कहानी: फौजी का प्यार
फौज में स्टोर की नौकरी करने वाले फौजी की शादी जब रज्जो से हो गई, तो रज्जो ने सवाल पूछ कर अपने मन को शांत किया थे. ट्रेन में रज्जो सो रही थी तभी उस का चुम्बन लेना उस में नया जोश भर गया.
मैं नहीं जानता कि यह मन की प्रवंचना थी. पर रज्जो इसे प्रवंचना ही कहती है. प्रवंचना का दूसरा नाम छिपाव है.’आप ने मुझे ब्याह से पहले अपने बारे में क्यों कुछ नहीं बताया? मुझे यह बताया गया था कि आप दिल्ली में स्टोर में हैं. मैं ने सोचा था, चलो, हम सारी उम्र दिल्ली में रहेंगे. मुझे नहीं पता था कि आप फौजी हैं और आप की बदली होती रहती है.’
‘‘मैं तुम्हें बताना चाहता था. पर मन के भीतर डर था कि फौजी जान कर तुम मना न कर दो. यह डर हर फौजी के मन में है. अस्थिर जीवन की वजह से अच्छी लड़कियां उन्हें पसंद नहीं करती हैं. तुम सुंदर और अच्छी लड़की हो. समझदार हो. तुम मेरी बात जल्दी समझ जाओगी. जल्दी समझ सकती हो.
“मैं मानता हूं कि मैं फौज में हूं, लेकिन लड़ाकू फौज में नहीं हूं. मुझे हैंड टू हैंड लड़ना नहीं पड़ता है. मैं स्टोर में रहूंगा. लड़ाई होगी तो भी स्टोर में रह कर काम करूंगा. लड़ने वाले जवानों को सामान देता रहूंगा.’’‘बस डर यही है कि फौजी बेमौत मारे जाते हैं.’
‘‘यह तुम्हारा वहम है. जिस की आई होती है, उसी की मौत होती है. क्या सिविल में लोग नहीं मरते हैं? दूसरी बात यह है कि मैं तम्हें यहां घर में रहने नहीं दूंगा. जब तक मैं छुट्ठी पर हूं, हम यहां रहेंगे. मैं ने क्वार्टर के लिए लिखा है. उम्मीद है कि छुट्टी खत्म होने से पहले ही क्वार्टर मिल जाएगा.’’‘उस के लिए पहले से ही टिकट बुक करवानी होेगी. पैसे हैं आप के पास, नहीं तो मैं बैंक से निकलवा लेती हूं.’
‘‘नहीं, उस की जरूरत नहीं है. क्वार्टर अलौटमेंट लैटर के साथ तुम्हारे लिए फ्री रेलवे वारंट आएगा. मेरा वापस जाने का फ्री वारंट है ही. हमारी रिजर्वेशन मिलिटरी कोटे से होगी. रेलवे स्टेशन के एक नंबर प्लेटफार्म पर एमसीओ औफिस है यानी मूवमेंट कंट्रोल औफिस. वह हमारी रिजर्वेशन करेगा. कोई बात नहीं. वारंट आने दो, मैं सब कर लूंगा.’’‘सच, हमारा कोई पैसा नहीं लगेगा?’
‘‘ नहीं. बिलकुल नहीं लगेगा. यही नहीं, जो 2 रूम सेट का क्वार्टर मिलेगा, उस में भी कोई किराया नहीं लगेगा. बिजलीपानी भी फ्री होगी.’’‘अच्छा, यह तो बहुत ही अच्छा है.’‘‘तुम चलो तो सही. और भी बहुत सारी सुविधाएं मिलेंगी वहां पर.‘अच्छाजी, मेरी एक बात मानेंगे?’ रज्जो ने बड़े प्यार से कहा. सारा प्यार उस की खूबसूरत आंखों में उतर आया था.
‘‘कहो,’’ मैं ने भी उसी मूड में जवाब दिया.‘आज हम यहीं मम्मीपापा के पास रह जाएं?’‘‘अच्छा, मैं भाई को फोन कर देता हूं. तुम्हें भी मेरी एक बात माननी पड़ेगी.’’‘क्या?’‘‘कान इधर करो, कान में कहूंगा. प्राइवेट है.’’मैं ने कान में जोकुछ कहा, उस का चेहरा लाल हो गया था. मैं ने कहा, ‘‘हूं?’’उस ने सिर झुका कर ‘हां’ में सिर हिला दिया था. मैं ने खुश हो कर कहा, ‘‘चलो, इसी बात पर कंपनी बाग में जा कर टिक्कियां खाते हैं.’’
‘ठीक है, साथ में शन्नो और पिंकी को साथ ले लें? वे भी खुश हो जाएंगी.’’‘‘ले लेते हैं.’’शन्नो रज्जो की सहेली थी, जिस ने मेरा रिश्ता करवाया था. पिंकी रज्जो की छोटी बहन थी. टिक्कियां खा कर हम लौटे तो रात के 10 बजने वाले थे. मम्मीपापा जल्दी खाना खा कर सो जाते थे.
शन्नो पिंकी के कमरे जा कर सो गई. रात को रज्जो ने अपना वादा निभाया. रातभर हम स्वर्ग में डूबते, उतरते रहे. प्यार करते रहे. पता ही नहीं चला कि कब सुबह के 4 बज गए. तब सोए. जीवन का यह सुख असीम था. सुबह उठने में देर हो गई.
रज्जो नहाधो कर जब बाहर निकली जो बहुत ही खिलीखिली थी. शरीर और मन से तृप्त थी. तृप्ति के बाद इतना सुख मिलता है, पहली बार अनुभव किया. मैं भी काफी खुश था.
इतने में बाहर से किसी ने मुझे पुकारा. देखा, डाकिया था. मैं ने लिफाफा ले कर खोला तो रज्जो का रेलवे वारंट था. साथ ही, एक लैटर भी था, जिस में सूचना थी कि मुझे बी-50/3 क्वार्टर अलौट किया गया है.रज्जो ने पूछा, ‘क्या लिखा है?’
उस ने पढ़ा और मुझे तुरंत कमरे में ले गई और एक लंबा आलिंगन लिया. वह चुम्बन लेना चाहती थी, लेकिन किसी के आने के डर से मैं ने रोक दिया. मेरा पूरा शरीर सिहर उठा था.मैं ने पुचकार कर कहा कि मैं रेलवे स्टेशन रिजर्वेशन के लिए जा रहा हूं.‘नाश्ता तो करते जाओ,’ रज्जो ने कहा.‘‘ठीक है, जल्दी से दे दो.’’दूसरी क्लास की एसी में बर्थ रिजर्वेशन हो गई थी. एक सप्ताह पहले जाने की रिजर्वेशन करवाई गई थी. हमें वहां सैटल होने में मदद मिलेगी. मां और भाई को अच्छा नहीं लगा. मां ने कहा, ‘घर का खर्चा कैसे चलेगा.’
‘‘मैं आप का अकेला बेटा नहीं हूं. मैं ने अपना दिमाग इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. मेरा ब्याह हो चुका है. मेरी पत्नी मेरे साथ जाएगी, साथ रहेगी.”मैं रज्जो के यहां से आई पेटियों को ताला लगाने लगा, तो भाई ने कहा, ‘तुम्हारा और रज्जो का काई सामान यहां नहीं रहेगा.’
“मैं आप से ऐसे ही जवाब की आशा कर रहा था. क्यों मां, आप का भी यही जवाब है?” मैं ने भाई और मां दोनों से कहा. पर वे दोनों चुप रहे.मुझे समझने में देर नहीं लगी. वैसे भी बहन और उस का पति सबकुछ लूट कर ले गए थे. मैं ने शन्नो से बात की. उस का भाई रेलवे में था. थोड़ी देर बाद शन्नो के भाई का फोन आया, ‘जीजू, आप कौन सी गाड़ी से दिल्ली जा रहे हैं?’
‘‘कल रात की फ्रंटियर मेल से.’’‘ठीक है जीजू, कल मैं अपने साथ कारपेंटर ले कर आ रहा हूं. वह सारा सामान पैक कर देगा. फ्रंटियर मेल ट्रेन की पारसल वैन में सामान चढ़़ा भी दिया जाएगा.’
‘‘थैंक्स राजू. मेरी सारी चिंता दूर हो गई.’’मेरे मामूजी के लड़के हमारी यूनिट में ही डिप्टी कमांडैंट थे, कर्नल दीपक साहब. मैं ने उन से बात की. सारी स्थिति बताई. उन्होंने कहा, ‘अच्छा हुआ, मांबहन, भाइयों के प्रति तुम्हारा मोह भंग हो गया. मैं ने तुम्हें समझाया भी था. तुम ने बेकार 12 साल घर में पैसा दिया. खैर, देर आए, दुरुस्त आए. तुम चिंता मत करो. मैं गाड़ी और 4 मजदूर समय पर भेज दूंगा. मैं ने तुम्हारे क्वार्टर को डिस्टैंपर करवा कर साफ करवा दिया है.’
‘‘थैक्स, सर.’’‘थैंक्स नहीं, भाई हूं तुम्हारा. बड़े दिनों बाद हम एक ही यूनिट में पोस्ट हुए हैं. कुछ मत सोचो. बस आ जाओ, सारे इंतजाम हो जाएंगे.’‘‘ठीक है, भाई साहब.’’मेरी सारी चिंताएं दूर हो चुकी थीं. राजू ने कारपेंटर भेज कर सारा सामान पैक करवा दिया था. गाड़ी चलने के 2 घंटे पहले स्टेशन पर बुलाया गया था. सामान की बुकिंग आराम से हो गई. मेरे और रज्जो के वारंट पर जितने किलो वेट लिखा था, सामान उस से कम निकला. राजू ने सामान पार्सल बोगी में चढ़ाने के लिए वहां के मजदूरों से पहले ही सैटिंग कर ली थी. फौजी था, वे रम की बोतल मुझ से चाहते थे. रम मैं हमेशा अपने पास रखता था. बोतल राजू को दे दी. उस ने कहा, ‘जीजू, आप चलें. गाड़ी प्लेटफार्म पर लग चुकी है. मैं सामान चढ़वा कर आता हूं.’
मैं प्लेटफार्म पर आया तो रज्जो, उस के मम्मीपापा, शन्नो, पिंकी डब्बे के सामने खड़े थे. मेरे घर से कोई नहीं आया था. जब तक पैसा देता रहा, उन के लिए सबकुछ था, पर अब कुछ नहीं. यह बात मुझे कचोटती रहेगी.‘सारा सामान चढ़ गया?’ रज्जो ने पूछा.‘‘चढ़ाने के लिए ले गए हैं. मजदूरों को रम की बोतल चाहिए थी. वह दे दी है. मैं ले कर गया था. जानता था, ऐसे कामों में यह बहुत काम आती है.”
इतने राजू आ गया और बोला, ‘जीजू, सारा सामान चढ़ा दिया है. गार्ड को बोल दिया है कि अंबाला से वे अगले गार्ड को बोल दें. सामान बिलकुल ठीक जाएगा. दिल्ली में मैं ने अपने दोस्त को कह दिया है कि वह आप की मदद करे. आप ने सामान पार्सल औफिस से लेना है, प्लेटफार्म से नहीं. मेरा दोस्त पार्सल औफिस में मिलेगा. उस का नाम अशोक है.’
‘‘थैक्स, राजू.’’‘क्या कहते हैं, जीजू. यह मेरे घर का काम था.’गाड़ी चली तो मैं और रज्जो सभी से विदा ले कर अपनी बर्थ पर आ गए. दोनों नीचे की बर्थें थीं.मैं मन से संतुष्ट था. रज्जो भी खुश थी. उस के मन में बहुत सी बातें थीं. दूसरी बर्थ पर मैं ने उस का बिस्तर लगा दिया था. वह मेरी बर्थ पर मेरे कंबल में आ कर बैठ गई. रज्जो अभी बात शुरू करने वाली थी कि टीटी आ गया.
टीटी के जाने के बाद रज्जो ने कहा, ‘अब रातदिन हमारे होंगे. किसी के आने का डर नहीं रहेगा.’‘‘हां, जब तक छुट्टी रहेगी, दिनरात हमारे होंगे. फिर दिन में डयूटी, रात में प्यार. है न?’’उस ने हां में सिर हिला दिया. वह फिर से लाल हो उठी थी. रज्जो की यह अदा हमेशा मुझे रोमांचित कर देती थी. मैं थोड़ा आगे बढ़ने लगा तो उस ने इशारों से मना कर दिया कि ट्रेन है, कोई भी आ सकता है. मैं ने प्यार से दोनों हाथ सहला दिए.
जालंधर आया तो हमारे ऊपर की बर्थों पर 2 लड़कियां आ गईं. वे भी दिल्ली जा रही थीं. मम्मी ने रास्ते के लिए खाना दिया था. भूख भी लग रही थी. दोनों ने खाना खाया और अपनीअपनी बर्थ पर लेट गए. दोनों की आंखों में नींद नहीं थी. हम प्यार करना चाहते थे, पर हालात ऐसे थे कि यह संभव नहीं था. दोनों मन मार कर रह गए.
रात को कब नींद आई, पता नहीं चला. सुबह 4 बजे नींद खुली. वासना जोर मार रही थी. साइड की दोनों बर्थें खाली थीं. ऊपर दोनों लड़कियों के खर्राटों की आवाज आ रही थी. मैं वाशरूम गया. सभी गहरी नींद सो रहे थे. टीटी भी वाशरूम के पास सीट पर ऊंघ रहा था. लौटा तो रज्जो उलटा लेटी हुई थी. मन में आया कि अभी प्यार करूं, लेकिन मैं किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था. इसलिए थोड़ा प्यार किया. गाल पर किस किया और अपनी बर्थ पर आ गया.
रज्जो की नींद खुल गई थी. शायद उसे मेरे किस लेने का एहसास हो गया था. पूछा, ‘दिल्ली आ गया क्या?’‘नहीं, दिल्ली आने में समय है. रज्जो वाशरूम गई. लौटी तो मेरे कंबल में आ गई. भविष्य की बातें करते रहे. जहां तक हो सका, ऊपरऊपर से प्यार भी किया.
सुबह 5 बजे पैंट्री वाला चाय ले कर आया. दोनों ने चाय ली. सर्दी में गरमागरम चाय बहुत अच्छी लगती है. मैं कप ले कर बाहर फैंकने लगा, तो अचानक मेरा हाथ खूबसूरत गोलाइयों पर लग गया. मैं सिहर उठा. उस ने कुछ नहीं पहना था. मैं ने पूछा, तो उस ने कहा, ‘‘रात को वह ऐसे ही सोती है. पहनने से नींद नहीं आती है.”यह सुन कर मैं मुसकरा दिया. मेरी आंखों में प्यार के साथ शरारत थी. रज्जो ने पूछा, ‘आप मुसकरा क्यों रहे हैं?’
मैं ने कहा, ‘‘जान कर अच्छा लगा. मजा आया करेगा.’’ऐसा सुन वह भी मुसकरा दी और खिड़की के बाहर जाने कहां खो गई. बाहर अभी अंधेरा ही था. सर्दीे में कहीं 7 बजे तक दिन चढ़ता है. गाड़ी आधा घंटा लेट थी. जब दिल्ली पहुंची तो 9 बज चुके थे. आगे कर्नल दीपक साहब का हेल्पर 4 मजदूर ले कर आया हुआ था.
रज्जो को एक मजदूर गाड़ी में बैठा कर पार्सल औफिस आ गया. सारा सामान लेने में एक घंटा लग गया. सामान सुरक्षित था. क्वार्टर पहुंचने में 12 बज गए. चारों मजदूर तब तक नहीं गए, जब तक सारा सामान सैट नहीं हो गया.कर्नल साहब ने दोपहर का खाना भिजवा दिया. खाना खा कर रज्जो सो गई. मैं ने जा कर गैस बुक कर दी और साथ में सिलेंडर भी ले आया. किचन सैट हो गया.
शाम 5 बजे कर्नल साहब ने गाड़ी भेज दी. मैं और रज्जो जा कर राशन और घर का सारा जरूरी सामान ले आए.कर्नल साहब भाभीजी के साथ शाम 7 बजे घर आए. घर सैट हो गया था. रज्जो ने अच्छी सी चाय बनाई. चाय पी कर कर्नल साहब और भाभीजी खुश हो कर गए. शाम का खाना भिजवाने की बात कर रहे थे, लेकिन रज्जो ने मना कर दिया.
उन के जाने के बाद हम दोनों अकेले थे. मैं ने कुंडी लगाई और दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. रज्जो ने कहा, ‘पहले नहा लेते हैं.’मैं ने कहा, ‘‘प्यार करते हैं, फिर इकट्ठे नहाएंगे.’’इस तरह एकदूसरे में समा गए, जैसे युगयुग से बिछड़े हों. अलग होने का नाम ही नहीं ले रहे थे. काफी देर बाद अलग हुए. रज्जो वाशरूम में घुसी तो मैं भी साथ घुस गया. खूब नहाया. दोनों वहां भी एकदूसरे को छेड़ते रहे. खूब संतुष्ट हो कर निकले.
रज्जो ने कहा, ‘कुछ रात के लिए भी रहने दो.’मैं मुसकरा कर बाहर निकल आया. थोड़ी देर बाद रज्जो भी बाहर आ गई. खिलीखिली मस्त. यह मस्ती, यह नशा बन गई और दिनरात चलती रही. जीवनभर.रज्जो ने वह किया, जो मैं कहता था. मैं ने वह किया, जो रज्जो चाहती थी. यह प्रवंचना नहीं प्यार है. सिर्फ प्यार.