कहानी: जीना इसी का नाम है
अपने रंगरूप के कारण अपनों द्वारा ही हजारों बार छली गई सांवरी ने जीवन का मकसद ही औरों को खुश रखने का बना लिया था. ऐसी सुंदर भावना को ले कर चलने वाली सांवरी का जीवन सार्थक रहा या यहां भी वह छली गई?
यह कोई नई बात नहीं थी. सांवरी कोशिश करती कि ऐसी स्थिति में वह सामान्य रहे, लेकिन फिर भी उस का मन व्यथित हो रहा था. किचन में से भाभी की नफरत भरी बातें उसे सुनाई दे रही थीं, जो रहरह कर उसे कांटे की तरह चुभ रही थीं. किचन से बाहर निकल कर जलती हुई दृष्टि से सांवरी को देखते हुए भाभी बोलीं, ‘‘जाइए, जा कर तैयार हो जाइए महारानीजी, जो तमाशा हमेशा होता आया है, आज भी होगा. लड़के वाले आएंगे, खूब खाएंगेपीएंगे और फिर आप का यह कोयले जैसा काला रूप देख कर मुंह बिचका कर चले जाएंगे.’’
भाभी की कटाक्ष भरी बातें सुन कर सांवरी की आंखें डबडबा आईं. वह भारी मन से उठी और बिना कुछ कहे चल दी अपने कमरे में तैयार होने. भाभी का बड़बड़ाना जारी था, ‘‘पता नहीं क्यों मांबाबूजी को इन मैडम की शादी की इतनी चिंता हो रही है? कोई लड़का पसंद करेगा तब तो शादी होगी न. बीसियों लड़के नापसंद कर चुके हैं.
‘‘अरे, जब इन की किस्मत में शादी होना लिखा होता तो कुदरत इन्हें इतना बदसूरत क्यों बनाती? सोनम भी 23 साल की हो गई है. सांवरी की शादी कहीं नहीं तय हो रही है तो उस की ही शादी कर देनी चाहिए. उसे तो लड़के वाले देखते ही पसंद कर लेते हैं.’’
मां ने अपनी विवशता जाहिर की, ‘‘ऐसे कैसे हो सकता है, बहू. बड़ी बेटी कुंआरी घर में बैठी रहे और हम छोटी बेटी की शादी कर दें.’’
भाभी आंखें तरेर कर बोलीं, ‘‘आप को क्या लगता है मांजी, आज लड़के वाले सांवरी को पसंद कर लेंगे? ऐसा कुछ नहीं होने वाला है. सांवरी की वजह से सोनम को घर में बैठा कर बालों में सफेदी आने का इंतजार मत कीजिए. मेरी मानिए तो सोनम की शादी करा दीजिए.’’
सांवरी अपनी मां जैसी ही सांवली थी. सांवले रंग के कारण मां ने उस का नाम सांवरी रखा था. मांबाप, भाईबहन को छोड़ कर सांवरी औरों को काली नजर आती थी. उस के पैदा होने पर दादी सिर पकड़ कर बोली थीं, ‘‘अरे यह काली छिपकली घर में कहां से आ गई? कैसे बेड़ा पार होगा इस का?’’
भाभी जब इस घर में ब्याह कर आई थीं तो सांवरी को देख कर उन्होंने तपाक से कहा था, ‘‘तुम्हारा नाम तो कलूटी होना चाहिए था. यह सांवरी किस ने रख दिया.’’
भाभी ने एक बार तो यहां तक कह दिया था, ‘‘सांवरी को अपनी मां के जमाने में पैदा होना चाहिए था, क्योंकि उस समय तो लड़की देखने का रिवाज ही नहीं था. शादी के बाद ही लड़कालड़की को देख पाता था. अगर सांवरी उस समय पैदा हुई होती तो मांजी की तरह ही निबट जाती.’’
मां ने जब यह व्यंग्य सुना तो वह तिलमिला उठीं और सांवरी पर चिल्ला उठीं, ‘‘इतनी सारी अच्छी और महंगी क्रीमें घर में ला कर रखी हैं, लगाती क्यों नहीं उन्हें?’’ सांवरी अपमान और पीड़ा से भर उठती थी, ‘‘मुझे जलन होती है उन क्रीमों से, मैं नहीं लगा सकती.’’ मां जानती थी कि चेहरे का रंग नहीं बदला जा सकता. फिर भी अपनी तसल्ली के लिए ढेर सारी अंगरेजी और आयुर्वेदिक क्रीमें लाला कर रखती रहती थीं.
सभी लोगों को सांवरी का गहरा सांवलापन पहले ही दिख जाता था, पर वह कितनी गुणी है, काबिल है, प्रतिभावान है, अनेक खूबियों से भरपूर है, यह किसी को नजर ही नहीं आता था. घर के सारे कामों में निपुण सांवरी जिस कालेज में पढ़ी थी, उसी कालेज में लैक्चरर नियुक्त हो गई थी और साथसाथ वह प्रशासनिक सेवा में जाने के लिए भी तैयारी कर रही थी.
इतनी गुणवान और बुद्धिमान होने के बाद भी मातापिता के मन में एक टीस थी. कई बार उस ने पापा को कहते सुना था, ‘‘काश, सांवरी थोड़ी सी गोरी होती तो सोने पर सुहागा होता,’’ ऐसा वाक्य सांवरी को अकसर निराश कर देता था. वैवाहिक विज्ञापनों में भी मांबाप को निराशा ही हाथ लगी थी. उन में लड़कों की पहली शर्त होती थी कि लड़की गोरी होनी चाहिए. फिर बाद में सारे गुणों का उल्लेख रहता था.
उस दिन शाम को भी वही हुआ जिस की आशंका थी. सोनम को अंदर ही रहने को कह दिया गया था, ताकि कहीं पिछली बार की तरह सांवरी की जगह सोनम को न पसंद कर लें लड़के वाले. मां प्रार्थना करती रहीं, पर सब बेकार गया. सांवरी को देखते ही लड़के की मां की भौंहें तन गईं. वे उठ खड़ी हुईं, ‘‘इतनी भद्दी, काली और बदसूरत लड़की, इस से मैं अपने बेटे की शादी कभी नहीं कर सकती.’’
कमरे में सन्नाटा छा गया. पापा हाथ जोड़ते हुए बोले, ‘‘बहनजी, हमारी बेटी केवल रंग से मात खा गई है. आप की घरगृहस्थी को अच्छे से जोड़ कर रखेगी. बहुत ही गुणी और सुशील है, मेरी बेटी. कालेज में भी इस का बहुत नाम है.’’
‘‘रहने दीजिए, भाईसाहब, गुण और नाम तो बाद में पता चलता है, लेकिन हर कोई रूप सब से पहले देखता है. मैं इस लड़की को बहू बना कर ले जाऊंगी तो लोग क्या कहेंगे कि जरूर मेरे बेटे में कोई कमी है. तभी ऐसी बहू घर आई है,’’ कह कर सब चलते बने.
घर का वातावरण तनावयुक्त और बोझिल हो उठा. पापा चुपचाप सोफे पर बैठ कर सिगरेट पीने लगे. मां रोने लगीं. भैया बाहर निकल गए. सोनम अंदर से आ कर चायनाश्ते के बरतन समेटने लगी. भाभी के ताने शुरू हो गए थे और सांवरी सबकुछ देखसुन कर फिर से सहज और सामान्य हो गई.
उस वर्ष सांवरी को अपने कालेज की सब से लोकप्रिय प्रवक्ता का पुरस्कार मिला था. अपने अच्छे व्यवहार और काबिलीयत के दम पर वह कालेज के प्रत्येक विद्यार्थी और शिक्षक की पहली पसंद बन गई थी. इतनी कम उम्र में किसी प्रवक्ता को यह पुरस्कार नहीं मिला था. उसे लगातार बधाइयां मिल रही थीं. एक दिन कालेज पहुंच कर जैसे ही वह स्टाफरूम में गई तो वहां टेबल पर एक बड़ा सा बुके देखा. समूचा वातावरण उस बुके के फूलों की खुशबू से महक रहा था.
‘‘कितना सुंदर बुके है,’’ सांवरी के मुंह से निकला.
वहीं बैठी सांवरी की एक सहयोगी और दोस्त रचना हंस पड़ी और बोली, ‘‘यह बुके आप के लिए ही है, मिस सांवरी.’’
‘‘मुझे किस ने बुके भेजा है?’’
‘‘मैं ने,’’ पीछे से किसी युवक की आवाज आई.
सांवरी चौंक कर पलटी तो देखा कि एक सुंदर और स्मार्ट युवक उस की तरफ देख कर मुसकरा रहा था. ‘‘आप कौन हैं?’’ सांवरी ने पूछा.
रचना ने दोनों को परिचय कराया, ‘‘सांवरी, ये मिस्टर राजीव, हिंदी के लैक्चरर. आज ही कालेज जौइन किया है. ये कवि भी हैं और मिस्टर राजीव ये हैं मिस सांवरी, जीव विज्ञान की लैक्चरर.’’
‘‘कमाल है, आप लैक्चरर हैं. मुझे तो लगा शायद कालेज की कोई स्टूडैंट है,’’ सांवरी ने हैरान हो कर कहा.
‘‘हैरान तो मैं हूं. इतने कम समय में आप कालेज में इतनी लोकप्रिय हो गई हैं, वरना लोगों की तो पूरी जिंदगी ही निकल जाती है कालेज में हरेक की पसंद बनने में.’’ सांवरी हंस दी.
मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा. खाली समय में राजीव सांवरी से कविता और साहित्य पर बातें करता था, जो सांवरी को बहुत अच्छी लगती थीं. उन दिनों राजीव एक कविता संग्रह लिखने की तैयारी कर रहा था. कविता संग्रह छपने के बाद वह काफी प्रसिद्ध हो गया. हर तरफ से बधाइयों का तांता लग गया. राजीव को सब से पहले बधाई सांवरी ने ही दी.
बधाई स्वीकार करते हुए राजीव ने कहा, ‘‘पता है सांवरी, मेरी इन कविताओं को लिखने की प्रेरणा तुम्हीं हो. तुम मेरे पतझड़ जैसे जीवन में बसंत बन कर आई हो,’’ बिना किसी भूमिका के राजीव ने यह बात कह दी.
सांवरी के दिल की धड़कनें मानो तेज हो उठीं. उस दिन सांवरी ने राजीव की आंखों में अपने लिए दोस्ती के अलावा और भी कुछ देखा था. ‘क्या वे सचमुच मुझ से प्यार करते हैं?’ यह विचार मन में आते ही सांवरी का रोमरोम पुलकित हो उठा. उन्होंने मेरे रंग को नहीं देखा, मेरी सुंदर आंखें देखीं, सुंदर बाल देखे, सुंदर होंठ देखे. राजीव कवि हैं और कवि तो हर चीज में सुंदरता ढूंढ़ ही लेते हैं. वह भी राजीव को चाहने लगी थी.
रौयल्टी की रकम मिलने के बाद राजीव ने पार्टी रखी. सोनम को पार्टियों में जाने का बहुत शौक था, लिहाजा, सांवरी उसे भी साथ लेती गई.
‘‘आई कांट बिलीव दिस, क्या वाकई में सोनम तुम्हारी बहन है?’’ सोनम को देख कर राजीव आश्चर्य और हैरानी से सांवरी से बोला. राजीव की इस बात पर दोनों हंसने लगीं, क्योंकि यह सवाल उन के लिए नया नहीं था. जो भी उन दोनों को साथ देखता, विश्वास नहीं न करता कि दोनों बहनें हैं.
पूरी पार्टी के दौरान राजीव सोनम के इर्दगिर्द मंडराता रहा. सांवरी की ओर उस ने जरा भी ध्यान नहीं दिया. सांवरी को यह थोड़ा बुरा भी लगा, पर वह यह सोच कर सामान्य हो गई कि शायद राजीव अपनी होने वाली साली से मेलजोल बढ़ा रहे हैं.
पार्टी खत्म होने के बाद राजीव ने उन दोनों से कहा, ‘‘तुम्हारे मांबाप ने तुम दोनों बहनों का नाम बहुत सोचसमझ कर रखा है. सांवली सी सांवरी और सोने जैसी सुंदर सोनम. दोनों बहनें यह सुन कर मुसकरा दीं.’’
उस के बाद राजीव का सांवरी के घर भी आनाजाना शुरू हो गया. घर के सभी सदस्यों से वह काफी घुलमिल गया था.
एक दिन राजीव सभी लोगों से बैठा बातें कर रहा था. सांवरी किचन में चाय बना रही थी. चाय ले कर जैसे ही कमरे में घुसने को थी कि उसे भाभी का स्वर सुनाई पड़ा. वे राजीव से पूछ रही थीं, ‘‘तो कैसी लगी आप को हमारी ननद?’’
‘‘बहुत सुंदर. इन के सौम्य रूप से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं. पहली बार जब मैं ने इन्हें देखा था, तभी से इन की मूरत मेरी आंखों में बस गई. मेरी तलाश पूरी हो गई है. अब मैं इस संबंध को नया नाम देना चाहता हूं. शादी करना चाहता हूं मैं इन से. मेरे पापा तो नहीं हैं, केवल मां और एक छोटी बहन है. उन्हें ले कर कल आऊंगा शादी की बात करने.’’
सांवरी का चेहरा शर्म से लाल हो गया. वह अंदर नहीं गई. रात को खाने के समय भी वह किसी के सामने नहीं गई. कहीं भाभी या सोनम उसे प्यार से छेड़ न दें.
आज रात नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. अब सबकुछ अच्छा ही होगा. पहली बार अपने जीवन को ले कर वह बहुत उत्साहित थी. राजीव से उस की शादी होने के बाद सोनम की शादी का भी रास्ता साफ हो जाएगा.
2 दिन पहले मां को पापा से कहते सुना था, ‘‘अब हमें और देर नहीं करनी चाहिए. सोनम की शादी कर देने में ही भलाई है. सांवरी के नसीब में कोई होगा तो उसे मिल जाएगा,’’ पापा ने भी हामी भर दी थी. सांवरी के जी में आया था कि उसी समय राजीव के बारे में बता दे, पर अब तो उन की सारी चिंता दूर हो गई होगी. राजीव ने खुद सांवरी का हाथ मांगा था. यही सब सोचते न जाने कब उस की आंख लग गई.
सुबह काफी देर से सांवरी की आंख खुली. घड़ी में देखा, 10 बज चुके थे. वह हड़बड़ा कर उठी. किसी ने मुझे जगाया भी नहीं. राजीव तो सुबह 9 बजे तक अपनी मां और बहन के साथ आने वाले थे. ड्राइंगरूम से जोरजोर से हंसने की आवाजें आ रही थीं. परदे की ओट से सांवरी ने देखा कि राजीव अपनी मां और बहन के साथ बैठे पापा और भैया से बातें कर रहे हैं.
उन की बातों से पता चला कि वे अभी कुछ देर पहले ही आए हैं. उस ने चैन की सांस ली. उसे गुस्सा भी आ रहा था. एक तो किसी ने जगाया नहीं, ऊपर से न तो कोई उस पर ध्यान दे रहा है और न ही तैयार होने को कह रहा है. उस ने ठान लिया कि जब मां, भाभी और सोनम खूब मिन्नतें करेंगी, तभी वह तैयार होगी.
ड्राइंगरूम में सब की बातचीत चल रही थी कि पापा ने मां को आवाज लगाई. फिर सांवरी ने जो देखा, वह उस के लिए अकल्पनीय, अविश्वसनीय और अनपेक्षित था. हाथ में चाय की ट्रे लिए सोनम उन लोगों के सामने गई. मां और भाभी साथ थीं. सोनम ने राजीव की मां के पैर छुए. उन्होंने सोनम का माथा चूम कर कहा, ‘‘सचमुच चांद का टुकड़ा है, मेरे बेटे की पसंद,’’ कह कर उन्होंने सोनम के गले में सोने की चेन पहना दी. राजीव ने सोनम को अंगूठी पहना कर सगाई की रस्म पूरी कर दी.
सांवरी स्तब्ध थी. राजीव और सोनम की सगाई? यह कैसे हो सकता है? राजीव तो मुझ से प्यार करते हैं. उन की प्रेरणा तो मैं हूं. मुझे अपने जीवन का बसंत कहा था, राजीव ने. तो क्या वह सब झूठ था? धोखा दिया है राजीव ने मुझे. बेवफाई की है मेरे साथ और सोनम, उस ने मेरे साथ इतना बड़ा छल क्यों किया? वह तो मेरे सब से ज्यादा करीब थी.
वह हमेशा कहा करती थी कि दीदी, जब तक आप की शादी नहीं हो जाती, मैं अपनी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती हूं. फिर ये सब क्या है? कितनी बुरी तरह से छला है राजीव और सोनम ने मुझे. इतना बड़ा आघात, इतना भीषण प्रहार किया है इन दोनों ने मुझ पर. इन्हीं दोनों को तो मैं सब से ज्यादा प्यार करती थी. लाख चाह कर भी सांवरी सहज नहीं हो पा रही थी.
जीवन के इन कठिनतम क्षणों में उस की दोस्त रचना ने उसे सहारा दिया, ‘‘मैं जानती हूं कि यह तेरे लिए बहुत बड़ी पीड़ा है. तेरे अपनों ने ही तुझे बहुत बड़ा धोखा दिया है. कितनी बार तू अपना अपमान करवाएगी शादीब्याह के चक्कर में पड़ कर? अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना सांवरी.
’’ तू कितनी बुद्धिमान, प्रतिभाशाली और काबिल है, फिर क्यों इतनी निराश हो गई है? तेरे सामने तेरा उज्ज्वल भविष्य पड़ा है. तू कुछ भी कर सकती है, सांवरी,’’ रचना की बातों से सांवरी कुछ सहज हुई. उसे नया हौसला मिला. धीरेधीरे सबकुछ सामान्य होने लगा.
वक्त बहुत आगे निकल चुका है. बहुत कुछ बदल चुका है. आज सांवरी एक प्रशासनिक अधिकारी होने के साथसाथ समाजसेविका और सैलेब्रिटी भी है. अपने बलबूते उस ने ‘जीवन रक्षा केंद्र’ नामक संस्था खोल रखी है, जिस के माध्यम से वह विकलांग, गरीब, असहाय और अनाथों के लिए काम करती है.
वह लोगों के जीवन में खुशियां लाना चाहती है. सादगी, ईमानदारी और मानवीयता जैसी भावनाओं और संवेदनाओं से पूर्ण सांवरी को जितना प्यार, सम्मान, सुख और विश्वास गैरों से मिला, अपनों से उतनी ही बेरुखी, नफरत, धोखा, छल और बेवफाई मिली थी पर सांवरी अब इन सब से दूर हो गई थी.
अब यहां न तो मांबाप की बेबसी थी, न ही थे भाभी के चुभते ताने, न बहन का धोखा और न ही विश्वासघाती और बेवफा राजीव.
आज उस ने इन सब पर विजय प्राप्त कर ली है. समाज के उपेक्षित लोगों के जीवन में अंधकार कम करना ही सांवरी का एकमात्र लक्ष्य है.
गरीबों और असहाय लोगों के लिए वह ढेर सारा काम करना चाहती है. जो मन में है, उसे पूरा करने के लिए सांवरी फिर से जन्म लेना चाहती है. एक जन्म काफी नहीं है. छोटेछोटे बच्चों, बड़ेबूढ़ों के चेहरे पर अपनी वजह से मुसकान देख कर सांवरी को अपार सुख और संतुष्टि प्राप्त होती है.
सचमुच आज उस ने जान लिया है कि दूसरों के लिए जीने में कितना सुख है. दूसरों के लिए जीना ही तो सही माने में जीना है. आखिर, जीना इसी का नाम है.