कहानी: हरिनूर
‘‘अरे, इस बैड नंबर8 का मरीज कहां गया? मैं तो इस लड़के से तंग आ गई हूं. जब भी मैं ड्यूटी पर आती हूं, कभी बैड पर नहीं मिलता,’’ नर्स जूली काफी गुस्से में बोलीं.
‘आंटी, मैं अभी ढूंढ़ कर लाती हूं,’’ एक प्यारी सी आवाज ने नर्स जूली का सारा गुस्सा ठंडा कर दिया. जब उन्होंने पीछे की तरफ मुड़ कर देखा, तो बैड नंबर 10 के मरीज की बेटी शबीना खड़ी थी.
शबीना ने बाहर आ कर देखा, फिर पूरा अस्पताल छान मारा, पर उसे वह कहीं दिखाई नहीं दिया और थकहार कर वापस जा ही रही थी कि उस की नजर बगल की कैंटीन पर गई, तो देखा कि वे जनाब तो वहां आराम फरमा रहे थे और गरमागरम समोसे खा रहे थे.
शबीना उस के पास गई और धीरे से बोली, ‘‘आप को नर्स बुला रही हैं.’’
उस ने पीछे घूम कर देखा. सफेद कुरतासलवार, नीला दुपट्टा लिए सांवली, मगर तीखे नैननक्श वाली लड़की खड़ी हुई थी. उस ने अपने बालों की लंबी चोटी बनाई हुई थी. माथे पर बिंदी, आंखों में भरापूरा काजल, हाथों में रंगबिरंगी चूडि़यों की खनखन.
वह बड़े ही शायराना अंदाज में बोला, ‘‘अरे छोडि़ए ये नर्सवर्स की बातें. आप को देख कर तो मेरे जेहन में बस यही खयाल आया है… माशाअल्लाह…’’
‘‘आप भी न…’’ कहते हुए शबीना वहां से शरमा कर भाग आई और सीधे बाथरूम में जा कर आईने के सामने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लिया. फिर हाथों को मलते हुए अपने चेहरे को साफ किया और बालों को करीने से संवारते हुए बाहर आ गई.
तब तक वह मरीज, जिस का नाम नीरज था, भी वापस आ चुका था. शबीना घबरा कर दूसरी तरफ मुंह कर के बैठ गई.
नीरज ने देखा कि शबीना किसी भी तरह की बात करने को तैयार नहीं है, तो उस ने सोचा कि क्यों न पहले उस की मम्मी से बात की जाए.
शबीना की मां को टायफायड हुआ था, जिस से उन्हें अस्पताल में भरती होना पड़ा था. नीरज को बुखार था, पर काफी दिनों से न उतरने के चलते उस की मां ने उसे दाखिल करा दिया था.
नीरज की शबीना की अम्मी से काफी पटती थी. परसों ही दोनों को अस्पताल से छुट्टी मिलनी थी, पर तब तक नीरज और शबीना अच्छे दोस्त बन चुके थे.
शबीना 10वीं जमात की छात्रा थी और नीरज 11वीं जमात में पढ़ता था. दोनों के स्कूल भी आमनेसामने थे. वैसे भी फतेहपुर एक छोटी सी जगह है, जहां कोई भी आसानी से एकदूसरे के बारे में पता लगा सकता है. सो, नीरज ने शबीना का पता लगा ही लिया.
एक दिन स्कूल से बाहर आते समय दोनों की मुलाकात हो गई. दोनों ही एकदूसरे को देख कर खुश हुए. उन की दोस्ती और गहरी होती गई.
इसी बीच शबीना कभीकभार नीरज के घर भी जाने लगी, पर वह नीरज को अपने घर कभी नहीं ले गई.
ऐसे ही 2 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. अब यह दोस्ती इश्क में बदल कर रफ्तारफ्ता परवान चढ़ने लगी.
एक दिन जब शबीना कालेज से घर में दाखिल हुई, तो उसे देखते ही अम्मी चिल्लाते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हें बताया था न कि तुम्हें देखने के लिए कुछ लोग आ रहे हैं, पर तुम ने वही किया जो 2 साल से कर रही हो. तुम्हारी जोया आपा ठीक ही कह रही थीं कि तुम एक लड़के के साथ मुंह उठाए घूमती रहती हो.’’
‘‘अम्मी, आप मेरी बात तो सुनो… वह लड़का बहुत अच्छा है. मुझ से बहुत प्यार करता है. एक बार मिल कर तो देखो. वैसे, तुम उस से मिल भी चुकी हो,’’ शबीना एक ही सांस में सबकुछ कह गई.
‘‘वैसे अम्मी, अब्बू कौन होते हैं हमारी निजी जिंदगी का फैसला करने वाले? कभी दुखतकलीफ में तुम्हारी खैर पूछने आए, जो आज इस पर उंगली उठाएंगे? हम मरें या जीएं, उन्हें कोई फर्क पड़ता है क्या?
‘‘शायद आप भूल गई हो, पर मेरे जेहन में वह सबकुछ आज भी है, जब अब्बू नई अम्मी ले कर आए थे. तब नई अम्मी ने अब्बू के सामने ही कैसे हमें जलील किया था.
‘‘इतना ही नहीं, हम सभी को घर से बेदखल भी कर दिया था.’’
तभी जोया आपा घर में आईं.
‘‘अरे जोया, तुम ही इस को समझाओ. मैं तुम दोनों के लिए जल्दी से चाय बना कर लाती हूं,’’ ऐसा कहते हुए अम्मी रसोईघर में चली गईं.
रसोईघर क्या था… एक बड़े से कमरे को बीच से टाट का परदा लगा कर एक तरफ बना लिया गया था, तो दूसरी तरफ एक पुराना सा डबल बैड, टूटी अलमारी और अम्मी की शादी का एक पुराना बक्सा रखा था, जिस में अम्मी के कपड़े कम, यादें ज्यादा बंद थीं. मगर सबकुछ रखा बड़े करीने से था.
तभी अम्मी चाय और बिसकुट ले कर आईं और सब चाय का मजालेने लगे.
शबीना यादों की गहराइयों में खो गई… वह मुश्किल से 6-7 साल की थी, जब अब्बू नई अम्मी ले कर आए थे. वह अपनी बड़ी सी हवेली के बगीचे में खेल रही थी. तभी नई अम्मी घर में दाखिल हुईं. उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है. उस की अम्मी हर वक्त रोती क्यों रहती हैं?
जब नई अम्मी को बेटा हुआ, तो जोया आपा और अम्मी को बेदखल कर उसी हवेली में नौकरों के रहने वाली जगह पर एक कोना दे दिया गया.
अम्मी दिनभर सिलाईकढ़ाई करतीं और जोया आपा भी दूसरों के घर का काम करतीं तो भी दो वक्त की रोटी मुहैया नहीं हो पाती थी.
अम्मी 30 साल की उम्र में 50 साल की दिखने लगी थीं. ऐसा नहीं था कि अम्मी खूबसूरत नहीं थीं. वे हमेशा अब्बू की दीवानगी के किस्से बयां करती रहती थीं.
सभी ने अम्मी को दूसरा निकाह करने को कहा, पर अम्मी तैयार नहीं हुईं. पर इधर कुछ दिनों से वे काफी परेशान थीं. शायद जोया आपा के सीने पर बढ़ता मांस परेशानी का सबब था. मेरे लिए वह अचरज, पर अम्मी के लिए जिम्मेदारी.
‘‘शबीना… ओ शबीना…’’ जोया आपा की आवाज ने शबीना को यादों से वर्तमान की ओर खींच दिया.
‘‘ठीक है, उस लड़के को ले कर आना, फिर देखते हैं कि क्या करना है.’’
लड़के का फोटो देख शबीना खुशी से उछल गई और चीख पड़ी. भविष्य के सपने संजोते हुए वह सोने चली गई.
अकसर उन दोनों की मुलाकात शहर के बाहर एक गार्डन में होती थी. आज जब वह नीरज से मिली, तो उस ने कल की सारी घटना का जिक्र किया, ‘‘जनाब, आप मेरे घर चल रहे हैं. अम्मी आप से मुलाकात करना चाह रही हैं.’’
‘‘सच…’’ कहते हुए नीरज ने शबीना को अपनी बांहों में भर लिया. शबीना शरमा कर बड़े प्यार से नीरज को देखने लगी, फिर नीरज की गाड़ी से ही घर पहुंची.
नीरज तो हैरान रह गया कि इतनी बड़ी हवेली, सफेद संगमरमर सी नक्काशीदार दीवारें और एक मुगलिया संस्कृति बयां करता हरी घास का
लान, जरूर यह बड़ी हैसियत वालों की हवेली है.
नीरज काफी सकुचाते हुए अंदर गया, तभी शबीना बोली, ‘‘नीरज, उधर नहीं, यह अब्बू की हवेली है. मेरा घर उधर कोने में है.’’
हैरानी से शबीना को देखते हुए नीरज उस के पीछेपीछे चल दिया. सामने पुराने से सर्वैंट क्वार्टर में शबीना दरवाजे पर टंगी पुरानी सी चटाई हटा कर अंदर नीरज के साथ दाखिल हुई.
नीरज ने देखा कि वहां 2 औरतें बैठी थीं. उन का परिचय शबीना ने अम्मी और जोया आपा कह कर कराया.
अम्मी ने नीरज को देखा. वह उन्हें बड़ा भला लड़का लगा और बड़े प्यार से उसे बैठने के लिए कहा.
अम्मी ने कहा, ‘‘मैं तुम दोनों के लिए चाय बना कर लाती हूं. तब तक अब्बू और भाईजान भी आते होंगे.’’
‘‘अब्बू, अरे… आप ने उन्हें क्यों बुलाया? मैं ने आप से पहले ही मना किया था,’’ गुस्से से चिल्लाते हुए शबीना अम्मी पर बरस पड़ी.
अम्मी भी गुस्से में बोलीं, ‘‘चुपचाप बैठो… अब्बू का फैसला ही आखिरी फैसला होगा.’’
शबीना कातर निगाहों से नीरज को देखने लगी. नीरज की आंखों में उठे हर सवाल का जवाब वह अपनी आंखों से देने की कोशिश करती.
थोड़ी देर तक वहां सन्नाटा पसरा रहा, तभी सामने की चटाई हिली और भरीभरकम शरीर का आदमी दाखिल हुआ. वे सफेद अचकन और चूड़ीदार पाजामा पहने हुए थे. साथ ही, उन के साथ 17-18 साल का एक लड़का भी अंदर आया.
आते ही उस आदमी ने नीरज का कौलर पकड़ कर उठाया और दोनों लोग नीरज को काफी बुराभला कहने लगे.
नीरज एकदम अचकचा गया. उस ने संभलने की कोशिश की, तभी उस में से एक आदमी ने पीछे से वार कर दिया और वह फिर वहीं गिर गया.
शबीना कुछ समझ पाती, इस से पहले ही उस के अब्बू चिल्ला कर बोले, ‘‘खबरदार, जो इस लड़के से मिली. तुझे शर्म नहीं आती… वह एक हिंदू लड़का है और तू मुसलमान…’’ नीरज की तरफ मुखातिब हो कर बोले, ‘‘आज के बाद शबीना की तरफ आंख उठा कर मत देखना, वरना तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का वह हाल करेंगे कि प्यार का सारा भूत उतर जाएगा.’’
नीरज ने समय की नजाकत को समझते हुए चुपचाप चले जाना ही उचित समझा.
अब्बू ने शबीना का हाथ झटकते हुए अम्मी की तरफ धक्का दिया और गरजते हुए बोले, ‘‘नफीसा, शबीना का ध्यान रखो और देखो अब यह लड़का कभी शबीना से न मिले. इस किस्से को यहीं खत्म करो,’’ और यह कहते हुए वे उलटे पैर वापस चले गए.
अब्बू के जाते ही जो शबीना अभी तक तकरीबन बेहोश सी पड़ी थी, तेजी से खड़ी हो गई और अम्मी से बोली, ‘‘अम्मी, यह सब क्या है? आप ने इन लोगों को क्यों बुलाया? अरे, मुझे तो समझ में नहीं आ रहा है कि ये इतने सालों में कभी तो हमारा हाल पूछने नहीं आए. हम मर रहे हैं या जी रहे हैं, पेटभर खाना खाया है कि नहीं, कैसे हम जिंदगी गुजार रहे हैं. दोदो पैसे कमाने के लिए हम ने क्याक्या काम नहीं किया.
‘‘बोलो न अम्मी, तब ये कहां थे? जब हमारी जिंदगी में चंद खुशियां आईं, तो आ गए बाप का हक जताने. मेरा बस चले, तो आज मैं उन का सिर फोड़ देती.’’
‘‘शबीना…’’ कहते हुए अम्मी ने एक जोरदार चांटा शबीना को रसीद कर दिया और बोलीं, ‘‘बहुत हुआ… अपनी हद भूल रही है तू. भूल गई कि उन से मेरा निकाह ही नहीं हुआ है, दिल का रिश्ता है. मैं उन के बारे में एक भी गलत लफ्ज सुनना पसंद नहीं करूंगी. कल से तुम्हारा और नीरज का रास्ता अलगअलग है.’’
शबीना सारी रात रोती रही. उस की आंखें सूज कर लाल हो गईं. सुबह जब अम्मी ने शबीना को इस हाल में देखा, तो उन्हें बहुत दुख हुआ. वे उस के बिखरे बालों को समेटने लगीं. मगर शबीना ने उन का हाथ झटक दिया.
बहरहाल, इसी तरह दिनहफ्ते, महीने बीतने लगे. शबीना और नीरज की कोई बातचीत तक नहीं हुई. न ही नीरज ने मिलने की कोशिश की और न ही शबीना ने.
इसी तरह एक साल बीत गया. अब तक अम्मी ने मान लिया था कि शबीना अब नीरज को भूल चुकी है.
उसी दौरान शबीना ने अपनी फैशन डिजाइन के काम में काफी तरक्की कर ली थी और घर में अब तक सब नौर्मल हो गया था. सब ने सोचा कि अब तूफान शांत हो चुका है.
वह दिन शबीना की जिंदगी का बहुत खास दिन था. आज उस के कपड़ों की प्रदर्शनी थी. वह तेजतेज कदमों से लिफ्ट की तरफ बढ़ रही थी, तभी लिफ्ट का दरवाजा खुला, तो सामने खड़े शख्स को देख कर उस के पैर ठिठक गए.
‘‘कैसी हो शबीना?’’ उस ने बोला, तो शबीना की आंखों से आंसू आ गए. बिना कुछ बोले भाग कर वह उस के गले लग गई.
‘‘तुम कैसे हो नीरज? उस दिन तुम्हारी इतनी बेइज्जती हुई कि मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कि तुम से कैसे बात करूं, पर सच में मैं तुम्हें कभी भी नहीं भूली…’’
नीरज ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया, ‘‘वह सब छोड़ो, यह बताओ कि तुम यहां कैसे?
‘‘आज मेरे सिले कपड़ों की प्रदर्शनी लगी है, पर तुम…’’
‘‘मैं यहां का मैनेजर हूं.’’
शबीना ने मुसकराते हुए प्यारभरी निगाहों से नीरज को देखा. नीरज को लगा कि उस ने सारे जहां की खुशियां पा ली हैं.
‘‘अच्छा सुनो, मैं यहां का सारा काम खत्म कर के रात में 8 बजे तुम से यहीं मिलूंगी.’’
आज शबीना का मन अपने काम में नहीं लग रहा था. उसे लग रहा था कि जल्दी से नीरज के पास पहुंच जाए.
शबीना को देखते ही नीरज बोला, ‘‘कुछ इस कदर हो गई मुहब्बत तनहाई से अपनी कि कभीकभी इन सांसों के शोर को भी थामने की कोशिश कर बैठते हैं जनाब…’’
शबीना मुसकराते हुए बोली, ‘‘शिकवा तो बहुत है मगर शिकायत कर नहीं सकते… क्योंकि हमारे होंठों को इजाजत नहीं है तुम्हारे खिलाफ बोलने की,’’ और वे दोनों खिलखिला कर हंस पड़े.
‘‘नीरज, तुम्हें पता नहीं है कि आज मैं मुद्दतों बाद इतनी खुल कर हंसी हूं.’’
‘‘शायद मैं भी…’’ नीरज ने कहा. रात को दोनों ने एकसाथ डिनर किया और दोनों चाहते थे कि इतने दिनों की जुदाई की बातें एक ही घंटे में खत्म कर दें, जो कि मुमकिन नहीं था. फिर वे दोनों दिनभर के काम के बाद उसी पुराने गार्डन या कैफे में मिलने लगे.
लोग अकसर उन्हें साथ देखते थे. शबीना के घर वालों को भी पता चल गया था, पर उन्हें लगता था कि वे शादी नहीं करेंगे. वे इस बारे में शबीना को समयसमय पर हिदायत भी देते रहते थे.
इसी तरह साल दर साल बीतने लगे. एक दिन रात के अंधेरे में उन दोनों ने अपना शहर छोड़ एक बड़े से महानगर में अपनी दुनिया बसा ली, जहां उस भीड़ में उन्हें कोई पहचानता तक नहीं था. वहीं पर दोनों एक एनजीओ में नौकरी करने लगे.
उन दोनों का घर छोड़ कर अचानक जाना किसी को अचरज भरा नहीं लगा, क्योंकि सालों से लोगों को उन्हें एकसाथ देखने की आदत सी पड़ गई थी. पर अम्मी को शबीना का इस तरह जाना बहुत खला. वे काफी बीमार रहने लगीं. जोया आपा का भी निकाह हो गया था.
इधर शबीना अपनी दुनिया में बहुत खुश थी. समय पंख लगा कर उड़ने लगा था. एक दिन पता चला कि उस की अम्मी को कैंसर हो गया और सब लोगों ने यह कह कर इलाज टाल दिया था कि इस उम्र में इतना पैसा इलाज में क्यों बरबाद करें.
शबीना को जब इस बात का पता चला, तो उस ने नीरज से बात की.
नीरज ने कहा, ‘‘तुम अम्मी को अपने पास ही बुला लो. हम मिल कर उन का इलाज कराएंगे.’’
शबीना अम्मी को इलाज कराने अपने घर ले आई. अम्मी जब उन के घर आईं, तो उन का प्यारा सा संसार देख कर बहुत खुश हुईं.
नीरज ने बड़ी मेहनत कर पैसा जुटाया और उन का इलाज कराया और वे धीरेधीरे ठीक होने लगीं. अब तो उन की बीमारी भी धीरेधीरे खत्म हो गई. मगर अम्मी को बड़ी शर्मिंदगी महसूस होती. नीरज उन की परेशानी को समझ गया.
एक दिन शाम को अम्मी शबीना के साथ बैठी थीं, तभी नीरज भी पास आ कर बैठ गया और बोला, ‘‘अम्मी, जिंदगी में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नहीं है, पर रिश्तों में ज्यादा जिंदगी होना जरूरी है. अम्मी, जब बनाने वाले ने कोई फर्क नहीं रखा, तो हम कौन होते हैं फर्क रखने वाले.
‘‘अम्मी, मेरी तो मां भी नहीं हैं, मगर आप से मिल कर वह कमी भी पूरी हो गई.’’
अम्मी ने प्यार से नीरज को गले लगा लिया, तभी नीरज बोला, ‘‘आज एक और खुशखबरी है, आप जल्दी ही नानी बनने वाली हैं.’’
अब अम्मी बहुत खुश थीं. वे अकसर शबीना के घर आती रहतीं. समय के साथ ही शबीना ने प्यारे से बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम शबीना ने हरिनूर रखा. शबीना ने यह नाम दे कर उसे हिंदूमुसलमान के झंझावातों से बरी कर दिया था.