कहानी: अनमोल मंत्र
अब जब फैक्टरी बच्चों ने संभाल ली है और घर की देखभाल के लिए बहुएं आ गई हैं तो आप दिल्ली हो आओ न भाभी.
दिल्ली एअरपोर्ट पर सुधाको देखते ही नीला जोर से चिल्लाई, ‘‘अरे सुधा तू, कहां जा रही है?’’‘‘अहमदाबाद और तू?’’‘‘तेरे पड़ोस में, वडोदरा. भूल गई मेरी शादी ही वहीं हुई थी. तू कब से है अहमदाबाद में?’’‘‘पिछले महीने ही इन की बदली वहां हुई है. मैं तो पहली बार जा रही हूं. कितना अच्छा होता अगर वडोदरा के बजाय तू भी अहमदाबाद में होती.’’
‘‘मैं न सही शिखा तो वहीं है. अकसर याद करती है तुझे, बहुत खुश होगी तुझ से मिल कर. वैसे मेरा चक्कर भी अकसर लग ही जाता है अहमदाबाद का, क्योंकि ऋषभ तो अपने काम के सिलसिले में वहां जाते ही रहते हैं.’’‘‘सच, तब तो बहुत मजा आएगा. शिखा कब आई अमेरिका से?’’
‘‘कई साल हो गए. लड़कियों के किशोरावस्था में पहुंचते ही उन लोगों ने वापस आना बेहतर समझा था. शादी कर दी है दोनों बेटियों की और संयोग से अहमदाबाद में रहने वाले लड़के ही मिल गए. तू बता तेरे बालबच्चे कहां हैं?’’‘‘मेरी तो एक ही बेटी है. वह डाक्टर है दिल्ली में. और तेरा परिवार कितना बड़ा है?’’
‘‘बस हम 2 हमारे 2. अब उन 2 का परिवार बढ़ रहा है. बेटी नोएडा में ब्याही है, लड़का हुआ है कुछ सप्ताह पहले. उसी सिलसिले में उस के पास आई थी. बेटा और बहू वडोदरा में ऋषभ के साथ बिजनैस संभालते हैं और मैं उन की बेटी.’’‘‘तेरा समय तो मजे से कट जाता होगा?’’‘‘हां, वैसे भी कई साल हो गए यहां रहते इसलिए काफी जानपहचान है. शिखा के वहां रहने से तेरा भी दिल लगा रहेगा वरना नई जगह में मुश्किल होती है.’’
‘‘वह तो है. मेरी एक रिश्ते की भाभी भी हैं अहमदाबाद में. तू भी आती रहेगी तो अच्छा लगेगा.’’प्लेन में भी दोनों साथ ही बैठीं और नीला ने उसे शिखा का फोन नंबर दे कर कहा कि तू उसे जाते ही फोन कर ले. वह बहुत खुश होगी. पिछले महीने ही शादी की है छोटी बेटी की तो फुरसत में है.
लेकिन इतने दिन बाद पति से मिलने और नया बंगला देखने के उल्लास में सुधा शिखा को फोन नहीं कर सकी. अगले रोज भी सुबह का समय बंद सामान खोलने और बाजार से सामान लाने में निकल गया और दोपहर आराम करने में. शाम को उस ने शिखा को फोन करने की सोची फिर यह सोच कर कि वह अपनी बेटियों की शादी के बाद अकेलेपन का रोना रो कर उस का अच्छाखासा मूड खराब कर देगी, उस ने पहले शीला भाभी को फोन करना बेहतर समझा. शीला उस के चचेरे भाई मनोहर की पत्नी थीं. 2 छोटेछोटे बच्चों और एक नई लगाई फैक्टरी की जिम्मेदारी शीला पर डाल कर मनोहर एक सड़क हादसे में चल बसा था. शीला भाभी ने बड़ी हिम्मत से फैक्टरी चलाई थी और बच्चों को पढ़ायालिखाया था. उन्होंने कभी अकेलेपन या उदासी का रोना नहीं रोया. समयाभाव के कारण वे दिल्ली अधिक नहीं आ पाती थीं लेकिन संपर्क सभी से रखती थीं. कुछ रोज पहले ही उन्होंने अपने छोटे बेटे की शादी की थी. तब सुधा को भी निमंत्रण भेजा था.
सुधा ने शीला भाभी का नंबर मिलाया. फोन नौकरानी ने उठाया, ‘‘मांजी तो अभी व्यस्त हैं. आप अपना नंबर दे दीजिए.’’‘‘मैं खुद ही दोबारा फोन कर लूंगी.’’‘‘मगर 7 बजे के बाद करिएगा.’’अभी 6 ही बजे थे. रवि के आने में भी देरी थी, इसलिए उस ने शिखा का नंबर मिलाया. शिखा उस की आवाज सुनते ही चहकी, ‘‘मैं अभी तुझ से मिलने आ जाती लेकिन क्या करूं मेरी छोटी बेटी और दामाद अपने कुछ दोस्तों के साथ मेरे हाथ का बना खाना खिलाने ला रहे हैं…’’‘‘अरे वाह, तू इतना बढि़या खाना बनाने लगी है?’’ सुधा ने कहा.‘‘यह तो तू खाने के बाद ही बताना. असल में बच्चों ने यह पार्टी मेरा दिल बहलाने के लिए रखी है. वरुण आजकल बाहर गए हुए हैं, मुझे अकेलापन न लगे, इसलिए मुझे इस तामझाम में उलझा रहे हैं.’’
‘‘यह तो बहुत अच्छा है. मैं तो सोच रही थी कि बेटियों की शादी के बाद तू एकदम अकेली हो गई होगी.’’‘‘अरे नहीं. पहले 2 बेटियां थीं अब 2 बेटे भी मिल गए. एक बात बताऊं सुधा, पहले जब वरुण बाहर जाते थे तो लड़कियों के साथ अकेले बहुत डर लगा करता था. रात को ठीक से सो भी नहीं पाती थी. पर पिछली बार जब वरुण गए तो मेरी बड़ी बेटी और दामाद मेरे पास थे. मैं इतनी गहरी नींद में सोई कि मेरी बेटी को सुबह नाक पर हाथ रख कर देखना पड़ा कि मेरी सांस चल रही है या नहीं.’’
‘‘एक दामाद को घरजंवाई क्यों बना लेतीं?’’‘‘न बाबा न, सब अपनेअपने घर सुखी रहें. फुरसत मिलने पर मुझ से मिल लें, मैं इसी में खुश हूं. यह बता कल क्या कर रही है?’’‘‘कुछ बंद सामान खोलूंगी.’’‘‘वह परसों खोल लेना. कल मेरे पास आ जा.’’‘‘अच्छा, रवि से पूछूंगी कि कब गाड़ी भेजवाएंगे.’’‘‘गाड़ी तो मैं भेज दूंगी.’’‘‘उस गाड़ी में बैठ कर तू ही क्यों नहीं आ जाती?’’
‘‘चल यही सही, तो फिर मिलते हैं कल,’’ कह कर शिखा ने फोन रख दिया.कुछ देर बाद सुधा ने शीला भाभी को फोन किया. कुशलक्षेम के बाद सुधा ने कहा, ‘‘कमाल है भाभी, पहले आप के पास वक्त नहीं होता था…’’अब अनीष व मनीष सब संभाल लिया है. मैं तो बस आधे दिन के लिए फैक्टरी जाती हूं, उस के बाद घर आ कर अनीष के बेटे से खेलती हूं. शाम को वह अपने मम्मीपापा के पास खेलता है.’’
‘‘उस के बाद?’’‘‘टीवी देखती हूं फिर खाना खा कर सो जाती हूं.’’‘‘बहूबच्चों के साथ नहीं खातीं?’’‘‘अगर वे लोग घर में हों तब तो सब साथ ही खाते हैं वरना मैं अपने वक्त पर खा लेती हूं, और सुना दिल्ली में कैसे हैं सब?’’‘‘वह सब मिलने पर बताऊंगी भाभी. कब मिल रही हो?’’‘‘जब तुम कहो. कल आ जाऊं?’’‘‘कल तो मुझे कुछ काम है भाभी.’’‘‘कोई बात नहीं. इतमीनान से काम निबटा लो फिर मुझे फोन कर देना, मैं आ जाऊंगी.’’‘‘ठीक है भाभी, वैसे आना तो मुझे चाहिए आप के पास.’’‘‘मैं इस ‘चाहिए’ के चोंचले में विश्वास नहीं करती सुधा. तुम अभीअभी इस शहर में आई हो, व्यवस्थित होने में व्यस्त होगी. मेरे पास तो फुरसत भी है और गाड़ी भी, इसलिए जब तुम कहोगी आ जाऊंगी.’’
अगले रोज शिखा अपनी नवविवाहित बिटिया के साथ आई.‘‘यह मेरी छोटी बेटी नन्ही है. तेरे बारे में सुनते ही कहने लगी कि मैं भी मौसी से मिलने चलूंगी…’’‘‘मम्मी और नीला आंटी जब भी मिलती हैं न आप को बहुत याद करती हैं. जैसे, सुधा होती तो मजा आ जाता या सुधा होती तो यह कहती. और कल तो मम्मी की खुशी संभाले नहीं संभल रही थी. तो आप ही बताइए, ऐसी मौसी से मिले बगैर मैं कैसे रह सकती थी?’’ सुधा को भी चुलबुली नटखट नन्ही बहुत प्यारी लगी.
‘ससुराल में भी तू ऐसी ही शैतानी करती है?’’ सुधा ने पूछा.‘‘इस से भी ज्यादा,’’ जवाब शिखा ने दिया, ‘‘वहां इस का साथ देने को हमउम्र जेठानी जो है. जब ये दोनों साथ होती हैं तो खूब ठहाके लगाती हैं.’’‘‘मैं चलती हूं मौसी,’’ कह कर नन्ही चली गई.‘‘बड़ी प्यारी बच्ची है…’’‘‘चुन्नी को देखेगी तो वह इस से भी ज्यादा प्यारी लगेगी तुझे,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘आजकल दोनों मियांबीवी सिंगापुर गए हुए हैं. अगले हफ्ते आ जाएंगे.’’
‘‘तो फिर हम भी अगले हफ्ते ही आएंगे तेरे घर.’’दोनों सहेलियों को गप्पें मारने में समय का पता ही नहीं चला. नन्ही घूमफिर कर मां को लेने आ गई. शिखा के जाने के बाद उस ने शीला भाभी को फोन किया. वह अगले रोज शाम को आना मान गईं.शीला भाभी से वह कई साल के बाद मिल रही थी. उन के चेहरे की झुर्रियां थोड़ी बढ़ गई थीं, लेकिन अब चेहरे पर थकान और फिक्र की जगह स्फूर्ति और आत्मतुष्टि की गरिमा थी.‘‘इस से पहले कि तुम मुझ से कुछ पूछो, मुझे दिल्ली के समाचार दो, अरसा हो गया सब से मिले हुए इसलिए सब के बारे में जानने की बेचैनी हो रही है,’’ शीला भाभी सब के बारे में पूछती रहीं.
‘‘अब जब फैक्टरी बच्चों ने संभाल ली है और घर की देखभाल के लिए बहुएं आ गई हैं तो आप दिल्ली हो आओ न भाभी. छोटे चाचाजी ने कहा भी था आप से कहने के लिए,’’ सब बताने के बाद सुधा ने कहा.शीला भाभी हंसने लगीं, ‘‘फुरसत तो जरूर हो गई है लेकिन अब बच्चों को खास कर पोते को छोड़ कर जाने को दिल नहीं करता. खैर, अंशु स्कूल जाने लगे और नई बहू दिव्या को भी कुछ दिन तक मौजमस्ती करवा दूं फिर जाऊंगी. अभी तो उस पर औफिस के काम का ज्यादा भार नहीं डाला मैं ने.’’
‘‘और बड़ी बहू?’’‘‘रजनी इंजीनियर है. पहले तो सारा दिन फैक्टरी में ही रहती थी लेकिन बच्चा होने के बाद अब दोपहर को जाती है. जितने अच्छे अनीषमनीष हैं उतनी अच्छी ही दोनों की बीवियां भी हैं. बहुत स्नेह है सब का आपस में और मुझ पर तो सब जान छिड़कते हैं. मेरा घर अब बच्चों के ठहाकों से गूंजता रहता है.’’
‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है भाभी. एक रोज आऊंगी आप के घर.’’‘‘तुम्हारा घर है जब चाहो आ जाओ लेकिन घर पर कौनकौन मिलेगा इस की गारंटी मैं नहीं लूंगी. बच्चों से पूछ कर बुलाऊंगी तुम्हें और रवि जी को. अनीष और रजनी तो ज्यादातर घर पर ही रहते हैं, लेकिन मनीष और दिव्या की नईनई शादी हुई है तो वे कहीं न कहीं निकल जाते हैं. फिर ससुराल भी शहर में ही है, इसलिए वहां भी जाना पड़ता है. इसीलिए मैं यह हुक्मनामा जारी नहीं करना चाहती कि फलां दिन मैं दावत कर रही हूं घर पर रहना. वैसे मैं ने तुम्हारे बारे में बताया तो मनीष बहुत खुश हुआ कि चलो शहर में हमारा कोई अपना भी आ गया. ऐसा है सुधा कि अगर बच्चों से प्यार पाना है तो अपनी मरजी उन पर मत थोपो.’’
‘‘आप बिलकुल ठीक कह रही हैं भाभी,’’ सुधा बोली, ‘‘मेरी एक सहेली है शिखा. उस की 2 बेटियां हैं. दोनों की शादी हो गई है. वह खूब इतराती है अपने दामादों पर.’’‘‘शिखा की बात कर रही हो न?’’ शीला भाभी हंसी, ‘‘जिस किट्टी पार्टी की मैं मेंबर हूं उसी की वह भी है, इसलिए हर महीने उस का इतराना देखने को मिल जाता है. असल में शिखा ने दामाद बड़ी होशियारी से चुने हैं. बड़े वाले की नौकरी यहां है लेकिन परिवार चंडीगढ़ में, इसलिए बीवी के परिवार को अपना मानेगा ही. छोटे वाला बिखरे घर से है यानी मांबाप का अलगाव हो चुका है. मां डाक्टर है, पैसे की तो कोई कमी नहीं है, लेकिन व्यस्त एकल मां के बच्चे को शिखा के घर का उष्मा भरा घरेलू वातावरण तो अच्छा लगेगा ही. तुम ने यह भी सुना होगा कि विवाह के बाद बेटा तो पराया हो जाता है, लेकिन बेटी अपने साथ एक बेटा भी ले आती है. ऐसा क्यों होता है?’’
‘‘आप ही बताओ.’’‘‘क्योंकि ससुराल में दामाद को बहुत मानसम्मान और लाड़प्यार मिलता है. उसे आप कह कर बुलाया जाता है. इतनी इज्जत की चाह किसे नहीं होगी?’’ शीला भाभी हंसीं, ‘‘किसी सासससुर को कभी बहू को ‘आप’ कहते सुना सुना है तुम ने? कोई भूलाभटका अगर कभी बहू को आप कह देता है तो कोई न कोई उसे जरूर टोक देता है कि क्या गैरों की तरह आप कह रहे हो. यह तुम्हारी बेटी जैसी है. जैसे बेटे को तुम या तू कहते हो इसे भी कहो. दामाद अगर आप की बेटी के आगेपीछे घूमता है तो आप उस पर वारिवारि जाती हैं और ऐसा ही जब आप का बेटा बहू के साथ करता है तो आप जलभुन जाती हैं. उस पर व्यंग्य कसती हैं. जाहिर है, बेटा पहले तो आप से खिंचाखिंचा रहेगा और धीरेधीरे दूर होता जाएगा. इसलिए बेहतर है कि याद रखिए आप का बेटा भी आप के दामाद की तरह ही जवान है. उस की भी उमंगें हैं, अरमान हैं. उसे भी अपना जीवन अपनी सहचरी के साथ बांटने दीजिए उस के निजी जीवन में हस्तक्षेप कदापि मत करिए. मेरा तो प्यार व सम्मान से जीने का यही मंत्र है.’’
‘‘मेरा तो बेटा नहीं है शीला भाभी, लेकिन जिन के हैं उन्हें आप का यह अनमोल मंत्र अवश्य बताऊंगी,’’ सुधा ने सराहना के स्वर में कहा.