कहानी : ख़ामोश सहारा
‘जानते हो सुबोध, जब भी मैं विकास के साथ इस रेस्तरां में आती थी वह पापड़ी चाट ज़रूर ऑर्डर करता था। वह पापड़ी चाट का दीवाना था। कभी-कभार मैं भी खा लेती थी उसके साथ। पर मैं साउथ इंडियन डिश ज़्यादा पसंद करती हूं।’ लक्ष्मी ने मेन्यू देखते हुए कहा। सुबोध मुस्कराकर रह गया, पर उसकी यह मुस्कराहट सतही थी। अंदर ही अंदर वह व्यथित हो गया।
लक्ष्मी हर बात में विकास को याद करती थी। पहले तो उसे लगा उसका कुछ ही दिनों पहले विकास के साथ ब्रेकअप हुआ है अतः वह उसे याद करती है। पर यह ज़िक्र धीरे-धीरे घटने के स्थान पर बढ़ता चला गया। सुबोध को अब नागवार गुज़रने लगा था। आख़िर कब तक वह एक्स बॉयफ्रेंड को बीच में लाती रहेगी। उसने बताया था कि लगभग सात वर्षों तक वह विकास के साथ रिलेशनशिप में रही थी। बाद में किसी बात पर उनमें जमकर विवाद हुआ था, जिसकी वजह से ब्रेकअप हुआ।
इसके बाद सुबोध के साथ उसकी दोस्ती हो गई थी। शेष बातें तो ठीक थीं पर बार-बार एक्स बॉयफ्रेंड की चर्चा करना उसे खलने लगा था। प्रत्यक्षतः उसने कहा, ‘नहीं, मैं सिर्फ़ कॉफी लूंगा।’ लक्ष्मी ने वेटर को इशारे से बुलाया और सांभर-वड़ा और एक कप कॉफी का ऑर्डर दे दिया। लक्ष्मी ने यह तो नोटिस किया कि सुबोध कुछ अनमना-सा हो आया है, पर कारण उसकी समझ में नहीं आया। इस बीच वेटर सांभर-वड़ा और कॉफी टेबल पर रख गया।
‘तुम बीच-बीच में कहां खो जाते हो सुबोध?’ लक्ष्मी ने वड़े का एक टुकड़ा मुंह में डालते हुए पूछा। ‘कहीं नहीं। कभी-कभार दिमाग़ इधर-उधर चला जाता है’ कॉफी सिप करते हुए उसने कहा। मन ही मन सोचा, ‘तुम्हारे एक्स बॉयफ्रेंड के पास और कहां।’ थोड़ी देर बाद इधर-उधर की बातें करने के बाद दोनों ने विदा ली। सुबोध को लक्ष्मी का हर बात पर विकास की यादें ताज़ा करना बुरा लगने लगा था। सुबोध चाहता था कि उसके और लक्ष्मी के बीच कोई और न आए, चर्चा में भी नहीं।
लक्ष्मी इस बात से अनभिज्ञ थी, अतः वह विकास की चर्चा छेड़ बैठती थी। एक दिन सुबोध अपने ऑफिस से बाहर निकल कर चाय की गुमटी पर खड़ा चाय पी रहा था। यह उस ऑफिस में काम करने वाले कई लोगों की दिनचर्या थी। ऑफिस से लौटते वक़्त वे ज़रूर उस गुमटी पर आते थे और चाय पीते थे। इसके बाद अपने घर जाते थे। उसी समय उसकी सहकर्मी तनुजा भी आई। ‘आओ तनुजा, क्या लोगी? चाय या कॉफी?’ सुबोध ने पूछा। ‘कॉफी।’ तनुजा ने कहा और उसके कंधे पर हाथ रखकर खड़ी हो गई।
‘और क्या चल रहा है? घर में सब ठीक?’ सुबोध ने लक्ष्मी और विकास को अपने ज़ेहन से बाहर निकालते हुए पूछा। ‘हां, सब ठीक है। बस कोरोना के प्रभाव से कई मित्र-रिश्तेदारों को काफ़ी नुकसान हुआ है। आए दिन यही ख़बरें सुनते-सुनते मन उदास हो जाता है।’ तनुजा ने कहा फिर पूछा, ‘पर मैं तुम्हें ज़्यादा परेशान पाती हूं। कुछ विशेष बात है क्या? ऑफिस में भी खोए-खोए से रहते हो।’ इस बीच सुबोध की चाय और तनुजा की कॉफी आ चुकी थी।
दोनों हाथ में कप लिए चुस्कियां ले रहे थे। तनुजा के प्रश्न एक बार फिर सुबोध को लक्ष्मी और विकास की दुनिया में ले आए थे। वह परेशान हो गया, पर प्रत्यक्षतः बोला- ‘ऐसी कोई बात नहीं है।’ ‘नहीं बताना चाहते हो तो कोई बात नहीं, पर बात तो है। वैसे मैं तुम्हारी कलीग हूं। शेयर करोगे तो मन हल्का हो जाएगा। और हां, मेरे पास से बात किसी और के पास नहीं जाएगी, यह मैं गारंटी देती हूं’ तनुजा ने कहा। सुबोध ने तनुजा को ग़ौर से देखा, मानो आकलन कर रहा हो कि व्यक्तिगत समस्या शेयर की जा सकती है या नहीं।
पिछले चार वर्षों से वह उसके साथ काम कर रहा था और प्रायः दफ़्तर से जुड़ी हर तरह की बातें उससे शेयर कर लेता था। सुबोध के चेहरे पर असमंजस के भाव देख तनुजा ने कहा, ‘नहीं बताना चाहते तो कोई बात नहींं।’ फिर धीरे से बोली, ‘यहां नहीं बताना चाहते तो सामने पार्क में चलो, एकांत में बैठ कर बातें करते हैं।’ ‘चलो।’ सुबोध ने कहा और गुमटी वाले को क्यूआर कोड स्कैन कर मोबाइल से भुगतान कर दिया। गुमटी से दो सौ मीटर आगे चौराहे पर नगर निगम का पार्क था। पार्क ठीक-ठाक था। बैठने के लिए जगह-जगह पर सीमेंट की बेंच थीं।
सड़क किनारे वाले भागों में गाड़ियों की आवाज़ें आती थीं पर अंदर वाले हिस्सों में शांति रहती थी। एक बेंच पर दोनों अपने बैकपैक रखकर बैठ गए। ‘हां बताओ क्या समस्या है?’ तनुजा ने पूछा। ‘यार मेरी गर्लफ्रेंड हर बात में अपने एक्स बॉयफ्रेंड की चर्चा करती है। मुझे लगता है वह दिल से उसी के पास है। यह बात मुझे हर पल सालती रहती है,’ सुबोध ने कहा। ‘जैसा कि तुमने बताया था वह काफ़ी दिनों तक अपने एक्स बॉयफ्रेंड के साथ रह चुकी है। ऐसे में कभी-कभार चर्चा करना ग़लत नहीं है। मुझे नहीं लगता यह कोई बड़ी बात है,’ तनुजा ने सहज होकर कहा। ‘कभी-कभार चर्चा करना अलग बात है।
पर हर बात में? धीरे-धीरे उसकी यह आदत बढ़ती ही जा रही है। मैं जानता हूं कि वह मुझसे प्यार करती है लेकिन जब तक वह अपने बीते कल से बाहर नहीं आएगी मैं कैसे उसके साथ अपने रिलेशनशिप पर ध्यान दे सकता हूं। क्या करूं कुछ समझ में नहीं आ रहा,’ सुबोध चिंतित स्वर में बोला। तनुजा कुछ देर सोचती रही फिर बोली, ‘देखो सुबोध, उसे समय दो, उसका साथ दो। अपने कल को एकदम से त्याग देना उतना आसान नहीं होता। इसमें समय लगता है।
वह अपने एक्स के बारे में तुमसे इतनी बात करती है इसका मतलब है कि वह तुमपर पूरा विश्वास करती है। इस तरह की व्यक्तिगत बातें कोई उसी के साथ शेयर कर सकता है जिसे वह दिल से अपना मानता हो। मैं तुम्हें सलाह दूँंगी कि उसे अपने एक्स के बारे में बातें करने दो। धीरे-धीरे वह बीते कल से बाहर आ जाएगी। तुम्हारा ख़ामोश सहारा उसे बाहर आने में सहायता करेगा।
मैं यह नहीं कह रही कि मैं जो कह रही हूं वही सही है। बस, विचार करके देखना। यदि तुम उसे अपने एक्स की चर्चा करने के लिए मना करोगे तो उसे घुटन होगी और शायद वह तुम्हारे साथ इस तरह सामान्य बर्ताव नहीं कर पाएगी जैसा अभी करती है।’ सुबोध को तनुजा की बातें सही लगीं। आख़िर पूरा विश्वास करने के कारण ही तो वह एक्स की हर बात उसके साथ शेयर करती है। फिर नई यादें बनेंगी, तो पुरानी धुंधली पड़ती जाएंगी। ‘ठीक है। थैंक यू तनुजा’ सुबोध ने उठते हुए कहा। ‘मोस्ट वेलकम’ तनुजा ने मुस्कुरा कर कहा। दोनों ने अपने बैकपैक उठाए और चल पड़े मेट्रो स्टेशन की ओर।