कहानी: शक की निगाह
पड़ोस में रहने आए लड़कों पर नीरा की शक की निगाह तो हरदम टिकी रहती थी, लेकिन घर के भीतर वह अपनी बेटी की करतूत को देखने से चूक गई.
शाम को औफिस से घर आया तो पत्नी का उतरा हुआ चेहरा देख कर कुछ न कुछ गड़बड़ होने का अंदेशा हो गया. बिना कुछ पूछे मैं हाथमुंह धोने के लिए बाथरूम में चला गया. वापस आया तो नीरा चाय ले कर बैठी मेरा इंतजार कर रही थी. चाय के कप के साथ ही मैं ने अपनी प्रश्नवाचक निगाह उस के चेहरे पर टिका दी. प्रश्न स्पष्ट था, ‘‘क्या हुआ?’’ ‘‘सामने वाले फ्लैट को रामवीर सहायजी ने स्टूडैंट्स को किराए पर दे दिया है,’’ नीरा के स्वर में झल्लाहट और रोष दोनों ही टपक रहे थे. ‘‘यह तो बहुत ही अच्छा हुआ. इतने महीने से फ्लैट खाली पड़ा हुआ था, अब चहलपहल रहेगी. वैसे भी जहां स्टूडैंट्स रहते हैं वहां चौबीसों घंटे रौनक रहती है. न कभी रात होती है न कभी दिन. एक सोता है तो दूसरा जागता है. पर तुम इतना परेशान क्यों हो रही हो?’’ मैं ने पूछा तो नीरा बिफर पड़ी, ‘‘तुम आदमियों का दिमाग तो जैसे घुटने में रहता है. आजकल के लड़के पढ़ाई के नाम पर घरों से दूर रह कर क्याक्या गुल खिलाते रहते हैं, क्या कभी सुना नहीं? मांबाप सोचते हैं उन का बेटा दिनरात एक कर के पढ़ाई में लगा होगा जबकि लड़के उन के पैसों पर गुलछर्रे उड़ाते रहते हैं.’’
‘‘मुझे समझ नहीं आ रहा नीरा, बच्चे किसी और के हैं, पैसे किसी और के हैं, पर परेशान तुम हो रही हो. आखिर वजह क्या है, साफसाफ बताओ.’’ ‘‘तुम्हारी तो, जब तक साफसाफ न बताओ तब तक, कोई बात समझ में ही नहीं आती. अपने घर में 3-3 जवान होती बेटियां हैं. हम दोनों पतिपत्नी सुबह ही औफिस निकल जाते हैं और घर के ठीक सामने जवान होते लड़के आ कर बस गए. चिंता न करूं तो क्या करूं?’’ ‘‘देखो नीरा, वे लड़के पराए हैं पर बेटियां तो अपनी हैं. उन्हें तो हम ने अच्छे संस्कार दिए हैं. फिर उन लड़कों के बारे में बिना कुछ जानेसमझे गलत धारणा बनाना भी ठीक नहीं है. अब चिंता छोड़ो और जाओ, अपना काम करो,’’ कह कर मैं पेपर पढ़ने लगा.
‘‘देखोजी, जवान लड़केलड़कियां आग और फूस के समान होते हैं. आसपास रहेंगे तो कभी भी आग पकड़ लेने का अंदेशा बना रहता है. तुम या तो सहायजी से कहो कि लड़कों के बजाय किसी परिवार वाले को घर दे दें, या तुम ही कोई दूसरा घर देखो. हमें नहीं रहना अब यहां.’’ सोते वक्त भी नीरा घर बदलने पर विचार करने की हिदायत देने लगी. मुझे आंखकान खुले रखने और लड़कों को मुंह न लगाने को कह कर नीरा तो सो गई पर मैं सोचने लगा कि क्या सचमुच बात इतनी चिंता करने लायक है जितनी नीरा कर रही है. यह सच है कि आजकल अच्छेबुरे दोनों तरह के लोग होते हैं पर बिना किसी से मिले, समझे उस के बारे में यह धारणा बना लेना कि वे बुरे ही हैं और यहां पढ़ने नहीं गुलछर्रे उड़ाने आए हैं, सरासर गलत है. फिर वे भले ही पराए हैं पर हमें अपनी बेटियों पर तो विश्वास करना ही चाहिए. आखिर उन्हें तो हम ने ही संस्कार दिए हैं.
फिर भी मैं कल उन लड़कों से मिलूंगा और निर्णय पर पहुंचूंगा कि हमें आगे उन के साथ किस तरह का संबंध बना कर रखना है. दूसरे दिन रविवार था, मैं ने जानबूझ कर बाहर का दरवाजा खुला छोड़ दिया और वहीं कुरसी डाल कर पेपर पढ़ने बैठ गया. उन लड़कों को अपने काम से अंदरबाहर आतेजाते देखता रहा. इस दौरान उन्होंने एक बार भी अनायास घर में ताकझांक करने की कोशिश नहीं की. जब मेरी नजर एक लड़के से मिली तो उस ने ‘अंकल नमस्ते’ कह कर मेरा अभिवादन किया, तो मैं ने भी मौका हाथ से जाने न दिया, ‘‘अरे बच्चो आओ, हमारे साथ एकएक कप चाय पीओ, इसी बहाने हम लोग एकदूसरे के बारे में भी जानसमझ लें.’’ मैं ने नीरा से पूछे बगैर ही उन लड़कों को चाय पीने के लिए बुला लिया.
मुझे पता था नीरा को यह बिलकुल नागवार गुजरा होगा कि मैं ने उन लड़कों को घर में ही बुला लिया. इसीलिए मैं ने नीरा को कोई औपचारिक सूचना देने के बजाय चुपचाप पेपर पढ़ते रहने में ही अपनी भलाई समझी. इस बात का विश्वास भी था कि लड़कों के आने पर चाय के साथ कुछ नाश्ता भी ले कर अपनेआप ही आ जाएगी नीरा. हुआ भी वही. एकएक कर के पांचों लड़के अंकल नमस्ते कहते हुए आ कर बैठ गए. थोड़ी ही देर में नीरा भी चाय की ट्रे ले कर आ गई. मुझे आश्चर्य भी हुआ देख कर कि सुबह के नाश्ते में बनाया हुआ पोहा पांचों लड़कों के बीच बांट दिया था नीरा ने. हम ने उन से बातोंबातों में उन के पूरे खानदान की जानकारी हासिल कर ली. और होनीअनहोनी पर तुरंत संपर्क कर सकूं इस का हवाला दे कर मैं ने उन पांचों के घरों का पता और फोन नंबर भी नोट कर लिए.
उसी समय उन के सामने ही एकएक के घर फोन मिला कर मैं ने बात भी कर ली. मेरे इस आश्वासन से कि मैं उन के बच्चों का एक अभिभावक की तरह खयाल रखूंगा, वे लोग बहुत ही आभारी होने लगे. सभी से बात कर के मैं पूरी तरह आश्वस्त हो गया कि बच्चे संस्कारी व सुशिक्षित घरों के हैं और यहां पर सचमुच प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने ही आए हैं. कुछ आश्वस्त तो नीरा भी हुई पर पता नहीं पिता की तुलना में मां बच्चों के प्रति ज्यादा शंकालु होती हैं या पिता से ज्यादा बच्चों को प्यार करती हैं कि हर वक्त उन की सुरक्षा को ले कर चिंतित रहती हैं. नीरा ने बेटियों पर कई तरह की बंदिशें लगा डालीं, जैसे जोरजोर से ठहाके न लगाओ, अनायास बालकनी में न खड़ी हो, बाहर का सिर्फ जाली वाला ही नहीं लकड़ी वाला दरवाजा भी हमेशा बंद रखा करो आदि.
समय के साथसाथ सबकुछ सामान्य ढंग से चलता रहा. लड़के घर पर कम ही रहते. सारा दिन कोचिंग सैंटर में होते. घर आते तो सो जाते और फिर रात को जग कर पढ़ाई करते. हमारे जीवन में तथा हमारी दिनचर्या में उन के होने, न होने का कोई फर्क नहीं पड़ा. हां, कुछ तकनीकी बातों जैसे इंटरनैट, मोबाइल आदि की खास समस्याओं के लिए हम उन पर निर्भर हो गए थे और वे भी आम पड़ोसियों की तरह कभीकभार चायपत्ती, चीनी या 1-2 आलूटमाटर के लेनदेन से ज्यादा और कुछ दखलंदाजी नहीं करते. कल को हमारा छोटा सा बेटा बड़ा होगा और वह भी कहीं न कहीं पढ़ने या नौकरी करने बाहर जाएगा ही, तब कोई उस के साथ अच्छी तरह पेश आए, हम यही चाहेंगे, इसीलिए मैं उन लड़कों के साथ और भी अच्छी तरह व्यवहार करता.
मेरे अलावा नीरा की भी शंका उन लड़कों के प्रति कम हो ही रही थी कि एक दिन रात के 2 बजे घर में कुछ हलचल सी सुनाई दी तो मैं और नीरा घबरा कर अपने कमरे से बाहर निकले. देखा तो हमारी बड़ी और छोटी बेटियां घबराई हुई सी खड़ी थीं. बाहर का दरवाजा खुला था और सामने वाले फ्लैट में भी कुछ असामान्य सी हलचल दिख रही थी. ‘‘क्या हुआ? तुम दोनों इतनी घबराई हुई क्यों हो और स्नेहा और सौरभ कहां हैं?’’ हम दोनों ने एकसाथ ही सारे सवाल पूछ डाले. ‘‘मां, पापा, सौरभ तो सो रहा है पर स्नेहा घर में नहीं है. मैं अभी वाशरूम जाने के लिए उठी तो देखा दरवाजा खुला है, और स्नेहा नहीं है.’’ हमारे तो पैरों तले से जमीन ही खिसक गई, ‘‘दिखा ही दिया इन शरीफजादों ने अपना रंग,’’ कह कर नीरा सोफे पर निढाल पड़ गई.
मैं दौड़ता हुआ बाहर की ओर भागा. लड़कों के फ्लैट का दरवाजा भी खुला हुआ था. मैं अपने वश में नहीं रह गया था. चीखते हुए मैं उन के घर में घुस गया. पांचों में से 3 लड़के सामने ही खड़े थे और वे खुद भी परेशान लग रहे थे. ‘‘विनय और राहुल कहां हैं?’’ मैं ने चीखते हुए पूछा. ‘‘जी, अंकल, वे अभीअभी गए हैं, बस आते ही होंगे,’’ वे तीनों एकसाथ बोल पड़े. ‘‘कहां ले कर गए हैं वे मेरी बेटी को? मुझे जल्दी बताओ वरना मैं तुम सब को पुलिस के हवाले कर दूंगा,’’ मैं अपना आपा खोता जा रहा था. ‘‘अंकल, वे स्नेहा को ले कर नहीं गए हैं, आप को गलतफहमी हो रही है.’’ ‘‘गलतफहमी हो रही है? अगर वे स्नेहा को ले कर नहीं गए हैं तो तुम्हें कैसे पता कि स्नेहा कहीं गई है? हम ने तो नहीं बताया तुम्हें कि स्नेहा घर में नहीं है.’’
जिन लड़कों को मैं अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध जा कर मानसम्मान और स्नेह दे रहा था उन्होंने आज मेरे मुंह पर ऐसी कालिख पोत दी, सोच कर मेरा आत्मनियंत्रण समाप्त होता गया और मैं ने पास पड़ा बैट उठा कर उन के ऊपर बरसाना शुरू कर दिया. अचानक उन लड़कों के तेवर बदल गए. उन्होंने मेरे हाथ से बैट छीन कर फेंक दिया. ‘‘अंकल, अभी तक हम आप के आदरवश चुप थे. आप के सम्मान की खातिर हमारा दोस्त अपनी जान की परवा किए बिना ही इस समय यहां से गया हुआ है और आप उस पर ही शक कर रहे हैं? हमें ही दोषी ठहरा रहे हैं? आंटी ने हमेशा हमें ही शक की निगाह से देखा पर कभी अपनी बेटियों पर भी निगरानी रखी? अगर निगरानी रखी होती तो यह दिन नहीं आता. स्नेहा विनय या राहुल के साथ नहीं भागी है, बल्कि किसी और के साथ गई है, पर आप चिंता न कीजिए. विनय और राहुल उसे वापस ले कर आते ही होंगे.’’
उन की बात सुन कर मैं असमंजस में पड़ गया कि ये सच बोल रहे हैं या झूठ. पर तभी पीछे से नीरा दहाड़ी, ‘‘इन की झूठी बातों में मत आइए. ये सब इन की साजिश का हिस्सा है. ये हमें ऐसे ही उलझा कर तब तक रखना चाहते हैं जब तक वेदोनों स्नेहा को ले कर दूर न निकल जाएं. आप तुरंत पुलिस को फोन लगाइए वरना हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएंगे,’’ नीरा जोरजोर रोए जा रही थी. ‘‘प्लीज अंकल, आप हमारी बात पर यकीन कीजिए. पुलिस को बुला लेंगे तो बात सभी को पता चल जाएगी. स्नेहा तो बदनाम होगी ही, आप सब का भी घर से निकलना मुश्किल हो जाएगा. आप बस थोड़ी देर हमारी बात का यकीन कीजिए. अगर 10 मिनट तक वे स्नेहा को ले कर वापस नहीं आ जाते हैं तो आप को जो दिल आए करिएगा. पर अभी बस हमारी इस बात का यकीन करिए कि राहुल और विनय स्नेहा को भगा कर नहीं ले गए हैं बल्कि उसे किसी और के साथ इस समय जाता देख वापस ले आने के लिए गए हैं.’’
हालांकि मेरी सोचनेसमझने की शक्ति पूरी तरह खत्म हो चुकी थी फिर भी उन लड़कों की बात पर यकीन कर कुछ देर इंतजार कर लेने में ही मैं ने भलाई समझी. पुलिस के आने से सिवा बदनामी और बात के बतंगड़ के अलावा और कुछ हासिल नहीं होना था. मैं घड़ी देखता, चहलकदमी करने लगा.
नीरा और बच्चे अंदरबाहर करते रहे. ‘‘अंकल, आप सब को पता है कि हम सब रात को जग कर पढ़ाई करते हैं. पिछले कई दिनों से हम स्नेहा को अपनी बालकनी में धीरेधीरे फोन पर बात करते हुए देखते थे पर हम ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. ‘‘इधर 2-3 दिनों से 2 लड़कों को रात को बिल्ंिडग के आसपास चक्कर लगाते देख हमें कुछ शक हो रहा था. हम आप से बात करें या न करें, और आप हमारी बातों का यकीन करेंगे या नहीं, हम सब आपस में यह विचारविमर्श कर ही रहे थे कि अचानक जब विनय चाय पीने के लिए बालकनी में निकला तो उसे नीचे 2 लड़कों के साथ एक लड़की दिखी.
उस ने ध्यान से देखा तो वह स्नेहा ही लगी. विनय चाय का कप अंदर रख कर तुरंत उन के पीछे भागा. जाते वक्त सिर्फ इतना ही बोला, ‘शायद स्नेहा कहीं जा रही है, मैं उसे ले कर आता हूं,’ उसे अकेला जाता देख राहुल भी पीछेपीछे भागा. चूंकि सबकुछ अस्पष्ट था, वह स्नेहा ही है या कोई और थी? यह भी पक्का नहीं था, इसलिए हम आप को जगा कर क्या बताएं, बताएं या नहीं, यह सोच ही रहे थे कि आप सब स्वयं जग गए.
‘‘अंकल, आप लोगों ने इस अनजान शहर में हमें जितना स्नेह और संरक्षण दिया है उस के बदले में हमें अपनी जान की बाजी लगा कर भी आप लोगों के सम्मान की रक्षा करनी पड़े तो कम है. हमें पता है कि स्नेहा का कोई बड़ा भाई नहीं है, ऐसे में बड़े भाई का कर्तव्य हमें ही निभाना है.’’ उन की बातें पूरी भी नहीं हुई थीं कि राहुल और विनय वापस आ गए. उन के साथ डरीसहमी सी स्नेहा भी खड़ी थी. विनय ने उस का हाथ जोर से पकड़ रखा था, ‘‘अंकल, स्नेहा किसी सड़कछाप के साथ जा रही थी कहीं, मैं ने आज इसे न जाने कितने चांटे मारे हैं.
मुझे माफ कर दीजिएगा. मैं अपने पर नियंत्रण न रख सका. जो पिता अनजान, अपरिचित बच्चों पर इतना प्यार न्योछावर करता हो उस पिता की बेटी ने उन के मुंह पर कालिख पोतने से पहले जरा भी न सोचा. बस, यही सोच कर मैं अपना आपा खो बैठा था. मुझे अफसोस है तो बस इस बात का कि इस की हरकतों पर शक होते ही मैं ने एक बड़े भाई की भूमिका अदा करने में देर कर दी. अगर मैं ने उसी वक्त इसे थप्पड़ मार दिया होता तो आज न यह इतनी बड़ी गलती करती और न आप लोगों को शर्मिंदा करती.’’
उन लड़कों को धन्यवाद, शुक्रिया कहने के लिए न तो हमारे पास शब्द थे न ही जबान. हम स्नेहा को सहीसलामत ले कर घर में आ गए. दिनचर्या धीरेधीरे फिर सामान्य होने लगी. सबकुछ पूर्ववत चलने लगा. बदलाव बस इतना आया कि नीरा अब उन लड़कों के बजाय अपनी बेटियों को शक की निगाह से देखने लगी. पहले उन लड़कों से सामना हो, वह नहीं चाहती थी और अब उन का सामना कैसे करेगी, यह सोच कर परेशान रहने लगी.