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शिवपुर विधानसभा सीट तय करेगा दो राजभर नेताओं का सियासी भविष्य

गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. परिसीमन के बाद 2012 में अस्तित्व में आया शिवपुर विधासभा क्षेत्र इस बार दो राजभर नेताओं का सियासी भविष्य तय करेगा। एक प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे अनिल राजभर तो दूसरे सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर हैं। कह सकते हैं कि यहां आमने-सामने की जंग है। अनिल राजभर भाजपा के टिकट पर इस बार फिर से यहां मैदान में है तो सुभासपा अध्यक्ष ने अपने पुत्र डा. अरविंद राजभर को उतार दिया है। 

2017 के चुनाव में भाजपा व सुभासपा साथ थे और प्रतिद्वंद्वी सपा को 54259 वोटों से शिकस्त दी थी। इस बार परिदृश्य बदल गया है। अब सपा के साथ है सुभासपा और प्रत्याशी खुद पार्टी अध्यक्ष के पुत्र अरविंद। इसे सुभासपा का इस सीट को लेकर आत्मविश्वास भी कह सकते हैं। डा. अरविंद ने 2017 के चुनाव में बलिया की बांसडीह सीट से चुनाव लड़ा था और दो दिग्गजों की टक्कर में तीसरे स्थान पर थे। पहले ओमप्रकाश राजभर ने खुद अनिल राजभर के खिलाफ मैदान में उतरने की घोषणा की थी, लेकिन बाद में अपनी पुरानी गाजीपुर की जहूराबाद सीट को ही चुना। सपा ने उन्हें 18 सीटें गठबंधन में दी हैं।

ओमप्रकाश राजभर ने अपनी राजनीतिक शुरुआत 1981 में कांशीराम के समय की थी। बसपा से दो दशक का साथ रहा। 2001 में मायावती से विवाद के बाद अपनी पार्टी बना ली। हालांकि पूर्वांचल की लगभग सवा सौ सीटों पर राजभर समाज का प्रभाव है। पूर्वांचल की दो दर्जन से अधिक सीटों पर निर्णायक स्थिति में हैं। इस कारण ही ओमप्रकाश ने राजभर प्रभाव वाली सीटों पर फोकस किया। पिछले चुनाव में भाजपा से गठबंधन में आठ सीटें मिलीं। सुभासपा ने इनमें चार सीटें जीतीं, लेकिन कई सीटों पर बने समीकरणों के कारण गठबंधन सहयोगी को भरपूर लाभ भी दिलाया। अबकी वे सपा के साथ हैं।

इसे देखते हुए भाजपा ने अनिल राजभर का ओहदा बढ़ाते हुए राज्यमंत्री से कैबिनेट में जगह दी। समाज से जुड़े क्षेत्रों में उनका मूवमेंट तो बढ़ा ही अक्सर दोनों नेता अपने बयानों के चलते अपना वर्चस्व साबित करने के लिए आमने-सामने भी रहे। मूलत: चंदौली निवासी अनिल राजभर के पिता रामजीत राजभर दो बार विधायक रहे हैैं। सपा के टिकट पर उन्होंने पहली बार धानापुर तो दूसरी बार चिरईगांव सीट से जीत हासिल की। 

2002 में पिता के निधन के बाद अनिल उपचुनाव में सपा के टिकट पर चुनाव में उतरे लेकिन हार मिली। 2012 के चुनाव से पहले ही अनिल के रास्ते सपा से अलग हो गए। वे अमर सिंह की पार्टी लोकमंच से जुड़े, प्रदेश अध्यक्ष बने, लेकिन बात न बनती देख 2015 में भाजपा में शामिल हो गए। पिछले लोकसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की बदली चाल को देखते हुए भाजपा ने अनिल को बढ़ाना शुरू किया। इसमें सफलता मिलती देख ओहदा बढ़ा कर प्रोत्साहित भी किया।

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