला?’’


संगीता ने कहा, ‘‘नहीं, एक लड़की मिली थी. परंतु तब तुम मेरे से दूर थे. मातापिता परेशान होंगे, मैं उन से कह कर आई थी कि कालेज जा रही हूं. न जाने दिल क्यों इतना घबरा रहा है?’’


पृथ्वी ने आश्वासन दिया, ‘‘डरने की क्या बात है, ट्रेन में बैठ कर सीधे मुंबई पहुंच जाएंगे. एक दिन का तो सफर है. वहां बिलकुल अपरिचित लोग होंगे. बस, मैं और तुम. वहां जा कर एक होटल में ठहर जाएंगे. वैसे भी हमारे घर वालों को, हम पर किसी तरह का शक थोड़े ही हुआ होगा.


संगीता घबराती हुई बोली, ‘‘मुझे घर पर न पा कर मम्मीपापा कितने परेशान होंगे, बहुत डर लग रहा है. पता नहीं क्यों?’’


पृथ्वी हंसते हुए बोला, ‘‘सब से पहले तो तुम्हारे कालेज में पूछताछ होगी. बहरहाल, यह गहने कैसे ले कर आ पाई?’’


‘‘मुझे जगह पता थी. रात को ही अलमारी खोल कर निकाल लिए थे. अलमारी का ताला बंद कर दिया है,’’ संगीता ने बताया.


रिकशा वाला सब सुन रहा था. उन्होंने


स्टेशन के लिए 50 रुपए में रिकशा तय किया था. जब स्टेशन आया तो रिकशा वाला हेकड़ी से बोला, ‘‘मैं तो 500 रुपए लूंगा.’’


‘‘500 रुपए,’’ दोनों एकसाथ बोले, ‘‘500 रुपए किस बात के?’’


‘‘चुपचाप 500 रुपए दे दो वरना अभी पुलिस को बुलाता हूं,’’ रिकशे वाले ने कहा.


पृथ्वी ने चुपचाप जेब से 500 रुपए निकाल कर दे दिए. संगीता घबरा रही थी. जल्दीजल्दी पृथ्वी ने मुंबई के फर्स्टक्लास के 2 टिकट ले लिए. टिकट ले कर तेजी से दोनों ट्रेन के फर्स्टक्लास के डब्बे में जा कर बैठ गए और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. संगीता ने रोते हुए कहा, ‘‘अब तो मुझे और भी ज्यादा डर लग रहा है.’’


पृथ्वी ने समझाया,  ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. फियर इंस्टिंक्ट एक चीज है. लिखने वाले ने तो यह भी लिखा है कि… मगर… खैर छोड़ो… हां, तुम्हारी जरा सी घबराहट ने रिकशा वाले को 500 रुपए का फायदा करा दिया. यदि तुम रिकशे में यह बात न बोलती तो ऐसा कुछ भी न होता. मुझे कुछ नहीं कहना. मगर दुख है तो सिर्फ इस बात का कि मैं मनोविज्ञान का विद्यार्थी और रिकशे वाला मुझे लूट कर चला गया.’’


बाहर दरवाजे पर खटखट हुई, दोनों ने  एकदूसरे को डरते हुए देखा. पृथ्वी बोला, ‘‘साले ने 500 रुपए ले कर भी पुलिस को खबर कर दी.’’


संगीता घबराहट के मारे कांप रही थी, वह बोली, ‘‘अब क्या होगा?’’


‘‘चुपचाप देखती रहो, मुझ पर विश्वास रखो. पीछे के दरवाजे से उतर कर किसी दूसरे डब्बे में बैठ जाते हैं,’’ कह कर पृथ्वी ने पिछला दरवाजा खोला और दोनों उतर कर चल दिए. परंतु दूसरे किसी डब्बे में नहीं बैठ पाए, क्योंकि किसी भी डब्बे का दरवाजा खुला हुआ नहीं था. दोनों चुपचाप प्लेटफौर्म पर चलने लगे.


‘‘अपना किताबों का यह बैग तो छोड़ दो,’’ पृथ्वी ने संगीता से कहा.


एक सिपाही घूमता हुआ उधर ही आ रहा था. संगीता ने जल्दी से अपना बैग एक मालगाड़ी के डब्बे में रख दिया. सिपाही इतने में पास आ कर पृथ्वी से बोला, ‘‘आप लोग कहां जाएंगे?’’


पृथ्वी बोला, ‘‘हम तो ऐसे ही घूमने चले आए हैं. अब जा रहे हैं.’’


‘‘मगर आप की गाड़ी तो छूटने वाली है. आप ने फर्स्टक्लास का टिकट बुक कराया था,’’ सिपाही अपनी बात पर जोर देते हुए बोला.


‘‘ऐ मिस्टर, मैं ने कहीं का भी टिकट बुक कराया हो आप को इस से क्या लेनादेना. बोलो, क्या कर लोगे तुम? कौन होते हो यह सब पूछने वाले?’’


‘‘अरे भाई, गुस्सा क्यों होते हो? मैं तो सेवक हूं आप का. जब 50 रुपए की जगह 500 रुपए रिकशे वाले को दे सकते हो, तो हुजूर, थोड़ा सा ईनाम हमें भी मिल जाए.’’


पृथ्वी पूरी बात समझ गया. उसे 500 रुपए का नोट देते हुए बोला, ‘‘हांहां, तुम भी लो.’’ सिपाही रुपए ले कर चला गया. संगीता बोली,  ‘‘हमारे मन में चोर है न, इसलिए हम हर बात से डरते हैं. चलो, फिर वापस चलते हैं.’’


‘‘बेकार में डरडर कर इधरउधर भटकते रहें, क्या फायदा,’’ पृथ्वी ने खीझते हुए कहा, ‘‘बेकार ही कंपार्टमैंट से आए. चलो, वापस वहीं चलते हैं.’’


दोनों तेजी से दौड़े परंतु कंपार्टमैंट में घुसने से पहले ही एक और पुलिस वाला आया और बोला,  ‘‘अरे, झगड़ा बढ़ाने से क्या फायदा, हम सब को 1000-1000 रुपए दो और मौज करो,’’ और हाहा कर हंसने लगा.


संगीता तो डर के मारे बुरी तरह से कांप रही थी. पृथ्वी बोला, ‘‘मैं कोई ईनाम वगैरा नहीं दूंगा. मैं ने कोई दानखाता खोल रखा है क्या? मैं आप लोगों की फितरत समझ रहा हूं.’’


‘‘देखिए साहब, आप पढ़ेलिखे मालूम पड़ते हैं. आओ, पहले डब्बे में बैठ जाएं. यहां भीड़ इकट्ठी हो जाएगी और आप की बदनामी होगी. जब दोनों कंपार्टमैंट में चढ़ गए तो पुलिस वाला भी पीछेपीछे पहुंच गया और बोला, ‘‘थोड़ी देर के लिए आप थाने चलिए.’’


‘‘मैं किसी थानेवाने नहीं जाऊंगा. मेरी गाड़ी छूट जाएगी,’’ गुस्से से पृथ्वी ने कहा.


‘‘देखिए भाईसाहब, अब आप इस गाड़ी से तो नहीं जा सकते. मैं ने तो पहले ही आप से कहा था कि आप हमारे साहब की सेवा में 1000 रुपए दे दीजिए.’’ अब की बार साहब भी उसी कंपार्टमैंट में आ गए, बोले,  ‘‘क्यों बे शकीरा के बच्चे, जाओ, हथकड़ी ले कर आओ. यह लड़का इस लड़की को भगा कर लिए जा रहा है. इस को गिरफ्तार कर के हवालात में बंद कर दो.’’


पृथ्वी ने 2-2 हजार रुपए के 5 नोट निकाल कर उन के हाथ में थमा दिए. बड़े साहब उन नोटों को जेब में रखते हुए बोले, ‘‘अच्छा सर, चलिए, बिना हथकड़ी लगाए ही आप को ले कर चलते हैं.’’


अब पृथ्वी बोला, ‘‘अब मैं थाने क्यों जाऊं. मैं ने 10,000 रुपए किस बात के दिए हैं?’’


‘‘देखो लड़के, यह 10,000 रुपए मैं ने सिर्फ इस बात के लिए हैं कि तुम्हें थाने हथकड़ी डाल कर न ले कर जाऊं.’’


संगीता बहुत देर से साहस जुटा रही थी, बोली, ‘‘देखिए, मैं अपनी मरजी से जा रही हूं. आप बेकार में हमें परेशान मत कीजिए.’’


‘‘हांहां मुन्नी, मैं भी तो यही कह रहा हूं, थाने चल कर थोड़ी देर बैठिएगा. वहीं आप के मम्मीपापा को बुलाया जाएगा. तब जैसा होगा, कर दिया जाएगा और उस सूरत में आप इसी ट्रेन से शाम को जा सकते.’’ तभी पहला सिपाही भी आ गया और बैग देते हुए बोला, ‘‘संगीताजी, आप का बैग. आप ने मालगाड़ी में छोड़ दिया था.’’


संगीता ने बैग हाथ में ले लिया. उस के बाद दोनों चुपचाप नीचे प्लेटफौर्म पर उतर गए. पृथ्वी ने पुलिस अफसर से इजाजत मांगी कि वह संगीता से एकांत में कुछ बात कर ले. उस पर पुलिस वाले ने कहा, ‘‘हांहां, जरूर कर लीजिए.’’ और थोड़ी दूर जा कर खड़ा हो गया. आसपास काफी भीड़ इकट्ठी हो गई थी. पृथ्वी काफी परेशान था, बोला, ‘‘अब


क्या होगा?’’


‘‘मुझे मेरे घर या कालेज भेज दीजिए,’’ संगीता ने रोते हुए कहा.


‘‘घर मैं भी जाना चाहता हूं, लेकिन ये कमीने आसानी से पीछा नहीं छोड़ रहे.’’


‘‘कोई ऐसी तरकीब निकालें, जिस से पिताजी को पता न चले,’’ संगीता ने पृथ्वी से घबराते हुए कहा.


‘‘कोशिश तो ऐसी ही करूंगा. मेरा विचार है कि जितना भी रुपया है, इन्हें दे दिया जाए और यहां से वापस चलते हैं. यहां अगर हमें किसी ने पहचान लिया तो मुसीबत हो जाएगी.’’ इस बीच, सिपाही बोला, ‘‘चलिए साहब, थाने.’’


‘‘इंस्पैक्टर साहब, हम से गलती हुई है. अब हम वापस जा रहे हैं,’’ संगीता ने इंस्पैक्टर साहब को अपनी पोटली दे दी.


पृथ्वी का साथ दम तोड़ चुका था. संगीता निर्जीव सी सब कार्य कर रही थी. इसी झगड़े में 11 बज गए. संगीता एक रिकशे पर बैठ कर कालेज चली गई. पृथ्वी दूसरे रिकशे पर बैठ कर अपने घर चला गया. शकीरा ने इंस्पैक्टर से पूछा, ‘‘अगर इन लोगों ने अपने मांबाप को बता दिया तो क्या होगा?’’


‘‘तू गधा है. क्या वे अपने मांबाप को यह बताएंगे कि हम भाग रहे थे. फिर मैं तो उन को जानता भी नहीं. हमें कोई कुछ क्यों बताएगा या देगा?’’


शाम को 4 बजे जब संगीता घर पहुंची तो उस का चेहरा उतरा हुआ था. फिर भी वह हंस रही थी. कहने लगी, ‘‘मम्मी, आज तो कालेज में यह हुआ वह हुआ.’’ उस के बाद कमरे में अकेली जा कर लेट गई और सोचने लगी, ‘अब क्या होगा, कैसे होगा?’


संगीता को कड़वा लग रहा था. उस ने अधिक नहीं खाया. बस, एक ही सवाल उस के जेहन में घूम रहा था, ‘कैसे होगा?’


अलमारी की तरफ अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया था.  कैसे होगा? शाम को उस की सहेली आ गई थी. उस ने बताया, ‘‘आज उस के कालेज में फिजिक्स के पीरियड में सब लड़कियां खिड़कियों पर चढ़ गईं और जब फिजिक्स की टीचर आईं, तो उन के कहने पर नीचे उतरीं.’’ संगीता ने कुछ नहीं सुना. बस, उस का दिल घबरा रहा था, ‘अब क्या होगा, कैसे होगा?’


रात को उसे नींद भी नहीं आई. पुलिस, भीड़, रेलवे स्टेशन, बैग, गहने, पोटली बराबर दिमाग में घूम रहे थे और एक ही सवाल बारबार दिमाग में हथियार के जैसे प्रहार कर रहा था, अब कैसे होगा?’


2 बजे रात चुपके से संगीता उठी. उस ने छिपाई हुई चाबी को हाथ में ले कर अलमारी का दरवाजा खोल दिया. बचे हुए गहनों को तितरबितर कर दिया. एक हार पोटली में से जमीन पर डाल दिया. कपड़े आंगन में फैला दिए. दरवाजे की चटकनी खोल दी और फिर जा कर अपने बैड पर लेट गई. दिमाग में एक ही बात हथौड़े जैसे प्रहार कर रही थी कि अब क्या होगा?


सुबह होते ही अड़ोसपड़ोस में शोर मचा हुआ था कि रामप्रकाश के घर में चोरी हो गई. चोर अलमारी खोल कर कुछ लाख रुपए और गहने ले गए हैं. शायद किसी आवाज से डर गए थे. इसलिए सारे गहने ले कर नहीं गए. रामप्रकाश ने लोगों को बताया कि बड़े कमाल की बात है. उन चोरों ने बाहर का दरवाजा कैसे खोला? समझ में नहीं आ रहा है. मैं तो रात को सबकुछ देख कर सोता हूं और सब से बड़ी बात, वे सारे गहने ले कर नहीं गए. यों समझो कि भारी नुकसान होने से बच गए.


चोरी की सूचना पुलिस को दी गई. वहां से एक इंस्पैक्टर और 2 सिपाही जांचपड़ताल के लिए आए. उन्होंने दरवाजे को गौर से देखा. वह अलमारी भी देखी. अलमारी की चाबी भी देखी. लेकिन संगीता को देखते ही पहचान गए. संगीता भी उस पुलिस औफिसर और सिपाही को पहचान गई. तब पुलिस वाले ने संगीता की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘यह काम तो किसी घर वाले का ही लगता है.’’


इस पर संगीता की आंखें, पुलिस वाले की आंखों से जा मिलीं. उन में याचना थी. पुलिस वाले ने घर के चारों और देखा और बोला, ‘‘कोई किराएदार ऊपर रहता है क्या?’’


‘‘नहीं साहब,’’ राम प्रकाश ने कहा.


‘‘यह घर के आदमी का काम नहीं हो सकता. मेरा एक लड़का 8 साल का है. एक लड़की है, जो दूध की जैसी धुली हुई है. मैं हूं. मेरी पत्नी है. यह सच्ची बात है कि दरवाजा बाहर से ही खुला है. मगर कमाल है, साहब,’’ राम प्रकाश बोला.


पुलिस वाले ने कहा, ‘‘चोरी का पता लगाने की पूरी कोशिश की जाएगी. मगर मेरी सलाह मानिए, आप अपना जेवरपैसा. अब अलमारी में न रख कर, बैंक में रखें. हो सकता है चोर दोबारा चोट करे.’’


पुलिस वाले ने वहीं बैठ कर रिपोर्ट तैयार की. वहां उपस्थित लोगों के हस्ताक्षर लिए. पुलिस वाले के साथ आए सिपाही ने जाते हुए सरसरी निगाह से संगीता की तरफ देखा और बोला, ‘दूध की धुली’ और लंबी सी डकार लेता हुआ दरवाजे से बाहर निकल गया.


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