इस खूंखार डॉन से कांपता था यूपी- बिहार, बंदूक के बल पर बदल दी थी रेलवे की ठेकेदारी
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गोरखपुर. यूपी का सबसे खतरनाक और बेरहम डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला, 90 के दशक का वह अपराधी था जिससे यूपी और बिहार के लोग थर-थर कांपते थे। उसके पेशे के बीच आने वाले किसी भी शख्स को मार डालने में उसने जरा भी देरी नहीं की। पुलिस के लिए चुनौती बना ये डॉन 25 साल की उम्र में ही बड़े-बड़े उद्योगपतियों, अपराधियों व पुलिस वालों के अंदर दहशत का माहौल पैदा कर दिया था। उसके वारदातों से अखबारों के पन्ने रोज रंगे रहते थे। उद्योगपतियों से उगाही, हत्या, अपहरण और डकैती ही उसका पेशा था। आइए आज हम आपको बताते हैं कि किस तरह से उसने बंदूक के बल पर रेलवे की ठेकेदारी बदल दी थी।
1993 में पहली बार हत्या कर अपराध की दुनिया में रखा था कदम:
श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर जिले के मामखोर गांव में हुआ था। जानकार बताते हैं कि 1993 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने बहन से छेड़खानी करने वाले शख्स को बीच बाजार में गोली मारकर हत्या कर दी थी। श्रीप्रकाश शुक्ला ने 20 साल की उम्र में यह पहला अपराध किया था। इसके बाद वह बैंकॉक भाग गया।
बिहार के गुंडे सूरजभान की गैंग में हुआ था शामिल:
बैंकॉक से लौटने के बाद मोकामा (बिहार) के गुंडे सूरजभान की गैंग में शामिल हो गया। इसके बाद माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला यूपी- बिहार का सबसे खतरनाक और बेरहम अपराधी बन गया। राजनेताओं और व्यापारियों के लिए सबसे बड़ा सरदर्द बन गया। उधर, पुलिस पर माफिया पर कार्रवाई करने का दबाव बढ़ने लगा।
बिहार के माफिया के साथ आतंक मचाया था श्रीप्रकाश शुक्ला:
22 साल की उम्र में रेलवे के ठेके में माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला ने जब एंट्री मारी थी और उसे मोकामा, बिहार के माफिया सूरजभान दादा का शह मिला था। श्रीप्रकाश और माफिया सूरजभान दादा की जोड़ी ने बाहुबली विरेंद्र प्रताप शाही और बाहुबली हरिशंकर तिवारी के साम्राज्य को बहुत चोट पहुंचाई। वह दौर रेलवे के अफसरों के लिए चुनौती बन गया था। माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला के नाम से बड़े-बड़ें गुंडे अंडरग्राउंड हो गए और खुद को रेलवे की ठेकेदारी से दूर कर लिया। उस वक्त रेलवे का टेंडर लेना मतलब मौत को दावत देने जैसा था। बंदूक की नोक पर वह ठेकेदारी अपने नाम करवा लेता था। हालांकि माफिया श्रीप्रकाश के एनकाउंटर के बाद भी यह सिलसिला काफी समय तक जारी रहा।
बाहुबली राजनेता को दिनदहाड़े उतारा था मौत के घाट:
डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला के आतंक का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि साल 1997 में बाहुबली राजनेता वीरेंद्र शाही को उसने दिनदहाड़े मौत के घाट उतार दिया था। यही नहीं उसने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी हॉस्पिटल के बाहर बिहार सरकार के तत्कालीन मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को उनके सुरक्षाकर्मियों के सामने ही गोली मारकर हत्या कर दी। इस घटना में एके-47 राइफल का इस्तेमाल कर सनसनी फैला दी थी।
तत्कालीन मुख्यमंत्री की ले ली थी सुपारी:
बिहार के मंत्री की हत्या का मामला अभी ठंडा नहीं हुआ था कि पुलिस को एक ऐसी खबर मिली जिससे यूपी पुलिस के हाथ- पांव फूल गए। दरअसल, माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने की सुपारी ले ली थी। ये खबर यूपी पुलिस के लिए बम गिरने जैसी थी।
डॉन के खात्मे के लिए हुआ था एसटीएफ का गठन:
तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला के मंसूबों की भनक लगते ही उन्होंने एसटीएफ का गठन करके उसे निर्देश दिया था कि वह दुर्दांत अपराधियों से देश को मुक्त कराए। 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को चुनकर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) बनाई। इस फोर्स का पहला टास्क श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा पकड़ना था।
ऐसे हुआ डॉन का खात्मा:
23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को खबर मिली कि श्रीप्रकाश शुक्ला दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है। जैसे ही उसकी कार वसुंधरा एन्क्लेव को पार किया एसटीएफ की टीम ने पीछा करना शुरू कर दिया। उस वक्त डॉन को जरा भी शक नहीं हुआ था कि उसके पीछे एसटीएफ है। जैसे ही उसकी कार सुनसान इलाके में पहुंची एसटीएफ की टीम ने अचानक उसकी कार को ओवरटेक कर उसका रास्ता रोक दिया। पुलिस ने उसे सरेंडर करने को कहा लेकिन उसने नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में मारा गया।