भारत ने पाकिस्तान पर गलती से दागी मिसाइल, फिर हुआ ऐसा तो छिड़ सकता है न्यूक्लियर वॉर!
गाजीपुर न्यूज़ टीम, नई दिल्ली. सबसे पहले क्रॉनालजी समझिए। पाकिस्तानी सेना 9 मार्च की शाम 7 बजे से पहले एक 'हाई स्पीड फ्लॉइंग ऑब्जेक्ट' डिटेक्ट करती है। इसने भारतीय क्षेत्र से उड़ान भरी थी और फिर 'अचानक पाकिस्तानी क्षेत्र की ओर मुड़ गया।' मिसाइल को मार गिराया नहीं जा सका। वह अपने आप ही पाकिस्तानी सीमा में 120 किलोमीटर भीतर क्रैश हो गई।
11 मार्च को भारत ने कहा कि 'यह राहत की बात थी कि हादसे की वजह से किसी की जिंदगी नहीं गई।' भारत के अनुसार, यह हादसा 'खेदजनक' था और 'तकनीकी गड़बड़ी' की वजह से हुआ। मिसाइल कौन सी थी, यह तो भारत ने नहीं बताया मगर एक्सपर्ट्स के अनुसार यह BrahMos सुपरसोनिक मिसाइल थी। रूस के साथ मिलकर डिवेलप की गई यह मिसाइल दुनिया की सबसे एडवांस्ड मिसाइलों में से एक है और सबसे तेज भी। और तो और, यह परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है और रेंज इतनी है कि ज्यादातर पाकिस्तानी शहर इसके दायरे में आते हैं।
यह घटना इतनी बड़ी क्यों है?
एक रक्षा सूत्र के अनुसार, हादसे के जिम्मेदारों पर ऐक्शन होना चाहिए क्योंकि घटना से दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच खतरनाक संघर्ष शुरू हो सकता था। भले ही मिसाइल पर कोई वॉरहेड नहीं था मगर पाकिस्तान को यह बात थोड़े ही पता थी। बस उसके मूवमेंट से अंदाजा लगता कि यह कैसी मिसाइल है और शायद वह यह मान लेते कि भारत ने उनकी ओर न्यूक्लियर मिसाइल दागी है। नतीजा, पाकिस्तान जवाब में न्यूक्लियर मिसाइल छोड़ देता।
जब 'गलती' से छिड़ते-छिड़ते रह गई थी जंग
27 साल पहले, 1995 में अमेरिका और नार्वे के वैज्ञानिकों ने नार्दर्न लाइट्स पर रिसर्च के लिए एक रॉकेट लॉन्च किया। वैज्ञानिकों ने रूस, अमेरिका और 28 अन्य देशों को लॉन्च की चेतावनी दी थी। यह अंदेशा था कि रॉकेट को पहले न्यूक्लियर हमले की तरह देखा जा सकता है। चूक यह हुई कि रूसी रडार टेक्नीशियंस को नहीं बताया गया। उन्होंने मॉस्को को अलर्ट भेजा कि अमेरिका की तरह से शायद हमला किया गया है। कुछ ही मिनटों में राष्ट्रपति के पास न्यूक्लियर कमांड वाला सूटकेस पहुंच गया। यह पहली बार था जब कोई सोवियत या रूसी नेता न्यूक्लियर ब्रीफकेस का इस्तेमाल कर रहा था। राहत यह रही कि रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने यह निष्कर्ष निकाला कि यह फर्स्ट स्ट्राइक (न्यूक्लियर) नहीं थी और जवाबी हमला नहीं किया।
27 अक्टूबर 1962 में भी दुनिया न्यूक्लियर हमले के मुहाने पर खड़ी थी। क्यूबा के पास एक सोवियत न्यूक्लियर सबमरीन पर अमेरिकी नौसेना ने डेप्थ चार्जेस गिराने शुरू किए। यह हल्के विस्फोटक होते हैं जो पनडुब्बी को पहचान बताने का सिग्नल देते हैं। सोवियत नेवी के अधिकारी वासी अरखीपोव उस पनडुब्बी में थे। सबमरीन में मौजूद दो अन्य वरिष्ठ सोवियत अधिकारियों को लगा कि न्यूक्लियर वॉर शुरू हो चुका है और वे अमेरिकी जहाज पर न्यूक्लियर टॉरपीडो छोड़ना चाहते थे लेकिन मिसाइल दागने के लिए तीनों अधिकारियों की सहमति जरूरी थी। अरखीपोव ने रजामंदी नहीं दी और न्यूक्लियर हमला होने से बच गया।
क्या भारत ने न्यूक्लियर मिसाइल छोड़ी?
BrahMos अपने साथ परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है मगर पाकिस्तान पर लॉन्च हुई मिसाइल नॉन-न्यूक्लियर थी। चूंकि न्यूक्लियर हथियार इसीलिए रखे जाते हैं कि दुश्मन हमला करने से कतराए, उन्हें आमतौर पर तैयार रखा जाता है ताकि हमले के पहले संकेत मिलने के साथ ही तैनात किया जा सके। हालांकि भारत के न्यूक्लियर हथियारों पर किसका कंट्रोल है और अगर गलती से लॉन्च हो जाए तो क्या होगा? इस बारे में स्पष्टता की कमी है।
भारत आधिकारिक रूप से 1998 में न्यूक्लियर स्टेट बना। सुरक्षा पर कैबिनेट समिति का 2003 का एक नोट कहता है कि परमाणु हथियारों के संबंध में भारत 'नो फर्स्ट यूज' की पॉलिसी फॉलो करता है। मतलब यह कि भारत केवल परमाणु हमले के जवाब में न्यूक्लियर अटैक करेगा। इसके लिए न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी (NCA) के जरिए राजनीतिक नेतृत्व से मंजूरी लेनी होती है। NCA की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं। NCA अपने फैसले उसकी एक्जीक्यूटिव काउंसिल के इनपुट्स के आधार पर करती है जिसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार करते हैं।
क्या हवा में खुद तबाह हो सकती है ऐसी मिसाइल?
मिसाइल जब तक अपना सफर तय करती, भारत और पाकिस्तान के पास 7 मिनट्स थे। पाकिस्तान ने दावा तो किया कि उसने मिसाइल ट्रैक कर ली थी मगर उसके एयर डिफेंस सिस्टम उसे उड़ा नहीं पाए। भारत भी अपनी फ्लाइट को रोकने में नाकाम रहा। एक्सपर्ट्स के अनुसार, BrahMos जैसी परंपरागत मिसाइलों में 'सेल्फ डिस्ट्रक्ट मैकेनिज्म' नहीं होता। अग्नि और पृथ्वी जैसी रणनीतिक और न्यूक्लियर मिसाइलों में किल स्विच होता है।
भारत और पाकिस्तान ने 2005 में एक समझौता किया था। इसके तहत, किसी भी बैलिस्टिक मिसाइल के फ्लाइट टेस्ट की जानकारी पहले देनी होती है। पाकिस्तान का कहना है कि उसे 9 मार्च को ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गई। भारतीय एजेंसियों ने भी एयर या मरीन ट्रैफिक के लिए कोई चेतावनी जारी नहीं की। दुनिया कई बार तबाही के कगार पर आते-आते बची है। एक्सपर्ट्स चेतावनी देते हैं कि कम रिएक्शन टाइम और ज्यादा खतरे की वजह से कोई भी लूज मिसाइल न्यूक्लियर वॉर की वजह बन सकती है। (मीडिया इनपुट्स के साथ)