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कहानी: मोक्ष

बाबा प्रसाद में  रोहन को नशा मिला कर देते थे. उस प्रसाद को खाने के बाद रोहन को अंदर से बेहद सुकून मिलता था.

रोहन को लेटेलेटे आभास हो रहा था कि वह किसी हौस्पिटल में हैं. उस ने बड़ी मुश्किल से आंखें खोलीं तो अपने परेशान दादा, दादी के चेहरे उस को नज़र आए थे. उसे अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था कि क्यों वह यह सब करता है.


तभी रोहन ने देखा, यमुना टिफ़िन ले कर अंदर आई. यमुना दादाजी से कह रही थी, “दादाजी, आप ने कल रात से कुछ नही खाया, थोड़ा सा मुंह जुठार लीजिए.”


दादी यमुना की तरफ देख कर गुस्से में बोली, “तेरे ही कारण मेरे रोहन की यह दशा है.”


यमुना अपनी कजरारी आंखों को और बड़ा करते हुए बोली, “मैं ने क्या किया है, दादी? मैं तो रोहनजी को शांति के लिए कनावनी वाले गुरुजी के पास ले कर गई थी.”


दादाजी दादी से मुखातिब होते हुए बोले, “अरे, तुम चुप करोगी, यह सब घर जा कर सुलटा लेना.”


रोहन यमुना की तरफ प्यारभरी नजरों से देख रहा था.


“एक यमुना ही तो हैं जो उस का सारा कहना मानती है. वह उसे मारे, डांटे या कैसा भी व्यवहार करे, वह फिर भी रोहन के आसपास ही बनी रहती है.”


तभी यमुना के मोबाइल की घंटी बजी. उस ने फ़ोन उठाया और रोहन के कानों में फुसफुसा कर कहा, “रोहनजी, सुरुचि मैडम का फ़ोन है.”


इस से पहले रोहन कुछ कहता, दादी चिल्लाती हुई बोली, “तू इस घर की मालकिन हैं या मैं, मेरा पोता किसी सुरुचिवुरुचि से बात नहीं करेगा?”


“जब यही सुरुचि इसे 6 साल की उम्र में छोड़ कर अपने प्रेमी के पास चली गई थी तो मैं ने अपनी रातों की नींद खराब कर इसे पाला था. अब रहे खुश वह अपने नए परिवार में. क्यों फ़ोन करती रहती है.”


शायद सुरुचि ने सुन लिया था क्योंकि फोन कट गया था.


2 दिनों बाद रोहन डिस्चार्ज हो गया था. डाक्टर शांतनु रोहन के पापा मुनीश के बचपन के मित्र थे, इसलिए रोहन को उन्होंने बिना हीलहवाला किए अपने हौस्पिटल में एडमिट कर लिया था.


अपने मित्र के इस बेटे पर उन्हें आगाध स्नेह था. जब रोहन छोटा था तो शांतनु ने एक तरह से उसे अपनी बेटी के लिए चुन लिया था. मगर तब क्या उन्हें पता था कि मुनीश के परिवार को समयकाल यों लील जाएगा.


रोहन के पीठ पर हाथ फेरते हुए शांतनु बोले, “बेटे, तुम मेरे मुनीश के बेटे हो. मुनीश ने जिंदगी के हर चैलेंज का डट कर सामना किया है. तुम भी इस जिंदगी को नशे में जाया मत करो. मैं मुनीश की जगह तो नही ले सकता हूं मगर तुम्हारे लिए हमेशा खड़ा रहूंगा. अंदर कोई बात खाए जा रही हो तो उसे बाहर निकालो, मगर खुद को अंधेरे में मत धकेलो.”


जब रोहन घर पहुंचा, तब तक यमुना ने रोहन का  कमरा साफ़ कर दिया था.


घर में यमुना के अलावा 2 नौकर और थे, मगर यमुना का पूरे घर पर दबदबा था.


रोहन नहा कर निकला तो यमुना आंखों में आंसू लाती हुई बोली, “रोहनजी, क्या मेरी वजह से आप को नशे की आदत लग गई है?”


रोहन रूखे स्वर में बोला, “यह गंगा बहाना बंद करो. मेरी पत्नी बनने की कोशिश मत करो.”


यमुना फिर बिना कुछ बोले रोहन के कपड़े धोने लगी थी.


रोहन को यमुना की यह खामोशी बेहद बुरी लगती थी. बाहर से ही आवाज़ दे कर वह बोला, “कुछ खाने को मिलेगा या भूखा ही मारोगी?”


यमुना कपड़े निचोड़ती हुई बोली, “आप के पसंदीदा दालचावल बना रखे हैं, अभी लाती हूं.”


यमुना ट्रे में चटनी, सलाद, रायता, फुल्के, भिंडी, दाल और चावल ले कर आई. रोहन को कस कर भूख लगी हुई थी. खातेखाते वह बोला, “यमुना, तुम भी खा लो.”


यमुना भी पास रखी हुई कुरसी पर अपना खाना ले कर बैठ गई.


तभी दादी आई और बोली, “बस, इसी बात की कमी रह गई थी कि अब यह यमुना, तेरे साथ बैठ कर खाना भी खाए? अरे, रोहन का दिमाग काम नहीं करता, तो क्या हुआ, तू तो कुछ लिहाज कर?”


यमुना तीर की तरह खाने की प्लेट हाथ मे ले कर निकल गई.


रोहन दादी से बोला, “दादी, क्या हुआ अगर यमुना हमारे यहां काम करती है. उस ने हमेशा हमारा साथ निभाया हैं. कम से कम मेरे मम्मी, पापा की तरह मुझे छोड़ कर तो नहीं गई है? दादी, वह मेरा हर हिसाब से ध्यान रखती है.”


दादी गुस्से में बोली, “बेटा, पैर की जूती को सिर का  मुकुट नहीं बनाते हैं.”


रोहन सोचता सा बोला, “दादी, चाहे मुकुट सिर का दर्द बन जाए?”


दादी रोहन को गले से लगाती हुई बोली, “रोही, मैं तेरा दर्द समझती हूं बेटा. तेरे लिए मैं एक अच्छे परिवार की लड़की ले कर आऊंगी जो तेरे दुखदर्द साझा कर लेगी.”


रोहन बोला, “अच्छा दादी, आप को तो पता हैं न कि शांतनु अंकल, जो 2 वर्षों पहले तक मान्या का विवाह मुझ से करना चाहते थे, अब उन्होंने भी जन्मपत्री का बहाना बना दिया है. दादी, मुझे मेरे मांबाप ने ही त्याग दिया है, कोई और क्या मुझे अपनाएगा?”


दादी सुबकती हुई रोहन के कमरे से निकल गई थी.


रोहन 23 वर्ष का नवयुवक था. ऊंचा, 6 फुट का कद, भूरे बाल और आंखें, तीखे नैननक्श और गोरा रंग… सबकुछ उस ने अपने मातापिता से विरासत में पाया था. रोहन मोटर्स के नाम से परिवार का अच्छाखासा बिज़नैस है. मगर सबकुछ होते हुए भी परिवार में खुशी का अंश ढूंढने से भी नहीं मिलता था.


रोहन के पिता मुनीश ने 24 वर्षों पहले सब से लड़ कर रोहन की मां सुरुचि से विवाह किया था. एक वर्ष के भीतर ही रोहन हो गया था. रोहन के होने के बाद मुनीश और सुरुचि दोनों को ही लगा कि उन्होंने एक गलत फैसला ले लिया है. कोई दिन न बीतता जब सुरुचि और मुनीश की लड़ाई न होती.


दोनों ने  घर से बाहर अपनीअपनी अलग दुनिया बसा ली थी. रोहन छोटा था मगर सब समझता था. वह अंतर्मुखी होता जा रहा था. रोहन जब 6 वर्ष का था तब सुरुचि ने  अपने मित्र मुकेश के साथ  अलग रहने का फैसला कर लिया था.


रोहन आज 23 वर्ष का हो चुका हैं पर उसे अभी भी वह रात याद है जब सुरुचि अपना सामान पैक कर रही थी. रोहन टुकुरटुकुर अपनी मां को देख रहा था. मुनीश गुस्से में कह रहा था, ‘मेरा नहीं तो कम से कम रोहन का ख़याल तो किया होता.’


सुरुचि बोली, ‘क्यों, क्या रोहन, बस, मेरी ज़िम्मेदारी है?’


मुनीश बोला, ‘क्यों, तुम्हारी आज़ादी में रोड़ा है न रोहन?”


सुरुचि हंसती हुई बोली, ‘क्यों, क्या तुम्हारी गर्लफ्रैंड कनिका ने मना कर दिया है रोहन को साथ रखने के लिए?’


तभी रोहन की दादी आई और रोहन को अपनी गोद में उठाती हुई बोली, ‘तुम दोनों को प्रकृति ने यह बच्चा दे कर गलती की है. कैसे मातापिता हो तुम दोनों?’


तभी रोहन के दादाजी आए और शांतस्वर में बोले, ‘तुम दोनों रोहन की ज़िम्मेदारी से आज़ाद हो, मेरा पोता मेरी ज़िम्मेदारी है.’


मगर क्या रोहन के दादादादी अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से निभा पाए थे?


उस रात के बाद से सुरुचि 4 वर्षो तक रोहन की जिंदगी से गायब हो गई थी. उधर मुनीश ने भी दूसरा विवाह कर लिया था. रोहन की नई मां  कनिका को सासससुर के साथ रहना पसंद नहीं था. उस रात जब मुनीश अपना समान पैक कर रहा था तो रोहन टुकुरटुकुर अपने पापा को देख रहा था.


जब मुनीश सूटकेस ले कर बाहर निकला तो रोहन बोला, ‘पापा, आप भी मुझे मम्मी की तरह छोड़ कर जा रहे हो?’


रोहन के दादा बोले, ‘बेटे रोहन, आज से तेरे दादा और दादी ही तेरे मम्मीपापा हैं.’


उस दिन से ले कर आज तक रोहन के दादादादी ने उसे कभी किसी भी बात के लिए नहीं टोका. उन्हें लगता कि ऐसा करने से रोहन को उस के मम्मीपापा की कमी महसूस नहीं होगी.


रोहन धीरेधीरे अपने दादादादी की कमज़ोरी समझ गया था और अपनी हर छोटीबड़ी जिद पूरी करवाने लगा था. जो इच्छा रोहन के दादादादी पूरी न कर पाते, वह रोहन के मम्मीपापा गिल्ट के कारण पूरी कर देते थे. कुल मिला कर रोहन पूरी तरह से निरंकुश हो चुका था.


धनदौलत की कोई कमी न थी मगर रोहन अंदर से एकदम खाली था. रोहन एक परिवार के प्यार के लिए तरस रहा था. उस का मन करता कि कभी तो उस के मम्मीपापा उसे किसी बात के लिए टोकें. मगर मुनीश और सुरुचि दोनों ही रोहन की हर मांग को बिना कोई सवाल किए पूरा कर देते थे.


अपने टूटे हुए परिवार के कारण रोहन हीनभावना से ग्रस्त हो गया था. अपने उम्र के लोगों में वह उठताबैठता नहीं था. रोहन को हमेशा अंदर ही अंदर लगता जैसे सब लोग उस पर तरस खा रहे हैं. उसे लोगों की आंखों में अपने लिए ढेरों सवाल तैरते हुए नज़र आते थे. वह अकेला ही रहता था, उस का कोई दोस्त न था. रोहन के अंदर अपने मम्मीपापा के लिए बहुत अधिक  कड़वाहट थी.


तभी रोहन की जिंदगी में यमुना का पदार्पण हुआ था. यमुना की मां रोहन के घर बहुत सालों से काम कर रही थी. उसी के साथ यमुना आती थी और रोहन की हर छोटीबड़ी फरमाइश को पूरा कर देती थी.


धीरेधीरे रोहन और यमुना एकदूसरे की तरफ खिंचने लगे थे. यमुना की मां ने जानबूझ कर आंखें मूंद ली थीं क्योंकि रोहन यमुना को खूब पैसे देता था. रोहन के दादादादी इस नए पनपते हुए रिश्ते से अनभिज्ञ थे.


तभी 2020 में कोरोना के कारण लौकडाउन लग गया था. यमुना को रोहन की दादी ने घर पर ही रख लिया था. अब यमुना धीरेधीरे रोहन की जरूरत बन गई थी. एक रात अचानक रोहन के दादाजी के पेट में बहुत तेज़ दर्द उठा तो रोहन की दादी घबराती हुई रोहन के कमरे में चली गई. वहां यमुना और रोहन को एकसाथ देख कर वह हक्कीबक्की रह गई थी.


उस रात के बाद  से  यमुना दादी की आंखों की किरकिरी बन गई थी. मगर रोहन की जिद के आगे वह लाचार हो उठी थी. रोहन की दादी ने इस बारे में जब मुनीश और सुरुचि से भी बात की तो उन्हें कोई फ़र्क  ही नहीं पड़ा था. दोनों के लिए रोहन, बस, एक अनचाही ज़िम्मेदारी था जिसे वे पैसा दे कर पूरा करते थे.


लौकडाउन के दौरान  धीरेधीरे यमुना पूरे घर पर हावी होती चली गई थी. यमुना को रोहन से लगाव था लेकिन उसे मालूम था कि उस का रोहन के साथ कोई भविष्य नहीं हैं. लेकिन यमुना की अपनी मजबूरी थी, घर में बीमार पिता और शराबी भाई के खर्चों को पूरा करने के  लिए यमुना ने खुद के अस्तित्व को गिरवी रख दिया था.


अब धीरेधीरे रोहन का मन यमुना से ऊबने लगा था. यमुना को यह समझ भी आ रहा था पर वह कुछ कर नहीं पा रही थी. तभी यमुना ने एक तरकीब सोची और रोहन को विश्वास में ले कर वह एक बाबा के पास ले गई थी. बाबा को यमुना की मां ने पहले ही सबकुछ बता रखा था. रोहन अंदर से दर्द में था, कमजोर था. बाबा ने उसे जल्द ही अपनी चिकनीचुपड़ी बातों से वश में कर लिया था. बाबा बोले, ‘बेटा, तुम बहुत दर्द में हो, पर इस दर्द का इलाज है  मेरे पास. तुम ध्यान लगाओ, एक चुटकी भभूति रोज़ खाओ और तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति मिल जाएगी, कम उम्र में ही तुम्हें सिद्धि मिल जाएगी.’


बाबा प्रसाद में  रोहन को नशा मिला कर देते थे. उस प्रसाद को खाने के बाद रोहन को अंदर से बेहद सुकून मिलता था. रोहन अब न गुस्सा करता था और न ही चिल्लाता था. रोहन की दादी ने  जब रोहन के व्यवहार में परिवर्तन देखा तो वह भी बाबाजी की भक्ति में लीन हो गई थी.


रोहन अब रातदिन बाबा के आश्रम में बना रहता था. वे जितनी भी दक्षिणा मांगते, रोहन ला कर देता था. रोहन को इस बात का सपने में भी भान नहीं था कि ये भभूति का नहीं, नशे की गोलियों का कमाल है.


रोहन का दिमाग अब पूरी तरह से नशे का गुलाम था. यमुना इस कोठी की बेनाम मालकिन बन गई थी. रोहन के दादा सबकुछ समझते थे, उन्हें ज्ञात था  कि रोहन गलत राह पर है. मगर रोहन की दादी अंधविश्वास में इतनी जकड़ी हुई थी कि वह अपने पति की बात सुनने को तैयार न थी.


रोहन और उस की दादी पूरी तरह से गुरुजी के वश में थे. नशे की ओवरडोज़ के कारण ही आज रोहन की यह हालत हो गई थी कि उसे अस्पताल में भरती होना पड़ा था.


रोहन के दादा और दादी को समझ नहीं आ रहा था कि उन से क्या गलती हो गई है.


रोहन के अस्पताल से आने के अगले दिन मुनीश और सुरुचि दोनों आए थे. दोनों आते ही  रोहन के दादा, दादी को रोहन की इस हालत का जिम्मेदार ठहरा रहे थे.


मुनीश बोला, “आप लोगों ने रोहन की जिंदगी बरबाद कर दी है. आज वह शांतनु के सामने में आंखें उठा कर भी नहीं देख पा रहा था.”


सुरुचि बोली, “पता नहीं, इस एक गलती की सजा मुझे कब तक मिलती रहेगी?”


उधर रोहन के दादा, दादी के सब्र का बांध भी आज टूट गया था. रोहन के दादाजी चिल्लाते हुए बोले, “रोहन के कारण हम ने इस उम्र में भी अपने आराम की परवा नहीं की. और तुम लोग हमें ही जिम्मेदार  ठहरा रहे हो?”


रोहन अपने कमरे में बैठा सब सुन रहा था. उसे लग रहा था कि वह इस संसार में एकदम अकेला है.


रोहन अब यमुना से बोला, “यमुना, मुझ से और दर्द सहन नहीं होता, मुझे गुरुजी की भभूति चाहिए.”


यमुना ने धीरे से कहा, “उस के लिए 10 हज़ार रुपए चाहिए.”


रोहन दादाजी के कमरे में रखे उन के बटुए से पैसे निकाल कर ले आया.


बाहर उसे अपने मातापिता और दादादादी के लड़ने की आवाज़ आ रही थी.


रोहन इधरउधर समान पटकने लगा कि तभी उसे यमुना ने एक छोटी सी पुड़िया पकड़ाई और दबेपांव बाहर निकल गई थी.


रोहन को यमुना सदा एक चुटकी देती थी. मगर आज रोहन ने पूरी की पूरी पुड़िया गटक ली थी.


रोहन अब हर दर्द से आजाद था. रोहन को लग रहा था कि उसे मोक्ष की प्राप्ति मिल गई है.

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