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कहानी: बिन चेहरे की औरतें

 मैं ने अपने फोन को फिर से फ्लाइट मोड में डाल दिया और उस का वौयस रिकौर्डर औन कर उन की ओर देखा.

मैं औफिस के लिए तैयार हो चुकी थी. घर से निकलने ही वाली थी कि संपादकजी का फोन आ गया.


‘‘गुडमौर्निंग सर.’’


‘‘मौर्निंग, क्या कर रही हो?’’


उन्होंने पूछा.


‘‘औफिस के लिए निकल रही थी.’’


‘‘औफिस रहने दो, अभी एक


काम करो…’’


‘‘जी?’’


‘‘मेघा, तुम सुकुमार बनर्जी को जानती हो न?’’


‘‘वह फेमस आर्टिस्ट?’’


‘‘यस, वही,’’ संपादकजी ने बताया, ‘‘वे आज शहर में हैं. मैं ने तुम्हें उन का नंबर मैसेज किया है. उन्हें फोन करो. अगर अपौइंटमैंट मिल जाए तो उन का इंटरव्यू करते हुए औफिस आना.’’


‘‘ओके सर.’’


‘‘बैस्ट औफ लक,’’ उन्होंने कहा और फोन डिस्कनैक्ट कर दिया.


मैं ने व्हाट्सऐप पर संपादकजी के मैसेज में सुकुमार का नंबर देख कर उन्हें फोन  लगा दिया. मेरी आशा के विपरीत उन्होंने मु?ो तुरंत ही होटल सिद्धार्थ बुला लिया, क्योंकि वे दोपहर को अपने एक मित्र के यहां लंच पर आमंत्रित थे.


तकरीबन 50 वर्षीय सुकुमार बनर्जी एक आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे. वे न सिर्फ उम्र से


10 साल कम दिखाई देते थे, बल्कि अपनी ऊर्जा व कर्मठता के मामले में नौजवानों को मात देने में सक्षम थे.


अविवाहित सुकुमार पेशे से आर्टिस्ट थे. कला जगत में उन का काफी नाम था. हाल ही में उन्हें इंडो-जरमन विजुअल आर्ट सैंटर की ओर से ‘जोश’ (ज्वैल्स औफ सोसाइटी एंड ह्यूमैनिटी) सम्मान से नवाजा गया था. उन के चित्रों की एक बड़ी विचित्र सी खासीयत अकसर लोगों का ध्यान खींचती थी. वह यह कि वे अपनी पेंटिंग्स में महिला किरदारों के चेहरे चित्रित नहीं किया करते थे. बाकी हर चीज में पूरी डिटेल्स होती थी. सिर्फ महिला पात्र के चेहरे को वे आउटलाइन बना कर छोड़ देते थे. लोग उन की इस शैली को ले कर तरहतरह की अटकलें लगाते थे. जब भी उन से इस बारे में पूछा जाता, वे टाल जाते थे. शायद उन्हें अपने इर्दगिर्द रहस्यमयता का वातावरण बनाए रखने में मजा आता था. कुछ ही देर बाद मैं होटल सिद्धार्थ की लौबी में उन के सामने बैठ उन का इंटरव्यू कर रही थी.


‘‘प्यार हम सभी के जीवन में किसी खूबसूरत सपने की तरह प्रवेश करता है. लेकिन वे लोग समय के बलवान होते हैं जिन के लिए यह हकीकत का रूप ले कर अकेलेपन के पत?ाड़ में किसी बहार की तरह जज्बातों के जंगल को हराभरा बनाए रखता है. मेरे जीवन में तो 30 वर्षों पहले एक ऐसा पत?ाड़ आया जिसे कोई बहार अब तक हराभरा नहीं कर पाई है,’’ कहतेकहते उन्होंने दाएं हाथ से अपना चश्मा उतार, बाएं हाथ में पकड़े छोटे से रूमाल से अपनी आंखें पोंछी और वापस चश्मा आंखों पर लगा लिया.


उन की यह हालत देख मैं थोड़ा असहज हो गई. इस से पहले मैं ने कला व उन के जीवन से संबंधित बहुत सारे सवाल उन से पूछ डाले थे और सभी का जवाब उन्होंने बड़ी परिपक्वता व गंभीरता के साथ दिया था. लेकिन जैसे ही मैं ने उन के अविवाहित रहने की वजह और प्रेम से संबंधित उन के खयाल जानने के लिए सवाल किया तो उन की हालत ऐसी हो गई थी जैसे किसी ने उन की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो.


‘‘आप पानी लेंगे या वेटर को कौफी लाने के लिए बोल दूं?’’ मैं ने उन की ओर देखते हुए पूछा.


‘‘जी, कुछ नहीं.’’ वे संयत होते हुए बोले, ‘‘माफ कीजिए, मैं थोड़ा इमोशनल किस्म का इंसान हूं.’’


‘‘जी, कोई बात नहीं,’’ मैं उन्हें सांत्वना देते हुए बोली, ‘‘वी कैन अवौइड दिस क्वैश्चन, इफ यू आर फीलिंग अनकंफर्टेबल विद इट?’’


‘‘नो, नो, इट्स ओके,’’ वे सीधे हो कर बैठ गए, ‘‘सच कहूं तो मु?ो अच्छा ही लगेगा किसी के साथ अपनी फीलिंग शेयर कर के. कम से कम उस घुटन से तो आजादी मिलेगी जिसे मैं


31 सालों से अपने भीतर समेटे हुए हूं.’’


‘‘जी, जैसा आप ठीक सम?ों,’’ मैं ने धीरे से कहा.


‘‘लेकिन इस से पहले कुछ वादा करना होगा आप को मु?ा से…’’ वे मेरी ओर ?ाके और मेरा हाथ अपने दोनों हाथों में थाम लिया, ‘‘वह यह कि आप मु?ो बीच में कहीं भी टोकेंगी नहीं और दूसरा यह कि आप इंटरव्यू में सिर्फ उतनी ही जानकारी शामिल करेंगी, जितनी जरूरी है.’’


‘‘जी, मैं पूरा खयाल रखूंगी कि आप को शिकायत का मौका न मिले,’’ मैं ने उन्हें आश्वस्त किया और वे मेरा हाथ छोड़ कर फिर से सीधे हो कर बैठ गए.


मैं ने अपने फोन को फिर से फ्लाइट मोड में डाल दिया और उस का वौयस रिकौर्डर औन कर उन की ओर देखा.


‘‘जयंती नाम था उस का,’’ उन्होंने कहना शुरू किया, ‘‘यह संयोग ही था जो हम एकदूसरे के संपर्क में आए थे. यों ही एक दिन फोन की घंटी बजी थी और मैं ने फोन उठा लिया था. ‘हैलो?’ मैं ने पूछा.


‘‘‘जी, क्या मैं सुकू से बात कर सकती हूं?’ उधर से एक लड़की की आवाज आई.


‘‘‘हां, मैं बोल रहा हूं. आप कौन?’ मैं ने असमंजस से पूछा.


‘‘‘सुकू, मैं जया बोल रही हूं.


कैसे हो?’ वह तो ऐसे


पूछ रही थी, जैसे जाने मेरी कितनी पुरानी परिचित हो.


‘‘‘कौन जया?’ मैं ने उल?ानभरे स्वर में पूछा. मैं इस नाम के किसी व्यक्ति को नहीं जानता था.


‘‘‘क्यों मजाक कर रहे हो?’ उस


ने कहा.


‘‘‘देखिए, मजाक मैं नहीं, आप कर रही हैं,’ मैं ने कड़े स्वर में कहा, ‘मैं आप को नहीं जानता.’


‘‘‘सुकुमार कहां है?’ वह भी कुछ उल?ान सी महसूस करने लगी थी.


‘‘‘कहा न, बोल रहा हूं,’ मैं और शुष्क हो गया था.


‘‘‘इज इट नौट टू फोर सिक्स नाइन थ्री फोर?’ उस ने परेशान हो कर पूछा.


‘‘‘यस, नंबर इज करैक्ट, लेकिन आखिर में आप ने शायद फोर की जगह वन प्रैस कर दिया,’ मैं रिलैक्स होने लगा, सोचा कि उस से जल्दी में गलत बटन दब गया होगा.


‘‘‘कमाल है, नंबर गलत, बंदा गलत, पर नाम वही,’ वह धीरे से बोली, फिर ‘सौरी’ कह कर फोन डिस्कनैक्ट कर दिया.


‘‘अगले दिन फिर रिंग बजी.


‘‘‘यस?’ मैं ने फोन उठा कर कहा.


‘‘‘सुकुमारजी, मैं जयंती बोल रही हूं और मु?ो उम्मीद है कि आज आप यह नहीं पूछेंगे कि कौन जयंती,’ वह मजाकिया स्वर में बोली.


‘‘‘ठीक है, नहीं पूछूंगा. लेकिन यह तो पूछ ही सकता हूं कि फोन कैसे किया,’ मैं ने नौर्मल टोन में पूछा.


‘‘‘सौरी बोलने के लिए, और…’


‘‘‘और किसलिए? क्योंकि सौरी तो आप ने कल ही बोल दिया था,’ मैं अपनी उत्सुकता को दबा नहीं पा रहा था, ‘‘‘दूसरी वजह क्या है?’


‘‘वह चुप रही. मैं ने फिर से अपना सवाल दोहराया कि उस ने फोन क्यों किया था.


‘‘‘इस उम्मीद में कि शायद रौंग नंबर पर एक राइट पर्सन से दोस्ती हो जाए,’ उस ने मधुर स्वर में जवाब दिया.


‘‘और फिर हम दोस्त बन गए. हर 2-3 दिनों के अंतर से हमारी फोन पर बातें होतीं. धीरेधीरे हम एकदूसरे से खुलने लगे और अपनी बातें, हौबीज, फीलिंग्स वगैरह शेयर करने लगे. उसे भी मेरी तरह आर्ट, मूवीज, म्यूजिक, डांस वगैरह में दिलचस्पी थी. हम देरदेर तक इन टौपिक्स पर बातें करते रहते. कई बार हमारी बात बीच में ही खत्म हो जाती तो मु?ो बहुत चिढ़ होती थी. यह 1990 की बात है. तब तक भारत में मोबाइल नहीं आया था और सारा संवाद या तो मिल कर या फिर बीएसएनएल के लैंडलाइन फोन के जरिए ही संभव था.


जाहिर है कि मेरा फैसला हमारे रिश्तों के हक में ही था. क्योंकि दिल और दिमाग की जंग में एक बार फिर दिल ने दिमाग को शिकस्त दे दी थी.

‘‘वह अपने रैंट के अकोमोडेशन के पास आईआईटी होस्टल में लगे सिक्के वाले फोन से बात करती थी, जिस में हर बार 3 मिनट पूरे होने से पहले ही एक रुपए का सिक्का डालना पड़ता था, ताकि फोन बीच में न कटे. कभी उस के पास सिक्के खत्म हो जाते थे तो कभी कोई और उस के पीछे से आ कर उसे जल्दी बात खत्म करने के लिए बोल देता था. फिर भी औसतन हम दिन में आधा घंटा तो बात कर ही लेते थे. हमारे कौमन इंटरैस्ट के सब्जैक्ट्स पर उस की क्लीयर अप्रोच, स्ट्रेट फौरवर्ड स्टाइल और हाजिरजवाबी से मैं बहुत इम्प्रैस्ड होने लगा था.


‘‘जब भी मेरा मूड औफ होता या मैं थका होता, मेरी उस से बात करने की बहुत इच्छा होने लगती थी. उस की मीठी आवाज सुनते ही मेरी सारी थकान उतर जाती थी. लेकिन हमारी बात तभी होती थी, जब उस का फोन आता था. मेरा मन होने लगा था कि फोन बहुत हुआ, अब फेस टू फेस भी मिल लेना चाहिए, आखिर पता तो चले कि मोहतरमा दिखने में कैसी हैं. लेकिन जब भी मैं उस से मिलने के लिए कहता, वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाती.


‘‘कई बार तो मेरे ज्यादा जिद करने पर वह मिलने का टाइम और जगह भी फिक्स कर लेती, पर ऐन मौके पर उस का फोन आ जाता कि वह नहीं आ पाएगी. उस की इस हरकत पर मु?ो बहुत गुस्सा आता था. कई बार तो शक भी होता कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है. मगर जब उस का फोन आता तो वह इतनी मासूम बन जाती कि मैं उस पर नाराजगी भी जाहिर न कर पाता था.


‘‘‘आखिर तुम मु?ा से मिलने से क्यों बचती हो?’ एक दिन बातोंबातों में मैं ने उस से पूछ लिया.


‘‘‘जिस दिन मिलोगे, जान जाओगे,’’ उस ने शांति से जवाब दिया और दूसरे टौपिक पर बात करने लगी. मैं ने भी बात को ज्यादा नहीं खींचा. लेकिन मेरे मन में तरहतरह के सवालों ने घर बनाना शुरू कर दिया.


‘‘मु?ो उस की आदत सी हो गई


थी. जिस दिन उस का फोन


न आता, मैं बेचैन हो उठता. मेरी हालत जल बिन मछली जैसी हो जाती थी और जैसे ही उस का फोन आता था, मैं जैसे फिर से जी उठता था.


‘‘इसी तरह दिन बीतने लगे और देखते ही देखते 4 महीने गुजर गए. एक बार तो पूरे 2 हफ्तों तक उस का फोन नहीं आया. वह पखवाड़ा मैं ने कैसे काटा, मैं ही जानता था. कभी लगता कि मु?ा से कहीं कोई गलती तो नहीं हो गई. कभी लगता कि वह किसी परेशानी में तो नहीं है. मैं सम?ा नहीं पा रहा था कि उस से कैसे कौन्टैक्ट करूं.


‘‘आखिर 15 दिनों बाद उस का फोन आया.


‘‘‘पहले यह बताओ कि इतने दिन फोन क्यों नहीं किया?’ उस के हैलो कहते ही मैं उस पर भड़क उठा.


‘‘‘सौरी, मैं फोन नहीं कर पाई,’ उस ने थके स्वर में जवाब दिया.


‘‘‘क्या मतलब, नहीं कर पाई?’ मेरा गुस्सा बढ़ता जा रहा था.


‘‘‘मतलब तो तुम ही बता सकते हो,’ वह मेरी ?ां?ालाहट का मजा लेते हुए बोली.


‘‘‘इस का यही मतलब है कि तुम्हें मु?ा से जरा भी प्यार नहीं है. मैं ही पागल हूं, जो तुम से…’ कहतेकहते मैं अचानक रुक गया. लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुका था.


‘‘‘मु?ा से क्या…?’ उस ने शरारत से पूछा.


‘‘‘कुछ नहीं,’ मैं बहुत शर्म सी महसूस करने लगा था.


‘‘‘बोलो न सुकू, मु?ा से क्या…?’ उस ने इसरार किया.


‘‘पर, मैं ने कोई जवाब नहीं दिया और फोन कट कर दिया. तुरंत ही फिर से उस का फोन आ गया.


‘‘‘अब क्या है?’ मैं ने बनावटी गुस्से से उस से पूछा.


‘‘‘मु?ो तुम से कुछ कन्फैस करना है,’ वह ?ि?ाकती हुई बोली.


‘‘मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था. मु?ो लगा कि शायद अब वह पल आ गया है जब वह अपने प्यार का इजहार करेगी.


‘‘‘कहो,’ मेरी आवाज थरथराने लगी.


‘‘‘पहले प्रौमिस करो कि सुन कर नाराज तो नहीं होओगे,’ वह बोली.


‘‘‘बोलो न, क्यों फालूत का सस्पैंस क्रिएट कर रही हो,’ मैं ने चिढ़ कर कहा.


‘‘‘बात यह है कि हमारी दोस्ती किसी इत्तफाक की वजह से नहीं हुई,’ उस ने जैसे बम फोड़ा.


‘‘‘वाट, यह तुम क्या कह रही हो?’ मैं ने लगभग चीखते हुए पूछा.


‘‘‘प्लीज, शांति से मेरी बात सुन लो. इस के बाद तुम्हारा जो भी फैसला होगा, मु?ो मंजूर होगा,’ वह ?ि?ाकती हुई बोली.


‘‘मैं ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और उस के बोलने का इंतजार करने लगा.


‘‘‘हैलो,’ उधर से आवाज आई.


‘‘‘बोलो, मैं सुन रहा हूं,’ मैं ने सपाट स्वर में कहा.


‘‘इस के बाद जयंती ने अटकतेअटकते जो बताया, उस का लब्बोलुआब कुछ यों था कि जिस दिन पहली बार उस का फोन आया था, उस से एक दिन पहले ही उस ने मु?ो एक आर्ट एग्जीबिशन में देखा था. मैं उसे बहुत अच्छा लगा था और वह पूरी गैलरी में मेरे आसपास ही घूमती रही थी. हालांकि मैं ने न तो उस पर कोई ध्यान दिया था और न ही उस की हरकतों पर.


‘‘जिस वक्त मैं विजिटर्स बुक में एग्जीबिशन के बारे में अपना कमैंट लिख रहा था, तब वह मेरे पीछे ही खड़ी हुई थी. मेरे हटने के बाद अपना कमैंट लिखतेलिखते उस ने विजिटिर्स बुक में लिखा मेरा नाम और फोन नंबर याद कर लिया था और अगले दिन रौंग नंबर के बहाने मु?ो फोन किया, जिस से हमारे बीच दोस्ती की शुरुआत हुई.


‘‘उस की बात सुन कर मेरी सम?ा में नहीं आ रहा था कि उस की इस चालाकी के लिए उस से दोस्ती तोड़ दूं या फिर उसे माफ कर के इस रिलेशनशिप को एंजौय करूं.


‘‘‘सुकू, क्या हुआ?’ वह मेरी खामोशी से परेशान हो उठी थी.


‘‘‘कुछ नहीं,’ मैं ने कहा और फोन काट दिया.


‘‘अगले दिन फिर उस का फोन आया और उस ने अपनी गलती के लिए मु?ा से माफी मांगी. तब तक मैं भी अपना निर्णय ले चुका था. जाहिर है कि मेरा फैसला हमारे रिश्तों के हक में ही था. क्योंकि दिल और दिमाग की जंग में एक बार फिर दिल ने दिमाग को शिकस्त दे दी थी.


‘‘मैं ने यह सोच कर खुद को तसल्ली दी कि अगर वह सच न बताती तो मु?ो तो कभी इस बात का पता नहीं चल सकता था. कम से कम अपनी ईमानदारी के लिए तो वह माफी के लिए डिजर्व करती ही है.


‘‘मैं ने उसे माफ तो कर दिया था लेकिन अभी भी उसे ले कर मैं आश्वस्त नहीं हो पा रहा था. बेशक, अब तक हम दोनों ही सम?ा चुके थे कि अब हमारे बीच का रिश्ता सिर्फ दोस्ती तक सीमित नहीं रहा है. इस के बावजूद मु?ो बारबार ऐसा लगता था कि कहीं यह सब एक छलावा ही साबित न हो. मैं प्रेम की इस डगर पर इतना आगे बढ़ चुका था कि पीछे लौटना असंभव था. इसलिए मैं ने अपना मन कड़ा किया और एक दिन उस से साफसाफ बोल दिया कि मैं उस की इस आंखमिचौली से तंग आ चुका था. अगर उसे मु?ा से रिश्ता रखना है तो सामने आ कर मिले, वरना मु?ो फोन न करे.


‘‘मेरी बात सुन कर जयंती कुछेक पल के लिए मौन हो गई. फिर उस ने कहा कि वह भी मु?ो इतना ही चाहती है, जितना कि मैं उसे. उस ने वादा किया कि वह 3 दिनों बाद वेडनेसडे को मु?ा से मिलने हमारे घर आएगी और इस से पहले मु?ो फोन नहीं करेगी. फिर उस ने मु?ो अपने औफिस का नंबर दिया और कहा कि यह उस के बौस का नंबर है. अगर बहुत अर्जेंट हो तो इस नंबर पर उस से बात की जा सकती है. इस के बाद उस ने फोन रख दिया.


इसी कशमकश में एक दिन, दो दिन, पूरा हफ्ता और देखते ही देखते एक महीना बीत गया. मेरे भीतर भरा गुस्सा शांत होने लगा था.

‘‘मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था. सिर्फ 3 दिन की ही तो बात थी, फिर मैं भी उसे देखूंगा कि वह कैसी दिखती होगी, कैसी ड्रैसिंग होगी, काली होगी या गोरी, लंबी होगी या नाटी, सीधीसादी होगी या मौडर्न, सुंदर होगी या… इन्हीं कल्पनाओं में 3 दिन कैसे बीत गए, पता ही न चला और वेडनेसडे आ पहुंचा.


‘‘मैं अच्छे से तैयार हो कर उस का इंतजार करने लगा. जब भी डोरबैल बजती, लगता कि कहीं वही तो नहीं. लेकिन उस की जगह किसी और को देख कर मैं खिसिया कर रह जाता. मेरे छोटे भाई रजनीश को मेरी यह हालत देख कर बड़ा मजा आ रहा था और वह बारबार इंतजार से जुड़ा कोई न कोई फिल्मी गाना गा कर मु?ो चिढ़ाने लगा.


‘‘जैसेजैसे दिन बीतता जा रहा था, मेरी खिसियाहट बढ़ती जा रही थी. मैं ने इस से पहले कभी खुद को इतना अपमानित महसूस नहीं किया था. रजनीश को भी शायद मेरी हालत का अंदाजा हो गया था और उस ने मु?ो चिढ़ाना बंद कर दिया था. उस के इंतजार में बैठेबैठे शाम हो गई थी. मेरा मन रोने को होने लगा था. मैं ने कसम खा ली कि अब उस से कभी बात नहीं करूंगा. फिर भी मन के किसी कोने में बारबार यह इच्छा होती कि वह मु?ो फोन करे और न आने की कोई जायज वजह बताते हुए इस के लिए मु?ा से माफी मांगे, पर उस का फोन नहीं आया. एकबारगी तो मेरा यह भी मन किया कि उस के औफिस के नंबर पर फोन कर के उसे खूब खरीखोटी सुनाऊं. फिर लगता कि जब गलती उस की है तो मैं क्यों खुद से उसे फोन करूं.


‘‘इसी कशमकश में एक दिन, दो दिन, पूरा हफ्ता और देखते ही देखते एक महीना बीत गया. मेरे भीतर भरा गुस्सा शांत होने लगा था. अब मु?ो डर लगने लगा था कि कहीं ईगो और नाराजगी के चक्कर में मैं उसे हमेशा के लिए न खो दूं.


‘‘आखिरकार, जब मु?ा से नहीं रहा गया तो मैं ने उस के औफिस में फोन लगा ही दिया और रिसैप्शनिस्ट से उस के बताए एक्सटैंशन नंबर से कनैक्ट करने के लिए कहा.


‘‘‘हैलो,’ उधर से एक पुरुष स्वर सुनाई दिया, जो शायद जयंती के बौस का था.


‘‘‘जी, कैन आई स्पीक टू जयंती जोशी?’ मैं ने संभल कर कहा.


‘‘उधर एक पल के लिए जैसे सन्नाटा छा गया.


‘‘‘हैलो,’ मैं ने फिर कहा.


‘‘‘हैलो, आर यू मि. सुकुमार?’ उस ने विनम्रता से पूछा.


‘‘‘जी,’ मैं ने हैरानी से पूछा, ‘जयंती कहां है?’


‘‘इस के बाद उस ने जो बताया, वह हिला देने वाला था. यह जान कर मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया कि अब वह इस दुनिया में नहीं रही. सैटरडे को जब मेरी उस से आखिरी बार बात हुई थी, उस के तीसरे ही दिन आठ रास्ता चौक के पास उस की स्कूटी एक स्कूलबस की चपेट में आ गई थी. बेहोशी की हालत में उसे अस्पताल पहुंचाया गया, जहां वह 10 दिनों तक मौत से जू?ाती रही और बेहोशी की हालत में ही चल बसी थी.


‘‘अपने इस पहले प्यार की ठंडी राख के अलावा आज मेरे जीवन में कुछ नहीं बचा है. इसे ही अपने दामन में समेट कर मैं जिए जा रहा हूं.’’ सुकुमार बनर्जी की आवाज भर्राने लगी थी. वे आगे बोले, ‘‘मैं आज तक खुद को इस बात के लिए माफ नहीं कर पाया हूं कि मैं ने बेकार के ईगो के चक्कर में उसे फोन नहीं किया. अगर मैं ने उस के औफिस में पहले ही फोन कर लिया होता तो उस के आखिरी पलों में उस के साथ हो सकता था.’’ यह कह कर वे फफक उठे. उन्हें शांत कराने के बजाय मु?ो यही बेहतर लगा कि उन्हें रोने दिया जाए. आखिर वे बेचारे कब तक इस गुबार को अपने हृदय में ढोते रह सकते थे.


‘‘मु?ो अफसोस है मेरी वजह से आप को तकलीफ हुई. 5 मिनट में उन के नौर्मल होने के बाद मैं ने खेद प्रकट करते हुए कहा.


‘‘जी, इस में आप की कोई गलती नहीं है,’’ वे बोले और अचानक उन के फोन की रिंग बजी. वे मु?ा से बोले, ‘‘माफ कीजिए, अब मु?ो चलना होगा, मेरा ड्राइवर आ गया है.’’


मेरे सवाल भी लगभग खत्म हो गए थे. जिस सवाल को पूछने की हिम्मत मैं नहीं कर पाई थी, उस का जवाब मु?ो बिना पूछे मिल गया था. मैं जान चुकी थी कि अपनी पेंटिंग्स में वे स्त्रियों को बिना चेहरे के क्यों दिखाते हैं.


मैं ने खड़े हो कर उन्हें विदा किया और उन के जाते ही सब से पहला काम रजत को फोन करने का किया, जिस से मैं पिछले एक हफ्ते से नाराज चल रही थी और गुस्से में बात नहीं कर रही थी.


‘‘हैलो,’’ उस की आवाज सुनते ही मेरे भीतर जैसे कुछ बहने लगा.


‘‘कुछ नहीं, मु?ो तुम से मिलना है,’’ मैं बमुश्किल इतना ही कह सकी.


‘‘क्या हुआ मनु, कुछ तो बोलो?’’ वह परेशान स्वर में बोला.


‘‘कुछ नहीं. बस, तुम अभी आ जाओ. मैं होटल सिद्धार्थ की लौबी में हूं और तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’


‘‘ठीक है, मैं 10 मिनट में पहुंचता हूं,’’ उस ने कहा और फोन डिस्कनैक्ट कर दिया.

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