आजाद हिंद फौज में डाकिया थे तिलकू प्रजापति - Ghazipur News
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. नेता जी ही विरले देशभक्त थे जिन्होंने ब्रिटिश काल में आजाद हिंद फौज नाम से सेना तक स्थापित कर डाली। नेता जी सुभाषचंद्र बोस अपनी धुन के पक्के थे। वे कर्मठ सिपाही के रूप में काम करते थे। वे समर्पित लोगों को ही साथ रखना पसंद करते थे। ये संस्मरण सुनाया करते थे जखनिया क्षेत्र के हथियाराम गांव निवासी तिलकू राम प्रजापति। तिलकू राम आजाद हिंद फौज में डाकिया थे। उनको आज भी जिले के लोग सम्मान के साथ याद करते हैं।
दो साल पहले तिलकूराम प्रजापति का निधन हो गया। वे आजाद हिंद फौज के एक निष्ठावान कार्यकर्ता थे और उन्होंने आजाद हिंद फौज के लिए डाकिए का काम किया। इस कारण से उन्हें नेताजी का खबरी भी कहा जाता था। जब वह जिंदा थे तो प्राय: लोगों को नेता जी के बारे में बताया करते थे। तिलकू राम के पुत्र लौटू प्रसाद ने बताया कि तिलकू दादा से नेताजी की तमाम कहानियां सुनने को मिलती थी जिससे रोम-रोम सिहर उठता था।
वे कहते थे कि नेताजी ने आजाद भारत के इस स्वरूप की कल्पना तो कतई नहीं की थी। वर्तमान में राजनेताओं में लोकाचार के साथ ही ईमानदारी व कर्तव्य परायणता का भाव समाप्त हो गया है। तिलकू दादा भी सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर झुंझला उठते थे। वे कभी-कभी थाना तहसील ब्लाक व जनपद की व्यवस्थाओं को लेकर आक्रोशित हो जाते थे। वह कहा करते थे जान हथेली पर लेकर तमाम खतरों के बीच दौड़ भाग कर जंगे आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद आजाद भारत का यह स्वरूप काफी तकलीफ देह साबित होता है। उन्होंने बताया कि जब लाल बत्ती बत्ती हटाकर वीआईपी कल्चर समाप्त किया गया था तो तिलकू दादा ने इसे उचित फैसला बताया था।
ब्रजनाथ सहाय को गिरफ्तार नहीं कर पाए थे अंग्रेज
नेता जी सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित क्रांतिकारी ब्रजनाथ सहाय को ब्रिटिश हुकूमत गिरफ्तार नहीं कर पाई थी। ब्रजनाथ सहाय हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू व फारसी के अच्छे जानकार थे। वे नेता जी सुभाष चंद्र बोस को आदर्श मानते थे और बीस जनवरी 1948 को उन्होंने नेता जी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर सुभाष विद्या मंदिर इंटर कालेज की स्थापना की। आज यह विद्यालय महाविद्यालय बन चुका है। इस विद्यालय का स्थापना दिवस बीस जनवरी से शुरू होकर नेता जी की जयंती 23 जनवरी तक चलता है। इस दौरान खेलकूद व सांस्कृतिक प्रतियोगिताएं होती हैं। विजयी टीमों व छात्रों को नेता जी की जयंती पर पुरस्कृत किया जाता है।
ब्रजनाथ सराय नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित होकर 1942 में वकील पद्मनाथ सिंह के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। आजमगढ़ में रणभेरी पत्रिका (जिस पर अंग्रेजी सरकार ने प्रतिबंध लगा रखा था) को छुप-छुपाकर घर-घर पहुंचाने लगे। पुरुषोत्तम दास अंगूरिया, जूठन राम आदि की टीम थी। पद्मनाथ सिंह व अन्य साथी आजमगढ़ जेल में बंद थे। इन्हेें छुड़ाने के लिए जेल के गेट पर बम मारा गया था। इस कारण काफी बवाल हुआ और रात में बहरियाबाद आ गए।
इनके नाम से वारंट जारी हुआ लेकिन बड़े भाई विश्वनाथ सहाय के कलेक्टर दफ्तर में अहलमद होने के कारण कलेक्टर आजमगढ़ को वारंट निरस्त करना पड़ा। फिर 1942 में कलेक्टर व एसपी दफ्तर के बीच ब्रिटिश सरकार के लगे टेंट में रात के अंधेरे में रेंगते हुए जाकर आग लगाकर फरार हो गए और गांव चले आए। फिर उन पर वारंट जारी हुआ। उसी दौरान सादात थाना फूंका गया था तथा दो सिपाही जिंदा जला दिए गए थे। तब उन्होंने गांव आकर तिरंगा के साथ जुलूस निकाला था। इसकी खबर मिलने पर अंग्रेज अधिकारी नीदर सोज के आदेश पर थानेदार महमूद आलम को किसी भी सूरत में ब्रजनाथ सहाय को गिरफ्तार करने के लिए भेजा गया लेकिन अग्रेज उनको गिरफ्तार नहीं कर पाए।