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पंक्चर बनाने वाले की पुत्री बनी टापर, प‍िता ने कहा- बेटी ने पूरा कर दिया सपना

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गोरखपुर. किसी पंक्चर बनाने वाली की बेटी अर्थशास्त्र जैसे जटिल विषय की टापर हो, ऐसा सुनकर सहसा विश्वास नहीं होता लेकिन दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में ऐसा हुआ है। इस बार परास्नातक अर्थशास्त्र की टापर अकबरी खातून हैं, जिन्होंने अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए कड़ा परिश्रम किया और सफल हुईं। बेटी की सफलता से भावुक अकबरी के पिता अब्दुल गफ्फार ने बताया कि वह अनपढ़ थे, जिसके चलते उन्हें पंक्चर बनाने की दुकान खोलने के लिए मजबूर होना पड़ा।

राज्यपाल के हाथों स्वर्ण पदक म‍िला तो मानो पूरा हुआ सपना

अब्दुल के मुताबिक कई बार इसे लेकर बेइज्जती भी सहनी पड़ी। ऐसा उनके बच्चों को न झेलना पड़े, इसके लिए उन्हें शुरू से पढ़ने के लिए प्रेरित किया। बच्चे भी उनका मान रख रहे हैं। अकबरी ने राज्यपाल के हाथों स्वर्ण पदक लेकर उनका सपना पूरा किया हैं। अपनी कहानी बताते अब्द़ुल जब फफक पड़े तो उनकी बेटी अकबरी ने उन्हें संभाला और बताया कि वह चार भाई-बहन हैं। पिता उनकी पढ़ाई के लिए कड़ा परिश्रम करते हैं और अपनी कमाई का अधिकांश हिस्सा पढ़ाई पर ही खर्च करते हैं। मैं पिता की उम्मीद पर खरा उतर कर बेहद खुश हूं। इस सिलसिले को आगे भी जारी रखूंगी। मेरे भाई-बहन भी पिता की खुशी के लिए जी-तोड़ पढ़ाई करते हैं। अकबरी ने बताया उन्हें शोध कार्य पूरा करके उच्च शिक्षण संस्थान में शिक्षक बनना है। पिता के सपने को मंजिल तभी मिलेगी।

पिता होते तो कई गुना बढ़ जाती खुशी

अपनी मां अनुपमा मिश्रा और इंजीनियरिंग कर रहे भाई के साथ गोल्ड मेडल लेने आईं अर्पणा मिश्रा ने मेडल लेने के बाद बताया कि कुलाधिपति के हाथों उनके गले में चार मेडल पड़ा है। कोराेना के चलते पिता के खो देने का जिक्र करते अपर्णा ने बताया कि अगर आज उनके पिता होते तो यह खुशी कई गुना बढ़ जाती। उनका सीना गर्व से फूल जाता। सिसकती मां को संभालते हुए अर्पणा ने कहा कि उन्हें शोध करने प्रोफेसर बनना है। यही उनके पिता का सपना था।

किसान पिता की बेटी बनी शिक्षाशास्त्र की टापर

बेटी प्राची पांडेय के गले में सोने का तमगा देख किसान पिता परमात्मा पांडेय और मां शकुंतला पांडेय बेहद भावुक थे। उनकी आंखों में खुशी के आंसू साफ झलक रहे थे। सिद्धार्थनगर से आए परमात्मा ने बताया कि बेटी ने उनका अरमान पूरा किया है। उन्होंने खेती के लिए कड़ी मेहनत की लेकिन बेटी की पढ़ाई में कोई अड़चन नहीं आने दी। आज जब बेटी को गोल्ड मेडल मिला है तो लग रहा है मेहनत सार्थक हो गई।

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