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कहानी: बेटे का विद्रोह

कुछ सालों के बाद मौसाजी का ट्रांसफर हो गया, तो वह लड़कों के साथ कमरे में रहने लगा. अपने खर्चे के लिए मौल में पार्टटाइम जौब कर लेता.

एक रूढिवादी परिवार, जहां परदा, पूजापाठ, व्रतउपवास आदि पुराने नियम चलते हैं, पर पत्नी के हिस्से में डांटफटकार, गालीगलौज, कभी हाथ भी उठा देना… यह देख  बेटा तिलमिला कर रह जाता… घर के बिजनैस को छोड़ कर नौकरी उस ने ज्वायन कर ली… वहीं शादी भी कर ली. घर आया करता, लेकिन अपनी शादी के बारे में कभी नहीं बताया.


यह कहानी पतिपत्नी के आराम से रहते हुए शुरू होती है और वे बिना पूजापाठ किए कैसे मजे से रह रहे हैं, यह दिखाती है… मुसीबत तब आती है, जब बेटे की मां धमक जाए कि शादी तोड़ो, वरना पिता की अपनी और संयुक्त परिवार की संपत्ति सारी बेटी को चली जाएगी… जिस का पति सजातीय, पूजापाठी, ऐयाश और निकम्मा है.


पिछली बातें मांबेटे के संवादों से बाहर आ सकती हैं. मां दुहाई दे कि मरणासन्न कोमा में पड़ा पिता बिना वसीयत के जा रहा है और दामाद घर दबोचने को तैयार है… बेटी सुनती नहीं…


किरिस्तानी लड़की,


‘सुशीलाजी, हम ये क्या सुन रहे हैं… शिव ने कोर्ट में किरिस्तानी लड़की से शादी कर ली,’ पंडित रामकिशोर क्रोधित स्वर में बोले थे.


‘ये क्या कह रहे हैं आप? शिव ऐसा  नहीं कर सकता…’


‘लो देख कर अपना कलेजा ठंडा कर लो…’ उन्होंने अपने फोन पर फोटो खोल कर दिखाई, ’बहू तो सुंदर दिखाई पड़ रही  है.’


‘सुंदरता ले कर चाटो न… न दान, न दहेज. तुम्हारा बेटा तो पैदाइशी बेवकूफ है… पढ़ाईलिखाई ने और भी दिमाग खराब कर दिया है…’ पंडितजी बोल पड़े…


‘किस ने बताया तुम्हें? आम खाने से मतलब है कि गुठली गिनने से…’ वह गुस्से से थरथर कांप रहे थे.


‘शिव से मेरे सारे नातेरिश्ते खत्म,’ कह कर वह भरभरा कर जमीन पर गिर पड़े थे… सुशीलाजी पति की हालत देख घबरा उठीं.


सुशीलाजी पति के सिर को अपने पैरों पर रख उन्हें सांत्वना देने लगीं. पंडितजी  नशे में धुत्त थे. वह अकसर ऐसे बेहोश हो जाया करते थे, परंतु सुशीलाजी के लिए शिव का शादी कर लेना  बहुत बड़ा झटका था… वह सिसक कर रोने लगीं, ’हाय शिव, यह तुम ने क्या किया… मेरे सारे अरमानों पर पानी फेर दिया…’


थोडी ही देर में संयत होने के बाद वे बोलीं, ‘देखिएजी, सुनैना और कुंवरपाल को कानोंकान खबर नहीं लगनी चाहिए, नहीं तो पूरी बिरादरी में  बात फैल जाएगी. हम खुद शिव और बहू को ले कर आएंगे और धूमधाम से पार्टी कर के सब को बता देंगे…’


वे मन ही मन सोचने लगीं कि शिव के घर न आने की यही वजह होगी, तभी उसे घर आए सालभर से ऊपर हो गया है, लेकिन उन्हें विश्वास था कि बेटा उन की बात को नहीं टालेगा…


तभी उन का फोन बज उठा. उधर शिव था, ’अम्मां, मैं औफिस के काम से मुंबई जा रहा हूं… फ्लाइट में हूं…’


‘शिव, मेरा बच्चा… तुम कब आओगे… तुझे घर आए पूरे एक साल हो गए हैं… तेरे पापा की तबियत ज्यादा खराब है… तुम ने तो हम लोगों को बिलकुल त्याग ही दिया है… न होली पर आए, न दीवाली पर… तेरे पापा तो धीरेधीरे खटिया से लगते जा रहे हैं… वह दुकान भी नहीं जा पाते… तुम्हारा इंतजार देखतेदेखते तो आंखें थक गईं… मैं उन की फाइल ले कर आ रही हूं… किसी बड़े डाक्टर का इलाज करवाना होगा.


‘हां, हां… आप परेशान मत हो… आप को आने की जरूरत नहीं है… मैं औनलाइन मोहित से मंगवा लूंगा… उस ने कह तो दिया.’


लेकिन शिव मन ही मन परेशान हो उठा था. चाहे कितने ही बुरे हों उस के अम्मांपापा… वह उन का अच्छे से अच्छा इलाज करवाएगा…


‘ठीक है अम्मां, हम आप का टिकट करवा कर बताते हैं. इन दिनों औफिस में काम ज्यादा है, नहीं तो मैं खुद आ जाता.’


उस की आंखों के सामने अपनी अम्मां का रोतासिसकता चेहरा सजीव हो उठता था. कभीकभी तो उस की आंखें भी छलछला उठती थीं, जब पापा उस की अम्मां पर नाहक ही चिल्लाचिल्ला कर गाली देना शुरू कर देते थे. यदि वह जरा भी मुंह खोलतीं, तो अकसर उन की पिटाई भी कर देते. इसी वजह से  पिता के प्रति जरा भी कोमल भावनाएं नहीं थीं, वरन नफरत की भावना कूटकूट कर भरी हुई  थी.


पंडित रामकिशोर दिल्ली से तकरीबन 300 किलोमीटर की दूरी पर कासगंज में रहते थे. यह एक छोटा सा शहर है. उन के पास संयुक्त परिवार की जायदाद से काफी पैसा आता था, जिसे वह अकेले हजम करते थे. किसी चाचा को उन का हिस्सा नहीं देते. जब भी कोई बंटवारे की आवाज उठाता है, उसे गोलमोल उत्तर दे कर टरका देते, क्योंकि वह बहुत कंजूस और लालची थे. उन का  अपना साड़ियों का थोक का बिजनैस है, लेकिन सिद्धांत है कि ‘चमड़ी चली जाए, लेकिन दमड़ी न जाए…’ बी. टाउन की जीवनशैली है, “मोटा खाओ मोटा पहनो.‘’


सुबह जोरजोर से घंटी बजाबजा कर भजन गाना, गले में रंगबिरंगी माला उन की पहचान थी. वह साथसाथ में अम्मां के लिए गाली निकालते रहते. और जब किसी भी व्यापारी या दुकान के किसी काम से फोन आए, तो चीखनाचिल्लाना साथ में. मुंह से गालियों की बौछार करते रहना. हाथ की उंगली तो माला के दाने सरकाती जाती है, लेकिन जबान और दिमाग खुराफात में बिजी रहता है.


रात में दारू की बोतल पी कर आना और गालियों की बौछार करते हुए घर में घुसना, यह तो उन की पुरानी आदत थी.


शिव को तो अपने पापा से नफरत है, इसीलिए वह उन से बात नहीं करता. वह अपनी दादी को बहुत प्यार करता था. वे भी उसे बहुत चाहती थीं. उन्हें टायफायड हो गया, तो पापा कंजूसी के मारे कभी वैद्यजी की पुड़िया, तो कभी हकीमजी का काढ़ा, तो कभी होमियोपैथिक दवा…


अम्मां, ये दवा बहुत बढ़िया है… दवा के सारे एक्सपैरीमेंट उन पर होते रहे और जब बहलाफुसला कर कागजों पर दस्तखत करवा लिए और तिजोरी की चाबी हथिया कर सब सामान चुपचाप पार कर दिए, तो पापा ने उन की ओर आंख उठा कर देखना भी बंद कर दिया था.


उन की हालत खराब होने की खबर जब शांति बूआ को लगी, तो वे आ कर उन्हें अपने साथ ले गई थीं. जब 6 महीने के बाद दादी गुजर गईं, तो मुंह फाड़फाड़ कर ‘हाय अम्मां हमें छोड़ गईं‘ रोरो कर दुनिया को दिखा रहे थे. फिर तेरहवीं पर अपनी बिरादरी और पंडितों की दावत कर अपनी जातिबिरादरी में अपना नाम ऊंचा कर लिया.


जब वह 7-8 साल का था, तभी सुनैना दीदी की शादी खूब धूमधाम से की, मुंहमांगी रकम भी शादी में दी और साथ में दिल खोल कर खर्च भी किया था… लेकिन फिर तो घर में एकएक पैसे के लिए दिनभर वह अम्मां पर चिल्लाया करते.


उस समय वह छोटा था, तो बचपन से सभी बच्चों की तरह पढ़ने की जगह खेलने में मन लगता था. दूसरे बच्चों की तरह कभी कंचा, तो कभी गिल्लीडंडा, कबड्डी, पहलवानी में बहुत मजा आता. उसे अखाड़े में कुश्ती देखने में बहुत आनंद आता. अपने बगीचे में जा कर अमरूद, खीरा, आम तोड़ कर खाना उसे बहुत अच्छा लगता. मुख्य बात यह थी कि वह पढ़ने से जी चुराता था. उसे बाजार की चाट बहुत अच्छी लगती. पापा जब हिसाब मांगते, तो घर के सामान में तिकड़म भिड़ा कर, कभी यहां से तो कभी वहां से पैसे ताड़ कर मौजमस्ती कर लेता… यह सब 10 -11 साल की उम्र तक चलता रहा, लेकिन जैसेजैसे बड़ा होता गया, पापा की गालियां और बातबात में पिटाई बुरी लगने लगी थी. अब उन का पूजापाठ भी ढोंग लगता था.


सुनैना दीदी का आनाजाना  और फरमाइशें बढ़ती जा रही थीं… वे जब आतीं तो उन की गोद में एक बच्चा रहता… घर का माहौल तनावपूर्ण रहता… वह चुपकेचुपके अम्मां से कुछ मांगतीं और पापा से रोधो कर मांग कर ले जातीं… उस का नतीजा उसे भुगतना पड़ता… स्कूल की फीस के लिए भी पापा परेशान करते… जैसे ही वह किसी चीज के लिए कहते… जैसे खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे, उसी तरह उस को डांट कर भगा देते… और अकसर पिटाई भी कर देते… वह बड़ा हो रहा था.


उस की दोस्ती अमन से हो गई थी. वह क्लास में फर्स्ट आता था. उस की मम्मी टीचर थीं. एक दिन वह उस के घर गया तो आंटी ने अमन के साथ उस को भी पढ़ने के लिए बिठा लिया.


अब तो वह हर रोज उन के घर पढ़ने के लिए जाने लगा था. नतीजा यह हुआ कि वह हाईस्कूल में फर्स्ट आया और उमा मौसी जो दिल्ली में रहती थीं, वह अपने घर पर रखने को राजी हो गईं.


पापा को लगा कि बिल्ली के भाग से छींका टूटा… आंटी के सिफारिश करने की वजह से वहां का फार्म भर दिया और किस्मत से एडमिशन भी हो गया…


बस उम्र के साथसाथ अक्ल भी आ गई कि उसे पढ़ कर कुछ बनना है… बस जुट गया पढ़ाई में.


कुछ सालों के बाद मौसाजी का ट्रांसफर हो गया, तो वह लड़कों के साथ कमरे में रहने लगा. अपने खर्चे के लिए मौल में पार्टटाइम जौब कर लेता. अपनी फीस के लिए भी नहीं कहता. होलीदीवाली की छुट्टियों में जाता तो लायक बेटा बन कर जो कहते चुपचाप कर देता, लेकिन अम्मांपापा की लड़ाईझगड़ा, गालीगलौज और मारपीट देख मन खट्टा हो जाता और घर से मन उचटता गया.


जब वह दिल्ली में एमबीए कर रहा था, तभी रोजी पहली नजर में उसे भा गई थी. एमबीए करते ही प्लेसमेंट हो गया. रोज रोजी से मुलाकातें होती रहीं और वह उस के प्यार में डूबता गया. उसे अच्छी तरह पता था कि पापा क्रिश्चियन लड़की से शादी करने को कभी भी राजी नहीं होंगे, क्योंकि इस से  बड़ा अधर्म उन के लिए कुछ हो ही नहीं सकता. इसीलिए कोर्ट में शादी करने के सिवा कोई चारा ही नहीं था.


समय बीतता गया. अब तो पूरा साल बीत गया. जब फोन आता है, तो कह देता हूं कि ‘मीटिंग में हूं… बिजी हूं… छुट्टी नहीं मिल रही है आदि.’


एक सुबह वह सो कर उठा ही था कि फोन की घंटी घनघना उठी थी. सुबह के 7 बजे वाचमैन बोला, “कोई सुशीलाजी और गगन आप से मिलना चाहते हैं.”


“आप ऊपर भेज दें,” कहते ही उस के होश उड़ गए थे. अम्मां रोजी को देखेंगी, तो क्या होगा? शायद गगन ने रोजी के बारे में अम्मां को  बता दिया है.


यहां उजाले में नहाते हुए बड़े से शीशे में अपने को देख उन्हें सुखद एहसास हुआ था, जिस को उन के चेहरे की मुसकराहट बयान कर रही थी.

वह मन ही मन लापरवाही से बोला, ‘जो होगा देखा जाएगा. एक दिन तो बताना ही था. आज ही मैं उन्हें बता दूंगा कि मैं ने रोजी के साथ शादी कर ली है, “शुभस्य शीघ्रम.‘’


उस ने मन ही मन अम्मां का सामना करने के लिए अपने को तैयार कर लिया था. रोजी भी घबराई हुई थी, जाने क्या हंगामा होने वाला है. वह मन ही मन डर रही थी. वह अपने कमरे में चली गई थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि उसे क्या करना चाहिए.


“अम्मां आई हैं…” सुनते ही शिव भावुक हो कर लिफ्ट से तेजी से मां से मिलने को आतुर हो नीचे पहुंच गया था. उन के पैर छू कर वह उन से लिपट गया. मांबेटे दोनों की आंखों से आंसू बह निकले थे.


गगन उस की दूर की बूआ का बेटा था. वह भी उसी कंपनी में काम करता था. अम्मां को शायद उस ने ही बताया होगा…


“क्यों शिव, हमें किसी ने बताया है कि तुम ने ब्याह कर लिया है?”


‘धीरे बोलो अम्मां… घर के अंदर चलो. सब बताते हैं.‘


वे घर में घुसते ही सुंदर साजसज्जा को देखती ही  रह गईं, “मुझे लग रहा है कि यह बात सच है कि तुम ने   शादी कर ली है…”


“मेरी बात मत काटो. अब मैं  बिरादरी वालों के सामने क्या मुंह दिखाऊंगी शिव, तुम बहुत ही नालायक निकले… मेरी नाक कटा कर रख दी आदि कह कर रोतीबिसूरती रहीं.


“देखिए अम्मां, शादी तो हम ने कर ली है. अब जैसे बात बने वह करिए.*


“यह तो बताओ कि कौन जाति की है?”


शिव बात बदलते हुए बोले, “अम्मां, पापा कैसे हैं?”


“पापा का तो वही हाल है. पहले भांग का गोला खाते थे, अब तो दारू की बोतल के सिवा उन्हें कुछ नहीं चाहिए.’’


“तुम्हारे जीजा कुंवरपाल और पापा बैठ कर बोतल चढाते हैं… जिज्जी भी लालची हो गई हैं. धीमेधीमे मुझे तो किनारे कर दिया है और खुद ही मालकिन बन गई हैं,‘’ कहतेकहते वे आंसू बहाने लगी थीं.


“बेटा शिव, तुम से हाथ जोड़ कर कह रहे हैं… तुम घर चलो, नहीं तो सारी जायदाद पर तुम्हारे जीजा कब्जा कर लेंगे.‘’


वह अम्मां के साथ बातों में व्यस्त था. लेकिन रोजी को ले कर परेशान था कि तभी रोजी अपने हाथ में ट्रे में चायनाश्ता ले कर आई.


वह उसे देख कर दंग रह गया था, क्योंकि उस ने साड़ी पहन रखी थी. उस ने आते ही अम्मां के पैर छू कर उन का दिल जीत लिया था. उन्होंने प्यार से उसे आशीर्वाद दे कर अपने बगल में बिठा लिया.


‘शिव, बहू तो सुंदर भी है और सलीके वाली भी. किसी अच्छे घरपरिवार की दिखाई पड़ रही है,’ उन्होंने अपने हाथों से सोने के कंगन उतार कर उसे पहना दिए थे. वह मन ही मन डर रहा था कि रोजी अम्मां को यह न बता दे कि वह क्रिश्चियन है.


उस ने रोजी को इशारा कर के वहां से अंदर जाने को बोल दिया और बोला, ‘अम्मां, तुम नहाधो कर तैयार हो जाओ. फिर हम लोग नाश्ता करेंगे… तब तक मैं डाक्टर से बात करता हूं…”


’’लाओ, उन की रिपोर्ट हमें दे दो. तब तक हम देखें कि क्या गड़बड़ है…”


वह पापा की फाइल में रिपोर्ट को बड़े ही ध्यान से पढ़ने लगा था…


सुशीला घर की एकएक चीज को बड़ी बारीकी से देख रही थीं. बाथरूम में रखे शैंपू, फेसवाश, लोशन आदि की बोतलों को उठाउठा कर समझने की कोशिश कर रही थीं. उन्हें अपने घर का सीढ़ियों के नीचे बना हुआ ढाई फुट का अंधेरा सा गुसलखाना, जिस में जीरो पावर का टिमटिमाता बल्ब, जिस में बिजली के गुल होते ही घना अंधेरा छा जाता था. साथ ही, सीलन की अजीब सी बदबू से वहां भरी रहती थी…


यहां उजाले में नहाते हुए बड़े से शीशे में अपने को देख उन्हें सुखद एहसास हुआ था, जिस को उन के चेहरे की मुसकराहट बयान कर रही थी.


जब वे बाहर आईं, तो शिव ने उन के सामने आसन बिछा दिया था, क्योंकि वह जानता था कि अम्मां पहले पूजा करेंगी, तब नाश्ता करेंगी… उन्होंने अपने बैग से कुछ किताबें और माला निकाली… उन की उंगलियां तो माला के दाने सरकाती जा रही थीं, परंतु आंखें तो रोजी के इर्दगिर्द घूम रही थीं.


दोनों के फोन लगातार बज रहे थे, क्योंकि आज उन लोगों की एनिवर्सरी की पार्टी पहले से प्रायोजित थी. उन लोगों के फ्रेंड्स विश कर रहे थे.


“क्यों शिव, आज कुछ खास बात है क्या…? बहुत फोन आ रहे हैं.”


“हां अम्मां, आज पार्टी है… हम लोगों की शादी को पूरे एक साल हो गए हैं…


आप बड़े ही मौके से आई हैं… आप को सब दोस्तों से मिलवाएंगे…”


“नहीं शिव, हम होटल वगैरह में कभी गए नहीं हैं… मुझे नहीं अच्छा लगेगा…”


“वहां रोजी की मां भी आएंगी… आप उन से भी मिल लेना…”


“एक शर्त पर मैं चलूंगी कि तुम घर चलने का वादा करो…”


“ठीक है. रात में  प्रोग्राम सेट करता हूं… पहले डाक्टर से बात कर लूं…”


रोजी समझदार थी. आज  वह इंडियन स्टाइल में तैयार हुई थी. पिंक कलर की साड़ी, चूड़ियां और गजरे में वह बहुत सुंदर लग रही थी. वह इस तरह किसी त्योहार पर ही तैयार हुआ करती थी. शिव रोजी को देखता ही रह गया था.


सुशीलाजी बेटेबहू की सुंदर जोड़ी को देख कर अपने मन की सारी उलझन भूल  कर खुश हो कर बेटेबहू की नजर उतार कर बोलीं, ‘रामसीता सी जोड़ी है‘ और आशीर्वादों की झड़ी लगा दी थी.


मां को हंसतेमुसकराते देख  शिव को अम्मां का पहले वाला रोतासिसकता चेहरा याद आ गया था.


शाम को पार्टी में खूब मस्ती हुई. जब रोजी अम्मां का हाथ पकड़ कर डांस के लिए ले कर आई, सब ने  खूब तालियां बजाई थीं.


पल्लव, जो उस का खास दोस्त था, वह बोला, ‘शिव, तू ने सही फैसला ले कर रोजी से शादी कर ली. दोनों कमा रहे हो… गाड़ी ले ली, फ्लैट भी ले लिया, लाइफ को एंजौय कर रहे हो. आज आंटी भी कितनी खुश दिख रही हैं… मुझे देखो, अम्मांपापा की जिद के चक्कर में  35 का हो गया हूं… उन्हें दहेज के साथ ढेर सारा नकद चाहिए, तो मुझे  प्रोफेशनल लड़की चाहिए… बस इसी झमेले के झूले में साल दर साल उम्र बढ़ती जा रही है. मैं तो अपनी जिंदगी से तंग आ गया हूं. मन करता है कि पंखे से लटक जाऊं और जिंदगी से छुट्टी मिल जाए…‘


शिव अपनी उलझनों में उलझा था… अभी पापा का सामना करना है और सब से छिपाना है कि रोजी क्रिश्चियन है… वह स्वयं गहरी सोच में था… उस के चेहरे पर तनाव परिलक्षित हो रहा था…


‘पल्लव इस तरह से जिंदगी से हार नहीं मानते… उस ने उस के कंधे को थपथपा कर कहा, ‘दोस्त यह जिंदगी एक जंग है’ कह कर वहां से  हट कर दूसरे दोस्तों को अटेन करने लगा था…


शिव और अम्मां दोनों ही अपनीअपनी उधेड़बुन में लगे हुए थे…


आज वह अम्मां के बगल में लेटा हुआ लाड़ जता रहा था…


“पार्टी तो बहुत बढिया रही… लेकिन शिव, तुम ने अभी तक नहीं बताया कि तुम्हारी बहू कौन जात की है…


“गगन बता रहा था कि  वह किरिस्तानी है…”


“तो क्या अछूत हो गई… सुंदर है… अच्छे घरपरिवार की है… सब सही है… तो अब किरिस्तानी है…


इसीलिए तो मैं घर आया नहीं… न जीओगी, न ही जीने दोगी… इतना मूड अच्छा था… सब खराब कर के रख दिया…’ वह नाराज हो उठा.


“सब जायदाद कुंवरपाल अपने नाम करवा लेंगे. तुम्हें कुछ भी नहीं मिल पाएगा…” अम्मां ने दूसरा पासा फेंका था.


नाराज शिव बिफर कर बोला, “अम्मां, आज तुम्हें जमीनजायदाद की याद आ रही है. जब स्कूल में मैं फटा जूता पहन कर जाता था… और बच्चे मुझे चिढ़ाया करते थे, तब  तुम लोगों को दर्द नहीं हुआ था…”


“क्या करते शिव… तुम्हारे बाबू के सामने बोलते तो खुद ही पिट जाते…”


“आप भूल गईं होंगीं… जब हम पार्वती के साथ बगीचे में लुकाछिपी खेल रहे थे, तो पापा ने मुझे जाड़े में ठंडे पानी से नहला दिया था कि पार्वती दलित है, अछूत है… तुम ने उसे क्यों छुआ… मैं कांपता रहा, रोताबिलखता रहा… उन्हें जरा भी दया नहीं आई और आप उन की हां में हां मिलाती रही थीं…”


“क्या करते शिव? यदि हम कुछ बोलते, तो वह हमें भी पीटपीट कर अधमरा कर देते…”


हमें यहां आए 3 दिन हो गए. तुम्हारे पापा का न जाने क्या हाल होगा? बेटा जल्दी करो... कह कर वह रोआंसी हो उठी थीं.

“जब मेला देखने के लिए पैसा मांगे, तो पापा ने डांट कर भगा दिया. फिर मैं ने चुपके से तुम्हारे डब्बे से 50 रुपए ले लिए थे, तो आप ने चिमटे से हाथ जला दिया था. यह देखो, आज तक निशान पड़ा है…”


“जब सुमित्रा की अम्मां ने आ कर झूठमूठ कह दिया था कि तुम्हारे बेटे ने हमारी बिटिया को छेड़ा है, तो आप लोगों ने मुझ से एक बार भी नहीं पूछा और पापा सब के सामने ही चप्पल ही चप्पल पीटने लगे थे… गाली तो हर समय उन की जबान पर रहती थी…”


मांबेटे दोनों की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे…


“पापा ने जिज्जी की शादी  अपनी बिरादरी, कुल, गोत्र और जमीनजायदाद देख कर नकारा लड़के के साथ कर दी तो अब झेलो… जल्दीजल्दी 4 बच्चे भी हो  गए. उन्हें न पढ़ाना और न लिखाना… बस, अपनी जातिबिरादरी देखती रहना…”


“सारी जिंदगी पापा से गाली खाती रहीं और पिटती रहीं. आज हम अपनी जिंदगी में कमा खा रहे हैं… चैन से जी रहे हैं, तो कभी किरिस्तानी, तो कभी कुछ कह रही हो… न मुझे आप के जेवर का लालच है और न ही जमीनजायदाद का. मुझे कुछ नहीं चाहिए… मैं अपनी जिंदगी में बहुत खुश  हूं… आप सबकुछ जिज्जी को दे दीजिए. मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता…”


शिव उठने को  हुआ, तो उन्होंने उस की बांह पकड़ कर रोने का उपक्रम करने लगीं, ’हाय राम, बेटा तुम्हारे पापा को वहां के डाक्टर ने जवाब दे दिया है… तुम्हें उन की जरा भी चिंता नहीं है. उन का लिवर और किडनी दोनों ही खराब हो गए हैं. बचने की उम्मीद ना के  बराबर है…”


“तो मैं क्या करूं…? जो करे वह भरे. मैं कुछ  नहीं कर सकता.”


“अपने बाप के पैसे पर ऐश करने वाले अनपढ,  बेरोजगार, गंजेडी, शराबी लड़का ढूंढ़ा, जो उन की जातबिरादरी का था. कुंडली में 36 गुण मिलाए गए, फिर  जिज्जी का ब्याह कर दिया… न पढ़ाया, न लिखाया…


“अपनी जिंदगी खराब कर रखी है और जिज्जी की बरबाद कर रखी है… 4-4 बच्चे हैं. वह भी ऐसे ही रह जाएंगे… ‘


ऐसा सुन कर वे सिसकने लगी थीं. बोलीं, “बेटा, असल में तुम्हारे जीजा किसी दूसरी औरत के चक्कर में पड़ गए हैं. पहले तो हम सब तुम से छिपाते रहे, लेकिन अब तो सारी रकम धीरेधीरे दूसरी औरत का घर भर रही है और बाकी नशे की भेंट चढ़ रही है…”


“फिर भी तो जब से आई हो, कौन जाति की है…? किरिस्तानी है… कहे जा रही हो… यदि आप के दिमाग से किरिस्तानी का भूत उतर जाए, तो मैं  कासगंज कुछ दिन की मैडिकल लगा कर वर्क फ्रोम होम ले सकता हूं…


“आप अच्छी तरह ठंडे दिमाग से खूब सोचविचार कर लो…” कह कर उस ने घड़ी देखी. रात के 3 बज चुके थे. वह तेजी से उठ कर अपने बेडरूम में चला गया था.


सुशीलाजी की आंखों की नींद उड़ गई थी. सही तो कह रहा है. किरिस्तानी है तो क्या हुआ… रूप, गुण, संस्कार, इतनी पढ़ीलिखी है, औफिस जाती है और मेरे पैर छूती है… उन के मन की बंदिशें उन्हें समझा रही थीं. जातबिरादरी, कुंडली  का क्या फायदा मिला… उन का अपना जीवन गाली खाते और पिटते बीता और अब बिटिया की जिंदगी भी वैसी ही बीत रही है…


पंडितजी की तो किडनी 70 साल में खराब हुई और कुंवरपाल तो यदि 40 साल भी चल जाए तो समझो… उन के मन की बेड़ियां उन्हें धिक्कार रही थीं… दोनों कितने प्यार के साथ खुशीखुशी रह रहे हैं और वहां तो दिनभर लड़ाईझगड़ा और आपस में गालीगलौज के सिवा कोई कुछ जानता ही नहीं…


उन्हें अपने घर की भलाई  देखनी चाहिए कि कौन क्या कह रहा है… यह सोचना चाहिए… रातभर की ऊहापोह, तर्कवितर्क के बाद संशय का कुहासा छंट गया था और सदियों से चली आ रही मन की जंजीरें टूट चुकी थीं…


उन्होंने सुबह उठते ही शिव और रोजी को प्यार से लिपटा कर कहा, ”आज तुम दोनों ने अपनी बात और व्यवहार से मेरी आंख पर से जातपांत की बेड़ियों   के बंधन को काट कर रख दिया है… काश, मुझे पहले किसी ने इस तरह समझाया होता तो घर की बरबादी न होती… कोई बात नहीं, देर आयद दुरुस्त आयद… तुम लोगों को मेरे साथ कासगंज चलना है… अपने औफिस से चाहे छुट्टी लो, चाहे घर से   काम करो… यह सोच कर चलो कि वहां तुम लोगों को  लंबे समय तक रहना पड़ेगा…


हमें यहां आए 3 दिन हो गए. तुम्हारे पापा का न जाने क्या हाल होगा? बेटा जल्दी करो… कह कर वह रोआंसी हो उठी थीं.


रोजी बोली, “मेरे पास तो साड़ियां 2-4 ही होंगी…”


“बेटी, तुम जो चाहे पहनना. कपड़ों की चिंता मत करो. दुकान से आ जाएंगे. कासगंज छोटी जगह तो है, लेकिन सबकुछ मिल जाता है.


“कुंवरपाल और सुनैना को तो हम समझ लेंगें…”


अम्मां का यह बदला हुआ नया रूप शिव को अनजाना सा लग रहा था, परंतु उस के मन में साहस भी जगा रहा था कि यदि अम्मां का साथ मिलेगा, तो रोजी को  वहां रहने में परेशानी नहीं होने वाली.


अम्मां को तो उस ने दब्बू स्वभाव और पापा की हां में हां मिलाते हमेशा देखा था.


शिव को महसूस हो रहा था कि अम्मां अपने बचपन की अधूरी ख्वाहिशों को रोजी के माध्यम से पूरा कर के खुश होना चाहती हैं…


यह सत्य भी है कि हर लड़की को शादी के बाद अपनी इच्छाओं, सपनों, अपनी सारी ख्वाहिशों को पति और परिवार के लिए बक्से में बंद कर स्टोररूम के कोने में रख देना पड़ता  है और आज भी देखा जाता है कि पति परमेश्वर का पुरुषोचित अहंकार पत्नी की ख्वाहिशों के रास्ते में आड़े आ जाता है. परिवार और बच्चों के लिए हमेशा पत्नी को ही समझौता करना पड़ता है. ऐसा क्यों है…?


सब से पहले उस ने स्टाक लिया. उस ने एक एकाउंटेंट रखा और कई कैमरे लगवा कर अपने फोन के साथ अटैच कर लिया.

रोजी को देखते ही चारों तरफ मे कौवे की तरह सब कांवकांव करने लगे, परंतु  सुशीलाजी के बदले हुए तेवर देख कर चाहे कुंवरपाल हो, चाहे सुनैना हो, सब की बोलती बंद हो गई थी.


पंडितजी शायद बेटे का ही इंतजार कर रहे थे. बेटे को देख कर तसल्ली से उन की आंखें बंद हो गई थीं. उन की जीवनलीला समाप्त हो चुकी थी.


घर में कर्मकांड को ले कर गरमागरम बहस चालू हो गई.


शिव को न ही समाज के ठेकेदारों की परवाह थी और न ही रिश्तेदारों के बकवास की…. जीजा कुंवरपाल और सुनैना जीजी ने भरसक कोशिश की  सनातन रीतिरिवाज से मृतक की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और अन्य क्रिया भाई शिव करे, परंतु वह अपने निर्णय पर अटल रहा. उस ने तीन दिन के अंदर शांति पाठ और हवन कर के अनाथालय में बच्चों को भोजन करवा कर इस कार्यक्रम की समाप्ति कर दी.


शिव के आने के बाद घटनाएं इतनी तेजी से घटी थीं कि वह दुकान पर अपना ध्यान नहीं दे पा रहा था.


दुकान का तो बुरा हाल हो  चुका था. न ही कोई  ढंग से  हिसाबकिताब था और न ही लिखापढ़ी, क्योंकि पापा महीनों से दुकान आते नहीं थे, इसलिए कुंवरपाल ने दोनों हाथों से लूट मचा रखी थी.


सब से पहले उस ने स्टाक लिया. उस ने एक एकाउंटेंट रखा और कई कैमरे लगवा कर अपने फोन के साथ अटैच कर लिया. अब वह घर में रह कर दुकान पर भी अपनी नजर रख सकता था.


जब कुंवरपाल ने ज्यादा नाटक फैलाया, तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया कि यह घर और दुकान पर मेरा भी हक बनता है, इसलिए मेरे हिसाब से रहना होगा, नहीं तो आप दोनों को अपना बोरियाबिस्तर समेट कर अपने गांव जाना होगा…


कुंवरपाल का नशा मुक्ति केंद्र से इलाज करवा कर उन के मन से नशा छुड़वाने की कोशिश की. जब पैसे की कमी होने लगी, तो दूसरी महिला ने किसी दूसरे से दोस्ती कर ली थी. कुंवरपाल बेबस पक्षी सा फड़फड़ा रहे थे, परंतु अब तो वह अनुशासन के पिंजरे में बंद कर दिए गए थे.


सुशीलाजी, शिव और रोजी की तिकड़ी ने किसी की  नहीं चलने दी थी. सोने पे सुहागा यह हुआ कि कोरोना के कारण  लौकडाउन लग गया और औफिस का काम औनलाइन ही होना था.


जब लौकडाउन खुला, तो वह अम्मां को ले कर दुकान गया और उन्हें समझाबुझा कर दुकान की मालिक की गद्दी पर बिठा दिया…


पहले तो वे सकुचाईं, परंतु अपना यह नया जीवन रास आने लगा था.


रोजी ने दीदी के बच्चों को अनुशासन और पढ़ाई की बागडोर संभाल ली थी. 6-8 महीने के अंदर ही घर का कायाकल्प हो चुका था. चारों बच्चे समय से पढ़ते, समय से खेलते और रोजी के इशारों पर चलते…


सुनैना ने भी बहुत हाथपैर मारे कि किसी भी तरह रोजी को न टिकने दें और उसे परेशान करें, नहीं तो सत्ता उन के हाथों से निकल जाएगी, परंतु सासबहू की इस जोड़ी ने ऐसा करिश्मा कर दिखाया, जो उस ने कभी सपने में नहीं सोचा था, लेकिन बच्चों को पढ़ते देख सुनैना खुद भी चुपकेचुपके पढ़ने की कोशिश करने लगी थी…


लगभग डेढ वर्ष के बाद जब वह गाजियाबाद के लिए लौट रहा था, तो सब की आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे… सुशीलाजी शिव से फुसफुसा कर बोलीं कि किरिस्तानी लड़की ने तो कमाल कर दिया…


शिव ने भी रोजी को चिढ़ाते हुए कहा, “किरिस्तानी लड़की…”

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