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कहानी: चाहत

मेनका धीरे से मुसकराई और उठ कर डांसफ्लोर पर आ गई. अब वह और रंजीत आमनेसामने नृत्य करने लगे.

नववर्ष के आगमन पर क्लब दुलहन की तरह सजाया गया था. बिजली के रंगीन बल्बों की रोशनी से सारा प्रांगण जगमगा रहा था. क्लब के बार में दोस्तों के साथ बैठे रंजीत की नजर एक युवती पर पड़ी जो अपनी सहेलियों के साथ खिलखिला कर हंसती हुई पास से गुजर गई.


‘‘यार, यह हसीना कौन है?’’ रंजीत ने अपने दोस्तों से पूछा.


‘‘यह मेनका है. अपने मांबाप के साथ पुणे से आई और जनरल मल्होत्रा की मेहमान है,’’ उस के दोस्त पवन ने कहा.


‘‘तभी तो, मैं भी चकराया कि इस हसीन चेहरे पर पहले कभी नजर क्यों नहीं पड़ी.’’


‘‘बाबू, यह तेरी पहुंच से बाहर है. सेठ अमरचंद का नाम सुना है कभी? वही जिन की कपड़ों की कई मिले हैं. यह उन की एकलौती बेटी है. अमरचंद करोड़पति हैं.’’


‘‘अरे, वह करोड़पति है तो हम भी कोई गएगुजरे नहीं हैं,’’ रंजीत ने छाती फुला कर कहा, ‘‘हम फौजी हैं, देश के रखवाले.’’


पवन रंजीत के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ‘‘मेरे फौजी भाई, यहां तेरी दाल नहीं गलने वाली.’’


‘‘देखा जाएगा.’’


तभी हौल में डांस का बैंड बजने लगा. जोड़े उठउठ कर डांस करने लगे.


कुछ देर बाद माइक पर घोषणा हुई कि डांस का अगला कार्यक्रम लेडीज चौइस का है, यानी महिलाएं अपना डांस पार्टनर खुद ही चुनेंगी तो आगे आइए और अपने पसंदीदा पार्टनर का चुनाव कीजिए.


मौका ताड़ कर रंजीत मेनका के सामने जा खड़ा हुआ.


‘‘मैडम, क्या आप को इस जमघट में कोई भी नौजवान पसंद नहीं आया?’’ रंजीत ने पूछा.


मेनका हैरानी से उस की ओर देख कर बोली, ‘‘आप की तारीफ?’’


‘‘खाकसार का नाम रंजीत है. अगर इस डांस के लिए आप ने मु?ो चुना तो मैं आप का आभारी रहूंगा.’’


मेनका धीरे से मुसकराई और उठ कर डांसफ्लोर पर आ गई. अब वह और रंजीत आमनेसामने नृत्य करने लगे. कुछ देर बाद रंजीत ने बैंड वालों को कुछ इशारा किया तो वे एक धीमी रोमांटिक धुन बजाने लगे.


रंजीत ने मेनका को बांहों में ले लिया. संगीत की मदभरी धुन और कमरे की कम रोशनी ने तो वहां के वातावरण में एक रूमानी माहौल पैदा कर दिया.


‘‘क्या हम दोबारा मिल सकते हैं?’’ रंजीत ने पूछा.


‘‘यह मुमकिन नहीं, मैं पुणे में रहती हूं.’’


‘‘पुणे मुंबई से कितना ही दूर है. वैसे, पुणे मेरा जानापहचाना शहर है. मैं ने खड़कवासला से सैनिक प्रशिक्षण पूरा किया है.’’


मेनका के मातापिता की नजर अपनी बेटी पर ही टिकी हुई थी.


‘‘यार, मल्होत्रा,’’ अमरचंद बोले, ‘‘यह लड़का कौन है जो मेनका के साथ डांस कर रहा है?’’


‘‘यह कैप्टन रंजीत है. बड़ा ही दिलेर और होनहार जवान है.’’


‘‘यह मेरी बेटी में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहा है,’’ अमरचंद बोले, ‘‘देखो न, बैंड ने एक के बाद एक कई धुनें बजाईं पर इस ने मेनका के साथ डांस करना बंद नहीं किया.’’


‘‘मेरा खयाल है कि अब हमें चलना चाहिए,’’ अमरचंद की पत्नी अमिता बोली, ‘‘बहुत रात हो गई है.’’


‘‘अरे वाह, बगैर 12 का बजर हुए और बिना नववर्ष का अभिनंदन किए हम आप को कैसे जाने दे सकते हैं?’’ जनरल मल्होत्रा बोले.


तभी एकाएक 12 का घंटा बजना शुरू हुआ. सभी बत्तियां गुल कर दी गईं. हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.


रंजीत मेनका के गाल को चूम कर धीरे से बोला, ‘‘आप के जीवन में नववर्ष मंगलमय हो.’’


मेनका ने आंखें तरेर कर उसे देखा और बोली, ‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’


‘‘माफ कीजिए, मैं इंग्लिश तरीके से आप को नए साल की शुभकामनाएं दे रहा था.’’


तभी हौल रोशनी से जगमगा गया. रंजीत मेनका को छोड़ कर जनरल मल्होत्रा के पास आ गया. उन्हें एक सैल्यूट मारा और अदब से खड़ा हो गया.


‘‘हैलो, रंजीत, कैसे हो?’’ जनरल मल्होत्रा आत्मीयता से बोले.


‘‘अच्छा हूं.’’


‘‘मल्होत्रा, अब हम चलते हैं,’’ अमरचंद उठ खड़े हुए.


‘‘ठीक है,’’ जनरल मल्होत्रा बोले, ‘‘कल का हमारा गोल्फ खेलने का कार्यक्रम पक्का है न?’’


‘‘हां, कल ठीक 7 बजे हम गोल्फ क्लब पर मिलेंगे और हमारी श्रीमतीजी भाभीजी को ले कर शौपिंग कराने जाएंगी.’’


दूसरे दिन मेनका के घर फोन बज उठा.


‘‘हैलो,’’ मेनका बोली.


‘‘जी, मैं रंजीत बोल रहा हूं.’’


‘‘ओह, आप हैं, कहिए?’’ मेनका ने रुखाई से कहा.


‘‘मैं कल रात की घटना के लिए माफी मांगना चाहता हूं. दरअसल, कल रात मैं नशे में था.’’


‘‘नशे में तो आप नहीं थे, पर खैर, मैं ने आप को माफ किया.’’


‘‘नहीं, ऐसे नहीं. मु?ो एक बार आप मिलने का मौका दीजिए ताकि मैं ढंग से माफी मांग सकूं.’’


‘‘ओह, आप तो पीछे ही पड़ गए. मैं आप को बता दूं कि मेरे मांबाप मु?ो किसी अनजान लड़के से मिलने की इजाजत नहीं देते.’’


‘‘लेकिन अभी तो वे दोनों घर पर नहीं हैं. डैडी गोल्फ खेलने गए हैं और मम्मी शौपिंग करने गई हैं,’’ फिर रंजीत ने जोर दे कर कहा, ‘‘मैं आप के बंगले के बाहर ही खड़ा मोबाइल से बोल रहा हूं. आप आ रही हैं न?’’


मेनका बाहर आई तो रंजीत ने कहा, ‘‘मेरे पास कार तो नहीं है पर एक खटारा मोटरसाइकिल है, चलेगा?’’


‘‘चलेगा.’’


‘‘अब बताइए, कहां चलना है? रैस्तरां में बैठ कर कौफी पीनी है या जुहू की रेत पर टहलना है?’’


‘‘दोनों,’’ मेनका बोली और इसी के साथ मोटरसाइकिल सड़क पर दौड़ने लगी.


जब वे लौटने लगे तो रंजीत ने पूछा, ‘‘अब कब मिलना होगा?’’


‘‘शायद कभी नहीं, कल हम लोग पुणे चले जाएंगे.’’


‘‘देखिए, मु?ा गरीब पर


तरस खाइए, फौजी


हूं. कब सीमा पर भेज दिया जाऊं, कब देश की खातिर लड़तेलड़ते शहीद हो जाऊं, कुछ कह नहीं सकता. एक देशभक्त नागरिक होने के नाते आप का फर्ज बनता है कि आप इस फौजी को कुछ सुनहरी यादें प्रदान करें.’’


कुछ महीने बाद मेनका बोली, ‘‘रंजीत, इस तरह चोरीछिपे हम कब तक मिलते रहेंगे? तुम पापा से शादी की बात क्यों नहीं करते?’’


‘‘ठीक है, इसी सप्ताह मैं पुणे आता हूं, लेकिन क्या तुम्हें लगता है कि पापा मान जाएंगे.’’


‘‘आसानी से तो नहीं मानेंगे बल्कि मु?ो तो डर है कि तुम्हारी बात सुनते ही एक ऐसा विस्फोट होगा कि तुम्हें लगेगा कि तीसरा महायुद्ध शुरू हो गया,’’ मेनका हंसते हुए बोली.


अगले सप्ताह रंजीत पुणे गया और उस की मुलाकात मेनका के पिता अमरचंद से हुई. रंजीत की बातें सुन कर वे गुस्से से फट पड़े.


‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ अमरचंद बोले, ‘‘मैं अपनी एकलौती लड़की का हाथ एक फौजी के हाथ में नहीं दे सकता.’’


‘‘सर, फौजी होने में क्या खराबी है?’’


‘‘खराबी कुछ नहीं है पर हमेशा मौत से जू?ाने वालों के परिवार पर क्या बीतती है, यह तुम अच्छी तरह से जानते हो. हां, अगर तुम आर्मी छोड़ कर मेरे साथ व्यापार में हाथ बंटाओ तो इस बारे में कुछ सोच सकता हूं.’’


‘‘नहीं, सर, मैं फौज की नौकरी नहीं छोड़ना चाहता,’’ इतना कह कर रंजीत वहां से चला गया.


इस घटना के कई दिनों बाद एक दिन सुबह मेनका का फोन रंजीत के पास आया.


‘‘रंजीत, मु?ा पर कड़ा पहरा बैठा दिया गया है. मैं ?घर में नजरबंद हूं. मुंबई तो क्या, मैं घर से बाहर भी नहीं निकल सकती और पापा आजकल मेरे लिए जोरशोर से लड़का ढूंढ़ने में लगे हुए हैं.’’


‘‘मेनका, क्या तुम एक दिन के लिए मुंबई आ सकती हो?’’


‘‘कोशिश करूंगी, पापा को पटाना पड़ेगा. उन की अगले महीने मुंबई में मीटिंग है.’’


मेनका अपने पापा के साथ मुंबई आई. दोनों अपने जुहू वाले बंगले में रुके थे. उस के पापा तैयार हो कर मीटिंग में चले गए तथा वह रंजीत के साथ निकल पड़ी. दोनों ने आर्य समाज मंदिर में जा कर शादी कर ली.


सेठ अमरचंद अपने कमरे में बैठे सिगार का कश भर रहे थे कि मेनका ने कमरे में प्रवेश किया.


‘‘पापा, यह लीजिए मिठाई.’’


‘‘अरे, यह मिठाई किस खुशी में? वे चौंक कर बेटी की ओर देख कर बोले, ‘‘मेनका, तुम ने शादी कर ली क्या?’’


‘‘हां, पापा,’’ मेनका कांपते हृदय से बोली और नजरें ?ाका लीं.


‘‘रंजीत कहां है?’’ अमरचंद ने पूछा.


‘‘बाहर खड़े हैं.’’


‘‘बुलाओ उसे,’’ अमरचंद बोले, ‘‘जब तुम लोगों ने अपने मन की कर ली है तो अब डर किस बात का?’’


समय गुजरता गया. अब रंजीत व मेनका की खुशियों का प्याला छलछला रहा था. उन के घर एक बेटे का जन्म हुआ. पुत्र निखिल को पा कर रंजीत फूला न समाया.


उस रोज मेनका का जन्मदिन था. रंजीत ने बाजार से फूलों का गुलदस्ता और मोतियों का एक हार खरीदा और गुनगुनाता हुआ घर में दाखिल हुआ, लेकिन घर में अंधेरा देख कर वह चौंक पड़ा. बारबार उस के दिमाग में एक ही प्रश्न उठता कि आखिर वह बिना बताए गई कहां.


समय बीतता गया. धीरेधीरे रंजीत का पारा चढ़ने लगा. वह होंठ चबाता, गुस्से में उफनता बैठा रहा. जब बहुत देर हो गई तो गिलास में शराब का पैग बना कर पीने लगा.


मेनका किचन में गई तो रंजीत ने फूलों का गुलदस्ता मेज के नीचे सरका दिया, लेकिन मेनका की नजर उस पर पड़ गई.

अभी उस ने पहला पैग खत्म भी नहीं किया था कि मेनका आ गई. रंजीत को अंधेरे में बैठा देख कर बोली, ‘‘भलेमानस, कम से कम बत्ती तो जला ली होती. ओह, जनाब शराब पी रहे हैं. रंजीत, मैं ने तुम से कितनी बार कहा है कि शराब पीना अच्छा नहीं.’’


‘‘अच्छा, अब भाषण मत दो, आते ही शुरू हो गईं.’’


‘‘जानते हो, मैं कहां गई थी?’’


‘‘नहीं, और मैं जानना भी नहीं चाहता.’’


‘‘लगता है, श्रीमानजी नाराज हैं,’’ मेनका बोली, ‘‘सुनो, पापा ने मु?ो जन्मदिन पर एक कार दिलाई है. चलो, अपनी नई गाड़ी में कहीं घूमने चलें.’’


‘‘नहीं, मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’


‘‘खाली पेट शराब पियोगे तो यही होगा. मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने को लाती हूं.’’


मेनका किचन में गई तो रंजीत ने फूलों का गुलदस्ता मेज के नीचे सरका दिया, लेकिन मेनका की नजर उस पर पड़ गई.


वह किचन के दरवाजे से पलटी और बोली, ‘‘क्या मेरे लिए तुम यह फूलों का गुलदस्ता लाए थे?’’


‘‘हां.’’


‘‘तो यह मेज के नीचे क्यों सरका दिया. सम?ा, मेरे ऊपर का गुस्सा इन फूलों पर उतारा गया है. फूल लाए थे तो मु?ो दिए क्यों नहीं?’’


‘‘तुम्हारे पापा ने तुम्हें लाखों की कार दी है, मैं तुम्हें 100 रुपए के फूलों का एक छोटा सा गुलदस्ता किस मुंह


से देता?’’


‘‘पागल कहीं के,’’ मेनका उस की गोद में बैठ गई, ‘‘देने वाले का दिल देखा जाता है, तोहफे की कीमत नहीं आंकी जाती. तुम ने मु?ो प्यार के साथसाथ निखिल जैसा बेटा दिया है.’’


‘‘अरे हां, निखिल को तो मैं भूल ही गया था, वह है कहां?’’


‘‘मम्मीपापा ने उसे रोक लिया है. वह आज रात उन के साथ जुहू वाले बंगले में रहेगा.’’


‘‘इस का मतलब है कि घर में हम दोनों अकेले हैं?’’


मेनका ने हां में सिर हिलाया.


‘‘तब तो आज जन्मदिन ढंग से मनाया जाएगा,’’ रंजीत मेनका को बांहों में ले कर बोला, ‘‘मैं तुम्हारे लिए एक ओर भेंट लाया हूं, यह मोतियों का हार.’’


हार देख कर मेनका खुशी से


खिल उठी.


मेनका ने दरवाजा खोला तो देखा कि उस की मम्मी निखिल को गोद में उठाए खड़ी थीं.


‘‘मेनका, तुम्हारे बेटे ने तो नाक में दम कर दिया. बस, एक ही रट लगाए था, ‘मम्मीपापा के पास जाना है.’ हार कर मैं इसे ले आई. लो, संभालो अपने लाड़ले को.’’


‘‘मम्मी, देखिए तो, रंजीत ने मु?ो यह मोतियों का हार भेंट दिया है,’’ मेनका बोली.


मेनका की मम्मी ने उचटती हुई नजर हार पर डाली और बोली, ‘‘यदि रंजीत तुम्हें सचमुच चाहता होता तो कभी का हमारी बात मान कर पुणे आ जाता. यह भी कोई जिंदगी है? मुरगी के दड़बे जैसा घर, 5वीं मंजिल का फ्लैट. न निखिल के लिए खेलनेकूदने की जगह, न कोई और सुखसाधन,’’ और बड़बड़ाती हुई वह घर से बाहर निकल गई.


कुछ देर बाद रंजीत ने पूछा, ‘‘मेनका, क्या निखिल सो गया?’’


‘‘हां,’’ और अगले ही पल मेनका उस की बांहों में ?ाल गई. रंजीत ने उस के मुखमंडल पर चुंबनों की बौछार कर दी.


‘‘ओह, मेनका, मु?ा से वादा करो कि जब भी मैं घर आऊं, तुम्हें पाऊं. तुम जानतीं नहीं कि अकेला घर पा कर मेरी क्या हालत होती है. कलेजा मुंह को आता है. मेनका, मेरी जान, तुम मेरी जरूरत बन गई हो,’’ भावुक हो कर रंजीत बोला.


‘‘रंजीत,’’ मेनका अपना सिर उस की छाती पर टिकाते हुए बोली, ‘‘मेरा भी तुम्हारे बिना कोई वजूद नहीं है. मैं तुम्हारी हूं और सदा तुम्हारी रहूंगी, दुनिया की कोई ताकत हमें अलग नहीं कर सकती. रही घर में होने की बात तो अपने हृदय में ?ांक लिया करो न, उस में तो मैं ही विराजमान हूं.’’


समय बीतता रहा. धीरेधीरे दोनों के बीच हालात कुछ ऐसे बने कि मेनका और रंजीत के संबंध दिनबदिन बिगड़ते चले गए. छोटीछोटी घटनाएं, जिन्हें पहले दोनों हंस कर नजरअंदाज कर देते थे, अब तूल पकड़ने लगीं. महीनों दोनों में मनमुटाव रहता तथा अलगअलग अपनी आग में वे सुलगते रहते.


जब भी मेनका रंजीत से नाराज हो कर अपने मायके आती तो उस के मांबाप कहते, ‘हम ने पहले ही कहा था कि वह लड़का तुम्हारे लायक नहीं है पर तुम ने हमारी एक न सुनी. अरे, शादी हमेशा बराबर वालों में होनी चाहिए.’


इधर रंजीत को लगता था कि उस के व मेनका के बीच जो चांदी की दीवार है उसे वह कभी तोड़ नहीं पाएगा. उसे पगपग पर यह एहसास होता था कि अमरचंद उसे नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं. उसे लगता कि मेनका में भी पैसे का ठसका बहुत है और वह चिढ़ कर मेनका पर अपना गुस्सा उतारता. दोनों में आएदिन ठन जाती थी.


एक दिन रंजीत घर लौटा तो देखा, घर में ताला लगा है. दरवाजा खोला और गुस्से में शराब की बोतल ले कर बैठ गया.


काफी देर बाद मेनका अपनी मम्मी अमिता के साथ आई. अमिता निखिल को लिए मेनका के कमरे में चली गई और मेनका रंजीत के पास जा कर बोली, ‘‘सौरी, मु?ो जरा देर हो गई. मैं किट्टी पार्टी में गई हुई थी. वहां से पापा को देखने चली गई और तुम तो जानते ही हो कि जुहू से कोलाबा तक के ट्रैफिक में भीड़ कितनी होती है.’’


रंजीत गुमसुम बैठा रहा.


‘‘अरे, तुम फिर पीने बैठ गए. छोड़ो इसे, खाली पेट शराब पीने से कलेजा फुंकता है. मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं.’’


मेनका चाय ले कर आई. रंजीत ने एक घूंट भरा और गुस्से में तमतमा कर बोला, ‘‘इसे तुम चाय कहती हो, नाली का पानी है यह, बेस्वाद, ठंडा.’’ और उस ने चाय का प्याला जमीन पर दे मारा.


मेनका सहम गई.


तभी मेनका की मम्मी अमिता ने कमरे में प्रवेश किया. उन्होंने रंजीत की बातें सुन ली थीं.


‘‘रंजीत, यह तुम बातबात में मेनका को बड़े बाप की बेटी होने का ताना क्यों देते हो? अपने पिता के यहां इस ने कभी तिनका तक नहीं तोड़ा. यहां यह तुम्हारी गुलामी कर रही है. इस पर भी तुम्हारे तेवर कभी सीधे नहीं होते. बस, बहुत हो चुका, मेनका बेटी, अभी चल तू मेरे साथ. अपना सामान पैक कर.’’


मोटरसाइकिल खड़ी कर के रंजीत सड़क पर टहलने लगा. उस ने सहसा गौर किया कि एक संदिग्ध व्यक्ति फाटक के आसपास मंडरा रहा है.


आननफानन उन्होंने चलने की तैयारी कर ली. नन्हा निखिल ‘पापापापा’ चिल्लाता रहा पर वे दोनों उसे जबरदस्ती गोद में उठा कर ले गईं.


रंजीत फटी आंखों से देखता रह गया. उस का संसार सूना हो गया. शीघ्र ही उस के पास तलाकनामे के कागजात आ पहुंचे थे. अमरचंद ने अपनी बेटी को पति से मुक्ति दिलवाने में जरा भी देरी न की थी.


कई दिनों तक मेनका मर्माहत सी पड़ी रही. चाह कर भी वह रंजीत को भुला नहीं पा रही थी. अकेले में वह पिछली बातों को याद कर रोती रहती.


उस के मांबाप उसे सम?ाने की कोशिश करते.


‘‘उस रंजीत के लिए आंसू बहाना बेकार है बेटी, वह तुम्हारे लायक नहीं था. हम तुम्हें दोबारा ब्याहेंगे. इस बार तुम्हारे लिए ऐसा लड़का ढूंढें़गे जो तुम्हें पलकों पर बैठा कर रखे.’’


मातापिता की बातें सुन कर मेनका के मन में सवाल उठता, ‘‘क्या वह आदमी निखिल को पिता का प्यार देगा? क्या वह उसे जीजान से अपनाएगा?’’


रंजीत पुणे पहुंचा था. आज उस का निखिल से मिलने का दिन था. तलाक की शर्तों के मुताबिक सप्ताह में एक दिन


2 घंटे के लिए उसे अपने बेटे से मिलने की इजाजत थी.


समय से थोड़ा पहले ही वह अमरचंद की कोठी के बाहर जा पहुंचा. फाटक पर खड़े संतरी ने उसे सलाम ठोंका.


‘‘जरा अंदर खबर कर दो कि मैं निखिल से मिलने आया हूं.’’


‘‘जी साहब,’’ संतरी बोला.


मोटरसाइकिल खड़ी कर के रंजीत सड़क पर टहलने लगा. उस ने सहसा गौर किया कि एक संदिग्ध व्यक्ति फाटक के आसपास मंडरा रहा है. रंजीत ने उस पर सरसरी नजर डाली. शक्ल से वह आदमी मवाली लगता था. फिर सोचा, होगा कोई और रंजीत का ध्यान उस की ओर से हट गया.


‘‘निखिल बाबा तैयार हो रहा है,’’ संतरी ने आ कर सूचना दी.


रंजीत वहीं गेट के पास चहलकदमी करने लगा. तभी घर के अंदर से अचानक एक जोर की चीख सुनाई दी. फिर एकसाथ कई लोगों के चीखने की आवाज आई.


संतरी बंगले की ओर दौड़ा. रंजीत भी पीछे हो लिया.


अंदर पहुंच कर रंजीत ने देखा कि घर के बाहर जो व्यक्ति मंडरा रहा था, अब अंदर जा पहुंचा था. उस ने एक हाथ से निखिल को दबोच रखा था और दूसरे हाथ में पकड़े छुरे को निखिल की गरदन पर रखा हुआ था.


रंजीत ने देखा कि घर के सब सदस्य सहमे हुए से खड़े थे. नौकरचाकर भी भयभीत मुद्रा में खड़े थे. किसी को कुछ सू?ा नहीं रहा था. सब सकते में आ गए थे.


तभी वह आदमी कड़क कर बोला, ‘‘अगर बच्चे की सलामती चाहते हो


तो फौरन रुपया और गहना मेरे हवाले करो.’’


‘‘मम्मी,’’ निखिल सहसा चीखा. शायद छुरे की नोक उस की गरदन में चुभ गई थी. टपटप खून बहने लगा और उस की कमीज लाल होने लगी.


मेनका की चीख निकल गई. रंजीत मौका ताड़ कर उस आदमी पर टूट पड़ा. इस अचानक हमले से वह व्यक्ति बौखला गया. पलक ?ापकते रंजीत ने उस की कलाई पर इतनी जोर का हाथ मारा कि छुरा छिटक कर दूर जा पड़ा और फिर उस की खूब जम कर पिटाई की. फौजी हाथ पड़ते ही वह आदमी अपने प्राणों की भीख मांगने लगा.


‘‘मेनका, जल्दी से पुलिस को फोन करो,’’ रंजीत बोला.


थोड़ी देर बाद रंजीत निखिल को गोद में लिए बैठा उस का खून पोंछ रहा था. निखिल अभी भी भय से कांप रहा था और मेनका उसे आंसूभरी नजरों से देख


रही थी.


‘‘ओह रंजीत, तुम ठीक समय पर आ गए. यदि तुम न आते तो पता नहीं आज क्या होता,’’ मेनका बोली.


‘‘मम्मी, तुम ने देखा, पापा ने कैसे उस चोर की पिटाई की? ढिशुमढिशुम, बिलकुल सुपरमैन की तरह,’’ थोड़ा संभलने के बाद निखिल बोला.


‘‘बेटा, मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं,’’ अमिता बोली.


‘‘मम्मीजी, चाय पीने की इच्छा नहीं है. आप लोग तो, बस, इजाजत दें ताकि मैं निखिल को बाहर घुमाने ले जा सकूं.’’


और रंजीत निखिल को गोद में उठाते बोला, ‘‘क्यों, बेटा, बाहर चलना है?’’


‘‘हां, पापा,’’ निखिल खुश हो


कर बोला.


‘‘बैटमैन की पिक्चर देखनी है या होटल में हैमबर्गर और आइसक्रीम खानी है?’’


‘‘दोनों.’’


‘‘रंजीत, जरा रुको, मैं भी चलती हूं,’’ मेनका सहसा बोली.


रंजीत ने उस की ओर हैरत से देखा.


‘‘तुम चलोगी?’’


‘‘हां, मेरा भी थोड़ा घूमने का मन है.’’


मेनका की मौन आंखों की भाषा रंजीत ने पढ़ ली.


‘‘ठीक है, चलो,’’ रंजीत बोला.


‘‘मोटरगाड़ी में चलें?’’ मेनका ने रंजीत से जैसे इजाजत मांगी.


‘‘नहीं, मोटरसाइकिल पर,’’ कह कर रंजीत मुसकरा उठा.

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