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कहानी: ग्रहण

कल से मेरे पैर धरती पर नहीं पढ़ रहे थे. रात को मारे उत्तेजना के नींद नहीं आई थी. इस पल की कितनी प्रतीक्षा थी मुझे. रात जब खाने के बाद रितिक मेरे कमरे में आया तो मुझे लगा शायद उसे कुछ चाहिए. मेरे पूछने पर उस ने अपनी दोनों बांहें मेरे गले में डाल दीं, “नहीं मां, मुझे कुछ बताना था आप को.”

शर्म से गुलाबी हो आए उस के गोरे मुखड़े को देख कर मेरे चेहरे पर प्यार भरी मुसकान तैर गई.


“तो तुझे मेरी बहू मिल गई?”

“अगर आप उसे स्वीकार करेंगी तो…”


“तुम जानते हो, तुम्हारी खुशी से बढ़ कर मेरे लिए और कुछ भी नहीं. कौन है वह, जिस ने मेरे बेटे के दिल की घंटी बजाई है?” बेटे के गाल पर प्यार की चपत लगाते हुए मैं ने पूछा.


“मां, प्रिया नाम है उस का. मेरे साथ एमबीए किया है उस ने. हम ढाई साल से एकदूसरे को जानते हैं और पसंद करते हैं. उस को भी अपने शहर में अच्छी नौकरी मिल गई है.”


“कब मिलवाओगे?” मेरा सीधा प्रश्न था.


“मां, कल सुबह नाश्ते पर बुला लेता हूं.”


“बुला नहीं लेता हूं. जा कर ले आना उसे. अब जा सो जाओ.”


पूरी रात मैं करवटें बदलती रही. सुबह 4 बजे ही मैं ने बिस्तर छोड़ दिया और रसोई में घुस गई. मन करता यह भी बना लूं, वह भी बना लूं. सुबह 7 बजे तक मेरी रसोई तरहतरह के पकवानों से महकने लगी.


“मां, क्याक्या बना लिया आप ने? पूरा घर महक रहा है. आप क्या रात भर बनाती रही हैं?” आश्चर्य और प्यार दोनों रितिक के स्वर में था.


“मेरी बहू पहली बार आ रही है. यह दिन एक बार ही आता है. तुम चाय पीयो मैं नहा कर आती हूं.”


रितिक के जाने के बाद मैं ने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी. मोती की माला और कानों में टौप्स पहन कर शीशे के सामने खड़ी हो गई और अपने कटे हुए बालों में ब्रश करने लगी.


आज कितने सालों बाद श्रृंगार करने का मन हुआ था मेरा.


“मां…मां…” ऋतिक की आवाज सुन कर मैं चौंक गई.


“मां, प्रिया आ गई.” ऋतिक मेरे सामने खड़ा था.


“अरे, दरवाजा किस ने खोला?”

“खुला था मां, शायद आप बंद करना भूल गई थीं.”


“हां यही हुआ होगा…”


बैठक में घुसते ही प्रिया से मेरी नजरें मिलीं तो हम दोनों ही जड़ हो गए. मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. लगा जैसे पूरा कमरा घूमने लगा है. खुद को संभालना मुश्किल हो गया. रितिक ने सहारा दे कर मुझे बैठाया.


“मां… क्या हुआ आप को?”


मैं चेतना शून्य होती जा रही थी. बंद होती आंखों से देखा, रितिक और प्रिया दोनों मेरे ऊपर झुके हुए थे और मुझे पुकार रहे थे. मुझे उन की आवाजें दूर से आती प्रतीत हो रही थीं.


जब होश आया तो देखा मैं अपने पलंग पर लेटी हुई थी. रितिक और प्रिया के साथ साथ डा. रजत भी मेरे कमरे में बैठे हुए थे.


“मां, क्या हुआ आप को?” परेशान रितिक की आंखें डबडबाई हुई थीं. मेरा हाथ उस के हाथों में था.


“बेटा, मैं ठीक हूं.”


“डाक्टर रागिनी, आप दोस्त को तो डाक्टर मानती ही नहीं हैं. मैं ने कितनी दफा आप से कहा कि थोड़ा अपनी सेहत का भी ध्यान रखिए, मगर…” डाक्टर रजत फिर से उठ कर डाक्टर रागनी का ब्लड प्रैशर नापने लगे.


“मम्मी की तबीयत खराब चल रही थी? पर अंकल, मम्मी ने तो कुछ भी नहीं बताया कभी. क्या हुआ है उन्हें?” रितिक परेशान हो उठा.


“कुछ नहीं बेटा, तुम्हारे रजत अंकल ऐसे ही बोलते रहते हैं,” मैं ने बेटे का हाथ स्नेह से दबाते हुए कहा.


“कोई यों ही बेहोश नहीं हो जाता मम्मी. अंकल आप बताइए न ?”


रितिक बहुत परेशान था और इस परेशानी में प्रिया को भी भूल गया था, जो पास ही चुपचाप बैठी हुई थी और मुश्किल से अपने आंसुओं को संभाले थी.


“परेशान होने वाली भी बात नहीं है रितिक. तुम्हारी मम्मी को थोड़ा आराम करने की जरूरत है. बहुत थका देती हैं खुद को. वैसे पूरा चैकअप करा लेना हमेशा अच्छा होता है. मैं ने कुछ टेस्ट लिख दिए हैं. करा लेना. इतना ब्लड प्रैशर बढ़ना ठीक बात नहीं है,” रितिक की पीठ थपथपा कर रजत बोले.


“जी अंकल.”


“अच्छा अब सब कंट्रोल में है. मां को आराम करने दो. परेशान मत हो. मैं चलता हूं. वैसे अब जरूरत नहीं पड़ेगी पर मैं एक फोन काल की ही दूरी पर हूं,” उठते हुए डाक्टर रजत बोले.


“अरे, अंकल चाय….”


“मम्मी को ठीक होने दो, फिर साथ में पीते हैं.”


“प्रिया, मम्मी का ध्यान रखना. मैं अंकल को छोड़ कर आता हूं,” कहते हुए रितिक कमरे के बाहर चला गया.


“सौरी आंटी, मुझे बिलकुल नहीं पता था कि रितिक आप का बेटा है.”


उस की आंखें अब बरसने लगी थीं.


“प्रिया, मेरे पास आओ.”


मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया, “आंटी नहीं प्रिया, मां बोलो.”


वह फफकफफक कर रोने लगी और अपना सिर मेरे सीने पर रख दिया. स्नेह से मैं उस के सिर पर हाथ फेरने लगी. अतीत मुझ पर हावी होता जा रहा था…


लगभग 12 वर्ष पूर्व का वह दिन मेरी आंखों के सामने जीवंत हो उठा. मैं क्लीनिक में मरीज देख रही थी. एक दंपत्ति अपनी 13-14 साल की बेटी के साथ क्लीनिक पर आए. बच्ची दर्द में थी और एक ही बात बोले जा रही थी, “मुझे इंजैक्शन लगा दीजिए. मुझे मार दीजिए. मुझे नहीं जीना है.”


रोते हुए उस के पिता ने बताया कि वे लोग एक रिश्तेदार के घर गृहप्रवेश में गए थे. बेटी का 10वीं का बोर्ड था तो वह अपने शिक्षक की प्रतीक्षा में घर पर ही रुक गई थी. हम जब शाम को लौटे तो बेटी इस हाल में मिली. वह शिक्षक दरिंदा निकला.


वे हाथ जोड़ कर बोले, “हम पुलिस के पास नहीं जाना चाहते डाक्टर. उस का तो कुछ नहीं होगा पर हमारी लड़की बदनाम हो जाएगी. हम इस की परीक्षा के बाद यह शहर ही छोड़ देंगे. हमारी मदद कर कीजिए.”


मैं उन की पीड़ा को समझ सकती थी. मेरे जेठ की बेटी इस हादसे से गुजरी थी. जेठजी स्वयं पुलिस में थे. पर क्या लाभ हुआ पुलिस, कोर्टकचहरी, इन सब का तनाव और समाज की हिकारत भरी नजर, वह बेचारी नहीं झेल पाई और साल पूरा होतेहोते पंखे से लटक कर मर गई.


मैं बच्ची के इलाज के साथसाथ उस की काउंसलिंग भी करने लगी. वह जब घबराती अपनी मम्मी के साथ मेरे पास आ जाती. फिर धीरेधीरे अकेले आने लगी. दूसरे शहर जा कर भी वह फोन से संपर्क में रही.


एक दिन मैं ने उस से कहा,”देखो बेटा तुम 12वीं में आ गई हो और अब पूरी तरह से ठीक हो गई हो. तुम्हारे लिए जरूरी है कि तुम इस घटना को भूल जाओ. इस के लिए तुम्हें मुझे भी भूलना होगा.”


“आप को? आप को कैसे भूल सकती हूं मैं? मेरी मां ने मुझे जन्म दिया है, पर यह नई जिंदगी आप की दी हुई है,” वह कांपती हुई आवाज में बोली.


“मां कह रही हो तो मां की बात मानो. सबकुछ भूल कर एक नई जिंदगी जियो. जब शादी करोगी तो मुझे जरूर बताना, मैं आऊंगी.”


“शादी? मैं… मैं… मुझ से कौन शादी करेगा?”


“क्यों तुम ने कौन सा पाप किया है?यह पाप पुण्य का पाठ हम औरतों को जबरन सिखाया गया है ताकि हम कभी भी आजादी सेे न जी सकें. तुुुम शादी करोगी और एक आम जिंदगी  जीओगी. बस इस दुर्घटना का जिक्र किसी से कभी नहीं करना. मैं ने अपनी मैडिकल फाइल में भी तुम्हारा असली नाम नहीं लिखा है. उस में तुम छाया हो. तुम अपने असली नाम के साथ आराम से जियो.”


मगर 8 साल के लंबे अंतराल के बाद आज अचानक वही छाया, प्रिया के रूप में मेरे सामने थी.


बेटे की आवाज से मैं वापस वर्तमान में लौट आई.


“मां, इसे क्या हुआ?”


“डर गई है,” प्रिया के सिर पर हाथ फेरते हुए मैं ने जवाब दिया.


“इसी की वजह से तो आप इतना थकीं,” प्रिया की ओर देखते हुए रितिक बोला.


“प्रिया सिर उठा कर अपलक रितिक को देख रही थी.


“अब तुम्हारी सजा य. है प्रिया कि अब तुम मां के लिए चाय बना कर लाओ और जो बचे उस में से थोड़ी सी मुझे भी दे देना.”


कमरे का वातावरण थोड़ा हलका हो गया. तकिए की टेक के सहारे दोनों ने मुझे बैठा दिया.


चाय पीते हुए मैं ने प्रिया की ओर देखा और बोली,”प्रिया, चाय तो तुम ने अच्छी बनाई है. चलो रसोई में तुम पास हो गई. पर अभी तुम्हारी परीक्षा बाकी है. मेरी बहू बनने के लिए तुम्हें एक परीक्षा और पास करनी होगी.”


प्रिया और रितिक दोनों एकदूसरे की ओर देखने लगे.


हिचकता हुआ रितिक बोला,”मां, तुम्हें कोई ऐतराज है क्या?”


“नहीं… बिलकुल नहीं. मगर तुम अपने कमरे में जाओ, मुझे अकेले में  प्रिया से कुछ बात करनी है. उसके बाद तुम्हें बुला लेंगे.”


“जी…” रितिक प्रिया की ओर देखता हुआ बाहर चला गया.


प्रिया अब सीधे मेरी ओर देख रही थी.


“प्रिया, मुझे तुम से एक वादा चाहिए.”


“मां, मुझ जैसी ग्रहण लगी लड़की को जानतेसमझते हुए आप क्यों स्वीकार कर रही हैं? आप मना भी तो कर सकती हैं…”


“क्यों मना करूंगी, तुम्हारी जैसी कोमल हृदय वाली बेटी, मेरी बहू बने यही तो हमेशा चाहा है मैंने. तुम्हारे साथ से ही मेरे बेटे की खुशियां हैं. यह खुशी मैं उसे देना चाहती हूं. बस एक वादा चाहिए तुम से…”


“कौन सा वादा माँ?”


“कभी, किसी भी कमजोर पल में उस हादसे का जिक्र रितिक से नहीं करोगी.”


“इतनी बड़ी बात छिपाना क्या उचित होगा?”


“प्रिया, जिंदगी में बहुत से हादसे होते हैं. क्या हम हमेशा उन का बोझा पीठ पर ढोते रहते हैं? वे घट कर अतीत हो जाते हैं. यही होना भी चाहिए.”


वह मौन मुझे देख रही थी.


“प्रिया, मेरा बेटा बहुत सुलझा हुआ है फिर भी मैं नहीं चाहती कि किसी अनचाहे अतीत का काला साया मेरे बेटेबहू के जीवन को परेशान करे.”


“आप की भावना समझ सकती हूं. मां, मैं आप से वादा करती हूं कि इस बात का जिक्र मेरी जबान पर कभी नहीं आएगा.”


“प्रिया, अपनी मम्मीपापा से कहना कि जब वे आएंगे तो हम पहली बार मिल रहे होंगे. यह याद रखें.”


“मां, आप बहुत महान हैं,” भावुकता में प्रिया मेरे गले लग गई.


प्यार से उस की पीठ थपथपा कर मैं ने कहा,”अब रितिक को बुला लो.”


प्रिया के साथ रितिक कमरे में आया तो उस के चेहरे पर कई प्रश्न साफ दिखाई दे रहे थे.


“तेरी प्रिया, मेरी परीक्षा में पास हो गई. यह चांद सी सुंदर लड़की मुझे बहू के रूप में स्वीकार है.”


“चांद में तो दाग होता है मां. ग्रहण लगता है,” रितिक ने प्रिया को छेड़ते हुए कहा.


“चांद उस ग्रहण के साथ ही तो पूर्ण होता है बेटा. वैसे ही हम सब भी अनेक अच्छाई और बुराई के पुतले हैं और हमें एकदूसरे को संपूर्णता में स्वीकारना होता है. प्रिया हम दोनों को हमारी कमियों के साथ स्वीकारेगी और हम दोनों को भी प्रिया को उस की सारी अच्छाइयों और बुराईयों के साथ उसे स्वीकारना होगा.”


” मैं तो मां….”


“मैं जानती हूं. तुम उसे छेड़ रहे हो. अच्छा अब तुम दोनों रसोई से कुछ ला कर खिलाओ तो मुझे, भूख लग रही है.”


उठते हुए प्रिया बोली,”मैं लाती हूं मां.”


“और हां प्रिया, अपने मम्मीपापा से बोलना मुझ से जल्दी आ कर मिलें और उन्हें यह भी बता देना कि मुझे शादी की जल्दी है.”


रितिक और प्रिया के चेहरे खिल उठे और दोनों मुसकराते हुए कमरे से बाहर चले गए .

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