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कहानी: जमाना बदल गया

खुद में खोई रहने वाली धवला की कहानी है यह. बला की खूबसूरत, बेइंतिहा अदाओं वाली धवला की कहानी. धवला… मातापिता ने शायद उस के दूधिया रंग की वजह से उस का नाम रखा होगा. रूई के फाहे के जैसा कोमल और मुलायम. उस का अंगप्रत्यंग जैसे कुदरत ने खास शौक से गढ़ा था. उस के जैसा तो कोई दूसरा हो ही नहीं सकता. सारा सोना उस के बालों में जड़ दिया था, शायद तभी तो सुनहरी उड़ती जुल्फें कयामत ढाती थीं.

संगमरमरी माथे पर जब सुनहरी लटें बलखाती थीं तो ऐसा लगता था मानों हिमालय के सीने पर सूरज पिघलने लगा हो और बेबसी ऐसी कि बस पिघलते जाओ, पिघलते जाओ, जब तक फना न हो जाओ.


सुर्ख गालों की लाली, तपते अंगारे और उन का करम इतना कि हरकोई चाहे कि उन की तपिश में अपने हाथ जला ले. ग़ुलाबी मुसकराते होंठों से झांकती दंतपंक्तियां और सुराहीदार गरदन जो देखने वालों की प्यास बढ़ा दें और वह चातक की तरह उस की एक बूंद को भी तरसे. कुदरत ने 1-1 अंग ऐसे तराश कर बनाया था कि अंजता की मूरत भी फीकी पड़ जाएं.


खूबसूरती, नजाकत और अदाओं की मलिका धवला अपने नैसर्गिक सौंदर्य के साथ ही तीक्ष्ण मस्तिष्क की स्वामिनी भी थी. स्कूल में हर क्लास में नंबर वन, कालेज में नंबर वन… इन सभी विशेषताओं के होते हुए भी उस में न तो घमंड था न ही वह बदतमीज थी. बहुत ही कूल नैचर था उस का. जिस से मिलती, बस उसे अपना बना लेती. सभी प्लस पौइंट थे उस में, सिर्फ एक माइनस पौइंट था, वह यही कि वह मनमौजी थी, वही करती जो उसे करना होता. सहीगलत कभी नहीं सोचती, बस उसे जो अच्छा लगा यानी वही सही.


धनाढ्य परिवार में जन्मीं धवला परिवार में भी सभी की प्रिय थी. पापामम्मी, दादादादी, चाचाचाची सभी की लाड़ली धवला जिस चीज पर हाथ रख देती, बस अगले पल वह उस के हाथों में होती. धवला का सब से अच्छा दोस्त उस का छोटा भाई रंजन था. दोनों भाईबहन एकदूसरे पर जान छिड़कते थे. सबकुछ अच्छा था, सबकुछ सामान्य था, लेकिन कुछ तो था जो अलग था धवला में.


कहने को तो मैं उस की मौसी थी लेकिन बचपन से धवला और मैं फ्रैंडली थे. उस का मौसी बोलना मन मोह लेता था. मुझे कभीकभी उस की बहुत फिकर होती थी. ऐसा लगता था कि मैं उसे जीवन की गहराई को समझाऊं, उसे बताऊं कि जिंदगी सिर्फ सपनों में खोए रहने का नाम नहीं है, जमीनी हकीकत से जब सामना होता है, तो खुद को संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है.


हां, उसे कभी भी कोई कांटा भी न चुभे, लेकिन अगर ऐसा हुआ तो न वह बरदाश्त कर पाएगी और न ही हम. लेकिन कभी मौका नहीं मिला या समझ में नहीं आया कि उसे जीवन की सचाई से कैसे रूबरू करवाऊं, क्योंकि वह तो जब भी मिली भोली सी मुसकान के साथ और साफ दिल से, बस गले लग जाती और सुना देती कोई नया स्वप्निल सा किस्सा. उस की दुनिया में तो सबकुछ हाईप्रोफाइल था. ब्रैंडेड शौपिंग, ब्रैंडेड ऐक्सेसरीज, मौल्स, हाईफाई लाइफस्टाइल, घूमनाफिरना, मौजमस्ती, हंसनाखिलखिलाना, इसी को वह दुनिया समझती थी.


यह तो वह खूब जानती थी कि कुदरत ने उसे बेइंतिहा खूबसूरत बनाया है. जब लोगों की निगाहें उस पर ठहरती थीं उस का दूधिया चेहरा गुलाबी हो जाता था. स्कूल के दिनों से ही कई लड़के उस के दीवाने थे, लेकिन धवला हर किसी को घास नहीं डालती थी. अपने स्टेटस से मैच करते हुए लड़के को सिलैक्ट करती, कुछ दिन उस के साथ मिलतीजुलती, लेकिन जल्द ही बोर हो जाती और फिर नया ब्रैंडेड बौयफ्रैंड चुन लेती. कपड़ों की तरह ही इन लड़कों को ज्यादा दिन झेल नहीं पाती और बदल देती.


“आशी, धवला की सगाई पक्की कर दी है, लड़का अपने शहर का ही है, परसों कार्यक्रम है, तुम कल ही आ जाओ,” धवला की मां शालिनी ने फोन पर मुझे शौर्ट नोटिस दिया.


“अरे दीदी, इतनी जल्दी में यह सब…धवला तैयार है न?” मैं ने पूछा.


“हां जी, तैयार है, खुश है, शौपिंग में लगी है. तुम कल सुबह ही तशरीफ ले आओ, तुम्हारी लाड़ली भांजी की सगाई है…”


“दीदी, वह तो है…मेरी क्या, वह तो हम सब की लाड़ली है, मैं सुबह आती हूं,” दीदी ने फोन रख दिया, पर मेरा दिमाग चकरा रहा था. ये लोग कुछ जल्दी तो नहीं कर रहे हैं? धवला को कहां अभी शादी की गहराई पता है? शादी को निभाना बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है, धवला बेशक बहुत प्यारी है, मेरी जान है लेकिन शादी…कल मैं खुद उस से बात करूंगी.


सुबह के 8 बजे थे. घर में चहलपहल शुरू हो चुकी थी, हरकोई अपनेअपने स्तर पर काम में व्यस्त था, रिश्तेदारों को फोन लगाए जा रहे थे, सभी जगह बुकिंग कर व्यवस्थाएं की जा रही थीं, लेकिन धवला अभी बेफिक्र सो ही रही थी.


“धवला, गुडमौर्निंग… उठो अभी तक सो रही हो, उठोउठो जल्दी से उठो डियर,” मैं ने धवला को जगाते हुए कहा.


“ओह… मौसी लव यू…वेरी गुडमौर्निंग,” वह मुझे देख कर एकदम खुशी से बोली और लिपट गई.


“बधाई हो, तुम ने तो सरप्राइज कर दिया, बताया भी नहीं और एकदम सगाई…” मैं बोली.


“क्या मौसी… मम्मापापा ने कहा, तो मैं ने सोचा यह ऐक्सपीरियंस कर के भी देख लें. आओ दिखाती हूं कल की ड्रैस और ज्वैलरीज, एकदम क्लास, बैस्ट बुटीक से लहंगा लिया है. मौसी, आई एम सो ऐक्साइटेड,” धवला मासूमियत से बोली.


“हां बेटू, आई नो वेरी वेल, बट लाइफ इछ नौट एन ऐक्साइटमैंट ओनली, इट इज वैरी बिग चेलैंज,” मैं ने धवला को कुछ समझाने का प्रयास किया.


“ओह… माई स्वीट मौसी, डोंट वरी, ट्राई करने मे क्या जाता है, सूट नहीं किया तो बायबाय…” धवला हंसती हुई बोली.


“नहीं बेटा, ऐसा नहीं होता, शादी बहुत बड़ा और गंभीर फैसला है, इसे मजाक में नहीं लिया जा सकता… और..”


“मौसी…आप भी न, बहुत स्वीट हो. अपनी इस मिडिल क्लास सोच को बदलो. ऐंजौय… लाइफ को ऐंजौय करो, इतना टैंशनफुल मत बनाओ,” धवला मुसकान बिखेरती हुई बोली.


“चलोचलो… नाश्ता लग गया है, आ जाओ टेबल पर,” तभी शालिनी कमरे में आते ही बोली.


“दीदी, सब अच्छे से पता कर लिया है न, सबकुछ धवला के हिसाब से है न,” मैं ने दीदी से पूछा.


“ओए… जिंदगी की प्रोफैसर, सबकुछ ठीक है, वे लोग हम से भी ज्यादा रईस हैं, नौकरचाकर किसी चीज की कमी नहीं. धवला वहां भी ऐसे ही रहेगी, जैसे यहां रहती है, चिंता मत कर,” शालिनी ने विश्वास दिलाया.


“मम्मा, मौसी भी न, कुछ ज्यादा ही सोचती हैं, कूल मौसी कूल…” धवला अपने बालों को समेटते हुए बोली.


“लव यू डियर, चल जल्दी से फ्रैश हो कर नाश्ते पर आ जा,” मैं ने धवला को चूमते हुए कहा.


“मौसी, मम्मी बुला रही हैं आप को,” तभी धवला के छोटे भाई रंजन ने आ कर कहा.


“हां आती हूं,” कह कर मैं डाइनिंगरूम की तरफ बढ़ गई. आलीशान पार्टी का इंतजाम था, धवला तो जैसे कोई परी की तरह लग रही थी, मासूमियत से भरी खूबसूरत बला. हर किसी की निगाहें उसी पर टिकी हुई थीं. धवला नजाकत से हर ऐंगल से अपने फोटो खिंचवाने मे तल्लीन थी, जैसे सगाई कोई त्योहार है और बढ़िया से तैयार हो कर खूब फोटो सैशन करना है.


लड़के ने धवला को डायमंड रिंग पहनाई, धवला फूली नहीं समा रही थी, फिर धवला ने भी लड़के को डायमंड रिंग पहनाई. आसमान से हेलीकौप्टर के द्वारा फूल बरसाए गए. अद्भुत स्वप्निल नजिरा था, धवला तो जैसे उड़ीउड़ी जा रही थी, उस की अपनी ख्वाबों की दुनिया में. सबकुछ बढ़िया से निबट गया. अगले दिन मैं भी धवला को ढेरों शुभकामनाएं दे कर घर लौट आई.


अभी 15 दिन ही बीते थे कि 1 दिन दीदी का फोन आया, “सुन, धवला कह रही है कि उसे शादी नहीं करनी, एमबीए करने बंगलुरू जाना है…”


“दीदी, क्या आप भी… उसे समझाइए, मुझे तो पहले से ही इस बात की चिंता थी, उस का नैचर ही ऐसा है. वह ज्यादा दिनों तक एकजैसा जीवन नहीं जी सकती, उसे नित नए ऐक्सपीरियंस करने होते हैं, लेकिन जीवन में ऐसा नहीं होता, मैं आऊं क्या उस को समझाने के लिए?”


“कोई फायदा नहीं, उस ने जो सोच लिया है वही करेगी, हम यह सगाई तोड़ रहे हैं, आज लड़के वालों को बता देंगे, अब क्या करें जब धवला का मन ही नहीं है,” शालिनी ने संयमित शब्दों में कहा.


“जैसा तुम लोग ठीक समझो,” मैं ने भारी मन से फोन रख दिया. धवला बंगलुरू चली गई. कुछ दिनों बाद पता चला कि वहां किसी के साथ लिवइन में रह रही है. उस का फोन आता रहता, वह अपनी बातें मुझ से शेयर करती रहती. मैं उसे समझाती तो मुझे प्यार से झिड़की दे कर फोन बंद कर देती. अब तो उस की लाइफ स्वच्छंद थी, हाईप्रोफाइल जौब भी था. पैसे से मांबाप का सौलिड सपोर्ट था, बस रोज पार्टियां, मौजमस्ती…  धवला को यह सब अच्छा लग रहा था.


2 सालों तक जौब करने के बाद  उस ने सूचित किया कि वह लिवइन पार्टनर से शादी कर रही है. कहीं कुछ सुकून मिला, यह सोच कर कि लिवइन में रह कर उस ने शादी का फैसला किया है तो शायद उसे उस का सच्चा साथी मिल गया है. सभी खुश थे. दीदी, जीजाजी ने एक गेटटूगेदर पार्टी भी दी, जिस में रिश्तेदारों और परिचितों को बुला कर इस शादी से अवगत करवाया. फंक्शन में मैं ने धवला के हसबैंड प्रथम से बातचीत की, लड़का सुलझे विचारों का था, संतोष हुआ कि चलो, वह धवला को अच्छी तरह समझता है और निभ जाएगा.


“जीजू, कुछ दिन यहीं रुकते न आप,” रंजन ने प्रथम से कहा.


“नहीं रुक सकते प्रथम, एक प्रोजैक्ट पर काम चल रहा है, तुम चलो हमारे साथ बंगलुरु,” प्रथम बोला.


“जीजू, मैं ने अभी अभी पापा का औफिस जौइन किया है, थोडा काम समझ लूं, फिर आता हूं न आप के पास,” रंजन हंसते हुए बोला.


“हां, अब इस की भी तो शादी करनी है, कब तक बचेगा बच्चू,” मैं ने हौले से रंजन के कान उमेठते हुए कहा.


“अरे अभी नहीं मौसी…” रंजन वहां से भाग लिया. लेकिन कब तक भागता, कुछ ही महिनों मे रंजन का रिश्ता भी पक्का हो गया. जीजाजी के फ्रैंड की बेटी शमिता को रंजन के लिए चुन लिया गया. शमिता के पिता शहर के नामी बिल्डर थे, बस दोनों परिवार एकदूसरे जानते थे, बात पक्की हो गई. विवाह के अवसर पर धवला और प्रथम भी आए थे. धवला कुछ उखड़ी सी लगी, मेरा माथा ठनका. मैं ने अकेले में धवला से पूछा, “सब ठीक है न…”


“नहीं, मौसी… अब यह प्रथम बच्चे के लिए जिद कर रहा है.”


“बेटा, वह तो नैचुरल है, शादी की है तो बच्चा भी तो चाहिए न…” ”


“मौसी, बच्चवच्चे के लिए मैं ने शादी नहीं की है, बट यू डोंट वरी, मैं प्रथम को समझा लूंगी…”


“क्या समझाओगी, बेटा मैं भी यही कहूंगी कि अब तुम्हें बच्चे के बारे में सोचना चाहिए…”


“आप कुछ मत कहो, आप तो कुछ समझतीं ही नहीं… मौसी, जिंदगी ऐंजौय का नाम है, यह सब टैंशन पालने का नहीं. एक तो मम्मा से भी आज लड़ाई हो गई. मौसी, वे मेरे लिए शमिता से हलका लहंगा लाईं. आप को तो पता है मैं हमेशा बैस्ट चीज ही पहनती हूं. मुझे नहीं पहनना उन का लाया हुआ लहंगा, मैं जो ड्रैस लाई हूं उसी में बैस्ट सिलेक्ट करूंगी, पर पहनूंगी तो बैस्ट ही…”


मुझे एक दूसरे युद्ध की आहट सुनाई पड़ रही थी, क्योंकि अब तक तो घर में धवला ही सर्वोपरि थी, लेकिन अब नई बहू आ रही थी, जो हैसियत में धवला से कम न थी. विवाह निबट गया, रंजन और शमिता हनीमून के लिए सिंगापुर चले गए, प्रथम भी अब धवला से चलने को कह रहा था. लेकिन धवला टाल रही थी,”मौसी, मैं कुछ दिन आप के साथ रहना चाहती हूं, चलूं आप के साथ?” धवला ने अचानक कहा.


“हांहां…चल न, प्रथम और तू दोनों कुछ दिन मेरे साथ रहो,” मैं ने खुशी से कहा.


“नहीं मौसी, प्रथम को तो कल जाना पड़ेगा, अर्जेंट काम है, मैं अकेली ही चलूंगी आप के घर…”


“ठीक है बेटा, जैसा तुम लोग ठीक समझो…” अगले दिन प्रथम बंगलुरू  चला गया और धवला मेरे साथ मेरे घर आ गई.


“तू बैठ, मैं कौफी बना कर लाती हूं…”


दोनों साथ बैठ कर कौफी पी रहे थे, तभी धवला बोली, “मौसी, आप कितनी लकी हो, आप ने शादी नहीं की, आराम से अपने हिसाब से जीती हो…”


“हां… मैं ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.


“मौसी, वैसे आप ने शादी क्यों नहीं की?”


“बेटा, था कुछ ऐसा…”


“क्या था, प्लीज बताओ न?”


“धवला, मैं जिन से प्यार करती थी, मजबूरीवश उसे कहीं और शादी करनी पड़ी, पर मैं तो दिल से उसे ही सबकुछ मान बैठी थी, उस के अलावा किसी और से शादी करने का विचार भी कभी मन में नहीं आया…”


“क्या, एक ऐसा आदमी जिस ने आप को धोखा दिया, बीच मझदार छोड़ दिया उस के लिए आप ने अपनी सारी जिंदगी खत्म कर दी, क्या मिला आप को?”


“आत्मिक सुख, अपने प्यार के लिए सदैव समर्पित रहने का सुख…”


“वाह मौसी, यू आर ग्रेट…अब सुनो, मैं अब प्रथम के पास वापस नहीं जाऊंगी. उस की सोच मुझ से बिलकुल अलग है. मम्मापापा के घर अब मुझे वह अपनापन नहीं लगता. शमिता के आ जाने से उन में फर्क आ गया है. मौसी, मैं तुम्हारे पास रह सकती हूं न? कुछ दिनों में मेरी जौब लग जाएगी, तो मैं अलग घर ले लूंगी, चलेगा न मौसी,” धवला ने फैसला सुना दिया.


मैं ऐसे ही किसी फैसले के लिए पहले से तैयार थी इसलिए ज्यादा हैरानी नहीं हुई. अब कमरे में 2 शख्स बैठे थे, एक जिस ने प्यार के खातिर अकेलापन अपनाया था और एक वह जो प्यार का मतलब ही समझ नहीं पाई थी. मैं अपनी पुरानी यादों में खोई थी और धवला फेसबुक पर नई फ्रैंड रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर रही थी. जमाना वाकई बहुत बदल गया है.

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