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कहानी: हाशिए पर कायदे

मीनल को हालांकि आग से कोई नुकसान नहीं हुआ था, बस सीने के दाहिनी तरह बांह के नीचे कपड़े के चिपक जाने से वहां की स्किन झुलस गई थी.

जगदंबा इंडस्ट्री के मालिक की बेटी मीनल का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जा रहा था, केक काटा जा रहा था, तभी उस का दुपट्टा मोमबत्ती की लौ से छू गया. वहां अफरातफरी मच गई. रमन चद्दर लेने दौड़ा तो आर्यन ने आ कर उस के दुपट्टा और गाउन को उस से अलग किया. इस सब में आर्यन के हाथ जल गए थे. ठीक होने के बाद जब मीनल आर्यन से मिली तो उस का जला हुआ हाथ देख कर पिघल उठी और प्यार का अंकुर फूट गया.  यही प्यार हिंदूमुसलिम समाज के ठेकेदारों को रास न आया. क्या आर्यन और मीनल इतना सख्त विरोध के बावजूद एक हो सके?


नहाने के बाद मीनल जब शरीर पर बौडी लोशन लगाने लगी तो सीने के दाहिनी तरफ जा कर अचानक हाथ वहां आ कर थम गए, जहां एक सफेद निशान झांक रहा था. जले का वो निशान कब उन के प्रेम की निशानी बन गया था, वह आज भी सोचती है तो रोमांचित हो उठती है.


आर्यन के साथ उस की शादी कितनी फिल्मी थी. सामाजिक स्तर में भारी अंतर के साथसाथ शिक्षा से ले कर धर्म और जाति जैसे और भी बहुत से कारक थे, जो उन के रिश्ते के बीच बाधा बने हुए थे. लेकिन उस ने भी हिम्मत नहीं छोड़ी थी और आखिर उस बाधा दौड़ को जीत कर ही दम लिया था.


“अरे बेगम, घर में एक ही गुसलखाना है और बंदे को भी नहाना है. जरा जल्दी करेंगी आप?” आर्यन की आवाज सुन कर मीनल वर्तमान में आई. उस के इसी नफासत भरे लहजे पर तो फिदा थी मीनल. वह मुसकराती हुई फटाफट कपड़े पहन कर बाहर निकल आई. आर्यन बाथरूम के दरवाजे पर ही मिल गया. उस ने मीनल को एक भरपूर निगाह से देखा और आंखों ही आंखों में प्यार बरसाता हुआ नहाने चला गया.


“ये सारी बातें याद करने के लिए तो पूरी दोपहर बाकी है. अभी तो आर्यन को औफिस भेजना ज्यादा जरूरी है,” सोचते हुए मीनल रसोई में जा कर नाश्ता बनाने लगी. अभी उसे आर्यन का टिफिन भी बनाना था.


आर्यन के औफिस जाने के बाद मीनल लगभग पूरी दोपहर खाली सी ही रहती है. क्या हुआ जो कभी किसी फ्रेंड का फोन आ जाए या फिर कभी शौपिंग जाने के अलावा उसे दिनभर में कोई विशेष काम नहीं होता. काम हो तो सकता है, लेकिन आर्यन का बहुत मन था कि उस की पत्नी घर की रानी बन कर रहे, इसलिए उस ने मीनल के सामने अपनी इच्छा जाहिर की और मीनल ने भी इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया था.

पढ़ीलिखी एमबीए लड़की का घर पर खाली बैठना हालांकि आज के जमाने के हिसाब से और ट्रेंड से थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन प्यार में चांदसितारों से झोली भरने वाले आशिक डौलर्स की परवाह कहां करते हैं. मीनल की झोली भी आर्यन के प्यार से लबालब थी. और इसी प्यार पर वह सबकुछ वारने को तैयार थी. उसे कोई मलाल नहीं था कि वह महज एक हाउस वाइफ बन कर जी रही है.


“मैं जब भी अकेली होती हूं, तुम चुपके से आ जाते हो… और झांक के मेरी आंखों में बीते दिन याद दिलाते हो…” अकसर दोपहर में बिस्तर पर लेटी मीनल यह गाना गुनगुनाती रहती है और इस के साथ ही वह यादों का एक लंबा सफर भी तय कर आती है. कमाल की बात तो ये है कि हर रोज इतना लंबा सफर तय करने के बाद भी मीनल न तो कभी थकती है और ना ही कभी बोर होती है. आज भी बंद कमरे में चौबीस के तापमान पर आराम फरमाती मीनल अपने सफर पर निकल पड़ी.


बात कालेज के दिनों की है. मीनल का फ्रेंड सर्किल बहुत बड़ा था. कुछ तो पिता का अथाह पैसा और रुतबा और कुछ उस की खूबसूरती… मीनल का चुंबकीय क्षेत्र इतना सघन था कि हर कोई खिंचा चला आता था. मीनल यह बात बहुत अच्छे से जानती थी कि उस के चुंबकीय क्षेत्र में आने वाला व्यक्ति उस के रूप और रुतबे से आकर्षित होता है. उसे तलाश एक सच्चे साथी की थी, जो उस के स्टेटस से नहीं, बल्कि खुद उस से प्यार करे. वह उसे तब भी प्यार करे, जब उस का स्टेटस ना रहे. वह यह भी जानती थी कि ऐसे साथी को पहचानना खुद उस के लिए भी आसान नहीं होगा क्योंकि खालिस दोस्तों की पहचान संकट के समय ही होती है और ऊपर वाला ऐसा न करे कि उस पर कभी कोई संकट आए.


बात मीनल के जन्मदिन की है. दूरनजदीक के मिला कर कुल पचास दोस्तों का आंकड़ा तो अवश्य ही होगा. पार्टी के लिए लखनऊ के मशहूर ताज महल होटल का हाल बुक करवाया गया था. हाल की दीवारों पर सजी गुलाब की ताजा कलियां माहौल को रूमानी बना रही थीं. दो पौंड का ब्लू बेरी केक, जिस पर “हैप्पी बर्थडे मीनल” लिखा था, हाल के बीचोंबीच रखी गोल टेबल की शोभा बढ़ा रहा था. चाकू और छोटी मोमबत्ती के साथसाथ एक अन्य मोमबत्ती, जिसे माचिस दिखाते ही सितारों की झड़ी लग जाती है, भी केक के पास ही रखे थे. सब मीनल के आने का इंतजार कर रहे थे. वह अपने घर से रवाना हो चुकी थी और बस किसी भी वक्त आने ही वाली थी.


जैसे ही पोर्च में मीनल की गाड़ी के रुकने की आवाज आई, हाल की तमाम बत्तियां गुल कर दी गईं. दीवारों को टटोलते हुए मीनल आगे बढ़ रही थी कि अचानक राह में बाधा आने के कारण उसे रुकना पड़ा. वह रुकी ही थी कि हाल रोशनी से जगमगा उठा. म्यूजिक सिस्टम पर “हैप्पी बर्थडे टू यू सांग” बजने लगा और मीनल फूलों की बरसात में नहा उठी.


मीनल के दोस्तों ने ताली बजा कर उस का स्वागत किया. आसमानी रंग के इवनिंग गाउन में मीनल नील परी सी लग रही थी. फर्श को चूमता उस का दुपट्टा उसे शाही लुक दे रहा था.


मीनल केक वाली टेबल के पास आ कर खड़ी हो गई. एक दोस्त ने दोनों मोमबत्तियां केक पर लगा दीं. पहले सितारे बिखेरने वाली मोमबत्ती जली और हाल में तेज रोशनी हो गई.


मीनल ने इतरा कर अपने दोस्तों की तरफ निगाह दौड़ाई. टेबल के आसपास केक के सब से पास वाले घेरे में रमन, साक्षी, श्वेता, विशाल, कृष और मेघा जैसे मीनल के परम मित्र कहलाने वाले दोस्त खड़े थे. उन के पीछे अन्य कुछ कम खास मित्र थे. और सब से पीछे आखिर वाली पंक्ति में आर्यन भी खड़ा मुसकरा रहा था. मीनल ने हाथ में चाकू लिया और कमर को झुका कर बड़ी अदा के साथ अपने गोलगोल किए होंठ जलती हुई मोमबत्ती की तरफ बढ़ा दिए. हाल में उपस्थित सभी लोगों ने केक कटते ही ताली बजाने के लिए अपने हाथों की पोजीशन ले ली. इस से पहले कि मीनल अपनी फूंक से जलती हुई मोमबत्ती को बुझाती, उस का नेट का दुपट्टा हवा में लहराता हुआ मोमबत्ती की लौ को छू गया.


सब अवाक खड़े थे. किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. रमन “पानी लाओ-पानी लाओ” चिल्ला रहा था, तभी श्वेता ने मीनल का जलता हुआ दुपट्टा खींच कर परे फेंक दिया, लेकिन अब तक आग ने मीनल के ब्लाउज वाले हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया था.


जलन और डर के मारे मीनल चिल्ला रही थी. रमन चद्दर लेने के लिए कमरे की तरफ दौड़ा, इतने में भीड़ को चीरता हुआ आर्यन आगे आया और उस ने मीनल का गाउन हाथ से खींच कर फाड़ डाला. आर्यन ने फटे हुए गाउन के ऊपरी हिस्से को मीनल के शरीर से अलग कर दिया. अब वह आग से तो आजाद थी, लेकिन ब्लाउज वाला भाग हटते ही उस के अंतर्वस्त्र और शरीर के स्त्री अंग भी दिखने लगे थे. शर्म के मारे उस ने अपने हाथों से शरीर को ढकने का प्रयास किया, लेकिन असफल रही. सब की आँखें शर्म से नीची हो गईं. कुछ ने अपने चेहरे भी दूसरी दिशा में घुमा लिए. तभी रमन चद्दर ले कर आ गया और साक्षी मीनल को उस चद्दर में लपेट कर कमरे में ले गई.


इस हादसे में किसी ने नहीं देखा कि आर्यन के हाथ भी झुलस गए थे. वह अपने हाथ नल के बहते पानी के नीचे रखे उन की जलन कम करने की कोशिश कर रहा था.


पार्टी के रंग में भंग हो गया. मीनल का शर्म और घबराहट के मारे बुरा हाल था. दोस्तों ने उसे घर ड्राप किया और एक हादसे को अपने साथ लिए अपनेअपने घर चले गए.


मीनल को हालांकि आग से कोई नुकसान नहीं हुआ था, बस सीने के दाहिनी तरह बांह के नीचे कपड़े के चिपक जाने से वहां की स्किन झुलस गई थी. कुछ दिन दवाओं और इलाज से वह घाव पूरी तरह ठीक हो गया था, लेकिन जले का निशान रह गया था.


डाक्टर के अनुसार इस तरह के निशान जाते से ही जाएंगे. हो सकता है, ना भी जाएं, स्थायी ही हो जाएं.

सप्ताहभर बाद जब मीनल कालेज पहुंची, तो सब से पहले आर्यन से मिली. वह उसे थैंक्स कहना चाहती थी. मीनल ने उस की झुलसी हुई हथेलियां देखी थीं, पीड़ा से भर उठी.


“अरे, तुम्हारे हाथ तो बुरी तरह से झुलस गए. किसी डाक्टर को दिखाया क्या?” मीनल ने उस की हथेलियां अपने हाथों में ले लीं. आज उसे ये हाथ किसी मसीहा के लग रहे थे. उधर आर्यन था कि शर्म से गड़ा जा रहा था.


“अरे मोहतरमा, ये कुछ खास नहीं. हमें तो इतना ताप सहने की आदत है. अब्बू का लोहे का कारखाना है ना,” कहते हुए आर्यन ने अपने हाथ खींच लिए. मीनल कृतज्ञता से उसे देखती रही.


इस के बाद मीनल का स्वाभाविक झुकाव आर्यन की तरफ होने लगा. जब तक उस की हथेलियां पूरी तरह से ठीक नहीं हुईं, मीनल नोट्स बनाने में उस की मदद करती रही.


हालांकि इसे प्यार का पहला पायदान कह सकते हैं, लेकिन मीनल को अहसास नहीं था कि वह इस पर कदम रख चुकी है. आर्यन की तरफ उस के रुझान को देखते हुए मीनल के कई साथियों ने उसे “लव जिहाद” का मामला बता कर उस से दूर रहने की सलाह दी.


मीनल और आर्यन बात के कहां से कहां जाती देख कर परेशान हो गए. वे आसन्न संकट को देख पा रहे थे, इसलिए घबरा भी रहे थे.


मीनल को आज भी याद है वो 14 फरवरी का दिन, जब वह आर्यन से मिलने गई थी. आर्यन को तो उस के आने का इल्म तक नहीं था. वो तो मीनल को कहीं से पता चला था कि आर्यन रोज शाम को गोमती नगर वाले आयरन मसल्स जिम में जाता है. बस, उसे सरप्राइज करने के लिए वह लाल, सफेद और पीले गुलाबों से सजा हुआ गुच्छा लिए जिम के बाहर उस की बाइक के पास खड़ी हो गई. एक्सरसाइज के बाद जैसे ही आर्यन अपनी बाइक की तरफ आया, मीनल को देखते ही खिल उठा. मीनल ने बिना कुछ कहे गुलाब उस की तरफ बढ़ा दिए. आर्यन ने भी फूल स्वीकार कर के मीनल से बाइक के पीछे बैठने का इशारा किया और दोनों पंछी उड़ चले.


हालांकि दोनों ने ही खुल कर कुछ नहीं कहा, लेकिन दिल की बातों को जबान की आवश्यकता भी कहां होती है. ये आंखों का आंखों से अनुबंध होता है. और आज आर्यन और मीनल भी इस अनुबंध में बंध गए थे.


लंबी ड्राइव के बाद दोनों एक पार्क में बेंच पर जा बैठे. आर्यन पार्क के बाहर खड़े ठेले से स्वीटकार्न चाट का एक कप ले आया, जिस में दो चम्मच रखे थे. दोनों एकदूसरे में खोए चाट का मजा ले ही रहे थे कि उन्होंने खुद को भीड़ से घिरा पाया. देखा तो कुछ गुंडेटाइप के लोग हाथ में लट्ठ लिए खड़े थे.


“क्यों बे…? बहुत प्रेम चढ़ा है क्या माथे पर? नाम क्या है तेरा?” भीड़ की अगुआई कर रहे व्यक्ति ने लट्ठ को जोर से जमीन पर मारते हुए पूछा.


“आप से मतलब…?” आर्यन ने नाराजगी से जवाब दिया.


“मतलब तो अभी समझा देंगे बेटा. नाम बताओ अपना…” कहता हुआ एक चमचा आगे आया. मीनल बहुत डर गई थी. उस ने आर्यन की बांह कस कर पकड़ ली. आर्यन ने थपथपा कर उसे हिम्मत दी. अब भीड़ उन पर हावी होने लगी थी.


“देखिए, हम दोनों दोस्त हैं. आप को कोई हक नहीं बनता हमारे आपसी मामलात में दखल देने का. आप लोग अपनी राह लीजिए, वरना मुझे पुलिस को इत्तला करनी पड़ेगी,” आर्यन ने उन्हें सख्त लहजे में कहा, तो भीड़ बावली होने लगी. एक-दो तो लट्ठ ले कर आर्यन पर हमला करने को ही आतुर हो गए. एक व्यक्ति ने आर्यन की कालर खींच ली. मीनल घबरा कर रोने लगी. आर्यन थोड़ा समझौते के मूड में आया.


“मेरा नाम आर्यन है. मैं शाह आयरन वर्क्स वाले अकरम अली का बेटा हूं. यह मेरी दोस्त मीनल है, जो जगदंबा इंडस्ट्री के मालिक विजय कपूर की बेटी है. देखिए, हम दोनों अच्छे परिवारों से संबंध रखते हैं. आप प्लीज हमें परेशान न करें,” कहते हुए आर्यन ने अपना और मीनल का परिचय दिया, जिसे सुन कर वे लोग भड़क उठे.


“ओ हो… तो लड़की को बरगलाया जा रहा है. पहले प्रेम का नाटक खेला जाएगा, उस के बाद धर्म परिवर्तन करवाया जाएगा. फिर शादी के बाद उस से बहुत से बच्चे पैदा करवाए जाएंगे, ताकि तुम्हारी आबादी बढ़े और तुम लोग बहुल हो कर हम पर राज करो यानी हमारे बच्चों को हथियार बना कर हमारे ही खिलाफ इस्तेमाल करोगे. है ना? यही प्लानिंग है ना तुम लोगों की? मुझे पता था. ये कौम है ही ऐसी,” मुंह से थूक उछालता गिरोह का सरगना फुंफकारा.


मीनल और आर्यन बात के कहां से कहां जाती देख कर परेशान हो गए. वे आसन्न संकट को देख पा रहे थे, इसलिए घबरा भी रहे थे. वो तो अच्छा हुआ कि गश्ती दल की गाड़ी उधर से गुजरी और मीनल दौड़ कर उस के सामने पहुंच गई. मदद मांगी तो पुलिस उस के साथ घटनास्थल की तरफ आने लगी. पुलिस को आते देख गुंडा टुकड़ी वहां से पार हो गई और मीनल व आर्यन ने चैन की सांस ली.


बात यहीं पर समाप्त नहीं हुई थी, बल्कि यहां से तो शुरू हुई थी. मीनल और आर्यन को परेशान करने और पुलिस की मदद करने वाली खबर दूसरे दिन उन की फोटो के साथ स्थानीय अखबार के फ्रंट पेज पर छपी तो बात पूरे शहर में फैल गई. चर्चा होना इसलिए भी स्वाभाविक था, क्योंकि मीनल के पिता लखनऊ की जानीमानी हस्ती थे और सामाजिक से ले कर राजनीतिक हलकों तक उन की तूती बोलती थी.


मीनल और आर्यन दोनों को कड़ी पूछताछ से गुजरना पड़ा. हालांकि वे दोनों एकदूसरे के साथ अपना शेष जीवन बिताना चाहते थे, लेकिन उन्हें कोई जल्दी नहीं थी. फिलहाल वे अपने रिश्ते को थोड़ा वक्त देना चाहते थे, लेकिन जिस तरह अचानक हालात ने पलटी खाई थी, उस के बाद उन के पास इतना समय नहीं था कि वे मसलों के सामान्य होने तक का इंतजार करते. लिहाजा, उन्होंने समाज के सामने स्वीकार कर लिया कि अलगअलग धर्म होने के बावजूद भी वे एक होना चाहते हैं. शादी करना चाहते हैं.


विधर्मी से शादी करने की बात पर बवाल तो होना ही था. विरोध दोनों ही तरफ से था. किसी भी परिवार को अपने खून में मिलावट मंजूर नहीं थी. सिर्फ इतने ही मसले नहीं थे, जो उन दोनों की शादी में रुकावट डाल रहे थे. कुछ मसले ऐसे भी थे, जो अदृश्य होते हुए भी अपनी उपस्थिति बनाए हुए थे. उन में से एक मसला था दोनों संप्रदायों के बीच होने वाले दंगे. देश के किसी भी हिस्से में हिंसा भड़के, उस का असर कमोबेश पूरे देश में जगह नजर आता है. लखनऊ तो वैसे भी बहुत नाजुक मिजाज वाले लोगों का शहर है. यह शहर बहुत अधिक संवेदनशील है, इसलिए दंगों से बहुत जल्दी प्रभावित होता है. लोगों का एकदूसरी कौम पर विश्वास जम भी नहीं पाता कि कहीं किसी और शहर में दंगे हो जाते हैं. ऐसे में विधर्मी जोड़ों को एक होने के लिए उन के पास एकमात्र विकल्प कोर्ट ही होता है. मीनल और आर्यन ने भी समाज की मान्यताओं को धता बताते हुए कोर्ट में शादी करने का निश्चय कर लिया.


बस, इतनी सी है दोनों की प्रेम कहानी. लेकिन प्रेम कहानियां क्या इतनी आसानी से पूरी हो जाती हैं? शायद नहीं. अभी तो दोनों को और भी इम्तिहान देने बाकी थे. कोर्ट में शादी की अर्जी लगाने की सुगबुगाहट के साथ ही शहर में उबाल आना शुरू हो गया. दोनों पक्षों पर सामाजिक और राजनीतिक दबाव बढ़ने लगे. हालात इतने अधिक तनावपूर्ण हो गए कि कानून व्यवस्था बिगड़ने तक की नौबत आ गई. इतना ही नहीं, मीनल और आर्यन पर जान का खतरा भी मंडराने लगा. अब तो बात इतनी अधिक बढ़ चुकी थी कि बच्चों की खुशी के लिए दोनों पक्ष यदि राजी हो भी जाते तो धार्मिक उन्मादी उन्हें एक होने नहीं देते.


रात बारह बजे उस के मोबाइल पर मैसेज आया कि गली के मोड़ पर गाड़ी खड़ी है. पूरा परिवार नींद में बेसुध था.

आर्यन ने अपने एक वकील मित्र से सलाह ली. उस ने कहा, “यहां इस शहर में तुम दोनों की शादी में बहुत सी मुश्किलें आ सकती हैं. विवाह अधिनियम की धारा 4, अध्याय 4 के तहत कोई भी व्यक्ति इस शादी पर आपत्ति दर्ज करवा सकता है. बेहतर होगा कि तुम किसी और शहर में जा कर कोर्ट मैरिज करो. तुम देश के किसी भी शहर में ऐसा कर सकते हो, बशर्ते शादी की अर्जी देने के बाद कम से कम अगले तीस दिन तुम उस शहर में होना निश्चित करो.”


“लेकिन, हमारे केस से किसी तीसरे को क्या लेनादेना? कोई अन्य व्यक्ति आपत्ति दर्ज करवा सकता है…? वैसे भी हम बालिग हैं और अपने सारे दस्तावेज अर्जी के साथ नत्थी तो करेंगे ही,” आर्यन ने वकील से पूछा.


“ये कानूनी प्रक्रिया है, जिसे पूरा करना ही होता है. बेशक, तुम सही कह रहे हो, लेकिन आपत्ति दर्ज होने की स्थिति में जांच तो करवाई ही जाएगी ना? ख्वाहमख्वाह क्यों पचड़े में पड़ते हो. तुम ऐसा करो, दिल्ली चले जाओ. वहां कोई काम भी ढूंढ़ लो और वहीं बसने की तैयारी भी कर लो, क्योंकि यहां लखनऊ में तो तुम दोनों को कोई चैन से रहने नहीं देगा,” वकील ने आर्यन को सलाह दी और उसे यह सलाह पसंद भी आ गई.


वकील की सलाहनुसार दोनों ने फिलहाल कुछ समय के लिए शादी का इरादा और अपनेअपने समाज के नियमों का विरोध टाल दिया. कुछ दिन दोनों को शंकित निगाहों से देखने के बाद धीरेधीरे मामला शांत पड़ने लगा. इस बीच आर्यन नौकरी के सिलसिले में दिल्ली चला गया. वहां उस ने जिले के विवाह अधिकारी के सामने प्रस्तुत हो कर अपने और मीनल के विवाह के लिए प्रार्थनापत्र दे दिया. उन्हें तीस दिन का समय दिया गया. यदि इस बीच विवाह अधिनियम की धारा 4, अध्याय 4 के तहत किसी तरह की कोई आपत्ति दर्ज नहीं होती तो तीस दिन के पश्चात दो गवाहों की उपस्थिति में वे दोनों शादी कर सकते हैं.


आर्यन और मीनल दोनों के लिए ये तीस दिन बहुत तनाव वाले थे. दोनों भरसक प्रयास कर रहे थे कि घर वालों को किसी तरह का कोई शक ना हो. दोनों ने फोन पर बातचीत बंद कर दी थी. जो भी कहना होता, वह चैट पर ही टेक्स्ट मैसेज के द्वारा कहा जाता. टेक्स्ट करने के तुरंत बाद मीनल उसे डिलीट भी कर देती, ताकि यदि कोई उस का मोबाइल चेक भी करे तो उसे कोई हिस्ट्री न मिले.


कल तीसवां दिन है. उन की परीक्षा की मियाद पूरी होने वाली है. परसों सुबह 10 बजे मीनल को दिल्ली में विवाह अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना है. यदि वह किसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से दिल्ली जाती है, तो उस के पकड़े जाने के चांसेस ज्यादा थे, इसलिए आर्यन ने अपने दो दोस्तों के साथ उसे लेने के लिए गाड़ी भेजी थी. लखनऊ से दिल्ली तक का लगभग 9 घंटे का सफर उसे रातभर में तय करना था, क्योंकि सुबह होने के बाद तो उस का अकेले बाहर निकलना संभव ही नहीं था.


रात बारह बजे उस के मोबाइल पर मैसेज आया कि गली के मोड़ पर गाड़ी खड़ी है. पूरा परिवार नींद में बेसुध था. मीनल बहुत ही सावधानी से बाहर निकली. उस ने धीरे से सभी कमरों के दरवाजे भी बाहर से बंद कर दिए, ताकि नींद खुलने पर भी तत्काल तो कोई बाहर न निकल सके.

रातभर का सफर तय कर के सुबह 9 बजे वह सीधी अदालत ही पहुंची, जहां आर्यन उस का इंतजार कर रहा था. आर्यन के दोस्तों ने फूलमाला और मिठाई का प्रबंध कर लिया था. शादी के बाद वे दोनों अपने हनीमून के लिए शिमला जाने वाले थे. इस की व्यवस्था भी आर्यन और मीनल के कुछ खास दोस्तों ने मिल कर की थी.


मीनल बहुत घबरा रही थी. अब तक उस का वकील दोस्त भी आ चुका था. सभी आवश्यक कार्यवाही पूरी कर के दस बजते ही वकील उन दोनों को विवाह अधिकारी के सामने ले गया और कानूनन मीनल आर्यन की हो गई. छोटे से गेटटुगेदर के बाद दोनों शिमला के लिए रवाना हो गए.


उधर, मीनल के घर पर जैसे ही उस के गायब होने की बात पता चली, वहां हडकंप मच गया. दोनों पक्ष एकदूसरे पर इल्जाम लगा रहे थे, लेकिन अब भला हो भी क्या सकता था. दुलहन तो दूल्हे राजा के साथ चली गई थी. शादी के बाद वाले ड्रामे भी सब हुए ही. आर्यन के घर वालों ने उन्हें घर और संपत्ति से बेदखल कर दिया. मीनल के परिवार वालों ने अपनी तरफ से उन्हें मरा हुआ घोषित कर दिया. ये सब हुआ, लेकिन आर्यन और मीनल का प्यार ना तो कम हुआ और ना ही कभी कमजोर पड़ा. वे दोनों दुनिया से बेखबर अपने घोंसले में अभावों के साथ ही खुश हैं.

ऐसी फिल्मी कहानी को भला कौन बारबार याद नहीं करना चाहेगा? मीनल तो हर रोज करती है और इन्हीं यादों में डूबे हुए उसे नींद भी आ जाती है. आज भी यही हुआ. नींद टूटी तो आर्यन के फोन से. मीनल ने फोन उठाया.


“अमा बेगम, यों घोड़े बेच कर तो न सोया कीजिए. बंदा कितनी देर से बाहर खड़ा आप के जगने का इंतजार कर रहा है,” आर्यन ने हमेशा की तरह मुहब्बत से कहा, तो मीनल समाज के कायदों को हाशिए पर सरकाती अपना दुपट्टा संभालती हुई दरवाजा खोलने के लिए उठ खड़ी हुई.

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