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यूपी विधानसभा के लिए हर पार्टी की यही मंशा और प्रयास है- फेंक जहां तक भाला जाए

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी गई है। इसी के साथ आदर्श चुनाव आचार संहिता भी लागू हो गई है। चुनाव 10 फरवरी से शुरू होकर सात चरणों में संपन्न होंगे। मतगणना 10 मार्च को होगी। आशंका थी कि कोरोना की तीसरी लहर के चलते चुनाव प्रक्रिया टल जाएगी, किंतु हालात का जायजा लेने के बाद चुनाव आयोग इस नतीजे पर पहुंचा है कि चुनाव कराए जा सकते हैं।

आचार संहिता लागू होते ही विभिन्न जिलों में प्रशासन ने विधानसभा क्षेत्र स्तर तक पोस्टर और होर्डिग हटवाने का काम तेज कर दिया। अब राजनीतिक पार्टियों के लिए कोरोना संक्रमण के बीच हर दरवाजे तक पहुंचना बड़ी चुनौती होगी। लेकिन, तकरीबन सभी राजनीतिक दलों की आभासी दुनिया में बड़ी पैठ है। कहा जा रहा है कि पार्टियां अब वचरुअल रैली पर ज्यादा जोर देंगी। भारतीय जनता पार्टी इंटरनेट के विभिन्न माध्यमों पर सबसे मजबूत पकड़ रखने वाले दलों सबसे ऊंचे पायदान पर है। ट्विटर, यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर उसके फालोवरों की संख्या बहुत बड़ी है। वाट्सएप समूहों का भी उसका व्यापक संजाल है। ऐसे में वह जब चाहे वचरुअल मोड में सभा कर सकती है। दूसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी है। इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर सपा के फालोवर भी ठीक-ठाक हैं, लेकिन कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी इस मामले में काफी पीछे हैं। ऐसे में भाजपा और सपा के अलावा अन्य दलों के लिए इंटरनेट पर कार्यक्रम करना टेढ़ी खीर जैसा होगा।

चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले ही लगभग सारी पार्टियां पूरी तरह सक्रिय हो चुकी थीं। सबसे अधिक भाजपा ही प्रदेश के विभिन्न इलाकों और अवसरों पर नजर आई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी प्रदेश को मथ चुके हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की रणनीति और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में जहां भाजपा सबका साथ सबका विकास, सुशासन, विकास और विकास कार्यो के बदौलत चुनाव में उतर रही है, वहीं उसने रियायतों का पिटारा भी खोल दिया है। निःशुल्क राशन वितरण के साथ ही किसानों को लुभाने के लिए निजी ट्यूबवेल का बिजली चार्ज आधा कर दिया गया है। भाजपा ने विपक्ष के हाथ से लगभग सारे मुद्दे छीन लिए हैं।

समाजवादी पार्टी भी पूरे जोर-शोर से लगी है। विभिन्न छोटे दलों से गठबंधन करने के अलावा वादों की झोली पूरी तरह से खोल दी है। बहुजन समाज पार्टी थोड़ा पीछे चल रही है। ब्राह्मणों को लुभाने के लिए उसने सतीश मिश्र को जरूर सक्रिय कर दिया है। कांग्रेस पार्टी भी चुनाव के लिए पूरी तरह से जुटी है। लड़की हूं, लड़ सकती हूं- नारे के सहारे युवाओं को जोड़ने का खूब प्रयास किया गया। सभी जगह आयोजन में कुछ न कुछ विवाद होने पर पार्टी ने अब इससे हाथ पीछे खींच लिया है, लेकिन जनता से लुभावने वादे जरूर कर रही है। सरकार बनने की शर्त पर कभी वह किसानों के कर्ज माफी की बात करती है तो कभी लड़कियों को स्कूटी देने की बात करती है, रोजगार का पिटारा भी इस तरह खोल दिया है कि जैसे अब कोई बेरोजगार बचेगा ही नहीं।

विभिन्न पार्टियों की चुनावी घोषणाओं के अलावा समग्रता में बात करें तो भाजपा जीवन को प्रभावित करने वाले लगभग सभी क्षेत्र में कदम बढ़ा रही है। चाहे वह क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान की बात हो अथवा विभिन्न जातियों, वर्गो को अपने पक्ष में करने की या फिर धार्मिक भावना को भुनाने की। पार्टी के तमाम बड़े नेता इस समय फील्ड में ही नजर आ रहे हैं। एक तरफ जहां वे डबल इंजन सरकार की उपलब्धियां गिना रहे हैं, वहीं विपक्षी पार्टियों की कमियों को बताने से नहीं चूक रहे हैं। अन्य पार्टियों का एक ही मकसद है चाहे जैसे भी भाजपा को सत्ता में नहीं आने देना है। इसके लिए वे हर तरह के जोड़-तोड़ में लगे हैं। जिन पार्टियों को अब तक देखना भी गुनाह समझते थे, उन्हीं से हाथ मिलाने को बेताब हैं।

चूंकि चुनाव लड़ने के लिए 40 लाख रुपये खर्च करने की सीमा तय हो चुकी है, ऐसे में विभिन्न पार्टियों के प्रत्याशियों को बहुत-सोच समझकर ही काम करना पड़ेगा, क्योंकि इस तकनीकी युग में एक-एक पैसे का हिसाब रखना चुनाव आयोग के लिए मुश्किल काम नहीं है। हालांकि सभी राजनीतिक पार्टियां दागी नेताओं से दूरी बनाने की बात कह रही हैं, लेकिन हर पार्टी को जिताऊ प्रत्याशी की जरूरत है। उसे बेदाग साबित करने के लिए वे कोई भी तर्क देने के लिए तैयार रहती हैं। फिलहाल हर पार्टी की यही मंशा और प्रयास है- फेंक जहां तक भाला जाए।

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