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वाराणसी शहर के बाहर मेट्रो और सघन इलाके में होगी रोपवे की सुविधा

गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. Metro in Varanasi: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रदेश में दूसरी बार सरकार बन गई है। इससे एक बारगी फिर मेट्रो परियोजना को लेकर मंथन शुरू हो गया है क्योंकि यह सरकार के एजेंडे में शामिल है। पहली सरकार में भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्थानीय अफसरों के साथ बैठक कर मेट्रो के संचालन की संभावना तलाशने का आदेश दिया था। सुझाव के तौर पर वाराणसी से प्रयागराज के बीच माडल के तौर पर लाइट मेट्रो संचालित करने के लिए कहा था जिसकी कनेक्टिविटी रोपवे से किए जाने का निर्देश था।

अब नई मेट्रो नीति के तहत कम्प्रीहेंसिव मोबिलिटी प्लान बनाने का निर्णय हुआ है। इसी प्लान के तहत बनारस में भी नए सिरे से सर्वे होगा। इसमें फंडिंग से लेकर पब्लिक मूवमेंट सिस्टम व मारफोलाजी (घटना-क्रिया) की पड़ताल के साथ हर तरह के यातायात माध्यमों से मेट्रो की अल्टरनेटिव एनालेसिस रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु होंगे। इसके तहत शहर में रोप-वे तो आउटर में पड़ोसी जिलों को जोडऩे के लिए लाइट मेट्रो पर मंथन हो रहा है। वीडीए को इसकी जिम्मेदारी देने की तैयारी हो रही है। स्पष्ट कर दें कि पूर्व में राइट्स (रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकोनामिक सर्विस लिमिटेड) ने बनारस मेट्रो की डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बनाया था लेकिन जब दस्तावेज केंद्र सरकार के पास पहुंचा तो उसकी फीजबिलटी पर सवाल उठे। लागत के सापेक्ष आय का अनुपात बेहद कम होने से उसे अस्वीकृत कर दिया गया। प्रदेश की सपा सरकार में राइट्स ने बनारस मेट्रो की डीपीआर तैयार की थी। इसमें करीब साढ़े चार करोड़ रुपये खर्च हुए जो वाराणसी विकास प्राधिकरण की अवस्थापना निधि से जारी किए गए थे। डीपीआर में बनारस मेट्रो के लिए दो कारिडोर प्रस्तावित थे।

पहला शिवपुर के भेल से लंका तक तो दूसरा बेनियाबाग से सारनाथ तक कारिडोर बनना था। पूरे प्रोजेक्ट में 17256 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान था। दोनों कारिडोर में 26 स्टेशन बनाने थे। बेनियाबाग में जंक्शन प्रस्तावित था। दोनों कारिडोर कुल 29 किमी का था। इसके लिए हुई मृदा जांच रिपोर्ट भी अनुकूल नहीं रही। शहरी क्षेत्र में गीली मिट्टी होने से भूमिगत ट्रैक के लिए सुरंग बनाने की लागत बहुत अधिक थी। लिहाजा, अधिक निवेश के सापेक्ष आय कम आंकी गई। डीपीआर के अनुसार 29 किमी के दो कारिडोर में 18 किमी वाले बीएचयू से भेल कारिडोर में 15 किमी ट्रैक अंडरग्राउंड (भूमिगत) था जबकि आठ किमी वाले बेनियाबाग से सारनाथ कारिडोर में सात किमी अंडरग्राउंड (भूमिगत) था।

कम से कम सात फीसद हो आय

तकनीकी विशेषज्ञों के अनुसार निवेश के सापेक्ष कम से कम सात फीसद की आय होनी चाहिए लेकिन पूर्व में बनी मेट्रो की डीपीआर के आकलन पर यह आय साढ़े तीन फीसद से अधिक नहीं था। इस घाटे को पूरा करने के लिए तत्कालीन सपा सरकार ने प्रदेश के खजाने से पूरा करने की सहमति दी थी लेकिन मरम्मत आदि पर व्यय का कहीं हिसाब नहीं मिला तो केंद्र सरकार के परीक्षण में पूरी परियोजना खारिज कर दी गई। इसके बाद नए सिरे से नगरीय क्षेत्र में रोपवे पर काम शुरू हो गया।

रोपवे की निविदा खुलने में संशय

एक बारगी फिर रोपवे की निविदा खुलने में संशय के बादल छाए हुए हैं। तय योजना के अनुसार 31 मार्च को रोपवे निर्माण व संचालन की निविदा खोलकर कंपनी के नाम का निर्धारण करना था लेकिन एमएलसी चुनाव के कारण लागू आचार संहिता ने अफसरों को संशय में डाल दिया है। नगर नियोजक मनोज कुमार के अनुसार इसको लेकर मंथन हो रहा है। एक-दो दिन में निर्णय हो जाएगा।

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