'हरे रामा! सावन भी बीता जाए... बदरा नाही बरसे रे हारी' इन गीतों से इंद्रदेव को मना रहे किसान
गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. सावन के महीने की शुरूआत रिमझिम फुहारों के स्वागत के साथ होती है। इसी के साथ कजरी गायन भी आरंभ हो जाता है। लेकिन अब बारिश न होने पर किसान काफी परेशान हैं और वे कजरी केे गीत गाकर प्रकृति को मनाने में लगे हुए हैं।
बहराइच के फखरपुर ब्लाक के बसंता गांव के पशुपालक बरसात न होने पर अलग ही अंदाज में ईश्वर को मनाते नजर आ रहे हैं। जब चार लोग पशुओं को लेकर हरियाली की जगह सिवान पहुंचते हैं तो सूखी धरा बीते जमाने के गीतों की याद दिला देती है। वह अपने स्वरों में इंद्रदेव को मनाने में जुट जाते हैं।
गांव निवासी अयोध्या प्रसाद मिश्र, कृपाराम यादव छोटू, सियाराम यादव, मुसाऊ अपने दुधारू जानवरों को चराने के लिए जब घर से निकलते हैं और हरे-भरे घास वाले खेतों में पड़े सूखे को देखते हैं। वरुणदेव को कजरी, बिरहा से विरह गीत तक अपने स्वरों में वह किसान भैंस की पीठ पर बैठकर अलाप लेते नजर आते हैं।
रसखान, सूरदास और रत्नाकर के गीत, उसे सुनने को राहगीर भी ठहर जाते हैं। चाहे वह आल्हा-ऊदल की लड़ाई का प्रसंग हो या कजरी गीतों का राग अलाप। आज भी लोगों के दिलों में बसाकर गीतों से प्रकृति को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
सावन का महीना मानव जीवन से लेकर कृषि जगत तक के जीवन में बदलाव की एक नई शुरूआत का प्रतीक है। फिलहाल की परिस्थितियों में बारिश न होने से किसान चिंतित हैं। सावन का महीना हमारे अन्नदाताओं के लिए एक उत्सव है। सावन की बूंदों का असली स्वागत तो किसान करता है। इसी समय धान की बोआई होती है।
किसान आसमान में काले बादलों की प्रतीक्षा कर कर के थक चुके हैं। यह गीत अब हर किसी की जुबां पर है। 'हरे रामा! सावन भी बीता जाए... बदरा नाही बरसे रे हारी।'