गाजीपुर से बनारस के बीच गंगा में जल परिवहन के गतिरोध को दूर करने का प्रयास शुरू
गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. बनारस से गाजीपुर के बीच गंगा में जलपरिवहन के गतिरोध दूर करने का प्रयास शुरू हो गया है। दरअसल, यह प्रयागराज से हल्दिया तक देश के पहले राष्ट्रीय जलमार्ग-एक का हिस्सा है, लेकिन बारिश के मौसम के बाद गाजीपुर में गंगा का जलस्तर बेहद कम हो जाने से मालवाहक जलपोत का संचालन मुश्किल हो जाता है।
सात जगह गहराई कम
पत्तन पोत परिवहन और भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आइडब्ल्यूएआइ) की टीम ने वाराणसी से गाजीपुर के बीच ऐसे सात स्थानों को चिह्न्ति किया, जहां गंगा की गहराई बहुत कम है।
बड़े-बड़े बांस लगाए जाएंगे
इन स्थानों पर बड़े-बड़े बांस की जाली लगाई जा रही है। इससे बारिश के मौसम में जब पानी बढ़ेगा तो नदी का फैलाव रुकेगा और बालू भी नहीं फैलेगी। साथ ही तेज बहाव में पानी के साथ बालू भी आगे बह जाएगी।
10 से 15 करोड़ रुपये खर्च
टीम में शामिल आइआइटी रुड़की के प्रोफेसर नयन शर्मा ने बताया कि ड्रेजिंग काफी महंगी तकनीक है और इसमें हजारों करोड़ का खर्च आता है। बांस की जाली की तकनीक में 10-15 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इससे पहले हमने वाराणसी के नगवा में यह कार्य किया है। वहां सफलता मिली है।
लक्ष्य गंगा की कटान रोकना ताकि सालभर सुचारु रहे जलमार्ग
प्रो. शर्मा के अनुसार हमारा लक्ष्य गंगा की कटान को रोकना है। कटान रुकेगा तो गंगा गहरी होंगी। बाढ़ के समय गंगा में बालू और मिट्टी आती है। बांस की जाली होने के कारण बालू और मिट्टी का आना कम होगा। प्रवाह घटने से कटान रुकेगा और गंगा का पानी गांवों की तरफ नहीं फैलेगा। इससे गहराई बढ़ेगी और जलमार्ग वर्षभर सुचारु रूप से चलेगा।
आइआइटी रुड़की तीन विधा सबमज्र्ड वेन, बल्ली स्क्रीन, वेटीवर ग्रास पर काम कर रहा है।
सबमज्र्ड वेन: चिह्न्ति स्थानों पर 12 मीटर की लंबाई में बांस लगाते हैं, जो तीन मीटर अंदर होते हैं।
बल्ली स्क्रीन: बाढ़ के समय जब पानी बल्ली स्क्रीन से टकराकर धीमा हो जाएगा। इससे पानी रुकेगा।
वेटीवर ग्रास: यह घास बालू में आसानी से जड़ जमा लेती है। कुछ जगहों इसका प्रयोग किया जा रहा है।
अमेरिका चीन और जापान में होता यह प्रयोग
प्रो. नयन शर्मा ने अमेरिका, चीन व जापान में नदी की गहराई बनाए रखने और उसका फैलाव रोकने की तकनीक का अध्ययन किया है। उनके साथ आइडब्ल्यूएआइ पटना के निदेशक डा. धीरज, अर¨वद कुमार, आरसी पांडेय, वाराणसी से राकेश कुमार, डा. जयकांत और नोएडा मुख्यालय से मो. असलम, हेमंत कुमार गुप्ता भी थे।
इसलिए ड्रेजिंग का विरोध
नदी या जल स्नोत को गहरा करने के लिए ड्रेजिंग आसान तरीका है लेकिन विज्ञानी कई बार इसके पक्ष में नजर नहीं आते हैं। यह जलस्नोत के तलछट को नुकसान पहुंचा सकता है। लघु और दीर्घकालिक में जल को प्रदूषित कर सकता है और जल स्नोत या समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट कर सकता।
क्या है ड्रेजिंग
ड्रेजिंग एक जल स्नोत (नदी, पोखर आदि) से सामग्री की खुदाई की एक तकनीक है। ड्रेजिंग का उपयोग मौजूदा जल सुविधाओं में सुधार, जल निकासी की व्यवस्था या व्यावसायिक उपयोग के लिए जल स्नोत के आकार को बदलना, गहरा करना है। मुख्य रूप से इसका उपयोग पानी को पुन: प्राप्त करने के लिए किया या अधिक गहरा बनाने के लिए किया जाता है। ड्रेज को सक्शन या मैकेनिकल के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
उत्तराखंड में लगी है याचिका
उत्तराखंड में रिवर ड्रेजिंग पालिसी 2021 को चुनौती देती एक जनहित याचिका लगी है। इसमें ड्रेजिंग की आड़ में अवैध खनन का आरोप लगाया गया है।