ओमप्रकाश राजभर-शिवपाल से बढ़ती दूरियों के बीच अखिलेश को मिलने लगे नए 'हमराह'
गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. यूपी की सियासत में समाजवादी पार्टी के लिए पिछले कुछ दिनों से संकट की स्थिति दिख रही है। विधानसभा चुनाव और उसके बाद आजमगढ़-रामपुर लोकसभा उपचुनाव में हार के बाद 'अपनो' ने अलग-अलग कारणों से दूरी बनानी शुरू कर दी है। हालांकि इसी बीच कुछ 'बेगाने' माने जाने वाले नजदीक आ रहे हैं। ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा सपा से हाथ छुड़ाने की तैयारी में दिखती है तो संकट के वक्त कांग्रेस सपा की हमराह बनती दिख रही है।
राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के पक्ष में सपा और कांग्रेस साथ साथ हैं। इसलिए जब अखिलेश यादव ने लखनऊ में यशवंत सिन्हा के पक्ष में रात्रि भोज का आयोजन किया तो ओम प्रकाश राजभर व शिवपाल यादव को नहीं बुलाया गया। लेकिन कांग्रेस की नेता व विधायक अराधना मिश्र मोना इस आयोजन में शामिल हुईं।
विधान परिषद में जब सपा का नेता प्रतिपक्ष का दर्जा खत्म किया गया तो सपा ने इस पर ऐतराज जताया। इस मुहिम में कांग्रेस ने सपा का साथ दिया और इसे सरकार का मनमाना निर्णय बताया। कांग्रेस के पूर्व एमएलसी दीपक सिंह ने इसे नियम विरुद्ध बताया।
असल में 2017 के चुनाव बाद सपा कांग्रेस की राहें अलग हो गईं लेकिन दोनों के बीच उस तरह की तल्खी नहीं आई जितनी सपा बसपा के रिश्तों में आ चुकी है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और सपा एक दूसरे के नजदीक आते दिखें तो कोई हैरत नहीं। इसकी वजह है कि इस पर कोई नीतिगत मतभेद जैसी स्थिति नहीं है।
सपा कांग्रेस पर सीधे हमला करने से बचती है। विपक्षी एकता तो अब बिखर रही है लेकिन कांग्रेस का सपा के प्रति नर्म रुख नए सियासी समीकरणों को जन्म दे सकता है। राष्ट्रपति चुनाव बाद भाजपा विरोधी दल एक साथ नए गठबंधन में आ सकते हैं।