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'तलाकशुदा' नेताजी को 'हमसफर' की तलाश, मान बैठे थे कि चाहने वालों की कमी नहीं पर टूट गया भ्रम

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. खुद को सुयोग्य और पूरी तरह दक्ष मानकर इतराते रहे नेताजी की कुंडली में कलह घर कर गया है। जिससे भी गांठ जोड़ी, उसी के साथ कुछ समय बाद रिश्तों में गांठ उभर आई। तेवर ऐसे हैं कि कड़वा घूंट पी नहीं सकते। जो जुबान पर आया, वह सुना डाला।

दरअसल, वह मान बैठे कि उनके चाहने वालों की कमी नहीं है। वह जिस दल के आंगन में कदम रखेंगे, वहां राजनीतिक संपन्नता बरसेगी। खैर, इस दफा भ्रम टूट गया। खटास दोनों तरफ भी, इसलिए 'तलाक' भी सहमति से हो गया। अब संकट यह है कि पुरानी मोहब्बत फिर हासिल करना आसान नहीं है, क्योंकि 'माफिया' से रिश्ते जगजाहिर हैं। चाहत नीले खेमे वालों के लिए भी है, लेकिन वह 'राजनीतिक चरित्र' पर सवाल खड़े कर मुंह मोड़ते दिख रहे हैं। अब बचे पंजे वाली पार्टी, लेकिन वह इन 'तलाकशुदा' नेताजी की नजर में फिलहाल पूरी तरह नाकाबिल ही हैं।

भ्रष्टाचार की धारा का उतार-चढ़ाव:

सरकारी सिस्टम में भ्रष्टाचार की धारा ऊपर से नीचे की ओर बहती है या नीचे से ऊपर की तरफ? यह पहले से ही स्पष्ट नहीं था कि अब ताजा मामलों ने इसे और उलझा दिया है। हाल ही में दो विभागों में तबादलों में हुई गड़बड़ियों का चिट्ठी खुला। खलबली मची और कयासबाजी शुरू हुई कि इसमें तो बड़े-बड़े निपटेंगे।

सड़क निर्माण वाले विभाग में कुछ को बचाते हुए जब बड़े अफसरों की गर्दन नापना शुरू हुआ तो संदेश गया कि उगाही की धारा ऊपर से नीचे बही होगी, लेकिन सेहत से जुड़े महकमे में चाबुक नीचे चल रहा और ऊपर वाले सेफजोन में खड़े दिखाई दे रहे हैं। भ्रष्टाचार कहें या गलती, दोनों विभागों में तबादले की प्रक्रिया और तौर-तरीका एक ही जैसा रहा है। फिर कार्रवाई में ऐसा अंतर क्यों आया? उसका इशारा साफ है कि मकसद दूसरों को सबक देना है। जो मरा कौव्वा जैसा दिखा, उसे आसानी से टांग दिया।

शांत धारा में बहते जल ने भी दिखा दिया कि उसमें कितना करंट है। माननीय ने अपना पद दांव पर लगाकर बगावत का बिगुल फूंका तो गूंज यहां से दिल्ली तक जा पहुंची। विभाग में चल रही अफसरों की मनमानी का ही भंडाफोड़ नहीं किया, बल्कि समकक्ष माननीयों की पीड़ा भी सबके सामने ला दी। यह दीगर बात है कि खामियों पर पड़ा पर्दा उन्होंने गलत तरीके से फाड़ा, लेकिन ऊपर वालों ने दखल देकर उसे तेजी से रफू भी करा दिया।

माननीय भविष्य में क्या खोएंगे-पाएंगे, यह बाद में मालूम चलेगा, लेकिन उन्होंने दूसरों के लिए उम्मीदों की खिड़की जरूर खोल दी है। उन्हें विश्वास है कि अधिकार न मिलने का जो सच ऊपर वाले जान गए हैं, वह देर से ही सही अब व्यवस्था तो बनवाएंगे। उसके बाद जो नाम के माननीय बने बैठे हैं, उनके हाथ में भी कुछ तो काम होगा। जब काम होगा, तो अफसरों से अधिकारपूर्वक जवाब तलब कर सकेंगे और अफसर मानेंगे भी।

बाकी दलों में सन्नाटा पसरा है, लेकिन भगवा खेमे में आए दिन ऐसे मौके आ रहे हैं कि ऊपर वाले चाहे जिस कार्यकर्ता का कद-पद बढ़ा दें। अभी उच्च सदन की सीटें खाली पड़ी हैं। अटकलें चलते महीनों बीत गए कि इनके नाम पर मुहर लग सकती है, उनके नाम फाइनल हो गए हैं, लेकिन फिल्म आगे नहीं बढ़ रही है। इसी बीच दो सीटों को भरने का वक्त और गया।

निर्णय ऊपर वालों को करना है, लेकिन यह सोचकर कोई हाथ पर हाथ धरे तो बैठा नहीं रहेगा। जिन्होंने उम्मीदें पाल रखी हैं, वह चाहते हैं कि अपनी तरफ से कुछ प्रयास किए जाएं, लेकिन अब नई विडंबना खड़ी हो गई है। हाल के कुछ उदाहरणों से वह इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सही जगह कनेक्शन जोड़ने पर ही लाभ होगा। अब समझ नहीं पा रहे हैं कि किसकी परिक्रमा लगाई जाए, जिसका आशीर्वाद कल्याण करा सके।

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