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कहानी: कितने पास मगर दूर

अनजाने में हुई एक भूल की वजह से वह गर्भवती हो गई थी और उसे पता भी तब चला जब समय काफी गुजर चुका था. उस ने एक बेटे को जन्म दिया और फिर यहीं से मुसीबत का पहाङ उस पर टूट पङा...

कल नानी गुजर गई थीं. मम्मी और पापा को जाना पड़ा था. मैं और नीता पढ़ाई की वजह से आंटी के घर रुक गए थे. आंटी के घर में हमारा अच्छा आनाजाना था. उस समय आंटी के दूर के रिश्तेदार का लड़का आया हुआ था. हम तीनों एकदूसरे के साथ घुलमिल गए थे.


एक दिन की बात है. काफी रात तक हम आपस में बातें कर रहे. अंकलआंटी भी सो चुके थे. ठंड बहुत पड़ रही थी. उस रात वह हुआ जो नहीं होना चाहिए था. मैं भी यह समझ नहीं पाई कि यह क्यों हुआ और जो हुआ अनजाने में और शायद गलत हुआ. मुझे कुछ समझ में ही नहीं आया और न ही उसे. दूसरे दिन हम सामान्य रहे और अपनी गलती को भूल कर अपनेआप को संभाल लिया. पर कुदरत ने तो कुछ और ही लिख कर रखा थ. 2-3 दिन के बाद मम्मीपापा भी आ गए और हम अपने घर चले गए.


समय बीत रहा था मगर मुझे क्या हो रहा था मैं समझ ही नहीं पा रही थी. एक दिन सिर भारी होने लगा और मैं चक्कर खा कर गिर पड़ी. मम्मी घबरा गईं. वे मुझे डाक्टर के पास ले कर गईं. डाक्टर ने चैक किया और मम्मी को बताया कि मैं प्रैगनैंट हूं. 2-3 महीने हो चुके हैं. मम्मी घबरा गईं. उन्हें खुद पर गुस्सा आ रहा था और मुझ पर भी. शायद वे सोच रही थीं कि न वह मुझे छोड़ कर जातीं और न ऐसा होता? मैं रोने लगी और मम्मी सोच रही थीं  कि अब क्या किया जाए? उन्होंने सोचा कि हम गांव जाएंगे. उन की सहेली डाक्टर है. उन के पास जा कर मेरा गर्भपात करवा देंगी. लेकिन यह पापा को मंजूर नहीं था. पापा ने बहुत डांटा कि तुम जीव हत्या नहीं कर सकतीं. जीव हत्या करना पाप है. और फिर देर भी हो चुकी है.


मम्मीपापा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था इसलिए उस साल मैं और मम्मी गांव में ही रहे. 9 महीने तक वहीं रुके रहे और बेटा होने के बाद उसे अनाथालय में दे दिया और हम शहर लौट आए. सालभर मेरी तबीयत खराब होने की वजह से मैं कोई ऐग्जाम नहीं दे पाई फिर दूसरे साल प्राइवैट ऐग्जाम दे कर पास की और कालेज में चली गई… उस के बाद जिंदगी बहुत ही मुश्किल थी. सबकुछ भूल जाना था और बस पढ़ाई और पढ़ाई में लग जाना था. अब 24 घंटे में से अधिक समय सिर्फ पढ़ाई होती थी और इस तरह मुझे नर्सिंग कालेज मैं ऐडमिशन मिल गया था. मम्मीपापा बहुत खुश थे और शायद मैं ने भी उन को जो दुख दिया उस को कुछ कम कर पाई थी.


मुझे आज भी वे दिन याद आते तो जैसे जिंदगी से नफरत हो जाती. ऐसा क्यों हो जाता है कि जिंदगी ऐसी जगह पर ला कर हमें रख खङी कर देती है जहां से निकल पाना बहुत मुश्किल होता है… लेकिन अब मैं अपने काम में बिजी हो चुकी थी. मेरी पढ़ाई पूरी हुई और ट्रैनिंग के बाद मुझे एक क्लीनिक में नौकरी मिल गई. कुछ दिन गुजर गए और फिर मां भी गुजर गईं. नीता, पापा और मैं ही घर में थे अब. नीता की पढ़ाई पूरी हुई तो उस के लिए अच्छा सा लड़का देख कर शादी कर दी. मम्मी की कमी को घर पूरा नहीं कर पा रहा था और पापा बहुत दुखी रहते थे. मुझे हिम्मत कर के घर को संभालना था.


अनाथालय से अमित (यही नाम रखा था उस का) को दिल्ली के एक परिवार ने गोद लिया था. वहां उस की बहुत अच्छी परवरिश हुई. वह पढ़लिख कर इंजीनियर बन गया था. उस को मुंबई में जौब मिल गई थी. अमित के मम्मीपापा उस के पास आए हुए थे. हमारा क्लीनिक उन के सोसाइटी के बाहर ही था. कहने को तो क्लीनिक अस्पताल के समान था और वहां बड़ेबड़े डाक्टर आते थे और लगभग हर इलाज की व्यवस्था थी. जब अमित के पिता को हार्ट अटैक आया तब उन्हें हमारे ही अस्पताल में लाया गया. उस समय सीमाजी ड्यूटी पर थीं. उस दिन अमित का विश्वास डाक्टर पर और बढ़ गया. फिर 2-3 दिनों में अमित के पापा की तबीयत में सुधार हो गया लेकिन एक दिन उन्होंने अमित को बताया कि बेटा, तुम ने मेरी बहुत सेवा की. अब मैं ज्यादा नहीं रहूंगा लेकिन एक बोझ अपने मन पर ले कर नहीं मरूंगा. बेटा, मेरे जाने के बाद तुम्हें और कोई बताए कि तुम हमारे बेटे नहीं हो इस के पहले मैं ही तुम्हें बता देता हूं कि हम ने तुम्हें अनाथालय से गोद लिया था.


अमित ने कहा,”पर पापा, कहां से?”


तब उन्होंने सबकुछ बताया. अमित के मन में पिता के प्रति और भी सम्मान बढ़ गया. दूसरे ही दिन वे


चल बसे. लेकिन अमित के मन में यह बात बैठ गई और वह सोचने लगा कि मां की क्या मजबूरी रही होगी जो उन्हें मुझे अनाथालय में देना पड़ा.  एक बार मैं उन से मिलना चाहूंगा और शायद उन के मन में भी यही तड़प होगी.


फिर कुछ दिन बीत गए. अमित की खोजबीन चलती रही. लेकिन मां का पता नहीं मिला. इतनी बड़ी दुनिया में ढूंढ़ पाना मुश्किल था. पर वह कुदरत से हमेशा मांगता था कि एक बार मां से मिल सकूं.


कुछ दिन बीत गए फिर अमित की शादी हो गई. सबकुछ अच्छा चल रहा था. मांपिताजी के जाने के बाद मैं  टूट गई थी. एक दिन अमित की मां को पक्षाघात पड़ा और उस के बाद तो वे बिस्तर से उठ नहीं सकीं. उन के लिए एक नर्स की तलाश थी क्योंकि अमित और नेहा दोनों ही सुबह से शाम तक बाहर रहते थे. मम्मी की देखभाल के लिए फुलटाइम कोई होना चाहिए. इसलिए अमित ने डाक्टर से पूछा तो डाक्टर ने उसे नंबर दिया और कहा कि आप इस नंबर पर फोन कर के पूछ लीजिए. आप को हमारे अस्पताल की एक सिस्टर, जो पिछले महीने रिटायर हुई हैं, यह उन का नंबर है.


अमित ने पूछा तो मैं ने तुरंत हां बोल दिया. धीरेधीरे अमित की मम्मी की तबीयत में सुधार होने लगा. वे मुझे दिल ही दिल में बहुत आशीर्वाद देतीं और कहती थीं कि बहन, तुम्हारा और मेरा पिछले जन्म का क्या नाता है जो तुम इतनी अच्छी तरह से देखभाल करती हो वरना आजकल तो पैसे दे कर भी कोई नहीं करता. शायद कुछ रिश्ता रहा हो.


उन की एक आदत थी. वे रोज रात को अपनी डायरी लिखती थीं. उन से कुछ पूछो तो वे कुछ नहीं बताती थीं. बस कहतीं कि एक ही तो जन्म मिला है जिस में जितनी सेवा की जाए उतनी कम है.


एक दिन बातों ही बातों में उन्होंने  बताया कि मेरा बेटा कितना खयाल रखता है, मेरा भी और आप का भी. ऐसा बेटा कुदरत सब को दे. वे बोलीं,”देखो, मैं रहूं या नहीं रहूं, तुम मेरे बेटे का ध्यान रखना.”


मैं समझ नहीं पाई कि वे ऐसा क्यों बोल रही हैं. उस दिन उन्होंने मुझे अमित के बारे में सबकुछ बताया कि हम उसे अनाथालय से लाए थे. मैं ने पूछा कहां से? मतलब किस अनाथालय से तो उन्होंने जो बताया उसे सुन कर मेरे पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई. मैं जान गई कि अमित मेरा ही बेटा है. वह मुझे बहुत अपना सा तो लगता था लेकिन समझ में नहीं आता था कि मैं जो सोच रही हूं सही है क्या? या मेरा वहम जो मेरा हर इंसान में अमित को खोजना…


ऐसे लग रहा था जैसे यहां से बहुत दूर चली जाऊं. लेकिन बेटे की ममता ने मेरे पैरों को रोक दिया. मैं ने तो सिर्फ जन्म दिया. जिस यशोदा ने मेरे बेटे को पालपोस कर बड़ा किया वह धन्य है. मेरे बेटे को जिंदगी दी उस देवी ने, उस देवी की सेवा करने का मौका मिला है. उसे छोड़ कर मैं कैसे जा सकती हूं… मैं मेरे बेटे की अपराधी हूं.


शायद मेरे अपराध की सजा पूरी हुई. कुदरत का लाखलाख शुक्रिया जो उन्होंने मेरे बेटे से मिलाया. वरना मैं तो अधूरी आस लिए इस दुनिया से चली जाती. पर मैं बेटे की जिंदगी पर अपने इस मनहूसियत की छाया नहीं आने दूंगी और उसे पता नहीं चलने दूंगी कुछ.


यशोदा के गुजर जाने के बाद मैं ने कहा कि बेटा, अब मुझे जाना होगा तब अमित ने रोक लिया,”आंटी, आप हमारे पास रहो न.”


यशोदा के गुजर जाने के बाद जब मैं ने उन की डायरी पढ़ी तब मुझे पता चला कि अमित यशोदा की नहीं मेरा बेटा था, जो इतने पास रहते हुए भी इतना दूर था.


कुदरत का लाखलाख शुक्र है जो मुझे मेरे बेटे से मिला दिया… कहते हैं न कि दिल से जिस को मांगो वह जरूर मिलती है, चाहे वह वस्तु हो या इंसान. बस, मांगना आना चाहिए और मिलने पर उसे पहचानने की नजर होनी चाहिए. अब मैं और मेरा बेटा साथ थे. बस एक कसक सी थी कि एक मां की तरह प्यार करने के बावजूद भी उसे हकीकत बता कर उस के दिल में मेरे लिए नफरत पैदा करना नहीं चाहती थी. अगर उसे जन्म दिया तो पालनेपोसने की जिम्मेदारी भी मेरी ही होनी चाहिए थी.

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