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कहानी: मीठी छुरी

 नवीन भैया भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में 3 बार शामिल हुए. हर बार असफल रहे. भैया हतप्रभ थे.

चंचला भाभी के स्वभाव में जरूरत से कुछ ज्यादा मिठास थी जो शुरू से ही मेरे गले कभी नहीं उतरी, लेकिन घर का हर सदस्य उन के इस स्वभाव का मुरीद था. वैसे भी हर कोई चाहता है कि उस के घर में गुणी, सुघड़, सब का खयाल रखने वाली और मीठे बोल बोलने वाली बहू आए. हुआ भी ऐसा ही. चंचला भाभी को पा कर मां और बाबूजी दोनों निहाल थे, बल्कि धीरेधीरे चंचला भाभी का जादू ऐसा चला कि मां और बाबूजी नवीन भैया से ज्यादा उन की पत्नी यानी चंचला भाभी को प्यार और मान देने लगे. कभी बुलंदियों को छूने का हौसला रखने वाले, प्रतिभाशाली और आकर्षक व्यक्तित्व वाले नवीन भैया अपनी ही पत्नी के सामने फीके पड़ने लगे.


मेरे  4 भाईबहनों में सब से बड़े थे मयंक भैया, फिर सुनंदा दी, उस के बाद नवीन भैया और सब से छोटी थी मैं. हम  चारों भाईबहनों में शुरू से ही नवीन भैया पढ़ने में सब से होशियार थे. इसलिए घर के लोगों को भी उन से कुछ ज्यादा ही आशाएं थीं. आशा के अनुरूप, नवीन भैया पहली बार में ही भारतीय प्रशासनिक सेवा की मुख्य लिखित परीक्षा में चुन लिए गए और उस दौरान मौखिक परीक्षा की तैयारियों में जुटे हुए थे, जब एक शादी में उन की मुलाकात चंचला भाभी से हुई.


निम्न  मध्यवर्गीय परिवार की साधारण से थोड़ी सुंदर दिखने वाली चंचला भाभी को नवीन भैया में बड़ी संभावनाएं दिखीं या वाकई प्यार हो गया, किसे मालूम, लेकिन नवीन भैया उन के प्यार के जाल में ऐसे फंसे कि उन्होंने अपना पूरा कैरियर ही दांव पर लगा दिया. उन से शादी करने की ऐसी जिद ठान ली कि उस के आगे झुक कर उन की मौखिक परीक्षा के तुरंत बाद उन की शादी चंचला भाभी से कर दी गई.


शादी के बाद भाभी ने घर वालों से बहुत जल्द अच्छा तालमेल बना लिया, लेकिन नवीन भैया को पहला झटका तब लगा जब भारतीय प्रशासनिक सेवा का फाइनल रिजल्ट आया. आईएएस तो दूर की बात उन का तो पूरी लिस्ट में कहीं नाम नहीं था. अब उन्हें अपना सपना टूटता नजर आया, वे चंचला भाभी को मांबाबूजी के सुपुर्द कर नए सिरे से अपनी पढ़ाई शुरू करने दिल्ली चले गए.


नवीन भैया भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में 3 बार शामिल हुए. हर बार असफल रहे. भैया हतप्रभ थे. बारबार की इस असफलता ने उन के आत्मविश्वास को जड़ से हिला दिया.


जिन नौकरियों को कभी नवीन भैया ने पा कर भी ठोकर मार दी थी, अब उन्हीं को पाने के लिए लालायित रहते, कोशिश करते पर हर बार असफलता हाथ आती. जब किसी काम को  करने से पहले ही आत्मविश्वास डगमगाने लगे तो सफलता प्राप्त करना कुछ ज्यादा ही मुश्किल हो जाता है. उन के साथ यही हो रहा था.


नवीन भैया पटना लौट आए थे. यहां भी वे नौकरी की तलाश में लग गए, कहीं कुछ हो नहीं पा रहा था. बाबूजी उन का आत्मविश्वास बढ़ाने के बदले उन्हें हमेशा निकम्मा, कामचोर और न जाने क्याक्या कहते रहते.


प्रतिभाशाली लोगों को चाहने वालों की कमी नहीं होती और उन से ईर्ष्या करने वाले भी कम नहीं होते. होता यह है कि जब कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति कामयाबी की राह नहीं पकड़ पाता तो उस के चाहने वाले उस से मुंह मोड़ने लगते हैं और ईर्ष्या करने वाले ताने कसने का कोई मौका नहीं छोड़ते.


नवीन भैया से जलने वाले रिश्तेदारों और पड़ोसियों को भी मौका मिल गया उन पर तरहतरह के व्यंग्यबाण चलाते रहने का. उन की असफलता से आहत उन के अपने भी उन्हें जबतब जलीकटी सुनाने लगे. पासपड़ोस के लोग तो अकसर उन्हें कलैक्टर बाबू कह उन के जले पर नमक छिड़कते, जिसे सुन एक बार नवीन भैया तो मरनेमारने पर उतारू हो गए थे. जब बाबूजी को इस घटना के बारे में मालूम हुआ तो वे क्रोध में अंधे हो उन्हें बेशर्म और नालायक जैसे अपशब्दों से नवाजते हुए मारने तक दौड़ पड़े थे.


नवीन भैया की शादी के समय बाबूजी ने छत पर एक कमरा बनवाया था, उसी कमरे में नवीन भैया और चंचला भाभी रहते थे.


पूरी तरह टूट चुके नवीन भैया देर तक ड्राइंगरूम के एक कोने में सुबकसुबक कर रोते रहे थे. उन का तो आत्मविश्वास के साथ जैसे स्वाभिमान भी खत्म हो रहा था. दूसरे ही दिन नौकरी की तलाश में जाने के लिए उन्होंने बाबूजी से ही रुपए मंगवाए थे. भाई की दुर्दशा से आहत बड़े भैया ने दूसरा कोई रास्ता न देख समझाबुझा कर उन का दाखिला ला कालेज में करवा दिया.


नवीन भैया के ऐसे कठिन समय में उन का साथ देने के बदले चंचला भाभी मां और बाबूजी के पास बैठी उन्हें कोसती रहतीं और आंसू बहाती रहतीं जिस से उन लोगों की पूरी सहानुभूति बहू के साथ होती चली गई और नवीन भैया के लिए उन के अंदर गरम लावे की तरह उबलता गुस्सा ही बचा रह गया था.


क्षणिक आवेश में लिए गए जीवन के एक गलत फैसले ने नवीन भैया को कहां से कहां पहुंचा दिया था. विपरीत परिस्थितियों के शिकार नवीन भैया के मन की स्थिति समझने के बदले जबतब उन के जन्मदाता बाबूजी ही उन के विरुद्ध कुछ न कुछ बोलते रहते. वे अपनी सारी सहानुभूति और वात्सल्य  चंचला भाभी पर न्योछावर करते और अपनी सारी नफरत नवीन भैया पर उड़ेलते.


चंचला भाभी ने अपनी मीठी जबान और सेवाभाव से सासससुर को अपने हिसाब से लट्टू की तरह नचाना शुरू कर दिया था. वे जो चाहतीं, जैसा चाहतीं, मांबाबूजी वैसा ही करते. नवीन भैया वकालत पास कर कोर्ट जाने तो लगे पर उन की वकालत ढंग से चल नहीं पा रही थी. पैसों की तंगी हमेशा बनी रहती.


इस दौरान उन के 2 लड़के भी हो गए अंश और अंकित. शुरू से ही बड़ी होशियारी से चंचला भाभी अपने दोनों बच्चों को नवीन भैया से दूर अपने अनुशासन में रखतीं. बातबात में जहर उगल कर बच्चों के मन में पिता के प्रति उन्होंने इतना जहर भर दिया था कि अपने पिता की अवज्ञा करना उन के दोनों बेटों के लिए शान की बात थी. घर के बड़े ही जब घर के किसी सदस्य की उपेक्षा करने लगते हैं तो क्या नौकर, क्या बच्चे, कोई भी उसे जलील करने से नहीं चूकता.


अंश और अंकित पूरी तरह बाबूजी के संरक्षण में पलबढ़ रहे थे पर उन का रिमोट कंट्रोल हमेशा चंचला भाभी के पास रहता. नवीन भैया तो अपने बच्चों के लिए भी कोई फैसला लेने से वंचित हो गए थे. धीरेधीरे उन के अंदर भी एक विरक्ति सी उत्पन्न होने लगी थी, अब वे देर रात तक यहांवहां घूमते रहते. घर आते बस खाने और सोने के लिए.


घर के लोग चंचला भाभी की चाहे जितनी बड़ाई करें पर मैं जब भी उन के स्वभाव का विश्लेषण करती, मुझे लगता कुछ है जो सामान्य नहीं है. चंचला भाभी की जरूरत से ज्यादा फर्ज निभाने का उत्साह मेरे मन में संशय भरता. मैं अकसर मां से कहती, ‘‘मां, ज्यादा मिठास की आदत मत डालो, कहीं तुम्हें डायबिटीज न हो जाए.’’


मेरी बातें सुनते ही बड़ों की आलोचना करने के लिए मां दस नसीहतें सुना देतीं.


यह चंचला भाभी के मीठे वचनों का ही असर था जो मयंक भैया अंश और अंकित को भी अपने तीनों बच्चों में शामिल कर अपने बच्चों की तरह पढ़ातेलिखाते और उन की सारी जरूरतों को पूरा करते. पर्वत्योहार में जैसी साड़ी भैया भाभी के लिए खरीदते वैसी ही साड़ी चंचला भाभी के लिए भी खरीदते. वैसे भी मां की मयंक भैया को सख्त हिदायत थी कि कपड़ा हो या और कोई दूसरी वस्तु, दोनों बहुओं के लिए एक समान होनी चाहिए. भैया भी मां की इस बात का मान रखते.


वैसे चंचला भाभी भी कुछ कम नहीं थीं, जबतब बड़ी भाभी के कीमती सामान पर भी मीठी छुरी चलाती रहतीं. कभी कहतीं, ‘‘हाय भाभी, कितने सुंदर कर्णफूल आप ने बनवाए हैं. इन पर तो मेरी पसंदीदा मीनाकारी है. मैं तो इन के कारण लाचार हूं, इन्होंने इतनी छोटीछोटी चीजों को भी मेरे लिए दुर्लभ बना दिया है.’’


झट बड़ी भाभी अपना बड़प्पन दिखातीं, ‘‘अरे नहीं, चंचला, इतना मायूस मत हो. तू इन्हें रख ले. मैं अपने लिए दूसरे बनवा लूंगी.’’


पहले वे मना करतीं, ‘‘नहींनहीं, भाभी, मैं भला इन्हें कैसे ले सकती हूं. ये आप ने अपने लिए बनवाए हैं.’’


बड़ी भाभी जब जिद कर उन्हें थमा ही देतीं तब बोलतीं, ‘‘मैं खुश हूं कि मुझे आप जैसी जेठानी मिलीं. भला इस दुनिया में कितने लोग हैं जिन के दिल आप के जैसे सोने के हैं. आप मुझे छोटी बहन मानती हैं तो पहन ही लूंगी.’’


चंचला भाभी की तारीफ सुन कर बड़ी भाभी फूल कर कुप्पा हो जातीं.


सुनंदा दी जब भी चेन्नई से आतीं, सब के लिए साडि़यां लातीं. यह सोच कर कि नवीन तो शायद ही चंचला के लिए अच्छी साड़ी ला पाता होगा, सब से पहले चंचला भाभी को ही साड़ी पसंद करने को बोलतीं और चंचला भाभी अकसर 2 साडि़यों के बीच कन्फ्यूज हो जातीं कि कौन सी साड़ी ज्यादा अच्छी है. तब सुनंदा दी इस का हंस कर समाधान निकालतीं, ‘‘तुम दोनों ही साडि़यां रख लो.’’


जितना जादू चंचला भाभी के मधुर वचनों का घर के लोगों पर बढ़ता जा रहा था, उतना ही नवीन भैया अपने घर में  बेगाने होते जा रहे थे.


नवीन भैया की शादी के समय बाबूजी ने छत पर एक कमरा बनवाया था, उसी कमरे में नवीन भैया और चंचला भाभी रहते थे. जब भाभी नीचे का काम खत्म कर सोने जातीं तब सीढि़यों से दरवाजा बंद कर लेतीं.


एक बार देर रात तक पढ़तेपढ़ते मैं बुरी तरह थक कर आंगन में आ बैठी. सामने सीढि़यों का दरवाजा खुला देख, मैं ठंडी हवा  का आनंद उठाने छत पर आ गई. तभी चंचला भाभी की कर्कश और फुफकारती हुई धीमी आवाज सुन जैसे मेरी रीढ़ की हड्डी में एक ठंडी लहर सी दौड़ गई. नवीन भैया को चंचला भाभी किसी बात पर सिर्फ डांट ही नहीं रही थीं, अपशब्द भी बोल रही थीं. फिर धक्कामुक्की की आवाज सुनाई पड़ी. उस के तुरंत बाद ऐसा लगा जैसे कुछ गिरा. मेरा तो यह हाल हो गया था कि काटो तो खून नहीं.


अचानक नवीन भैया दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. कमरे से आती धीमी रोशनी में भी मुझे सबकुछ साफसाफ दिख रहा था. वे बुरी तरह हांफ रहे थे, उन के बाल बिखरे और कपड़े जगहजगह से फटे हुए नजर आ रहे थे. अपने हाथ से रिसते खून को अपनी शर्ट के कोने से साफ करने की कोशिश करते नवीन भैया को देख, मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरा कलेजा चाक कर दिया हो.


मेरी उपस्थिति से अनजान चंचला भाभी ने फटाक से दरवाजा बंद कर लिया और नवीन भैया सीढि़यों की तरफ बढ़े. तभी सीढि़यों पर जलते बल्ब की रोशनी में हम दोनों की आंखें टकराईं. भैया मुझे विवश दृष्टि से देख तेजी से आगे बढ़ गए.


हमेशा से सहनशील रहे नवीन भैया का चेहरा उस समय इतना दयनीय दीख रहा था कि वहां खड़ी मैं हर पल शर्म के बोझ तले दबती जा रही थी. इन्हीं चंचला भाभी की लोग मिसाल अच्छी बहू के रूप में देते हैं जिन्होंने अपने पति को इस कदर प्रताडि़त करने के बाद भी, दुनियाभर में उन पर तरहतरह के आरोप लगा उन को बदनाम कर रखा था. मैं ने किसी से कुछ भी नहीं कहा. परिवार के लोगों पर तो अभी भाभी का जादू छाया हुआ था. मेरी कौन सुनता.


उन्हीं दिनों मयंक भैया का ट्रांसफर रांची हो गया था. संयोग से उसी साल मुझे भी रांची मैडिकल कालेज में दाखिला मिल गया. मैं पटना से रांची आ गई.


मयंक भैया के पटना से हटते ही बाबूजी की चिंता नवीन भैया के परिवार के लिए कुछ ज्यादा बढ़ गई थी. अभी तक बड़े भैया एक परिवार की तरह सब को संभाले हुए थे. घर से बाहर निकलने पर कई तरह के खर्चे बढ़े, फिर भी अंश और अंकित की पढ़ाई का पूरा खर्च भेजते रहे. लेकिन बाबूजी संतुष्ट नहीं थे. वे नवीन भैया के परिवार की निश्चित आय की व्यवस्था करना चाहते थे.


मां ने धैर्य से काम लेते हुए मकान और उस के बगल वाले जमीन के कागजात बाबूजी से मांगे, ताकि उन्हें गिरवी रख पैसों का इंतजाम करें.

नौकरी से अवकाश प्राप्त करने के बाद उन्होंने एक मार्केट कौंप्लैक्स बनवाया था, जिस से उन की अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. उन्होंने उस मार्केट कौंप्लैक्स को मयंक भैया के मना करने के बावजूद चंचला भाभी के नाम कर दिया. मयंक भैया चाहते थे कि वह मार्केट कौंप्लैक्स नवीन भैया के नाम हो. लेकिन बाबूजी के लिए तो नवीन भैया एक गैरजिम्मेदार और निकम्मे इंसान थे. उन की बहू ने उन के दिमाग में यह बात बिठा दी थी.


मयंक भैया के हटते ही चंचला भाभी ने मांबाबूजी की जिम्मेदारी के साथसाथ उन की सारी आमदनी भी अपनी मुट्ठी में कर ली थी. फिर भी हम सभी चंचला भाभी के इस तरह सबकुछ संभाल लेने से मांबाबूजी की तरफ से चिंतामुक्त हो गए थे. अकसर बाबूजी मयंक भैया को फोन कर नवीन भैया की गैरजिम्मेदाराना हरकतों से अवगत कराते रहते. इतने दिनों बाद भी बाबूजी यह नहीं समझ पा रहे थे कि नवीन भैया को फटकार के बदले अपनों के प्यार और सहानुभूति की कितनी जरूरत है.


वह जनवरी की ठिठुरती शाम थी. हम सभी शाम होते ही उस हाड़ कंपा देने वाली ठंड से बचने के लिए एक कमरे में आग जला कर बैठे गपशप कर रहे थे. तभी फोन की घंटी बजी. फोन उठाते ही मां ने रोतेरोते बताया, बाबूजी की तबीयत बहुत खराब है. उन्हें आईसीयू में भरती कराया गया है. मां को आश्वस्त कर हम फौरन पटना के लिए रवाना हो गए.


नवीन भैया द्वारा बताए पते पर सीधे अस्पताल पहुंचे. वार्ड के बाहर ही नवीन भैया और मां बैठे मिले. चंचला भाभी कहीं नजर नहीं आ रही थीं. हम लोगों को देख मां को थोड़ी तसल्ली हुई. जब मयंक भैया ने चंचला भाभी के बारे में पूछा तो उस चिंता, दुख, अनिश्चितता और भय की स्थिति में भी जो कुछ मां ने सुनाया, सुनते ही जैसे हम सब के पैरों तले जमीन खिसक गई. किंकर्तव्यविमूढ़ बने हम सब मां की बातें सुनते रहे.


मां ने बताया, ‘जब बाबूजी को दिल का दौरा पड़ने से अस्पताल में भरती करवाया गया, आननफानन डाक्टरों ने लाखों के खर्चों की फेहरिस्त थमा दी. हमेशा की तरह जब मां ने चंचला भाभी से पैसा निकालने के लिए कहा तो उन्होंने थोड़े से पैसे निकाल कर देने के बाद, यह कह कर पैसे निकालने से मना कर दिया कि अकाउंट में पैसे हैं ही नहीं. जबकि चंचला भाभी के साथ जौइंट अकाउंट में बाबूजी ने अच्छीखासी रकम जमा करवा रखी थी. 1 मिनट में चंचला भाभी ने मांबाबूजी के अटूट विश्वास की धज्जियां उड़ा कर रख दी थीं.


मां ने धैर्य से काम लेते हुए मकान और उस के बगल वाले जमीन के कागजात बाबूजी से मांगे, ताकि उन्हें गिरवी रख पैसों का इंतजाम करें. तब उन्हें पता चला, दुकान की रजिस्ट्री के समय वे सब भी चंचला भाभी ने अपने नाम करवा लिए थे. परिस्थिति को देखते हुए हम सब ने अभी मां को चुप रहने की सलाह दी और खुद भी खामोश रहे. मयंक भैया ने सारे खर्च संभाल लिए थे, पर डाक्टरों की लाख कोशिश के बाद भी बाबूजी को बचाया नहीं जा सका.


बाबूजी की तेरहवीं तक इस बारे में सब चुप रहे. जब सारे रिश्तेदार चले गए, मयंक भैया ने चंचला भाभी को बुलवा कर मां द्वारा लगाए गए आरोपों की सत्यता जाननी चाही तब बिना किसी संकोच के मां द्वारा लगाए गए सारे आरोपों को सही बताते हुए वे बोलीं, ‘‘हां, मैं ने ऐसा किया है, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि मैं और मेरे दोनों बच्चे हमेशा आप लोगों के मुहताज रहें.’’


उन की आंखों में एक अजीब सी हिंसक ईर्ष्या धधक उठी, जिसे देख भैया ने समझाना चाहा कि तुम ऐसा क्यों सोचती हो कि हम सब तुम्हारे अपने नहीं हैं.


भैया की बातें सुनते ही वे और भी भड़क उठीं. हमेशा से सीधीसादी दिखने वाली चंचला भाभी ने एकाएक बहुत उग्र रूप धारण कर लिया. कहीं बहस में रिश्तों की मर्यादा न टूट जाए, यह सोच मयंक भैया खामोशी से मां के बचेखुचे सामान और गहने समेट हम सब को साथ रांची ले जाने के लिए कार में आ बैठे.


हम सभी घर से निकले ही थे कि नवीन भैया बीच रास्ते में आ खड़े हो गए. मयंक भैया के कार रोकते ही वे दौड़ कर आए और भैया का हाथ थामते हुए बोले, ‘‘भैया, मुझे अकेला छोड़ कर मत जाइए, मैं आप लोगों के बिना जी नहीं सकूंगा.’’


भैया कुछ बोलते, उस के पहले ही भाभी गाड़ी से उतर नवीन भैया का हाथ थाम अपने बगल में बैठाते हुए बोलीं, ‘‘चलो, तुम मेरे साथ चलो. इतना प्रतिभाशाली हो कर भी किस कदर तुम ने अपनी जिंदगी को नरक बना लिया. बहुत हुआ यह सब. तुम्हें मैं ने हमेशा अपना छोटा भाई समझा है. देखना, मैं तुम्हें फिर से कैसे बुलंदियों पर पहुंचाती हूं. जितना तुम ने जिंदगी में चाहा होगा उस का चौगुना तुम पाओगे, यह तुम्हारी भाभी का तुम से वादा है. एक दिन तुम यह भी देखोगे कि कैसे तुम्हारे यही बीवीबच्चे सिर के बल दौड़े तुम्हारे पास आएंगे.’’


गाड़ी आगे बढ़ी, अब मेरे बोलने की बारी थी, ‘‘आप लोगों को चंचला भाभी पर अटूट विश्वास करते देख मैं हमेशा खामोश रही, वरना मैं तो शुरू से ही उन्हें अच्छी तरह समझ रही थी. जो जितना उन की मीठी वाणी का मुरीद हुआ उस के गले पर उन की मीठी छुरी उतनी ही तेज चली. आप लोगों के तो फिर भी धनसंपत्ति पर ही उन की मीठी छुरी चली, जरा नवीन भैया की सोचिए, जिन की पूरी जिंदगी ही बरबाद हो गई.’’


किसी के पास अब इस बात का भला क्या जवाब था? सब मीठी छुरी के मारे हुए थे. सब को राहत इस बात की थी कि चलो घाव भले हुआ, प्राण तो बचे. शायद इसीलिए उस विषम परिस्थिति में भी सब के चेहरों पर मुसकराहट छा गई.

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