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कहानी: एक प्यार ऐसा भी

जेबा से बात करतेकरते कब फिरोज उस से प्यार करने लगा, उसे पता ही न चला. उसे जेबा के लिए स्ट्रौंग फीलिंग आने लगी थी, उस ने जेबा को प्रपोज कर दिया. लेकिन जेबा...? क्या वह भी फिरोज के लिए ऐसा ही महसूस कर रही थी?

उस दिन सूरज रोज की तरह ही निकला था. गरमी के दिनों में धूप की तल्खी इंसान को भी तल्ख कर देती है. फिरोज को नसीम को देख कर ऐसा ही लग रहा था.


नसीम अपनी ही धुन में बोले जा रही थी, ‘‘बहुत घमंडी है वह, खुद को जाने क्या समझती है?’’ नसीम बहुत गुस्से में थी.


‘‘लेकिन गलती तो तुम्हारी है न, फिर बात इतनी क्यों बढ़ाई?’’ फिरोज के इतना कहते ही नसीम भड़क गई, ‘‘तुम मेरे दोस्त हो या उस के?’’


‘‘तुम्हारा दोस्त हूं, इसी कारण समझाने की कोशिश कर रहा हूं,’’ फिरोज आगे भी कुछ कहना चाहता था लेकिन नसीम का गुस्सा देख कर चुप रह गया.


‘जब नसीम का गुस्सा कम होगा, तब इसे समझाऊंगा, अभी यह कुछ नहीं समझेगी,’ मन में ऐसा सोच कर न जाने क्यों फिरोज ने डिबेट ग्रुप से उस घमंडी लड़की का नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया.


?‘‘आप कौन?’’ मैसेज में चमकते उन शब्दों को देख कर फिरोज को ध्यान आया कि अनजाने में ही वह उसे एक मैसेज फौरवर्ड कर गया है.


‘‘मैं फिरोज हूं,’’ की बोर्ड पर टाइप करते हुए उस ने अपना परिचय दिया.


‘‘क्या आप मुझे जानते हैं?’’ इस प्रश्न पर फिरोज ने बताया कि मैं नसीम का दोस्त हूं.


‘‘ओह, कहिए, क्या कहना है आप को?’’

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‘‘कुछ नहीं, मैं ने गलती से यह मैसेज आप को भेज दिया. माफी चाहता हूं,’’ फिरोज ने शालीनता से कहा.


उस घमंडी लड़की से फिरोज की यह पहली बात थी.


फिरोज उसे पहले से जानता था. उस का नाम जेबा है. यह भी उसे पता था लेकिन वह फिरोज को नहीं जानती थी.


एक दिन बैठेबैठे न जाने क्यों फिरोज की इच्छा हुई जेबा से बात करने की लेकिन क्या कह कर वह उस से बात करेगा. क्यों नहीं कर सकता? दोनों एक ही विषय से जुड़े हैं, भले ही उन के कालेज अलगअलग हों और फिर नसीम वाली बात भी स्पष्ट कर लेगा. आखिर नसीम उस की सब से अच्छी दोस्त है.


फिरोज ने उस का नंबर डायल कर दिया.


‘‘हैलो, कौन बोल रहा है?’’ स्क्रीन पर अनजान नंबर देख कर ही शायद उस ने यह सवाल किया था.


‘‘मैं फिरोज, उस दिन गलती से आप को मैसेज किया था. नसीम का दोस्त,’’ फिरोज ने परिचय दिया.


‘‘कहिए, कैसे फोन किया?’’ जेबा ने मधुर मगर लहजे को सपाट रखते हुए सवाल किया.


‘‘जी, बस यों ही. दरअसल, हम दोनों के विषय एक ही हैं,’’ अचानक फिरोज को लगा कि वह बेवजह का कारण बता रहा है. ‘‘दरअसल उस दिन गलती नसीम की थी मगर वह दिल की बुरी नहीं, आप उस के लिए कोई मुगालता मत रखिएगा.’’


जेबा खूबसूरत होने के साथ काफी समझदार भी थी


‘‘मैं जानती हूं कि वह अच्छी है. वह तो बस उस का लहजा मुझे पसंद नहीं आया.’’ जेबा से थोड़ी देर बात कर फिरोज ने फोन रख दिया. जेबा की शालीनता से वह काफी प्रभावित हुआ. धीरेधीरे दोनों की बातें बढ़ने लगीं. फिरोज ने महसूस किया कि जेबा से बात कर के उसे अच्छा लगता है. ऐसा नहीं था कि जेबा से पहले उस ने लड़कियों से बात नहीं की थी मगर जेबा में कुछ अलग था. सब से बड़ी बात उस में और जेबा में स्वभाव में काफी समानता थी.


जेबा खूबसूरत होने के साथ काफी समझदार भी थी. उस से बात करते हुए फिरोज को समय का एहसास भी न होता था. एक रात दोनों चैटिंग कर रहे थे. जेबा ने फिरोज को वीडियोकौल कर दी. यह पहला मौका था दोनों का एकदूसरे से रूबरू होने का. फिरोज एकटक जेबा को देखता ही रह गया.


जेबा ने खिलखिला कर पूछा, ‘‘क्या हुआ आप को? ऐसे क्या देख रहे हैं?’’


फिरोज कहना तो बहुतकुछ चाहता था लेकिन अभी कुछ कहना शायद जल्दबाजी होती, इसलिए सिर हिला कर मुसकरा दिया. थोड़ी देर बात करने के बाद जेबा ने गुडनाइट कहते हुए फोन काट दिया.


फिरोज कौल कटने के बाद भी काफी देर तक मोबाइल स्क्रीन को देखता रहा और फिर बेखयाली में मुसकराते हुए उस ने स्क्रीन पर एक चुंबन जड़ दिया.


‘न जाने क्या है उस में जो मुझे अपनी तरफ खींचता है,’ आईने में बाल संवारते हुए फिरोज खुद से ही सवाल कर रहा था.


कालेज जाने के लिए बाइक स्टार्ट करने के पहले फिरोज ने मोबाइल में मैसेज चैक किए. मैसेज तो कई थे, बस जेबा का ही कोई मैसेज न था. फिरोज थोड़ा मायूम हुआ.


‘कहीं यह इकतरफा मोहब्बत तो नहीं. न…न… काश, वह भी मेरे बारे में ऐसा ही सोचती हो,’ मन ही मन सोच कर फिरोज ने बाइक स्टार्ट की ही थी कि मोबाइल पर किसी की कौल आई. जेब से मोबाइल निकाला. अरे यह तो जेबा है. आसमान की तरफ देख कर, धड़कते दिल को काबू में कर फिरोज ने फोन उठाया.


‘‘हैलो, क्या कर रहे हो?’’ उधर से जेबा का स्वर न जाने क्यों फिरोज को उदास सा लगा.


‘‘हैलो, मैं कुछ नहीं कर रहा. तुम बताओ,’’ फिरोज फिक्रमंद हुआ.


‘‘कालेज जा रहे होगे न? मैं ने तो बस यों ही कौल कर लिया था.’’


‘‘जेबा, तुम उदास क्यों हो? क्या हुआ है?’’ फिरोज अब परेशान हो गया.


‘‘मैं ने एक कंपीटिशन से अपना नाम वापस ले लिया,’’ कहती हुई जेबा हिचकियां ले कर रोने लगी.


फिरोज ने बाइक किनारे खड़ी की और एक पेड़ के सहारे खड़ा हो गया.


‘‘तुम मुझे पूरी बात बताओ जेबा. क्या और कैसे हुआ?’’ फिरोज काफी संजीदा हो गया था.


जेबा ने रोतेरोते सब बता दिया कि किस तरह चीटिंग कर के उस की जगह किसी और को फाइनल में भेजा जाएगा.


‘‘जेबा, अब तुम उस बारे में बिलकुल मत सोचो. मैं हूं न तुम्हारे साथ. ऐसे बहुत कंपीटिशन मिलेंगे तुम्हें,’’


फिरोज का मन कर रहा था कि वह किसी तरह जेबा के पास पहुंच कर उसे संभाल ले. उस की एकएक हिचकी पर फिरोज का दिल बैठा जा रहा था. आखिरकार उस ने पूछ ही लिया कि तुम कहां हो इस वक्त.

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‘‘घर पर,’’ जेबा ने छोटा सा जवाब दिया.


‘‘चांदनी चौक आ सकती हो? कहीं बैठें?’’


‘‘नहीं.’’


‘उफ्फ, फिर कैसे संभालूं इसे मैं,’  मगर फिर भी फिरोज उस से बातें करता रहा जब तक जेबा नौर्मल नहीं हो गई.


‘‘अब क्या करूं? कालेज का टाइम तो मोहतरमा ने निकलवा दिया और मिल भी नहीं रही,’’ नकली गुस्से में फिरोज ने जेबा से कहा तो जेबा ने भी शोखी से जवाब दिया, ‘‘तो चले जाते, हम ने कोई जबरदस्ती तो नहीं पकड़ा था आप को.’’


‘‘मैं कुछ कहना चाहता हूं जेबा, मगर डरता हूं कहीं यह जल्दबाजी तो नहीं होगी,’’ आज फिरोज दिल की बात जुबां पर लाना चाहता था.


‘‘मैं समझी नहीं. क्या कहना है आप को?’’ जेबा की आवाज से लग रहा था जैसे वह समझ कर भी अनजान बन रही है.


‘‘कह दूं.’’


‘‘जी, कहें.’’


‘‘आई लव यू जेबा. मैं बहुत स्ट्रौंग फीलिंग महसूस कर रहा हूं तुम्हारे लिए.’’


जवाब में दूसरी तरफ खामोशी छा गई.


‘‘जेबा, क्या हुआ? नाराज हो गईं क्या? कुछ तो कहो. देखो, मैं जो कह रहा हूं सच है और मैं इस के लिए सौरी नहीं बोलूंगा. आई रियली लव यू.’’


‘‘देखिए, मेरे मन में ऐसा कुछ भी फील नहीं हो रहा लेकिन जब भी ऐसा महसूस हुआ तो जरूर कहूंगी.’’


‘‘इंतजार रहेगा कि जल्दी ही वह दिन आए,’’ कहते हुए फिरोज ने अपने दिल पर हाथ रख लिया.


जेबा और फिरोज की बातें अकसर होती रहीं. एक दिन फिरोज ने जेबा से कहा कि उसे कालेज के टूर पर 2 दिनों के लिए जाना है. इस बीच हो सकता है उन की बात न हो सके.


जेबा ने फिरोज को हैप्पी जर्नी कहा लेकिन न जाने क्यों जेबा उदास हो गई. सहेलियों से बात करते हुए भी उसे बारबार एक खालीपन का एहसास हो रहा था. उस के अनमनेपन के लिए सहेलियों ने टोका भी लेकिन जेबा उन से क्या कहती.


शाम को फिरोज की कौल आते ही उस ने पहली ही घंटी में फोन उठा लिया.


‘‘कैसे हो? क्या कर रहे हो?’’ एक सांस में जेबा ने कई सवाल कर लिए.


‘‘क्या हुआ मैडम? मिस कर रही हो क्या मुझे,’’ फिरोज ने शरारत से पूछा.


‘‘नहीं, मैं क्यों मिस करने लगी,’’ जेबा ने अपनी बेताबी को छिपाते हुए कहा.


जवाब में फिरोज हलके से हंस दिया.


‘‘सुनो, आई लव यू.’’


‘‘क्या… क्या कहा तुम ने. फिर से कहो.’’


‘‘अब नहीं कह रही. एक बार कह तो दिया,’’ जेबा शरमा गई.


‘‘तुम रेडियो हो क्या जो दोबारा नहीं बोल सकती,’’ फिरोज जेबा से फिर से सुनना चाहता था, ‘‘मैं सुन नहीं पाया.’’


‘‘आई लव यू. अब तो सुन लिया न, बदमाश,’’ जेबा के गालों पर सुर्खी दौड़ गई.


‘‘आई लव यू टू,’’ कहते हुए फिरोज ने मोबाइल से ही एक फ्लाइंग किस जेबा की तरफ उछाल दी.


फिरोज बहुत खुश था और जेबा भी.


दोनों की बातें अब दिनोंदिन लंबी होती जा रही थीं. अभी तक दोनों एकदूसरे से मिले नहीं थे. एक दिन फिरोज ने जेबा से मिलने के लिए कहा. कालिंदी कुंज में दोनों तय समय पर मिलने आए. अपनी मोहब्बत को सामने देख कर दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं था. काफी समय साथ बिता कर रात में बात करने के वादे के साथ अपनेअपने घर चले गए.


जेबा अपने सब कामों से फ्री हो कर रात को 10 बजे फिरोज से बात करने के लिए औनलाइन आ गई. लेकिन फिरोज का कहीं पता नहीं था. थोड़ी देर बाद वह औनलाइन आया लेकिन उस ने जेबा को थोड़ा इंतजार करने के लिए कहा.


घड़ी की सूइयां खिसकती जा रही थीं और उस के साथ ही साथ जेबा का गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था क्योंकि वह फिरोज को औनलाइन आते देख रही थी मगर वह उस के मैसेज अनदेखे कर रहा था. आखिरकार, रात के 12 बजे जेबा के सब्र का पैमाना छलक गया और उस ने फिरोज को एक गुडनाइट के मैसेज के साथ थैंक्स लिख कर अपना मोबाइल स्विचऔफ कर लिया.


अगले दिन सुबह जेबा ने फिरोज को कई बार कौल किया लेकिन उस का फोन लगातार व्यस्त आ रहा था. दोपहर को फिरोज ने जेबा को फोन कर नाराजगी दिखाई और कहा कि उस का कजिन साथ था, वह उस के सोने का इंतजाम कर रहा था. इस कारण उस वक्त बात नहीं कर पाया. जेबा को इंतजार करना चाहिए था और सुबह वह रातभर जग कर थक कर सो गया था और उस का फोन कजिन इस्तेमाल कर रहा था.


जेबा यह सुन कर और भी नाराज हो गई, ‘‘जब तुम्हें पता था कि मैं तुम से गुस्सा हूं और सुबह तुम को फोन कर के लड़ं ूगी तो तुम ने अपना फोन अपने कजिन को क्यों दिया?’’


‘‘अरे उस का फोन खराब हो गया था और उसे अपनी गर्लफ्रैंड से बात करनी थी,’’ फिरोज को जेबा की बात सुन कर उस पर प्यार भी आ रहा था.


‘‘मुझे नहीं पता, तुम सौरी कहो.’’


‘‘मैं नहीं बोलूंगा.’’


‘‘क्या… नहीं बोलोगे?’’ जेबा भी जिद पर आ गई थी.


‘‘सौरी, सौरी नहीं कहूंगा.’’


‘‘चलो, दो बार कह दिया तुम ने सौरी. अब आगे से ऐसा मत करना,’’ जेबा ने इतरा कर कहा तो फिरोज उस की इस चतुराई पर हैरान रह गया और हंस पड़ा.


‘‘आई लव यू.’’


‘‘आई लव यू टू,’’ कहते हुए दोनों हंस पड़े, एकदूसरे के साथ जिंदगीभर यों ही हाथ पकड़ कर हंसते रहने के वादे के साथ.

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