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कहानी: रुक गई प्राची

प्राची निखिल के प्यार में इस कदर पागल थी कि वह उसे अपने दिल की बात बताने से भी कतरा रही थी कि कहीं वह इनकार न कर दे. ऐसी स्थिति में क्या प्राची को उस का प्यार मिल पाया.

चंद्रभागाके तट पर खड़ी प्राची आंखों में असीम आनंद लिए विशाल समुद्र में नदियों का मिलन देख रही थी. तभी बालुई तट पर खड़ी प्राची के पैर सागर ने पखार लिए. असीम आनंद की अनुभूति गजब का आकर्षण होता है समुद्र का. प्राची का मन किया कि वह समुद्र का किनारा छोड़ कर उतरती जाए, समाती जाए, ठीक समुद्र के बीचोंबीच जहां नीला सागर शांत स्थिर है. शायद उस के अपने मन की तरह. फिर मन ही मन सोचने लगी कि क्यों आई सब छोड़ कर, सब को छोड़ कर या फिर भाग कर… सागर देखने की उत्कंठा तो कब से थी. वह पुरी पहुंचने से पहले कुछ देर के लिए कोर्णाक गई थी, पर उस का मन तो सागर में बसा था. उसे पुरी पहुंचने की जल्दी थी.


मगर कल ऐसा क्या हुआ कि बौस के सामने छुट्टी का आवेदन दिया कि कल ही जाना जरूरी है. मां को ओडिसा घुमाने ले जाने के लिए. कल ही से छुट्टी चाहिए और वह भी कम से कम 5 दिनों की. बौस के चेहरे से लग रहा था कि उन्हें प्राची की बात पर यकीन नहीं हुआ. मगर प्राची का चेहरा कह रहा था कि अगर छुट्टी नहीं मिली तो भी चली जाएगी विदआउट पे लीव पर या फिर नौकरी से इस्तीफा देना पड़े तब भी.


बौस ने छुट्टी सैंक्शन कर दी. प्राची के चेहरे पर सुकून आया. मगर उस ने यह बात सिर्फ अपनी सहेली निकिता से शेयर की, इस ताकीद के साथ कि औफिस के किसी भी सहयोगी को पता न चले कि वह कहां जा रही है. प्राची घर चल दी. कोलकाता शहर नियोन लाइट में जगमगा रहा था. प्राची की आंखों में भी आंसू झिलमिला गए. अचानक मानो नियोन लाइट से होड़ लगी हो.


कई सारे सवाल प्राची के मन में उमड़ रहे थे. वह जानती थी कि इन के जवाब उसे खुद ही देने हैं. वह पूछना चाहती थी खुद से कि क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है? उसे पता था निखिल के सामने होने से यह संभव नहीं. वह सब भूल जाती है बस लगता है निखिल सामने रहे उस के बाद उसे दुनिया में किसी भी चीज की जरूरत नहीं.


सुबह के 4 बजे ही बिस्तर छोड़ दिया प्राची ने. एक एअरबैग में कुछ कपड़े रखे, मेकअप का जरूरी सामान लिया और जरूरत भर के पैसे ले कर वह बसस्टैंड की तरफ चल पड़ी. वह चाहती थी कि रात होने से पहले पुरी पहुंच जाए. इस के पीछे 2 वजहें थीं. एक तो वह अंधेरा होने से पहले पहुंचना चाहती थी ताकि उसे होटल में कमरा मिलने में कोई परेशानी न हो और दूसरा अगर उसे होटल नहीं मिला तो उस के अंकल रेलवे में काम करते हैं. वहां रेलवे का गैस्टहाउस भी था. वहां कुछ इंतजाम हो जाता.


दूसरी अहम बात उस ने यह सुन रखी थी कि पूनम की रात समुद्र की लहरें काफी तेज उछलती हैं मानो चांद को छूना चाहती हों. उसे यह शानदार दृश्य देखना था और संयोग से उस दिन पूनम की रात भी थी. जब वह समुद्र के तट पर पहुंची शाम ढल रही थी. समुद्र के दूसरी छोर से चांद निकल रहा था सफेद चमकीला. प्राची के कदम थम से गए. एक तरफ रेत के किनारे से बुलाता सागर तो दूसरी तरफ होटलों की कतार, जहां उसे कुछ दिन रहना था. वह सोचने लगी कि पहले होटल ले या समुद्र को छू ले. अगले ही पल अपने एअरबैग को रेत पर पटका उस ने और दौड़ गई समुद्र किनारे.


सूरज के ढलते ही अंधेरा हो गया. रात में समुद्र की आवाज एक भय पैदा कर रही थी. सिहरन सी होने लगी. अपने दोनों हाथों को सीने में बांध वह जाने लगी पास और पास हाहाकार करते समुद्र के. उसे लगा जैसे यह उस के ही दिल की आवाज हो. दूर समुद्र के दूसरे छोर पर चांद रोशन था. गहन समुद्र… दूर तक पानी ही पानी. बस लहरें उठने के शोर से पता चलता था कि समय सरक रहा है. जी चाहा कि दूर समुद्र में उतरती जाए… चलती ही जाए जब तक कि पानी उस की सांसों की डोर न थामने लगे. मगर इस खयाल को परे झटका प्राची ने. सोचा यह तो आत्महत्या करने वाली बात होगी. उस ने ऐसा तो कभी नहीं चाहा. बहुत जीवट है उस में. जमाने से लड़ कर अपना मुकाम बना सकती है. प्राची लौट चली. पुकारते समुद्र की आवाज को अनसुना कर के. बैग को एक झटके से कंधे पर लटकाया और चल पड़ी.


उसे होटल का कमरा भी लेना था. देर हो रही थी. अब सोचविचार का वक्त नहीं था.


अंधकार अपनी पूरी शिद्दत से पसर चुका था. वह चलतेचलते भीड़भाड़ वाले इलाके से दूर आ चुकी थी. सामने जो होटल आया उस ने रिसैप्शन पर जा कर सीधे पूछा कि कोई रूम खाली है? हां में जवाब मिलने पर वह कमरा देखने चली गई. सोचा जैसा भी हो आज रात रुक जाएगी. पसंद नहीं आएगा तो कल बदल लेगी. मगर कमरा खूबसूरत था. सब से अच्छी बात यह कि उस की फेसिंग समुद्र की तरफ थी. वह अब पास जाए बिना भी समुद्र देख सकती है, जिस के लिए वह आई है. खुश हो कर प्राची ने कमरा ले लिया और खाने का और्डर दे कर फ्रैश होने चली गई. उस के आने तक डिनर भी आ गया. वह खाना खा कर बाहर बालकनी में बैठ गई, हाथ में कौफी का मग थामे. अब उस के पास तनहाई थी, समुद्र था और थी निखिल की यादें. वह इसी के लिए तो आई थी. खुद से बातें करने… जीवन की दिशा तय करने. वहां उस के आगे वह कुछ सोच पाने में असमर्थ जैसे कुछ सोच पाना उस के इख्तियार में नहीं.


हां, वह प्यार करती है निखिल को बेहद. उस के बिना जीने की कल्पना भी उसे पागल बना देती है. मगर निखिल का कुछ पता नहीं चलता. उस की आंखें तो कहती हैं वह भी आकर्षित है, मगर जबान कुछ कहना नहीं चाहती. वह चाहती है निखिल एक बार कहे. बहुत असमंजस में है प्राची. उस के सामने कैरियर है, प्यार है, वह क्या करे. डरती है, कहीं आगे बढ़ कर यह बात निखिल को बताई तो कहीं इनकार से दिल न टूट जाए. उस के बाद उस के साथ एक औफिस में काम करना संभव नहीं होगा. प्यार मिला, तो खजाना मिलेगा और न मिला तो जैसे सब छूट जाएगा, दिल टूटेगा, कैरियर भी समाप्त. 

फिर क्या करेगी वह इस बड़े से शहर में. वापस घर जा कर सब लोगों को, दोस्तों को गांव के परिचितों को क्या बताएगी? बड़े दंभ के साथ वह घर छोड़ कर आई गांव से यहां तक. फिर 1 ही साल में अपने मांबाबूजी को भी शहर ले आई अपने साथ रखने के लिए गोया जता रही हो वह कि आज के दौर में वह किसी बेटे से कम नहीं उन के लिए. फिर उसे अपने पैरों पर खड़ा होना है. मुकाम हासिल करना है. प्यार करने तो नहीं आई इस कोलकाता जैसे शहर में. तो फिर निखिल उस का रहनुमां कैसे बन बैठा? क्यों वह चकोर की तरह बिहेव करती है? क्यों तकती है उस का रास्ता? इन्हीं सवालों के जवाब खोजने हैं आज उसे यहां. अब उसे फैसला लेना होगा. खुद को मजबूत बनाने ही तो यहां आई है.


प्राची जानती है कि निखिल को उस की केयर है. वह परेशान होगा. फिर भी उसे बता कर नहीं आई कि वह कहां जा रही है. उस ने अपना मोबाइल भी स्विचऔफ कर दिया ताकि कोई उसे डिस्टर्ब न कर सके. उसे फैसला लेना है जीवन का, प्यार का, कैरियर का.


अब रात ढल रही है. एकांत कमरे में प्राची सोने की कोशिश में है. पूरे चांद को और समुद्र की लहरों को देख उन का उछाल बारबार आंखों के सामने आ रहा है प्राची के… काश वह निखिल के साथ यहां आ पाती. उस के साथ जिंदगी बिताना कितना सुखद होता. यह सोच कर उसे रोमांच हो आया.


प्राची को याद है, वह रात को 10 बजे अपनी डैस्क का काम खत्म कर के घर आती है. उस के ऐडिटोरियल हैड उस के कार्यव्यवहार से बहुत संतुष्ट हैं. रात अपनी न्यूज स्टोरी की आखिरी कौपी उन को दे कर वह कैब से घर चली जाती है. जहां रोज की तरह छत वाले कमरे का अकेलापन उस का इंतजार कर रहा होता है. मां पहले अकसर उस के लिए गरम खाना बनाती थी उस के आने के बाद, मगर बाद में उस ने जिद कर के मां को मना कर दिया. इस के 2 कारण थे- एक तो मां की बढ़ती उम्र की वजह से उन के घुटनों का दर्द और दूसरी वह खुद इतनी थकी होती कि खाने की हिम्मत नहीं होती. चाहती, बस कुछ ऐसा मिल जाए जिसे सीधे गटक लिया जाए हलक में दलिए की तरह. सो अब उसे खाना भी वहीं कमरे में रखा मिल जाता है जिसे नहाने के बाद प्राची जैसेतैसे निगलती है और फिर कुछ देर टीवी के बाद सीधे बिस्तर में.


वह कभी रात को किसी से भी फोन पर बात नहीं करती. मगर आज क्यों बारबार उसे लग रहा है कि बस एक बार निखिल की भारी आवाज सुन ले. बस एक बार फोन कर उस पार से आती उस की सांसें महसूस करे बस एक बार. इसी असमंजस में उस ने हाथ बढ़ा कर पर्स में पड़ा अपना मोबाइल निकालने का उपक्रम किया. बस इतने में ही उस का दिल जोरों से धड़क उठा. जैसेतैसे उस ने उसे औन किया. इस के साथ ही उस के मन में हजारों खयाल एकसाथ उमड़ पड़े.


निखिल का उस के साथ ऐक्स्ट्रा अटैंटिव बरताव करना, उस की बातों में प्राची ने हमेशा एक सम्मान मिश्रित प्रेम अनुभव किया. प्राची ने कभी कोई हलकी बात उस के मुंह से नहीं सुनी किसी के लिए भी.


अपने कालेज के दिनों से ही प्राची अपने व्यक्तित्व के चलते हर जगह छाई रहती थी. पढ़ाई, संगीत, वादविवाद प्रतियोगिता हो या फिर फैशन डिजाइनिंग अथवा कालेज की छमाही पत्रिका में लेखन, संपादन हर जगह प्राची आगे… कालेज के लड़कों की ही नहीं लड़कियों की भी जैसे स्टार रही है वह.


उसे याद है कितने ही लड़के उस के आतेजाते रास्ते में खड़े उस की राह ताकते रहते. कुछ करीब आ कर बातें करने की कोशिश करते. कई बार उसे अब सोच कर हंसी आती है कि कैसे किसी भी साल रोज डे के दिन उस के कालेज पहुंचने से पहले ही उस की डैस्क गुलाबों से भरी होती, लाल, पीले, मैरून, पिंक… सब को पता था उसे गुलाबों से बेइंतहा लगाव है. हर बुके के साथ उस के लिए विश लिखी होती, साथ ही लिखा होता उस लड़के का नाम और एक दबा सा अस्पष्ट प्रीत निवेदन. प्राची उन सब प्रीत निवेदन की परचियों को फाड़ कर फेंक देती और गुलाब रख लेती. उस का इतना प्रभावी व्यक्तित्व था कि लड़के उस के साथ रहते, मगर जो किला उस ने अपने चारों ओर बना रखा था उसे भेद कर भीतर आने की हिमाकत कोई नहीं कर पाया. और आज जैसे लग रहा है, उन दिनों में मजबूत रही प्राची खुद ही अपने बनाए किले की प्राचीरें तोड़ने को मजबूर है.


औफिस में भी एक निखिल को छोड़ कर उस ने लगभग सभी की आंखों में अपने लिए एक सवाल देखा. कभी वह ‘हम भी खड़े हैं राहों में’ वाले स्टाइल में होता, कभी केवल टाइमपास जैसा कहीं किसी सौदेबाजी की तरह. मगर वह कभी नहीं डगमगाई. नहीं झुकी किसी प्रलोभन के आगे. उस का काम बोलता था. उस की खबरों की रिपोर्टिंग में उस का नाम बोलता था. मगर आज इस आधी रात को क्यों टूट रही है वह और वह भी एक ऐसे सहकर्मी के लिए जिस ने सामने से कभी कुछ कहा नहीं… उसे कोई इशारा भर भी नहीं किया. बस वह रोज उस का लंच टाइम में वेट करता. साथ चाय पीती उस के साथ. वहीं बहुत सी बातें होतीं. प्राची अब सोचती है बातें भी क्या. वह बस उसे सुनती मंत्रमुग्ध सी हो जाती उस की आवाज में. कुछ ही पलों में लगता जैसे समुद्र तट पर खड़ी है वह. अंधकार में स्वर की लहरों पर सवार है. बहा लिए जा रहा कोई उस के अनछुए मन को. सिहरन सी भर रहा है कोई उस अनछुए तन में.


अचानक तंद्रा भंग हुई उस की. उस ने देखा मोबाइल में पता नहीं कब उस की उंगलियां निखिल का नंबर ढूंढ़ लाईं जिसे उस ने ‘ऐ बेबी’ के नाम से सेव किया था. सर्दी की यह रात तेजी से ढल रही थी. फोन हाथ में लिए प्राची उठी. दिल जोर से धड़क रहा था. खिड़की से समुद्र की ओर झांका जो इस वक्त हिलोरें ले रहा था. लहरों की आवाजें किनारों की चट्टानों से टकराने की… लग रहा था जैसे हजारों लहरों पर निखिल का नाम लिखा है और वह नाम उस की मन की कठोर चट्टानों को भिगो रहा है… तोड़ने की, भेदने की कोशिश कर रहा है… अचानक उसे खयाल आया निखिल सोते हुए कैसा लगता होगा और फिर यह सोचती सी प्राची एक षोडसी सी लजा उठी.


मगर इस खयाल से वह बेहद खुशी से भर उठी. उस ने फोन वापस औफ कर दिया. सोचा अगली सुबह निखिल से जरूर बात करेगी. अभी नहीं. इस निर्णय के बाद उसे लगा कि अब सो पाएगी वह. हालांकि सुबह होने को है, मगर कुछ घंटे चैन की नींद फ्रैश कर देती है उसे, यह वह जानती है. उस ने अब तय किया कि सुबह उठ कर समुद्र के किनारे जब लहरें हौले से उस के पैरों को भिगो रही होंगी और समुद्र के ऊपर आसमान में निखिल को ले कर उस की कल्पनाओं की तरह असंख्य पंछी उड़ रहे होंगे तब ऐसे में वह निखिल को फोन से अपने मन की बात बता देगी. प्राची को ये सब सोचते हुए बेहद सुकून मिला और फिर पता ही नहीं चला कि वह कब अपने होंठों पर एक मुसकान लिए नींद के आगोश में चली गई.


करीब 2 घंटे की गहरी नींद के बाद प्राची जागी. खिड़की से बाहर झांका. सूर्य एक नारंगी रंग के गोले की तरह निकलने के उपक्रम में था. शांत समुद्र में बहुत हलकी सी चमकीली लहरें जैसे बुला रही थीं उसे. प्राची जल्दी से अपना कैमरा उठा कर दौड़ पड़ी समुद्र की ओर… यही पल उसे कैद करने हैं… अपने जेहन में भी, अपने जीवन में भी. इन्हीं की साक्षी बन उसे निखिल को अपना फैसला बताना है.


नंगे पैरों को लहरें चूम रही थीं. प्राची ने वक्त के इस बेहद खास लमहे को पहले अपने कैमरे में कैद किया. फिर कांपते हाथों से पर्स से मोबाइल निकाल कर निखिल का नंबर मिलाया. धड़कते दिल से उस की रिंगटोन सुनती रही, ‘‘सुनो न, संगेमरमर की ये मीनारें.’’ यह सुनते हुए उसे लग रहा था जैसे दिल की धड़कनें कानों से कनपटियों के निचले हिस्से तक जमा हो रहीं… वह खोई थी लहरों में, गीत में… उस बेहद रोमानी आलम में अचानक फोन कनैक्ट हुआ.


‘‘हैलो… निखिल….’’ वह जोर से लगभग चिल्लाते हुए बोली पर दूसरी ओर से कोई रिप्लाई नहीं आया.


‘‘निखिल…’’ वह फिर से बोली. ‘‘हैलो, वे सोए हैं अभी… आप कौन?’’ आवाज निश्चित किसी लड़की की थी.


‘‘जी मैं उनके औफिस से बोल रही हूं,’’ किसी तरह रुकरुक कर प्राची ने बताया. दूसरी तरह चुप्पी छाई रही.


‘‘आप कौन?’’ अटकते हुए किसी तरह प्राची ने पूछ ही लिया. ‘‘मैं निखिल की पत्नी और आप?’’


प्राची के हाथ से फोन छूट कर गीले बालू पर गिर गया. हैरान खड़ी थी वह… लहरें अब भी प्राची के पैरों को, फोन को भिगो रही थीं… समुद्र की आवाज गूंज रही थी… लहरें आ रही थीं… जा रही थीं.

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