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यहां की हार-जीत के विशेष मायने, चुनावी रथ पहुंचा दलों के गढ़ों में

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. यहां से जीते का संदेश दूर तलक जाएगा। यहां से हारे तो कहा जाएगा कि मुंह छिपाने को घर में भी जगह न मिली। यहां की हार-जीत के विशेष मायने हैं। ये यूं तो प्रदेश के 75 जिलों में शामिल हैं लेकिन इन जिलों की विधानसभा सीटों पर हार-जीत से राजनैतिक दलों की प्रतिष्ठा तय होती है। कुछ ऐसे ही सियासी प्रतीक हैं अमेठी, रायबरेली, मैनपुरी, इटावा, आजमगढ़, वाराणसी जैसे जिले, जो विभिन्न राजनैतिक दलों का गढ़ माना जाते हैं। चुनावी रथ अब इन गढ़ों में प्रवेश कर रहा है।

तीसरे चरण में समाजवादी पार्टी की परीक्षा है। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के घर इटावा और मैनपुरी में सपा की हार-जीत के विशेष मायने होते हैं। वर्ष 2017 के चुनावों में जब भाजपा ने क्लीन स्वीप किया तब भी सपा को इस गढ़ की पांच सीटें मिली थीं। मैनपुरी की चार में से तीन सीटें और इटावा की तीन में से एक सीट सपा के पास है। इस बार मैनपुरी की करहल सीट से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद मैदान में हैं।

चौथे चरण का चुनाव सत्ता के मठ लखनऊ में है। माना जाता है कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है। वर्ष 2017 में लखनऊ की नौ में से आठ सीटें भाजपा के पास थीं, 2012 में नौ में से छह सीटें सपा के पास थीं। इसी चरण में कांग्रेस का गढ़ रायबरेली भी आता है। एक जमाना था कि यहां से कांग्रेस के अलावा किसी और पार्टी को लोग जिताते ही नहीं थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। यहां की सांसद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। कांग्रेस ने जब 2017 में केवल 7 सीटें प्राप्त की थीं, तब भी यहां से दो सीटे कांग्रेस को मिली थी। 

पांचवे चरण में नया सियासी प्रतीक बना अयोध्या भी है। मंदिर मुद्दे को लेकर केंद्र में सत्ता में आने का असर था कि वर्ष 2017 में भाजपा ने यहां क्लीन स्वीप किया और यहां की सभी पांच सीटें जीत लीं जबकि 2007 में भाजपा को यहां से केवल एक सीट ही मिली थी। 

छठे चरण में फिर भाजपा और बसपा पर लोगों की निगाहें रहेंगी क्योंकि मुख्यमंत्री के गृह जनपद गोरखपुर और बसपा के गढ़ अम्बेडकर नगर में इस चरण में वोट पड़ने हैं। गोरखपुर से खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मैदान में है। यहां की नौ सीटों में से आठ भाजपा के पास हैं जबकि 2012 में भाजपा को यहां से केवल तीन सीटें मिली थीं। इस चुनाव में भाजपा को केवल यहीं नहीं बल्कि आसपास के जिलों की विधानसभा सीटों पर भी भाजपा के वर्चस्व को कायम रखने की चुनौती है तो विपक्षियों को अपनी खोई हुई सीटों को वापस पाने के लिए जोरदारी से लड़ना होगा। 

भाजपा की तेज आंधी में भी अम्बेडकरनगर की पांच सीटों में से तीन सीटें बसपा को मिली थी। अम्बेकरनगर से बसपा मुखिया मायावती भी चुनाव लड़ चुकी हैं और यहां बसपा का लम्बे समय तक जलवा कायम रहा। 2007 में भी बसपा ने यहां की पांचों सीटों पर जीत हासिल की थी। भाजपा की तेज आंधी में भी अम्बेडकरनगर की पांच सीटों में से तीन सीटें बसपा को मिली थीं लेकिन बसपा की चिंता का सबसे बड़ा सबब यह है कि अकबरपुर से बसपा के टिकट पर चुने गए रामअचल राजभर व कटेहरी के विधायक लालजी वर्मा को पार्टी निष्कासित कर चुकी है और जलालपुर सीट से जीते बसपा विधायक रितेश पांडेय अब सांसद हो चुके हैं और उपचुनावों में बसपा यह सीट हार चुकी है।  ऐसे में मौजूदा समय में बसपा यहां भी खाली हाथ है। 

सातवें चरण में वाराणसी और आजमगढ़ में भाजपा और सपा के प्रभुत्व वाले जिले हैं। वाराणसी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है लिहाजा यहां कमल खिलने का संदेश दूर तक जाएगा। वहीं आजमगढ़ से सपा मुखिया अखिलेश यादव सांसद है। यह सपा के प्रभुत्व वाला इलाका है

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