हथिया के आगे छड़ी टिक पाई...क्या जहूराबाद में अस्तित्व बचा पाएंगे ओम प्रकाश राजभर
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. मऊ से आते समय सिधागर घाट तमसा नदी का पुल पार करते ही जहूराबाद विधानसभा क्षेत्र शुरू हो जाता है। घाट की दुकान पर पतीली में उबलती चाय के बीच सियासी चर्चा भी उबाल पर है। श्याम नारायण चौहान सामने बैठे कमल राजभर पर तंज करते हैं 'तोहार वोट त छड़ी के जाई। लेकिन, जान लअ, लाल अउर पीला मिलके भगवा होला। दाल ना गली अबकी।' कमल राजभर का जवाब आता है 'बसंत आ फगुआ में लाल अउर पीअर (पीला) सब ओर देखाला। ओम प्रकाश हमन क नेता हवं। उनके अस्तित्व क लड़ाई हअ, साथ कइसे छोड़ देअब?' चाय छानते सुरेंद्र हंसते हुए बोले, 'हथिया के आगे छड़ी टिक पाई?' उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तहत यहां पर आखिरी यानी सातवें चरण में वोटिंग की तैयारियां चल रही हैं।
विधायक ही नही रहनुमा का भी चुनाव
जहूराबाद में करीब 68 हजार राजभर वोटर हैं। यह ओमप्रकाश की सबसे बड़ी सियासी पूंजी है। बिना किसी बड़े दल के सहयोग के इनके ही भरोसे 2012 में ओमप्रकाश ने यहां 48 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे। इस बार राजभर यहां विधायक ही नहीं तय कर रहे, बल्कि आगे उनकी रहनुमाई कौन करेगा, इसका भी चुनाव है। बिरादरी में इसकी गूंज नीचे तक है। महड़ौर में राजभरों के कई घर हैं। यहां के श्रीकिशुन राजभर कहते हैं 'आज हमारी जो पूछ हो रही है, वह ओमप्रकाश की ही बदौलत है। इसलिए, उनको छोड़ने का सवाल ही नहीं उठता। अधिकतर राजभर उनके साथ ही रहेंगे।'
बातचीत सुन रहे लालबचन बीच में टोकते हैं, 'मोदी के भी वोट मिली।' यह टिप्पणी चनरावती को इतनी नागवार गुजरी कि वह उन पर बरस पड़ीं। बोलीं, 'पांच किलो राशन पर सब ना बिकी। लइकन क पढ़ाई चउपट हो गईल, काम-धंधा नाहीं बा। अबकी छड़ी चला के सोझ (सीधा) करब इनके।' 22 साल के वीरेंद्र राजभर भर्तियां न निकालने का दर्द बयां करते हुए गांव की भारी नाली और टूटी सड़क दिखाते हैं। पूछा, यह काम तो विधायक का है? वीरेंद्र ओम प्रकाश का बचाव करते हैं 'यह सही है कि वह काम तो कुछ नहीं किए। लेकिन, मौका भी तो नहीं मिला। 18 महीने ही सरकार में रहे। उनको पैसा नहीं कमाना था, इसलिए कुर्सी छोड़ दिए। हम लोगों के ही हक के लिए तो लड़ रहे हैं। कहने के लिए तो भाजपा में भी हमारे नेता हैं, लेकिन बोलता कौन है?'
खजुआ के महेश राजभर कहते हैं, 'भाजपा को भी राजभर वोट देंगे। प्रदेश में इतना काम किसी सरकार में नहीं हुआ। कालीचरण पुराने नेता हैं, उनका भी राजभरों में आधार है। लेकिन, यह सही है कि बिरादरी का ज्यादा वोट ओमप्रकाश के ही साथ है।'
फातिमा का काम बोलता है, लेकिन...
क्षेत्र में बसपा की उम्मीदवार शादाब फातिमा के करवाए काम की चर्चा कई लोग करते हैं। इसलिए, यहां उनकी दावेदारी को कोई हल्के में नहीं ले रहा। लेकिन, यह चर्चा वोट में कितनी बदलेगी, इसको लेकर संशय है। कासिमाबाद चौराहे पर सीएम योगी आदित्यनाथ की चुनावी जनसभा थी। यहां से गुजर रहे अलाउद्दीन बताने लगे 'मंत्रीजी (शादाब फातिमा) ने काम बहुत करवाया है यहां। लोगों की मदद भी करती हैं। उनको वोट मिलेगा, लेकिन यह भी देखना है कि इस चक्कर में भाजपा न जीत जाए। इसलिए, सोच-समझकर ही फैसला होगा।'
वेद बिहारी पोखरा के पास मुन्ना गुप्ता सीट का सियासी समीकरण समझाते हैं, 'यहां राजभर, यादव और मुस्लिम मिलाकर 1.40 लाख से अधिक हैं। इसमें राजभरों और मुस्लिम में थोड़ा बंटवारा तो होगा ही। चौहान समेत अन्य पिछड़ी बिरादरी 60 हजार से अधिक हैं। 50 हजार से अधिक ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया आदि हैं। वे सब भाजपा के साथ हैं।' खजुआ के संजय कुशवाहा बताते हैं, 'यहां 70-75 हजार दलित हैं। चुनाव का रुख वही तय करेंगे। चुनाव अब शादाब फातिमा पर टिका है, वह जिसका वोट काटेंगी, खेल उसी का खराब होगा।'
हमेशा दिखी है त्रिकोणीय लड़ाई
गाजीपुर जिले की जहूराबाद सीट की सियासी तासीर बहुत कुछ इस बतकही (चर्चा) जैसी ही है। लड़ाई त्रिकोणीय है। 2017 में ओमप्रकाश राजभर भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर 18 हजार वोट से यहां पहली बार चुनाव जीते और योगी सरकार में मंत्री बने। 2019 के लोकसभा चुनाव तक उनके तेवर बागी हो गए। उन्होंने इस्तीफा भेज दिया, लेकिन इसका जवाब चुनाव खत्म होते ही राजभर की बर्खास्तगी के तौर पर आया। ओम प्रकाश इस बार सपा के साथ हैं। छड़ी उनका चुनाव चिह्न है। भाजपा ने उनके सामने कालीचरण राजभर को उतारा है, जो पिछली बार यहां बसपा से लड़े थे।
कालीचरण 2002 और 2007 में यहां बसपा से विधायक भी रहे थे। वहीं, बसपा ने अखिलेश सरकार में मंत्री रहीं शादाब फातिमा को टिकट दिया है, जिन्होंने 2012 में राजभर को तीसरे नंबर पर धकेल दिया था। फिलहाल तीनों प्रत्याशियों के झंडे का रंग इस बार बदला हुआ है, लेकिन जनता किसके संग है, इसको लेकर गुणा-भाग व दौड़-भाग चल रही है।