सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट, 12 साल पूर्व पुलिस कर्मियों के साथ अभद्रता का मामला
गाजीपुर न्यूज़ टीम, बलिया. 12 साल पुराने सरकारी कार्यों में व्यवधान उत्पन्न करने व पुलिस कर्मियों के साथ अभद्रता व गोलबंदी कर नारेबाजी करने के मामले में हाजिर नहीं होने पर विशेष न्यायालय एमपी-एमएलए सिविल जज (सीडी) फास्ट ट्रैक कोर्ट तपस्या त्रिपाठी ने सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त के विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। कोतवाली के पैरोकार को तामिला सुनिश्चित कराने के लिए फटकार लगाई है। पुलिस अधीक्षक बलिया को आदेश दिया कि नौ सितंबर 2022 से पहले आरोपित का तामिला निश्चित रूप से हो जाना चाहिए। आदेश की प्रति डीजीपी लखनऊ को भी भेजने का आदेश दिया है।
कलेक्ट्रेट में 16 सितंबर 2010 को पूर्व एलआईयू निरीक्षक ने पूर्व सांसद वीरेंद्र सिंह व अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। आरोप लगाया कि घटना के दिन वह लोग गोलबंदी करते हुए नारेबाजी कर रहे थे। सरकारी कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रहे थे। मना करने पर अभद्रता भी करने लगे। मामले में सात क्रिमिनल ला अमेंडमेंट एक्ट के तहत मुकदमा पंजीकृत हुआ था।
न्यायिक अभिरक्षा में रहे भाजपा के पूर्व विधायक, मुचलके पर रिहा
करीब पांच साल पहले आचार संहिता के उलंघन के मामले में भाजपा के पूर्व विधायक संजय यादव सोमवार को विशेष न्यायालय एमपी एमएलए तपस्या त्रिपाठी की कोर्ट में आत्मसमर्पण किए। वह न्यायिक अभिरक्षा में रखे गए। 20-20 हजार के दो बंध पत्र व निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश दे दिया। पूर्व विधायक संजय यादव व अन्य के विरुद्ध आचार संहिता उलंघन करने का मामला सिकंदरपुर के पूर्व प्रभारी निरीक्षक अशोक कुमार ने 13 फरवरी 2017 को दर्ज कराया था।
एसएचओ को गिरफ्तार कर पेश करें, एसपी प्रतापगढ़ को आदेश
बार-बार समन के बावजूद हाजिर नहीं होने पर विशेष न्यायाधीश गैंगस्टर कोर्ट ओमकार शुक्ला की अदालत ने तत्कालीन एसएचओ नरही केडी त्रिपाठी के विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। पुलिस अधीक्षक प्रतापगढ़ को आदेश दिया है कि सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के आदेशों के अनुरूप समयावधि में मुकदमे का निपटारा नहीं हो पा रहा है। एसएचओ के विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट व कारण बताओ नोटिस जारी किया जा चुका है। आदेश की अवहेलना करते हुए कोर्ट के कार्यों में रुचि नहीं ले रहे हैं, जो घोर आपत्तिजनक है। ऐसी स्थिति में उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में प्रस्तुत किया जाए, जिससे कि अदालत का कार्य आगे की तरफ संपादित किया जाए।