कहानी: मेरे अनुभव
रेणु के पापा को अनुभव एक ही नजर में पसंद आ गए थें.
‘‘हैलो रेखा, कैसी हो? मैं रेणू बोल रही हूं.’’
‘‘अरे, रेणू तुम कब आईं? मैं ने तो सुना था कि तुम लंबे समय के लिए भारत गई थीं.’’
दूसरी ओर से रेखा ने फोन का उत्तर देते हुए जब यह कहा तो रेणू सकपका सी गई. फिर अपने को संभाल कर बोली, ‘‘आज ही भारत से लौटी हूं. हां, पहले यह बताओ कि तुम्हें कुछ पता है कि अनुभव कहां हैं?’’
‘‘नहीं. मु झे तो कुछ पता नहीं. क्या भाईसाहब तुम्हें लेने एयरपोर्ट नहीं गए?’’ रेखा ने दूसरा प्रश्न किया तो रेणू चुप हो गई. अब वह उसे कैसे बताए कि अनु को उस ने अपने वापस आने के बारे में बताया ही नहीं. हां, एयरपोर्ट पहुंच कर घर फोन जरूर किया था पर किसी ने उठाया ही नहीं. इसलिए वह एकदम टैक्सी पकड़ कर घर चली आई. घर पर जब अनुभव नहीं मिले तो बहुत निराशा हुई.
‘‘नहीं, उन्हें यह पता नहीं था कि मैं आज वापस आ रही हूं. मैं उन्हें अचानक आ कर आश्चर्य में डाल देना चाहती थी,’’ रेणू ने रेखा से बात आगे बढ़ाते हुए कहा.
‘‘सुनो, यहां आ जाओ. खाना खा कर चली जाना,’’ रेखा बोली.
‘‘नहीं, मैं बहुत थकी हुई हूं. कल देखूंगी,’’ रेणू ने उत्तर दिया और फोन रख दिया.
रेखा हमारे पड़ोस में ही रहती है तथा अनुभव और रेखा के पति सुबोध पिछले 5-6 सालों से अच्छे मित्र हैं, पहले दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे.
रात के 11 बज गए पर अनुभव का कोईर् पता नहीं चला. रेणू ने कई जगह फोन भी किया पर किसी को भी अनुभव के बारे में पता नहीं था. गैराज में दोनों कारें खड़ी हैं, तो फिर अनुभव कहां जा सकते हैं? दिमाग के घोड़े दौड़ाते हुए रेणू समझ नहीं पा रही थी.
रेणू को भूख भी लग रही थी. फ्रिज खोला तो देखा उस में कुछ खाने को भी नहीं है. अनुभव तो स्वयं ही बहुत अच्छा खाना बनाते हैं तथा ज्यादातर घर का बना खाना ही पसंद करते हैं. यद्यपि उन्हें अमेरिका आए हुए बहुत दिन हो गए हैं लेकिन अभी भी भारतीय खाना ही पसंद करते हैं. फ्रिज में जब कुछ भी खाने को नहीं मिला तो रेणू ने सैंडविच बनाया तथा उसे खा कर ही संतोष कर लिया.
अनुभव के न होने से रेणू की नजर बारबार घड़ी पर जा रही थी. आधी रात होने को आई पर वह अभी तक नहीं आए. रेणू को चिंता होने लगी. आंखों में नींद नहीं थी. चाय पीने को मन किया तो घर में दूध नहीं था. रेणू सोचने लगी कि अनु होते तो अभी दूध ले कर आते और स्वयं चाय बनाते. उन की गैरमौजूदगी इस समय बहुत अखरी. बाहर काफी ठंड थी. ऊपर से एक कंबल उठा कर लाई तथा ड्राइंगरूम में ही सोफे पर लेट कर टैलीविजन देखने लगी. टैलीविजन देखतेदेखते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला. जब आंखें खुलीं तो सुबह के 8 बज रहे थे और टैलीविजन वैसे ही चल रहा था.
रेणू ने उठ कर सब से पहले टैलीविजन बंद किया. फिर बाथरूम चली गई. वहां से आ कर उस ने अनुभव के औफिस में फोन किया तो उन की सैक्रेटरी ने बताया कि वे तो 4 दिन से कैलिफोर्निया में एक कौन्फ्रैंस में हैं तथा कल रात तक वापस आएंगे. मैं ने जब सैक्रेटरी से उन के होटल के बारे में पूछा तो वह बोली कि जिस दिन अनुभवजी गए थे वह औफिस में नहीं थी, इसलिए उसे पता नहीं है.
यह जान कर कि अनुभव कैलिफोर्निया में है और कल आ रहे हैं, रेणू को बड़ी शांति मिली. वह तैयार हो कर बाहर गई तथा खाने का सामान खरीद लाई. सब से पहले चाय बना कर पी फिर नहा कर अच्छा सा नाश्ता किया. चूंकि अनुभव कल आने वाले हैं, अत: घर में अकेला अच्छा नहीं लगा तो टैलीविजन देखने लगी. मन में एक बार आया कि रेखा को फोन कर के बात ही कर ले. फिर खयाल आया कि वह तो काम पर गई होगी. अनुभव के सभी दोस्तों की पत्नियां काम करती हैं. मैं ही अकेली ऐसी हूं जो काम नहीं करती.
रेणू को याद आया, अनुभव ने एक बार कहा भी था कि तुम घर पर पड़ीपड़ी बोर हो जाती होगी, कहीं कोई काम ही ढूंढ़ लो पर मेरा अहं सामने आ गया और मैं बोली थी, ‘मेरे घर वालों के पास इतना पैसा है कि यदि तुम भारत वापस आ कर उन के पास रहने लगो तो तुम्हें भी सारी जिंदगी काम करने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी.’ तब से अनुभव ने इस बारे में फिर कभी कोई बात नहीं की.
हमारी शादी को 5 साल हुए हैं तथा पिछले 4 सालों से हम यहां वाशिंगटन के पास मैरीलैंड स्टेट में ही रह रहे हैं. मैं ने हमेशा अपने घर वालों के धनवैभव से अनुभव और उन के परिवार वालों का अपमान ही करना चाहा है पर उन्होंने कभी पलट कर कुछ नहीं कहा है. यही सब सोचतेसोचते मु झे अपने विवाहित जीवन के बीते दिनों की याद आने लगी.
हमारे एक दूर के रिश्तेदार ने अनुभव के बारे में पिताजी को बताया था. अनुभव उस समय कैलिफोर्निया से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई समाप्त कर के भारत आए हुए थे. पिताजी तुरंत अनुभव को देखने गए तथा उन से बहुत प्रभावित हुए व उन्हें अगले दिन ही मु झे देखने का निमंत्रण दे आए.
मु झे अभी तक याद है. पिताजी ने मु झ से कहा था, ‘बेटी रेणू, मेरी अनुभवी आंखों ने अनुभव में बहुतकुछ देखा है. हालांकि उस का घर साधारण है, गांव में खेतीबाड़ी होती है. उस के पिता पहले शिक्षक थे, अब रिटायर हो गए हैं, लेकिन तुम्हें वहां थोड़े ही रहना है, तुम तो शादी के बाद अमेरिका ही चली जाओगी.’
मेरे पिता जी हमेशा एक ही बात पूछते थे कि तुम्हें गांव में नहीं रहना है.
मुझे भी अनुभव देखने में अच्छे लगे और मैं ने हां कर दी. 15 दिनों में ही हमारी शादी हो गई. पिताजी ने बहुत धूमधाम से शादी की. मैं जब दुलहन बन कर अपनी ससुराल गई तो उन्होंने मेरी आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ी, किंतु मेरा मुंह हमेशा फूला ही रहा. 2 कमरों का उन का एक छोटा सा घर था. बाहर एक बहुत बड़ा चौक था जिस में उन के गायबैल बंधे रहते थे. न बाथरूम न शौचालय. मैं वहां केवल 2 दिन रही पर वे 2 दिन भी 2 युगों के समान लगे थे. तीसरे दिन जब मेरे भैया लिवाने आए तो मैं तुरंत तैयार हो गई.
घर जा कर मैं ने मां से बहुत शिकायत की कि पिताजी ने इतनी जल्दबाजी में मेरी शादी क्यों की. उन के यहां तो रहने के लिए अच्छा सा घर भी नहीं है, क्या मैं आप लोगों पर इतनी भारी पड़ रही थी?
शाम जब पिताजी घर आए तो उन्होंने फिर मु झे सम झाया, ‘बेटा, तुम्हें वहां गांव में थोड़े ही रहना है. अनुभव तो तुम्हें अपने साथ अमेरिका ही ले जाएगा.’
3 दिन बाद अनुभव हमारे घर आए तो पिताजी ने हमें घूमने के लिए मसूरी भेज दिया. पूरा एक सप्ताह हम वहां रहे, बहुत मजा किया. मसूरी से चलते समय अनुभव ने बताया कि उन्हें 10 दिन बाद वापस अमेरिका लौटना है. और भी बहुतकुछ सम झाते रहे, साथ ही यह भी कहा कि मैं अमेरिका पहुंच कर वीजा के सारे कागजात वगैरा भेजूंगा. तुम्हें जल्दी ही वीजा भी मिल जाना चाहिए. मैं चाहता हूं कि तब तक तुम हमारे घर रहो. मेरी मां अब बूढ़ी हो चली हैं. उन से घर का काम अब होता नहीं है. छोटी बहन मंजू अभी स्कूल में पढ़ती है तथा उसे घर के काम में मां की सहायता करनी होती है, इस से उस की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाती है.
‘मैं वहां नहीं रह सकती’, मैं ने तपाक से कह दिया था.
अनुभव ने कुछ नहीं कहा, केवल चुप रहे. हम घर वापस आ गए. 3-4 दिन हमारे घर रहने के बाद वह अपने घर चले गए.
जिस दिन अनुभव को अमेरिका जाना था, हम उन्हें एयरपोर्ट पर ही मिलने आए. अनुभव के साथ मेरे ससुर व मंजू भी थी, पिताजी ने मेरे ससुर को पहले हाथ जोड़ कर नमस्कार की फिर गले से लग गए.
‘कैसी हो भाभी?’ मंजू ने मेरे पास आ कर पूछा था.
‘ठीक हूं’, बस, इतना सा उत्तर मैं ने दिया था.
अनुभव ने जाने से पहले वहां खड़े सभी बड़ों के चरण स्पर्र्श किए, फिर मु झ से यह कह कर कि ‘अपना खयाल रखना’ हाथ हिलाते हुए चले गए.
मेरी आंखों में बरबस आंसू आ गए. फ्लाइट जाने के थोड़ी देर बाद हम भी घर जाने को तैयार हो गए.
‘मास्टरजी, आप हमारे साथ घर चलिए, वहां से हमारा ड्राइवर आप को गांव छोड़ आएगा’, पिताजी ने मेरे ससुरजी से कहा.
‘नहीं, समधीजी, हम तो बस से आए थे और बस से ही वापस जाएंगे’, ससुरजी बोले.
तब पिताजी ने बड़े आदर से उनका हाथ पकड़ कर गाड़ी में बैठा लिया और वह मना न कर सके. मंजू भी उन के साथ ही थी. मैं दूसरी गाड़ी में मम्मी व भाभी के साथ बैठ गई. मैं ने मम्मी से रास्ते में कहा भी कि यदि वे लोग बस से जा रहे थे तो फिर मुसीबत पालने की क्या जरूरत थी?
घर पहुंच कर मैं तो अपने कमरे में जा कर लेट गई और अनुभव के बारे में ही सोचती रही कि पता नहीं अमेरिका में उन्होंने कोई लड़की तो नहीं रखी हुई है. सुना है वहां तो सैक्स के बारे में बहुत आजादी है. वैसे अनुभव ऐसे लगते तो नहीं, पर यह क्या किसी के माथे पर लिखा होता है? मन में उथलपुथल होती रही.
मैं ने अच्छा नहीं किया, मु झे उन के साथ गांव ही चले जाना चाहिए था. वहां उन के साथ रहती तो शायद उन के बारे में कुछ और पता चल जाता. मेरे मन में ऐसे विचार आए पर तभी एक विचार और आया, भला कैसे चली जाती? न तो वहां ठीक से बैठने की जगह है, न रात को अलग से सोने का कमरा. इसी उथलपुथल में समय का पता नहीं चला. तभी मम्मी का स्वर सुनाई दिया.
‘रेणू बेटी, तुम्हारे ससुराल वाले जा रहे हैं, बाहर आ जाओ.’
मैं बाहर आई तो मंजू ने चलते हुए पूछा, ‘भाभी कब आओगी?’
मैं ने रूखेपन से उत्तर दिया, ‘कुछ पता नहीं.’ मैं अपने मन में सोचने लगी कि वहां अब मेरा रखा ही क्या है जो मैं वहां जाऊं.
पिताजी ने मुझ से ससुरजी के पैर छूने का इशारा किया था इसलिए मन न चाहते हुए भी मैं ने अपने ससुर के पैर छुए और उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रख कर सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद दिया.
मंजू ने दोनों हाथ जोड़ कर मु झे नमस्ते की. मैं ने उस का कोई उत्तर नहीं दिया. पिताजी ने जाने से पहले ससुरजी को भेंट दी तथा मम्मी ने मंजू तथा मेरी सास के लिए कुछ कपड़े आदि दिए. इस के बाद पिताजी उन्हें गाड़ी में बैठाने चले गए.
उन्हें विदा करने के बाद पिताजी मु झ से बोले थे, ‘रेणू, मु झे तुम्हारा अपने ससुराल वालों के प्रति यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा बेटी, मत भूलो कि वह तुम्हारे ससुर हैं.’
मैंने कोईर् प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की तथा अपने कमरे में जा कर लेट गई. 2-3 दिन बड़ी उदास सी रही. फिर सब सामान्य सा होने लगा.
मुझे अच्छी तरह से याद है, वह शनिवार का दिन था. शाम को आ कर भैया ने मु झ से कहा था, ‘रेणू, कल हम विजय के साथ दिल्ली घूमने जा रहे हैं. तुम चलो हमारे साथ.’
अनुभव की मां अपनी बेटी की शादी रानी की तरह करना चाहती थी.
वैसे तो शायद मैं नहीं जाती पर विजय जा रहा है, इसलिए तुरंत हां कर दी.
विजय मेरे भैया का मित्र है. उस के पिताजी सरकारी ठेकेदार हैं. बहुत पैसे वाले हैं. विजय अपने मातापिता का एकलौता बेटा है. उस का हमारे यहां आनाजाना बहुत दिनों से है. वह बहुत ही हंसमुख स्वभाव का है. जब भैया की शादी हुई तो वह उन्हें सिनेमा दिखाने ले गया था. मैं भी साथ में गई थी. वह मेरी ही साथ वाली सीट पर बैठा था. फिल्म के दौरान उस ने कई बार मु झे छूने की कोशिश की और मैं ने उसे मना नहीं किया क्योंकि मु झे अच्छा लग रहा था.
एक दिन कालेज की छुट्टी जल्दी हो गई थी. ड्राइवर मु झे लेने नहीं आ पाया तो मैं घर जाने के लिए रिकशे में बैठ ही रही थी कि विजय आ गया और बोला, ‘रेणू, आज रिकशे में क्यों जा रही हो?’ मैं ने कहा, ‘ड्राइवर को पता ही नहीं कि कालेज की छुट्टी जल्दी हो गई, इसीलिए.’
‘चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं’, वह बोला.
पहले तो मैं सकुचाई फिर सोचा कि विजय कोई अजनबी तो है नहीं, अत: उस के साथ स्कूटर पर बैठ गई. इस तरह हम दोनों निकट आते चले गए.
एक दिन हम एक रैस्तरां में बैठे कौफी पी रहे थे कि उस ने अचानक कहा, ‘रेणू, तुम मु झे बहुत अच्छी लगती हो, मु झ से शादी करोगी?’
मैं इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी. अत: घबरा गई तो वह मेरी घबराहट देख कर बोला, ‘यदि तुम्हें एतराज न हो तो मैं कमलकांत (मेरे भैया) से बात करूं?’
मैं अभी भी घबराई हुई थी पर बोली, ‘जैसी तुम्हारी इच्छा.’
भैया ने पिताजी से बातें कीं और पिताजी ने साफ इनकार कर दिया. मैं ने भैया और पिताजी की बातें सुनी थीं. भैया से कह रहे थे, ‘विजय एक रईस बाप का बिगड़ा हुआ बेटा है. उस का चालचलन भी ठीक नहीं है. पिछले 4 वर्षों से बीए में पढ़ रहा है. उन के यहां पैसा गलत तरीके से कमाया जाता है, और यही मेरे मना करने का सब से बड़ा कारण है.’
हम दिल्ली में जब घूमतेघूमते बहुत थक गए तो भाभीजी ने किसी अच्छे से रैस्तरां में जा कर चाय पीने का प्रस्ताव रखा. हम एक रैस्तरां में गए. मु झे विजय का साथ उस दिन बहुत अच्छा लगा. उस के चेहरे पर वही स्वाभाविक मुसकान थी. दूसरी तरफ अनुभव कुछ गंभीर स्वभाव के हैं, ऐसा नहीं कि वह हंसते नहीं, जब कभी अपने दोस्तों के बीच में होते हैं तो बहुत हंसते हैं, पर ज्यादातर वे गंभीर ही रहते हैं.
विजय ने थोड़ा एकांत पा कर मु झ से पूछा, ‘रेणू, कैसी हो? तुम्हारे पति कैसे हैं? कब अमेरिका जा रही हो?’
मैं ने कहा, ‘जैसे ही वीजा बन जाएगा मैं अमेरिका चली जाऊंगी.’
‘तुम अपनी शादी से खुश हो?’ उस ने पूछा.
मुझे उस का यह पूछना अच्छा नहीं लगा. उसे क्या हक है कि वह मु झ से पूछे कि मैं अपनी शादी से खुश हूं कि नहीं, पर प्रत्यक्ष में मैं बोली, ‘हां, बहुत खुश हूं.’
इतने में भैया आ गए और बात वहीं समाप्त हो गई.
एक महीने बाद मैं अमेरिका चली आई. यहां आ कर मैं ने देखा कि घर का सारा काम खुद ही करना पड़ता है, हालांकि अनुभव ही ज्यादातर घर का काम करते हैं पर फिर भी चूंकि भारत में घर के काम के लिए नौकर रहते थे, अत: अच्छा नहीं लगा.
पिछले 4 सालों में मैं 4 बार भारत जा कर लौट आई हूं. जब भी भारत जाती हूं खूब सामान ले जाती हूं, कितु कभी भी अपनी ससुराल के लिए कुछ नहीं ले गई. केवल 2 बार पिताजी के बहुत कहने पर अपनी ससुराल गई और वह भी केवल चंद घंटों के लिए. एक बार जब गई थी तो मेरी सास ने मंजू की शादी के बारे में बातें करनी शुरू कीं पर मैं ने कुछ ज्यादा रुचि नहीं दिखाई. मु झे लगा कि शायद ये लोग अब हम से आर्थिक मदद चाहेंगे.
मेरा इस बार भारत जाना अचानक ही हुआ. भैया ने 6 माह पहले एक नौकर घर के काम के लिए रखा था. उस ने घर में 2-3 बार चोरी की पर उस के बाप ने आ कर पिताजी से क्षमा मांगी और विश्वास दिलाया कि भविष्य में वह ऐसा नहीं करेगा. तब पिताजी ने उसे क्षमा कर दिया था. भैया ने उसे चेतावनी दी कि यदि उस ने फिर कभी ऐसी हरकत की तो उसे नौकरी से निकाल कर पुलिस के हवाले कर देंगे.
वह लड़का किसी गैंग में था. वह एक बार फिर हमारे घर में चोरी कर के अपने साथियों के पास भाग गया. चोरी के माल के बंटवारे को ले कर उन में आपस में झगड़ा हुआ और गैंग के सरदार ने उसे गोली मार दी. उस लड़के के पिता ने उस की मौत का इलजाम मेरे भैया के सिर मढ़ दिया और पुलिस केस बन गया. मु झे जब इस की सूचना मिली तो एकदम भागी और भारत आ गई.
जब मैं यहां पहुंची तो केस अदालत में था. पिताजी ने बहुत ऊंचे वकील किए हुए थे. पर यह साबित करने के लिए कि जिस दिन कत्ल हुआ, उस दिन भैया शहर में नहीं थे, हम ने बहुत सारे गवाह अदालत में पेश किए पर जज पर उन गवाहियों का कोई असर नहीं पड़ा.
एक शाम को मेरे ससुर घर आए. उन्होंने सारी बातें सुनीं. हमारे वकील भी वहीं थे. बातोंबातों में जब वकील ने जज के नाम और उस के बारे में बताया तो मेरे ससुर ने पिताजी से कहा, ‘उस दिन तो मंजू की सगाई थी और कमलजी ही हमारे घर आए थे तथा रात को मैं ने ही उन्हें रोक लिया, इसलिए मैं कल अदालत में यह गवाही देना चाहता हूं.’
हमारे वकील ने कहा, ‘आप की गवाही से उस जज पर कुछ असर नहीं पड़ेगा.’ बाद में यह तय हुआ कि अदालत में विजय यह गवाही देगा कि उस दिन वह और कमल दिल्ली में थे.
अगले दिन जब पिताजी अदालत जाने की तैयारी कर रहे थे तो मेरे ससुर भी उन के साथ जाना चाहते थे. पर मैं ने पिताजी से कहा, ‘इन्हें वहां मत ले जाइए. इन की वेशभूषा ही ऐसी है कि लोग हम पर हंसेंगे.’
पिताजी मेरी बात मानते हुए सुसर से बोले, ‘मास्टरजी, आप आराम कीजिए, क्यों बेकार कोर्टकचहरी के चक्कर में पड़ते हैं.’
‘ठीक है तो मैं फिर अपने घर ही चला जाऊंगा’, मेरे ससुर ने उत्तर दिया.
विजय की गवाही हुई. वकीलों ने उस से बहुत से प्रश्न किए. बाद में जज ने विजय से पूछा, ‘जिस दिन यह कत्ल हुआ उस दिन क्या तुम अपराधी (कमलकांत) के साथ दिल्ली गए हुए थे?’
विजय ने कहा, ‘हां, सर, मैं और कमल बिजनैस के सिलसिले में दिल्ली गए हुए थे, और जिस दिन यह कत्ल हुआ हम दोनों इस शहर में नहीं थे.’
जज ने पूछा, ‘वह कौन सी तारीख थी?’
विजय बोला, ‘मार्च की 28 तारीख थी.’
जज ने जब भरी अदालत को बताया कि 28 मार्च को शहर में मेयर के घर शादी थी, और उस शादी में उन्होंने विजय को वहां देखा था, जो उन के लिए खाना ले कर आया था. अत: विजय की गवाही झूठी साबित हुईं.
जज साहब अपनी बात कह कर खामोश हुए ही थे कि मेरे ससुर, जो हमारे घर से अपने घर न जा कर सीधे यहीं अदालत में चले आए थे, खड़े हो गए और बोले, ‘साहब, मेरा नाम मास्टर धर्मप्रकाश है और मैं इस के बारे में एक सच्ची गवाही देना चाहता हूं.’
जज ने मेरे ससुर की तरफ घूर कर देखा और कहा, ‘आप का नाम गवाहों की सूची में नहीं है और आप अदालत की कार्यवाही में बाधा डाल रहे हैं.’
मेरे ससुर डरे नहीं और बोले, ‘साहब, यह एक सच्ची गवाही है. मेरा नाम गवाहों की सूची में नहीं भी है, तो भी मेरी इस अदालत से प्रार्थना है कि मेरी गवाही ली जाए.’
सब ने देखा कि जज के चेहरे पर अजीब से भाव आजा रहे थे. उन्होंने कुछ सोच कर सरकारी वकील और हमारे वकील को अपने पास बुलाया और उन से विचारविमर्श किया. उस के बाद जज ने मेरे ससुर को गवाही देने की स्वीकृति दी, अब मेरे ससुर गवाहों के कठघरे में खड़े थे. उन्हें सच बोलने की शपथ दिलाई गई.
जज ने स्वयं उन से प्रश्न पूछने शुरू किए, सरकारी वकील ने कुछ कहना भी चाहा पर जज ने उन्हें रोक दिया.
जज ने पूछा, ‘आप का नाम?’
‘मास्टर धर्मप्रकाश’, मेरे ससुर ने उत्तर दिया.
‘कहां रहते हो?’ जज ने दूसरा प्रश्न किया.
मेरे ससुर जब अपना पता बता रहे थे तो सब ने देखा कि जज ने उन का पता अपनी डायरी में नोट किया.
‘क्या करते हो?’ जज ने फिर पूछा.
‘स्कूल में पढ़ाता था, अब रिटायर हो गया हूं’, मेरे ससुर ने कहा.
‘कहां और क्या पढ़ाते थे?’ जज ने अगला प्रश्न किया.
‘बिजनौर में धर्मसमाज हाईस्कूल में आज से 20 वर्ष पहले गणित पढ़ाता था,’ मेरे ससुर का उत्तर था.
सब ने देखा कि जज ने मेरे ससुर की तरफ बड़े गौर से देखा और प्रश्न किया, ‘मास्टर जी, आप इस केस के बारे में क्या जानते हैं?’
‘जिस दिन यह कत्ल हुआ उस दिन कमलकांतजी इस शहर में थे ही नहीं’, मेरे ससुर ने कहा.
‘तो फिर कहां थे?’ जज ने पूछा.
‘उस रात यह मेरे मेहमान थे, उस दिन मेरी बेटी की मंगनी थी और मैं ने ही इन्हें रात को अपने घर रोक लिया था’, ससुर ने कहा.
‘आप का अपराधी से क्या रिश्ता है?’ जज ने जब यह प्रश्न किया तो मेरे ससुर एकदम बोले, ‘साहब, ये मेरे बेटे के साले लगते हैं,’ मेरे ससुर ने उत्तर दिया.
‘किस के, अनुभव के क्या?’ जज ने जब पूछा तो हम जज के मुंह से अनुभव नाम सुनते ही सकते में आ गए.
जज ने मेरे ससुर से और कुछ नहीं पूछा. दोनों वकीलों को अपने चैंबर में आने का आदेश देते हुए फैसला अगले दिन सुनाने को कह कर जज साहब उठ गए.
जज के चैंबर के पास खड़े हम सुन रहे थे. वे दोनों वकीलों से कह रहे थे, ‘मास्टर धर्मप्रकाशजी ने जो गवाही दी वही सत्य है.’
सरकारी वकील ने कहा, ‘सर, आप कैसे कह सकते हैं कि यही सत्य है?’
जज ने कहना जारी रखा, ‘वकील साहब, मास्टरजी को मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. उन्होंने मु झे हाईस्कूल तक पढ़ाया है. वह सत्य की प्रतिमूर्ति हैं. मास्टर धर्मप्रकाशजी झूठ बोल ही नहीं सकते. आज जज की कुरसी पर मैं उन्हीं की प्रेरणा से बैठा हूं.’
अगले दिन मेरे भाई को बाइज्जत बरी कर दिया गया. दूसरे दिन मैं पिताजी के साथ अपनी ससुराल गई. मैं जब वहां पहुंची तो देखा, जज साहब वहीं थे. मेरे ससुर ने जब उन से परिचय कराया तो वे मु झ से बोले, ‘मैं और अनुभव साथसाथ हाईस्कूल में पढ़ते थे तथा अच्छे मित्र थे. मास्टरजी मु झे घर पर ट्यूशन पढ़ाने भी आते थे. मैं हाईस्कूल में नकल करता पकड़ा गया तो मेरे पिताजी ने, जो उस स्कूल के मैनेजर भी थे, मास्टरजी को इस तरह के प्रलोभन दिए कि वे यह कह दें कि मैं ने नकल नहीं की, पर मास्टरजी नहीं डिगे.
‘मास्टरजी को स्कूल से निकाल दिया गया पर उन्होंने कोई परवा नहीं की. अनुभव तो हाईस्कूल में पास हो गया और फिर शहर ही छोड़ कर चला गया. अगले साल मैं ने बहुत मेहनत की और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ. मैं ने मास्टरजी को बहुत ढूंढ़ा पर कहीं पता नहीं चला. मास्टरजी की प्रेरणा से ही मैं ने सत्य का मार्ग अपनाया.’
‘वापस जब अमेरिका जाओ तो अनुभव से मेरा सप्रेम नमस्ते कहना व मेरे बारे में याद दिलाना. तुम्हारी संतान में भी मास्टरजी व अनुभव जैसे ही संस्कार हों यही मेरी शुभकामना है’, इतना कह कर उन्होंने ससुरजी के चरण छुए और चले गए.
मैं अपराधबोध से अपने ससुरजी के पैरों पर गिर कर रोने लगी तो उन्होंने मु झे स्नेह से उठाया और बोले, ‘बहू, अब तो सब ठीक हो गया, अब क्यों रोती हो?’
मैं अंदर सास के पास चली गई तथा उन के चरणस्पर्श कर के उन के काम में हाथ बंटाने लगी. मंजू उस समय स्कूल गई हुई थी.
‘मांजी, मंजू की शादी की तैयारी करो. मैं उसे रानी की तरह इतनी धूमधाम से दुलहन बनाऊंगी तथा हम उस की शादी करेंगे कि सारा गांव देखता रह जाएगा’, मैं ने अपनी सास से कहा.
‘भाभी, आप शादी में आएंगी न?’ मंजू, जो अभीअभी स्कूल से आई थी तथा दरवाजे पर खड़ी हमारी बातें सुन रही थी, ने कहा.
‘मेरी एक ही तो ननद है, मैं और तुम्हारे भैया दोनों अवश्य आएंगे’, मैं ने कहा तो उस ने मु झे अपनी बांहों में भर लिया.
मैं अभी वहां और रुकना चाहती थी पर एक तो पिताजी को जाना था, दूसरे, मैं भी अब जल्दी अनुभव के पास लौटना चाहती थी, अत: ज्यादा देर रुक न सकी.
‘देखा मेरे अनुभव और उस के परिवार वालों को. बेटे, अच्छे संस्कार ही बड़ी चीज हैं’, पिताजी ने जब रास्ते में मु झ से यह कहा तो आज पहली बार मु झे पिताजी द्वारा अपने ससुर की बड़ाई करना अच्छा लगा और गर्व का अनुभव हुआ.
इस तरह मैं जल्दी ही अमेरिका लौट आई. कल अनुभव और मैं उन्हें मंजू की शादी में जाने को कहेंगे तो वे बहुत प्रसन्न होंगे. पिताजी के कहे वाक्य मुझे याद आ रहे हैं, ‘बेटे, मेरे अनुभव बताते हैं कि अनुभव बहुत अच्छा लड़का है.’
हां, सचमुच, ऐसे ही हैं मेरे अनुभव.