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बाहुबली जो Y कैटेगरी सुरक्षा के बीच भी अपराध करता रहा, एनकाउंटर में मार देने का दावा हुआ, लेकिन जिंदा निकला

गाजीपुर न्यूज़ टीम, जौनपुर. फिल्म दबंग का एक डायलॉग है, "हम यहां के रॉबिनहुड हैं, नाम है रॉबिनहुड पांडे।" ये डायलॉग फिल्मी है। काल्पनिक है, लेकिन जौनपुर में जैसे ही आपकी जुबान से रॉबिनहुड शब्द निकलेगा लोग खुद-बा-खुद धनंजय सिंह बोल देंगे। धनंजय कौन हैं? धनंजय जेडीयू के टिकट पर मल्हानी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। पिछले दिनों 25 हजार के इनामी थे। पुलिस रिकॉर्ड में लापता थे, लेकिन इलाके में क्रिकेट खेल रहे थे। कहानी रोचक है। आइए शुरू से बताते हैं...

15 साल की उम्र में पहली हत्या का आरोप

16 जुलाई 1975 को धनंजय सिंह कोलकाता में पैदा हुए। जन्म के कुछ साल बाद पूरा परिवार जौनपुर आ गया। 1990 में 10वीं में थे। महर्षि विद्या मंदिर के शिक्षक गोविंद उनियाल की हत्या हो गई। नाम आया धनंजय सिंह का। 12वीं में पहुंचे। एक और युवक की हत्या हो गई। फिर से नाम आया धनंजय का। पुलिस ने पकड़ लिया। धनंजय को तीन परीक्षाएं पुलिस हिरासत में देनी पड़ीं।

यूनिवर्सिटी आए तो ठाकुरवाद स्थापित कर दिया

धनंजय सिंह आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय पहुंच गए। पहले दोस्त बने अभय सिंह। यहां उन्होंने पढ़ाई के साथ राजनीति शुरू हो गई। धनंजय, अभय, बबलू सिंह और दयाशंकर सिंह में कोई रिश्ता नहीं था, लेकिन जाति के नाम पर सभी एकजुट हो गए। यूनिवर्सिटी में वर्चस्व बढ़ा तो ठेकों में दखल शुरू हो गया।

हबीबुल्ला हॉस्टल इनकी दबंगई से चर्चा में आ गया। किसी को चाकू मारा गया हो, किडनैप किया गया हो या फिर कहीं गोली चली हो। इसी हॉस्टल का नाम आता और खोज होती धनंजय सिंह की। इस गुट का रेलवे के ठेकों में दखल बढ़ा। ये ठेके लेते नहीं थे बल्कि बोली मैनेज करवाते थे। जिसे मिल जाती उससे गुंडा टैक्स वसूलते थे। इसे शॉर्ट फॉर्म में जीटी बोलते थे।

यूनिवर्सिटी से निकले तो 12 मुकदमे लद गए

साल 1997, लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव अपनी मारुति 800 कार से ऑफिस जा रहे थे। बाइक से आए दो बदमाशों ने ओवरटेक किया और सामने से आकर गोली मार दी। गाड़ी सड़क किनारे बाउंड्री से टकराई। लोग जब तक पहुंचते गोपाल की मौत हो चुकी थी। इन दो बदमाशों में धनंजय नहीं थे, लेकिन साजिश रचने का आरोप इन्हीं पर लगा। घटना के बाद धनंजय फरार हो गए। पुलिस ने 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया। अब तक कुल 12 मुकदमे धनंजय पर हो चुके थे।

पुलिस रिकॉर्ड में मारे गए धनंजय

17 अक्टूबर 1998, पुलिस को किसी ने सूचना दी कि आज भदोही-मिर्जापुर रोड के एक पेट्रोल पंप पर लूट होने वाली है। पुलिस सक्रिय हो गई। असलहा लेकर मोर्चा संभाल लिया। चार लोगों का एनकाउंटर कर दिया। कहा- धनंजय सिंह को मार गिराया। इस तरह पुलिस रिकॉर्ड में धनंजय मर चुके थे, लेकिन चार महीने बाद ही फरवरी 1999 में धनंजय सिंह सामने आए और पुलिस के सच को झूठ साबित कर दिया।

फिर एनकाउंटर में कौन मारा गया था

हमें मिली इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट। पुलिस ने जिसे धनंजय सिंह बताया था दरअसल वह थे ओमप्रकाश यादव। ओमप्रकाश सपा के समर्पित कार्यकर्ता थे। उस वक्त विपक्ष में सपा थी। मुलायम सिंह ने भाजपा के खिलाफ हल्ला बोल दिया। ह्यूमन राइट्स कमीशन ने जांच बैठा दी। एनकाउंटर में शामिल 34 पुलिसवालों को सस्पेंड किया गया। उन पर मुकदमा दर्ज हुआ।

राजनीति में कैसे आ गए धनंजय

नाम न छापने की शर्त पर एक सरकारी अध्यापक हमें बताते हैं कि, उस वक्त जौनपुर में विनोद नाटे नाम का बाहुबली हुआ करता था। इलाके में बड़ा प्रभाव था। दबंगई का लेवल यह था कि लोग नाटे को मुन्ना बजरंगी का गुरू बताते थे। नाटे चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन इसी दौरान एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई। नाटे की शहादत का फायदा उठाया धनंजय सिंह कूद पड़े राजनीति में। 2002 में रारी विधानसभा (अब मल्हनी) से धनंजय निर्दलीय विधायक बन गए। यहां से रॉबिनहुड की भूमिका में आ गए।

टकसाल सिनेमा शूटआउट

धनंजय को विधायक बने करीब 8 महीने हो गए थे। बनारस से काफिला गुजरा तो काफिले पर अटैक हो गया। टकसाल सिनेमा के सामने गोलियां तड़तड़ाने लगीं। धनंजय के लोगों ने तुरंत मोर्चा संभाला और फायरिंग शुरू कर दी। दोनों तरफ से हुई इस फायरिंग में धनंजय के गनर, सचिव समेत 4 लोग घायल हो गए। हमला करने वाला पक्ष अभय सिंह की तरफ से था। ये वही अभय हैं जो कॉलेज के दिनों में धनंजय के खास हुआ करते थे। इस घटना के बाद विधायक ने एफआईआर दर्ज करवाई। यहां से दोनों की राहें अलग हो गईं।

पुलिस और जनता में दोनों की पसंद धनंजय

2007 के चुनाव में धनंजय सिंह निषाद पार्टी के टिकट से चुनाव लड़े और जीत गए। 2008 में पार्टी छोड़कर बसपा में चले गए। मायावती ने भरोसा जताया और 2009 में जौनपुर से लोकसभा प्रत्याशी बना दिया। यहां भी वह जीत गए। यही जीत अब तक की आखिरी जीत साबित हुई। 2011 में मायावती ने पार्टी के खिलाफ गतिविधियों में शामिल होने के कारण बर्खास्त कर दिया।

अस्त होने की दिशा में बढ़े धनंजय

2012 के विधानसभा चुनाव में धनंजय ने अपनी उस वक्त की पत्नी जागृति सिंह को निर्दलीय प्रत्याशी बनाया, लेकिन सपा के पारस नाथ यादव ने 31,502 वोटों के अंतर से हरा दिया। कुछ दिन बाद ही जागृति को पुलिस ने अपनी नौकरानी की हत्या के मामले में गिरफ्तार कर लिया। धनंजय सिंह का नाम सबूत मिटाने का आरोप लगा। मामला कोर्ट में है। इस मामले के बाद जागृति और धनंजय में तलाक हो गया।

2014 में धनंजय ने लोकसभा चुनाव निर्दलीय लड़ा। महज 64 हजार वोट मिले। ये कुल पड़े वोटों का 6% था। 2017 में मल्हनी सीट से निषाद पार्टी से चुनाव लड़ा। पारसनाथ यादव ने 21,210 वोटों से हरा दिया। पारसनाथ की मौत हुई तो 2020 में उपचुनाव हुआ। पारसनाथ के बेटे लकी यादव ने भी धनंजय को हरा दिया। 2009 के बाद धनंजय एक चुनाव भी नहीं जीत सके।

धनंजय को Y कैटेगरी की सुरक्षा देकर फंसी सरकार

धनंजय सिंह को लंबे समय से Y श्रेणी की सुरक्षा मिली थी। चार पुलिसवाले साथ चलते थे। इसके खिलाफ 2018 में कोर्ट में याचिका दायर हुई तो योगी सरकार बैकफुट पर चली गई। धनंजय के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास जैसे कुल 24 गंभीर मुकदमे दर्ज हैं। हैरानी की बात ये कि इस सुरक्षा के बीच भी उनके खिलाफ 4 मुकदमे दर्ज हुए।

सुनीत कुमार और डीबी भोंसले की न्यायिक पीठ ने उस वक्त के सॉलिसिटर जनरल शशि प्रकाश सिंह को तलब कर लिया। पूछा, आपराधिक इतिहास रखने वाले व्यक्ति की सुरक्षा में पुलिस क्यों लगाई जाए? सरकार पर दबाव बढ़ा तो अगली तारीख 25 मई 2018 को सरकार ने सुरक्षा हटा दी। सरकार ने कहा कि धनंजय सिंह को मिली सभी जमानतों को खारिज करने के लिए जौनपुर एसएसपी को निर्देश दे दिया गया है, लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ।

एक के बाद एक हत्याओं में आने लगा नाम

जुलाई 2018 में बागपत जेल के अंदर मुन्ना बजरंगी की हत्या कर दी गई। मुन्ना की पत्नी सीमा सिंह ने धनंजय पर आरोप लगाया। 5 जनवरी 2021 को लखनऊ के गोमतीनगर में अजीत सिंह उर्फ लंगड़ा की गोली मारकर हत्या कर दी गई। अजीत सिंह कभी मोहम्मदाबाद विधानसभा के गोहना ब्लॉक का प्रमुख था। मुख्तार अंसारी का खास था। इस हत्या में नाम आया धनंजय सिंह का। धनंजय फरार हो गए। पुलिस ने इनके ऊपर 25 हजार का इनाम घोषित करते हुए गैर जमानती वारंट जारी कर दिया।

क्षेत्र में खुलेआम घूमते और मैच खेलते दिखे

कहने को तो धनंजय सिंह फरार थे। पुलिस उनकी गिरफ्तारी के लिए छापेमारी कर रही थी, लेकिन इस पर यकीन करना मुश्किल होता है। क्योंकि वह मल्हनी विधानसभा में घूमते नजर आते थे। 4 जनवरी 2022 को वह सैकड़ों की संख्या में मौजूद लोगों के बीच क्रिकेट खेलते नजर आए। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तंज करते हुए कहा था कि बाबा जी (सीएम योगी) माफियाओं के टॉप टेन सूची बनाकर "माफिया भाजपा लीग" शुरू कर दें। फरार होने के दौरान ही धनंजय सिंह ने अपनी तीसरी पत्नी श्रीकला रेड्डी को जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जितवाया।

एसटीएफ ने हटा दी गैरजमानती धारा

15 फरवरी 2022 को एसटीएफ ने धनंजय को गैर जमानती धाराओं से जमानती धाराओं का आरोपी बनाते हुए कोर्ट में रिपोर्ट सौंपी। जिसके बाद धनंजय को जमानत लेने की जरूरत नहीं पड़ी। 17 फरवरी को धनंजय सिंह ने जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) मल्हनी सीट पर फिर से नामांकन कर दिया। नामांकन के दौरान जो हलफनामा जमा किया उसके मुताबिक खुद के पास 3.56 करोड़ की चल संपत्ति और 5.31 करोड़ की अचल संपत्ति है। वहीं पत्नी के पास 780 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति है। पत्नी के ऊपर किसी तरह की कोई देनदारी नहीं है।

धनंजय अब खुलकर प्रचार कर रहे हैं। फिर से माननीय बनना चाहता हैं। अपराधों की लंबी लिस्ट होने के बावजूद जनता के बीच लोकप्रिय हैं। घर पर सुबह शाम भीड़ रहती है। अब ये जनता उनके जीत के सूखे को खत्म करती है या फिर इसे बरकरार रखती है ये 10 मार्च को पता चलेगा।

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