विश्व पटल पर चमकीं गीतांजलि श्री गाजीपुर में चाचा-चाची के यहां खाती थी बाटी चोखा
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. गाजीपुर जिले का करइल का क्षेत्र गौरवान्वित है। इस मिट्टी की मेधा की सुगंध इंग्लैंड तक पहुंच गई। गाजीपुर जिले के गोंड़उर गांव की बिटिया गीतांजलि श्री ने विश्व का सबसे बड़ा साहित्य पुरस्कार बुकर प्राप्त कर विश्व पटल पर चमकीं है। गीतांजलि श्री को उनके उपन्यास “रेत की समाधि’ के अंग्रेजी संस्करण ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ को बुकर सम्मान के लिए चुना गया।
गीतांजलि श्री के बाबा स्व. रामसेवक पांडेय झारखंड में शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। उनके बेटे स्व. अनिरुद्ध पांडेय प्रयागराज से सेवानिवृत्त जिलाधिकारी थे। अनिरुद्ध पांडेय के दो पुत्रों और तीन पुत्रियों में गीतांजलि श्री बीच की हैं। गीतांजलि के भाई स्व. शैलेन्द्र पांडेय आइएएस थे और दूसरे भाई ज्ञानेंद्र पांडेय ऑस्ट्रेलिया में प्रोफेसर। इनके परिवार के चचेरे चाचा -चाची का परिवार रहता है।
गीतांजलि श्री बचपन में पिता के साथ गांव आतीं थीं, लेकिन बाद में पढ़ाई की व्यस्तता में गांव आना जाना नहीं हुआ। बावजूद इसके उनका अपने गांव की माटी और यहां के रीति रिवाज व खानपान से काफी गहरा लगाव है। संगे संबंधियों और गांव के लोग इनके पिताजी के यहां आते जाते थे। गीतांजलि श्री को गाजीपुर की बाटी चोखा, राब, मकूनी, ढूंढी-ढूढा, मिर्च के अचार काफी पसंद है। उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा है कि आज मैं जो कुछ भी हूं उसमें अपना गांव रीति रिवाज और अपनी जड़ों के कारण हूं।
तीन उपन्यास व कई कथा संग्रह हैं लिखे
गीतांजलि श्री तीन उपन्यास और कई कथा संग्रह लिख चुकी हैं। उनकी रचनाओं का अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, सर्ब और कोरियाई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। वहीं, टूंब आफ सैंड का अनुवाद करने वाली डेजी राकवेल एक चित्रकार और लेखिका हैं, जो अमेरिका में रहती हैं। उन्होंने हिंदी और उर्दू की कई साहित्यिक रचनाओं का अनुवाद किया है। उन्होंने इस किताब को हिंदी भाषा के लिए प्रेम पत्र कहा है। टूंब आफ सैंड दुनिया के उन 13 पुस्तकों में शामिल थी, जिसे अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए लिस्ट में शामिल किया गया था। अंत में शार्टलिस्ट छह पुस्तकों में टूंब आफ सैंड ने बाजी मारकर इतिहास रच दिया। (मीडिया इनपुट्स के साथ)