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नारद राय और अंबिका चौधरी समेत कई दिग्गजों की भूमिका पर परदा

गाजीपुर न्यूज़ टीम, बलिया. जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव परवान चढ़ रहा है इसके अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग सियासी रंग दिख रहे हैं। ऐसा ही एक रंग आजकल बलिया में भी चटख हो चला है। यह रंग है रहस्य का। समाजवादी पार्टी सरकार में मंत्री रहे अंबिका चौधरी और नारद राय की भूमिका पर अभी तक परदा पड़ा है। 2017 के चुनाव में सपा ने इन दोनों दिग्गजों का टिकट काट दिया था, इसके चलते नामांकन तारीख के ठीक एक सप्ताह पहले इन्होंने पाला बदल लिया था। 

वह 'साइकिल छोड़ 'हाथी पर सवार हो गए थे। अंबिका अपनी पुरानी सीट फेफना से लड़े थे, जबकि नारद बलिया सदर से। दोनों लोगों को हार मिली थी। अंबिका दूसरे जबकि नारद तीसरे स्थान पर रहे। दोनों सीटों पर भाजपा ने कब्जा कर लिया। फेफना से उपेंद्र तिवारी जबकि बलिया से आनंद स्वरूप शुक्ला को जीत मिली और वह प्रदेश सरकार में मंत्री भी बने।

इस बार कहानी थोड़ी अलग है। अंबिका और नारद की घर वापसी हो चुकी है। अंबिका के पुत्र आनंद चौधरी सपा से जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हैं, लेकिन इस बार विधायकी 'चौधरी घराने से दूर होगी।

इस सीट पर हर बार भाजपा और सपा के बीच रोचक जंग हुई है। अंबिका 1993, 1996, 2002, 2007 में विधायक रह चुके हैं। 2012 में इस सीट पर भाजपा के उपेंद्र तिवारी ने कब्जा जमा लिया। 2017 में उपेंद्र से ही उन्हें मात मिली थी। उन्हें 70588 वोट, अंबिका को 52691 और सपा के संग्राम सिंह यादव को 50016 मत मिले थे। इस बार उनकी सीट से सपा ने संग्राम सिंह यादव को मैदान में उतार दिया है। संग्राम चिलकहर विधानसभा से 1993 में बसपा से विधायक बने थे, इस बार वह फेफना सीट से लड़ेंगे। वह इस सीट पर दूसरी बार मैदान में हैं, वह पिछली बार हार गए थे। अब इस विधानसभा में अंबिका की भूमिका क्या होगी, इस पर रहस्य बना है। सपा के स्टार प्रचारकों की सूची में भी उन्हें शामिल नहीं किया गया है। उधर बलिया सीट पर सपा ने अभी तक प्रत्याशी घोषित नहीं किया है, लेकिन पूर्व मंत्री नारद राय, मंजू सिंह, राम इकबाल सिंह व लक्ष्मण गुप्ता समेत कई धुरंधर दावेदार हैं।

हाईप्रोफाइल सीट बांसडीह पर सबकी नजर

बांसडीह में सपा ने रामगोविंद चौधरी को तीसरी बार लगातार अपना प्रत्याशी बनाया है, लेकिन भाजपा और बसपा ने अपने उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं। 2017 के विधान सभा चुनाव में भी यहां काफी विलंब से टिकट की घोषणा हुई थी। भाजपा से केतकी सिंह तैयारी कर रहीं थीं, लेकिन पिछली बार भाजपा और सुभासपा गठबंधन में यह सीट सुभासपा के खाते में चली गई थी। ऐसे में वह कार्यकर्ताओं की जिद पर वह निर्दलीय मैदान में उतरीं। लड़ाई कांटे की रही थी। इनकी कोई सियासी पृष्ठभूमि नहीं है, लेकिन महिलाओं का नेतृत्व मजबूती से करती हैं। नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद मात्र 1687 मतों से जीत हासिल कर पाए थे। इस बार यहां अभी तक भाजपा और बसपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। सभी की नजर इस सीट पर है।

दांंव पर कई धुरंधरों की साख

भाजपा में भी कई धुरंधरों की साख दांव पर है। पूर्व मंत्री राजधारी सिंह सिकंदरपुर से चुनाव लडऩा चाहते थे, लेकिन यहां पर हाईकमान ने सीटिंग विधायक संजय यादव पर ही दोबारा भरोसा जताया है। वह टिकट पाकर मैदान में हैं। ऐसे में राजधारी की भूमिका पर सस्पेंस गहरा गया है। इसी तरह सपा के पूर्व मंत्री सनातन पांडेय चिलहकर से विधायक बने थे। बाद में वह रसड़ा से चुनाव लड़े लेकिन हार गए। इस बार सीट सुभासपा के खाते में जा सकती है, इसलिए इनकी भूमिका भी संदेह में रहेगी।

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