भूमि अर्जन के पुराने मुकदमों को जल्द खत्म करने के लिए योगी सरकार का बड़ा कदम, जानें- पूरी डिटेल
गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की मंशा परवान चढ़ी तो भूमि अधिग्रहण के पुराने कानून से जुड़े वर्षों से लंबित मुकदमों की सुनवाई और निस्तारण तेजी से हो सकेगा। इसके लिए सरकार भूमि अधिग्रहण के पुराने कानून से जुड़े मुकदमों की सुनवाई भूमि अर्जन के नए कानून के तहत गठित भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकरण (लारा) में कराने पर विचार कर रही है।
भूमि अर्जन का नया कानून लाने के लिए केंद्र सरकार ने भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 बनाया था। नया कानून वर्ष 2014 से लागू है। भूमि अर्जन के नए कानून के लागू होने के बाद जमीन के अधिग्रहण से जुड़े मुकदमों की सुनवाई नए अधिनियम के तहत गठित भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकरण में ही करने की व्यवस्था है। प्रदेश में फिलहाल 13 ऐसे प्राधिकरण गठित हैं। वहीं वर्ष 2014 से पहले दर्ज हुए जमीन के अधिग्रहण के मुकदमों की सुनवाई भूमि अर्जन के पुराने कानून (भूमि अध्याप्ति अधिनियम, 1894) के तहत जिला जज के न्यायालय में होती है।
पुराने कानून के तहत तहत उत्तर प्रदेश में जिला जजों के न्यायालयों में लगभग 6600 मुकदमे लंबित हैं। इनमें बड़ी संख्या में ऐसे मुकदमे भी हैं जो 30-40 वर्षों से लटके हैं। उधर, भूमि अधिग्रहण के नए कानून के तहत गठित भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकरण में विचाराधीन मुकदमों की संख्या 1000 से भी कम है। यह प्राधिकरण सिर्फ भूमि अधिग्रहण के नए कानून के तहत दर्ज मुकदमों की सुनवाई कर रहे हैं।
भूमि अर्जन के नए कानून में आपसी समझौते के आधार पर भी जमीन खरीदने की व्यवस्था है। इसलिए इसमें विवाद की गुंजायश कम है। वहीं जिला जजों के न्यायालय अन्य प्रकार के मुकदमों के बोझ से भी दबे हुए हैं। इसलिए शासन स्तर पर विचार विमर्श के बाद यह सहमति बनी है कि भूमि अर्जन के पुराने कानून के तहत दर्ज मुकदमों की तेजी से सुनवाई कराकर उनका निस्तारण कराने के लिए इन्हें भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनव्र्यवस्थापन प्राधिकरण में ट्रांसफर किया जाए।
इसकी एक और वजह यह है कि पुराने कानून के तहत वर्षों से लंबित मुकदमें जितना लंबा और खिचेंगे और यदि उनमें फैसला खिलाफ हुआ तो सरकार को ब्याज समेत बड़ी रकम का भुगतान करना पड़ेगा। सरकार इसके लिए भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 में संशोधन कर उसे केंद्र सरकार की सहमति के लिए भेजेगी। अधिनियम में संशोधन के प्रस्ताव पर कैबिनेट की मुहर लगवाने की तैयारी की जा रही है।