काशी में उपेक्षित देवालयों में नियमित पूजन-अर्चन और श्रृंगार-आरती का प्रबंध करेंगे अखिल भारतीय संत समिति
गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. धर्म नगरी काशी के उपेक्षित देवालयों में पूजन और पुजारी दोनों का योग-क्षेम अखिल भारतीय संत समिति वहन करेगी। ऐसे देवालयों-शिवालयों में पूजा-आरती और श्रृंगार-भोग के लिए प्रतिमाह 2500 रुपये और सेवारत पुजारी को जीवन-यापन के लिए पांच हजार रुपये प्रतिमाह दिए जाएंगे। पहले चरण में काशी के 100 मंदिरों से इसकी शुरुआत की जा रही है। संत समिति धर्म रक्षार्थ संकल्प की पूर्णता के लिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के साथ मिल कर महाभियान चलाएगी। इसे पूजित देवालय नाम दिया गया है। इसमें श्रीकाशी विद्वत परिषद मार्गदर्शक की भूमिका में होगा।
दिलाएंगे मान, जगाएंगे स्वाभिमान
अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती कहते हैैं कि अभियान के तहत सड़कों के किनारे उपेक्षित देवालय व्यवस्थित किए जाएंगे। जहां पुजारी नहीं हैैं, वहां प्रबंध किया जाएगा। श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी व गंगा महासभा के संगठन महामंत्री गोविंद शर्मा के नेतृत्व में कमेटी इस तरह के मंदिरों का चयन करेगी। अर्थ प्रबंध महानिर्वाणी अखाड़ा करेगा। इसके लिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष व महानिर्वाणी अखाड़ा के श्रीमहंत रवींद्र गिरी ने सहमति दी है।
जन जन को जगाएंगे समितियां बनाएंगे
स्वामी जीतेन्द्रानन्द स्पष्ट करते हैैं कि अभियान वातावरण बनाने और स्वाभिमान जगाने का प्रयास है। इसके माध्यम से गांव-मोहल्लों को खड़ा किया जाएगा। आगे चल कर स्थानीय लोगों की 10-10 सदस्यीय समितियां बनाई जाएंगी जो मंदिरों में पूजा-आरती के प्रबंध की चिंता करेगी। संत समिति, अखाड़ा परिषद व विद्वत परिषद श्रद्धा का निर्माण करेगा और मार्ग दर्शक की भूमिका में होंगे। इसके लिए 'पूजित देवालय-पूजित शिवालय, 'पुण्य प्राप्ति का उत्तम योग, मंदिर-मंदिर पूजा भोग, 'सबका जागे पुण्य प्रताप, हर मंदिर में पूजा पाठ का नारा दिया जाएगा।
काशी में 33 कोटि देवों का वास
वास्तव में बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी 33 कोटि देवों के वास के लिए भी जानी जाती है। सड़कों-गलियों से लेकर घाट-हाट तक स्थापित विभिन्न देव विग्रहों के मंदिर इस धारणा को पुष्ट करते हैैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग, चार धाम, सप्तपुरी का इस नगरी में स्थान तो नौ देवी, नौ गौरी, 56 विनायक, अष्ट भैरव, द्वादश आदित्य, बिंदु माधव, आदिकेशव, गुरुधाम समेत सनातन धर्म के समस्त संप्रदायों के देवालय यह भाव भरते हैैं। इनमें स्वयं काशीपुराधिपति दरबार हो या संकट मोचन, दुर्गाकुंड समेत गिने-चुने कुछ देवालय ही ख्यात हैैं। उनकी भव्यता, भक्तों की कतार, चढ़ावा व पूजा -श्रृंगार देख मन कह उठता है क्या बात है। वहीं, पौराणिकता व महत्ता के बाद भी कई देवालय गुमनाम हैं। उनमें पूजन-आरती तक का समुचित प्रबंध नहीं है।
संस्कृति संसद का संकल्प बना प्रकल्प
अखिल भारतीय संत समिति व श्रीकाशी विद्वत परिषद के मार्गदर्शन में गंगा महासभा व दैनिक जागरण की ओर से 12-14 नवंबर तक आयोजित संस्कृति संसद में इसकी परिकल्पना की गई। अब दूरदर्शी सोच के साथ योजनाबद्ध तरीके से मूर्त रूप देने की दिशा में कार्य शुरू हो रहा है।