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देश भर में होली 18 को, लेकिन गोरखपुर में 19 को मनेगी होली; जानें क्यों

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गोरखपुर. गोरखपुर की होली भगवान नरस‍िंह की शोभायात्रा से जुड़ी है। यह शोभायात्रा प्रति वर्ष चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को निकाली जाती है। जिस दिन यात्रा निकलती है, उसी दिन होली मनाने की परंपरा है। इस वर्ष चैत्र कृष्ण प्रतिपदा 19 मार्च को है, इसी दिन शोभायात्रा निकलेगी और धूमधाम से होली भी मनाई जाएगी। यह परंपरा कब से है, इस बारे में कोई लिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है। लेकिन इस परंपरा के प्रति लोगों की अपार श्रद्धा है। आज भी लोग सोल्लास शोभायात्रा में शामिल होते हैं और प्रेम-सद्भाव के साथ होली मनाते हैं।

चैत्र प्रतिपदा 19 को, इसी दिन निकलती है शोभायात्रा

गोरखपुर की नरस‍िंह शोभायात्रा आपसी सद्भाव की मिसाल है। इस यात्रा में श्रद्धालु जमकर होली खेलते हैं। होली गीत गूंजते हैं। काले व हरे रंग का प्रयोग नहीं होता। केवल लाल-पीले रंगों से ही होली खेली जाती है। इसका श्रेय नानाजी देशमुख को जाता है। वह 1939 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक बनकर गोरखपुर आए थे। उस समय घंटाघर से निकलने वाली भगवान नरङ्क्षसह की शोभायात्रा में कीचड़ फेंकना, लोगों के कपड़े फाड़ देना, कालिख पोत देने के साथ ही काले व हरे रंगों का लोग अधिक प्रयोग करते थे। 1944 में नानाजी ने कुछ युवकों को एकत्रित किया और बदलाव की दिशा में पहल की।

हाथी की मदद से बंद हुई कीचड़ वाली होली

इसके लिए हाथी का बदोबस्त किया गया, महावत को सिखाया गया था कि जहां काला या हरा रंग का ड्रम दिखे, उसे हाथी को इशारा कर गिरवा दे, ऐसा दो-तीन साल किया गया। कुछ अराजक लोगों से युवकों को हाथापाई भी करनी पड़ी। धीरे-धीरे भगवान नरङ्क्षसह की रंगभरी शोभायात्रा में केवल रंग रह गए और उसमें भी काला व हरा नहीं। धीरे-धीरे इसकी छाप पूरे शहर में पड़ी। आज गोरखपुर की होली का प्रेम-सौहार्द व आपसी भाईचारा ही पहचान है। तभी से यह शोभायात्रा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तत्वावधान में ही निकाली जाती है।

नानाजी ने खत्‍म कराई हुड़दंग

नानाजी के निर्देश पर हम लोग बड़ी मेहनत किए। वर्षों से लोगों की आदत बिगड़ी थी, उसे सुधारना आसान नहीं था। फिर भी हम लोगों ने परिश्रम किया और खुद नानाजी ने भी। कीचड़ फेंकने, कपड़े फाडऩे, कालिख पोतने आदि से मना करने पर लोग मारपीट को उतारू हो जाते थे। लेकिन हमारी टोली भी संकल्पित थी, सुधार के लिए हम मारपीट के लिए भी तैयार थे। कई बार झगड़ा हो गया। हमारा उद्देश्य पवित्र था, इसलिए हम अड़े रहे। वे लोग भाग गए और धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि अब होली लाल-पीले रंग व अबीर-गुलाल से खेलना ही बेहतर है। नानाजी ने उन्हें उपद्रव से केवल रोका ही नहीं बल्कि उन्हें संयमित व प्रेम-सौहार्द से होली खेलने की प्रेरणा भी दी। -परमेश्वर।

19 को इसलिए निकलेगी शोभायात्रा

होलिका दहन 17 मार्च की रात में 12.57 बजे के बाद होगी। 18 को उदया तिथि में फाल्गुन की पूर्णिमा है। प्रतिपदा उदयातिथि में 19 मार्च को मिल रही है। इसलिए इसी दिन शोभायात्रा निकालने के साथ ही होली भी खेली जाएगी। पं. शरदचंद्र मिश्र के अनुसार चैत्र कृष्ण प्रतिपदा 18 मार्च को दोपहर 12.52 बजे लग रही है। सूर्योदय के समय यह तिथि न मिलने से 18 को पूर्णिमा ही मानी जाएगी। 17 मार्च दिन बृहस्पतिवार को सूर्योदय 6:03 बजे और चतुर्दशी तिथि दिन में 1:02 बजे तक है। इसके बाद पूर्णिमा लग रही है। भद्रा दिन में 1:02 बजे से रात को 12 : 57 बजे तक है। होलिका दहन, भद्रा रहित पूर्णिमा की रात में ही करना चाहिए। इसलिए इस वर्ष होलिका दहन 17 मार्च की रात 12 :57 बजे के बाद और 18 मार्च को सूर्योदय 6:02 बजे के पूर्व ही मान्य रहेगा।

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